अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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गुरुवार, 31 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में (6) ... ज्ञान और श्रद्धा
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दुकानदार 24-25 वर्ष का नौजवान था। यहां तो बहुत लोग आते हैं? मैं ने उस से पूछा। -हाँ, मंगल और शनिवार तो बहुत लोग आते हैं। उन दो दिनों में द...
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बुधवार, 30 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में (5) .... बाबा की कीर्ति
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मैं -बाबा, समस्या तो नहीं कहूँगा, हाँ चिन्ताएँ जरूर हैं। बेटी पढ़-लिख गई है, नौकरी करती है। उस की शादी होना चाहिए, योग्य वर मिलना चाहिए। ब...
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शुक्रवार, 25 जुलाई 2008
एक रविवार वन आश्रम में (4) .... बाबा से मुलाकात... और.............. दो दिन में तीसमार खाँ
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करीब तीन बजे नन्द जी ने मेरी तंद्रा को भंग किया। वे कह रहे थे -बाबा से मिल आएँ। बाबा? आजकल इस आश्रम के महन्त, नाम सत्यप्रकाश, आश्रम के आदि...
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गुरुवार, 24 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में -3.......... मन्दिर में
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पदपथ समाप्त होने पर कोई दस फुट की दूरी पर दीवार में साधारण सा द्वार था, बिना किवाड़ों के। उस में घुसते ही दीवार नजर आई जिस के दोनों सिरों पर...
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बुधवार, 23 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में -2
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आश्रम द्वार बहुत बड़ा था, इतना कि ट्रक आसानी से अंदर चला जाए। द्वार पर लोहे के मजबूत फाटक थे। द्वार के बाहर बायीँ और दो छप्पर थे। जिन में पत...
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सोमवार, 21 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में
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कल रविवार था। रविवार? सब के लिए अवकाश का दिन, लेकिन मेरे लिए सब से अधिक काम का दिन। उसी दिन तो मेरे सेवार्थियों (मुवक्किलों) को अवकाश होता ह...
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शनिवार, 19 जुलाई 2008
नीन्द की साँकळ उतारो, किरन देहरी पर खड़ी है।
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पिछले आलेख पर अब तक जो टिप्पणियां मिलीं हैं, उन से एक बात पर सहमति दिखाई दी, कि अभी हिन्दी ब्लागिरी का शैशवकाल ही है। अनेक को तो पता भी नहीं...
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