@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अपराध
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बुधवार, 15 जुलाई 2009

भौतिक परिस्थितियाँ निर्णायक होती हैं।

कल मैं ने आप को बताया था कि कैसे तीन दिन चौड़ी पट्टी बंद रही और वह समय आकस्मिक रूप से घटी दुर्घटनाओं ने लील लिया।  हम कुछ विशेष करने का कितना ही विचार करें लेकिन उन का सफल हो पाना सदैव भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कल जिस मित्र के साथ दुर्घटना हुई थी। मैं रात्रि को उन से मिलने के लिए अस्पताल पहुँचा तो वे एक्स-रे के लिए गई हुई थीं। लगभग पूरे शरीर का एक्स-रे किया गया। शुक्र है कि  सभी अस्थियाँ बिलकुल सही पाई गईं। सिर पर कुछ टाँके आए। लेकिन शरीर पर अनेक स्थानों पर सूजन थी।  मित्र ने बताया कि दुर्घटना की सूचना पुलिस को देना है। पत्नी को पहले चिकित्सा के लिए लाना आवश्यक था इस कारण से नहीं कराई जा सकी।  लेकिन रात्रि को दस बजे घायल पत्नी को छोड़ रिपोर्ट दर्ज कराने जाना संभव नहीं था। मैं ने बताया कि संबंधित पुलिस थाना को मैं सूचना कर दूंगा। 

मित्र परिवार सहित कार से बाराँ जा रहा था। कोटा से सात-आठ किलोमीटर दूर ही गए होंगे कि सामने से एक ऑटोरिक्षा आया और वह बाएँ जाने के स्थान पर दाहिनी ओर जाने लगा।  मित्र को वाहन और बाएँ लेने के लिए स्थान नहीं था। दुर्घटना बचाने के लिए उन्हें कार को दाएँ लाना पड़ा तब तक शायद ऑटो रिक्षा को स्मरण हुआ होगा कि उसे तो बाएँ जाना था। उस ने उसे बाएँ किया और कार को सीधे टक्कर मार दी। ऑटोरिक्षा तीन बार उलट गया। चालक को भी चोट लगी। लेकिन वह शराब के नशे में था उस ने अपना ऑटो-रिक्षा सीधा किया और स्टार्ट कर चल दिया।  मित्र की कार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। उन्हों ने किसी दूसरी कार से लिफ्ट लेकर पत्नी को अस्पताल पहुँचाया।  बीमा कंपनी ने कार को मौके से उठवा कर अपने रिपेयर के यहाँ पहुँचा दिया।  मैं ने अस्पताल से घर पहुँच कर पुलिस थाना का मेल पता तलाश किया लेकिन नहीं मिला। लेकिन पुलिस कंट्रोल रूम और पुलिस अधीक्षक का ई-मेल पता मिल गया। तुरंत उन्हें दुर्घटना की सूचना भेजी, जिस में मित्र का मोबाइल नंबर दे दिया। सुबह मित्र के पास पुलिस थाने से फोन आया कि वे दुर्घटना की प्राथमिकी पर थाने आ कर हस्ताक्षर कर जाएँ।

इस तरह की बहुत शिकायत आती है कि पुलिस अपराध की रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। इस का आसान तरीका यह है कि संबंधित पुलिस थाने को या पुलिस कंट्रोल रूम या पुलिस एसपी को वह ई-मेल के माध्यम  से भेज दी जाए। उस पर कार्यवाही जरूर होती है। आप के पास ई-मेल की साक्ष्य रहती है कि आप ने रिपोर्ट पुलिस को यथाशीघ्र दे दी थी।  भारतीय कानून में अब इलेक्ट्रोनिक दस्तावेज साक्ष्य में ग्राह्य हैं। ई-मेल के पते सर्च कर के पता किए जा सकते हैं। भारत में सब राज्यों की पुलिस की वेबसाइट्स हैं जिन पर कम से कम एसपी और कंट्रोलरुम के ई-पते सर्च करने पर मिल जाते हैं।

आज दोपहर बाद मित्र की पत्नी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। वे घर आ गईं।  शाम को मैं और मित्र पुलिस थाने पहुँचे। थानाधिकारी ने अत्यन्त सज्जनता का व्यवहार किया। रिपोर्ट दर्ज की लेकिन अस्पताल की आलोचना की कि उन्हों ने दुर्घटना के घायल के अस्पताल में दाखिल करने की सूचना पुलिस थाने को नहीं दी। यदि यह सूचना उन्हें मिल जाती तो रात्रि को ही थाने का एक हेड कांस्टेबल जा कर रिपोर्ट दर्ज कर लेता। रिपोर्ट करवा कर मित्र को उन के घर छोड़ा।  रात्रि दस बजे मैं पत्नी के साथ घर पहुँचा तो दूध लाने का स्मरण हो आया। मै ने अपनी कार वहीं से मोड़ ली और दूध की दुकान का रुख किया। मैं दूध की दुकान से कोई दस मीटर दूर था, कार की गति कोई दस किलोमीटर प्रतिघंटा थी,  उसे दस मीटर बाद रोकना था।  बायीं और से अचानक एक मोटर साइकिल तेज गति से आयी और मेरी कार के आगे के बाएं दरवाजे पर जोर से टकराई। इसी दरवाजे के पीछे कार में पत्नी शोभा थी। शुक्र है उसे किसी तरह की चोट नहीं आई।  लेकिन बायाँ दरवाजे का निचला हिस्सा बुरी तरह अंदर बैठ गया उस में कुछ छेद हो गए।  टक्कर मारने वाली मोटर साइकिल पर तीन सवार थे।  वे गिर गए। उन्हें चोटें भी लगीं।  एक को अधिक चोट लगी होगी।  सब से पहले दूध वाला दौड़ कर  आया, आस पास के सारे दुकानदार और अन्य लोग भी एकत्र हो गए।  मैं नीचे उतरा, लेकिन इस से पहले कि कोई मोटर साइकिल का नंबर नोट कर पाता।  उस के सवार तुरंत मोटर साइकिल पर बैठ भाग छूटे।


मैंने दुकान से दूध लिया और कार से अपने घर पहुँचा। कार को कल वर्कशॉप भेजना पड़ेगा।  लेकिन घर आ कर विचार आया कि पुलिस को सूचित करना चाहिए।  अन्यथा मोटर साइकिल सवार यदि पुलिस थाना पहुँच कर रिपोर्ट लिखाएंगे तो दोष उन का होते हुए भी मुझे दोषी ठहराया जा सकता है।  मैं ने तुरंत टेलीफोन से पुलिस थाने को दुर्घटना की सूचना दी और उन्हें बताया कि मोटर सायकिल चालक को तलाश कर पाना असंभव है, यदि वह खुद ही पुलिस थाने न आ जाए।  उन्हों ने बताया कि यदि वे थाने आए तो वे उन की रिपोर्ट दर्ज करने के पहले मुझे बुलवा भेजेंगे।  मैं ने राहत की साँस ली।  आज बहुत काम करना था, कल के मुकदमों की तैयारी करनी थी।   लेकिन सब छूट गया, केवल वही तैयारी कल काम आएगी जो पहले से उन मुकदमों में की हुई है।  सही है, भौतिक परिस्थितियाँ निर्णायक होती हैं।


मंगलवार, 17 मार्च 2009

अमन काचरू के पिता को अपने पुत्र के अपराधियों की सजा में रुचि नहीं, रेगिंग का उन्मूलन चाहते हैं


हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में 8 मार्च को रेगिंग के शिकार छात्र अमन काचरू के पिता श्री राजेन्द्र काचरू ने  रेगिंग के निवारण को ही अपने जीवन का उद्धेश्य बना लिया है। उन्हों ने गुड़गाँव में संवाददाताओं को कहा कि रैगिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के "वास्तविक क्रियान्वयन" से रेगिंग की समस्या का निवारण किया जा सकता है। अमन की रेगिंग के दौरान दी गई यातनाओं के कारण मृत्यु हो चुकी है।  आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
 काचरू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक उदाहरण है।  देश के सभी शिक्षण संस्थानों को इस आदेश को केवल औपचारिकता मात्र नहीं समझना चाहिए अपितु  इस से सीखना चाहिए और इस का वास्तव में पालन करना चाहिए।  उन्हों ने कहा कि मैं इस में रुचि नहीं रखता कि मेरे बेटे के अपराधी को क्या सजा मिलती है।  मैं चाहता हूँ कि रेगिंग रुके और बच्चे इस का शिकार न बनें।  सभी छात्रों के माता पिता को सुनिश्चित करना चाहिए कि उन की संताने रेगिंग में शामिल तो नहीं हैं। रेगिंग का उन्मूलन होना ही चाहिए।