अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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बुधवार, 19 नवंबर 2014
परम्परा की कँटीली पगडंडी
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इ स बार अकलेरा प्रवास मेरे लिए अत्यन्त विकट रहा। ससुर जी के देहान्त के बाद पाँच मिनट में ही मुझे सूचना मिल गयी थी और घंटे भर बाद मैं अप...
शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014
एक दिवाली ऐसी भी ...
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दफ्तर सफाई अभियान इ स बार श्राद्धपक्ष समाप्त हुआ और नवरात्र आरंभ होने के बीच एक दिन शेष था। यह दिन वार्षिक संफाई की चिन्ता में बीता। उ...
शुक्रवार, 15 अगस्त 2014
‘मेड इन इण्डिया’
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‘मेड इन इण्डिया’ दिनेशराय द्विवेदी आइए हुजूर मेहरबान, कद्रदान आइए हमारे याँ डॉलर की जरूरत नहीं, बस कौड़ियाँ ले आइए हमारी जमीन, जंगल...
रविवार, 10 अगस्त 2014
बधाइयाँ... बधाइयाँ...!
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बधाइयाँ आ रही हैं , बधाइयाँ जा रही हैं , बधाइयाँ पोस्टरों पर हैं , नगरों में सड़कों के किनारे टंगे बड़े बड़े होर्डिंग्स पर हैं। बधाइयाँ ...
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
पार्क या मन्दिर
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को ई पन्द्रह बरस पहले मेरी कालोनी के कुछ लोगों का यह मंतव्य हुआ कि कालोनी में बने एक छोटे से पार्क में मंदिर बना दिया जाए जिस से लोगों को ...
गुरुवार, 31 जुलाई 2014
प्रेमचंद के फटे जूते
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व्यंग्य हरिशंकर परसाई प्रे मचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सर पर किसी मोटे कपडे की टोपी, कुरत...
शादी की वजह
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मुंशी प्रेमचन्द य ह सवाल टेढ़ा है कि लोग शादी क्यों करते है? औरत और मर्द को प्रकृत्या एक-दूसरे की जरूरत होती है लेकिन मौ...
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