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गुरुवार, 13 दिसंबर 2007

मजा अब आया चिट्ठाजगत का

तबीयत हो गयी बाग बाग
देख कर चिट्ठाजगत आज।

नित बदल रहा है रूप
और था कल, कुछ और है आज।

घबड़ाए थे कल, कराहे भी थे,
आई होगी कुछ सांस आज।

कहा है बुजुर्गों ने मत देखो,
कपड़े बदलती लड़की को, आएंगे बुरे विचार।

सज रही है दुलहन अभी,
आने तक मंच पर, उस का करो इन्तजार।

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