अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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शनिवार, 19 अक्टूबर 2013
गप्पू जी का प्रहसन . . .
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अ ब 'पप्पू' पप्पू नहीं रहा। वह जवान भी हो गया है और समझदार भी। समझदार भी इतना कि उस की मज़ाक बनाने के चक्कर में अच्छे-अच्छे स...
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बुधवार, 16 अक्टूबर 2013
खुली कलई, निकला पीतल
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आ सुमल सिरुमलानी एक साधारण आदमी। काम-धंधे की तलाश, अपराधिक गतिविधियों और अध्यात्म के अभ्यास के बीच उसे जीवन का रास्ता मिल गया। सीधे-सादे, ...
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बुधवार, 9 अक्टूबर 2013
ज़ाजरू से फ्लश शौचालय तक
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पु रखे जरूर गांव के थे, लेकिन मैं एक छोटे शहर में पैदा हुआ। वहां कोई जंगल-वंगल नहीं था, जहां लोग जाते। शहर से लगी हुई एक और उस से आधा क...
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रविवार, 6 अक्टूबर 2013
आतंक पैदा करने वाली व्यवस्था . . .
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प्रि न्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, यहां तक कि सोशल मीडिया को भी सनसनी चाहिए। उस के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। कोई भी चटपटी बात हुई या कि...
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शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013
. . . यह भविष्य का युद्ध है।
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ये अध्यादेश में अटक कर लटके रह गए। उस ने बिल पास करा लिया। कुछ भी हो, वह कह सकता है – "हम ने कोई कसर ना छोड़ी। बड़ा अच्छा विधेयक ...
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बुधवार, 2 अक्टूबर 2013
न्याय व्यवस्था : पूंजीपति-भूस्वामी वर्गों की अवैध संतान
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चा रा घोटाला मामले के मुकदमों में से एक का निर्णय आ चुका है। लालू को दोषी ठहराया जा कर उन्हें हिरासत में ले लिया गया। सजा कितनी होगी ...
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गुरुवार, 29 अगस्त 2013
दिखाने के लिए ही सही कुछ तो सम्मान शेष रहता
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1985 में मैं ने अपने लिए पहला वाहन लूना खरीदी थी, दुबली पतली सी। लेकिन उस पर हम तीन यानी मैं, उत्तमार्ध और बेटी पूर्वा बैठ कर सवारी करते थे...
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