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मंगलवार, 20 नवंबर 2007

सुप्रभात............

श्री गणेश: .......

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अनवरत प्रकाशित होते रहने के लक्ष्य, प्रयास और चाहत के साथ यह चिट्ठा अपना श्री गणेश करता है। प्रयास रहेगा कि यहां तमाम तरह की जनरूचि की सामग्री हो, लेकिन उपयोगी हो और सामाजिक-सांस्कृतिक को गिराने के बजाए उन्हें ऊंचा उठाए। समाज के बारे में समझ अधिक यथार्थपरक बनी रहे, समाज को आगे ले जाने के सही रास्ते की तलाश जारी रहे। इस तलाश में अधिक से अधिक लोग अपनी चेतना, ज्ञान, कुशलता और साधनों से जुटें। एक नए मानव समूह का निर्माण की दिशा में आगे बढ़ें। इस तलाश के बीच वैचारिक भिन्नता रहे लेकिन आपसी सह-जीवन प्राथमिक शर्त हो। सह-जीवन हमारा वर्तमान है और सर्वाधिक मूल्यवान भी। उसे कटुतापूर्ण और प्रदूषित क्यों किया जाए। आज देखने में आता है कि हम भूतकाल को महत्व देते हुए वर्तमान में तलवारें खींच लेते हैं। भविष्य सुनहरा होना तो दूर रहा, हमारा वर्तमान भी लहूलुहान हो पड़ता है। हम इस वर्तमान को महत्व दें, इसे सहज, सुन्दर, सामाजिक और यथार्थ परक बनाने का प्रयास करें। यही भविष्य की नींव है।

सभी सुधी लोगों का सहयोग अनवरत को प्राप्त होगा। इसी आकांक्षा के साथ .......बिस्मिल्लाह।।

...... दिनेशराय द्विवेदी

1 टिप्पणी:

  1. मेरा जाल संबंध बंद था, तीन दिनों में अभी चालू हुआ है। आप कुछ प्रतीक्षा करें।

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