अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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रविवार, 14 दिसंबर 2025
ट्रेन मिल गयी
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लघुकथा : दिनेशराय द्विवेदी व ह सात दिनों से मुम्बई में था. आज यहाँ उसका आख़िरी दिन था. रात नौ बजे की ट्रेन मुंबई सेंट्रल से थी. सुबह उसने मे...
5 टिप्पणियां:
शनिवार, 13 दिसंबर 2025
'साख'
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'लघुकथा' अदालत का काम पूरा होते ही पदार्थीजी ने अपने भीतर एक अजीब हलकापन महसूस किया. जैसे किसी भारी बोझ को उतार दिया हो. बाहर गर्मी ...
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025
बधाई हो
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लघुकथा अदालत की इमारत उस दिन जैसे मुस्करा रही थी. बरसात में महीनों तक छत टपकती रही, फाइलों पर पानी की बूंदें गिरती रहीं, और मरम्मत के लिए ए...
गुरुवार, 11 दिसंबर 2025
रैंप और गंगा
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लघुकथा सभागार में रोशनी झिलमिला रही थी. रैंप पर कदमों की खटखटाहट, जैसे सदियों की चुप्पी पर चोट. दरवाज़ा धड़ाम से खुला. कुछ पुरुष भीतर घुसे,...
बुधवार, 10 दिसंबर 2025
अमूल्य घोड़ा
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लघुकथा अरब में एक साईस था, जो एक अमीर के घोड़ों की देखरेख करता था. अमीर के पास एक से एक बेहतरीन घोड़े थे. साईस की भी इच्छा थी कि उसका अपना ...
मंगलवार, 9 दिसंबर 2025
'पतंगबाज'
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'लघुकथा' रमन अपने दफ्तर जाने के लिए बस-स्टॉप पर खड़ा हो कर बस की प्रतीक्षा कर रहा था. तभी उसकी नजर सड़क के उस पार सामने वाले बस-स्ट...
सोमवार, 8 दिसंबर 2025
सर्वप्रिय भगवान
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लघुकथा गाँव के चौक में वह आदमी रोज़ खड़ा होता. उसकी आवाज़ में धर्म का जादू था और थी साम्प्रदायिकता की आग. वह लोगों में नफरत बाँटता. लोग उसे...
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