tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post8083472240999055296..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: यूँ समापन हुआ होली पर्व कादिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-55199224537813031622010-03-11T11:43:43.845+05:302010-03-11T11:43:43.845+05:30बच्चों के साथ ही होती हैं घर की रोनकें। रोचक विवरण...बच्चों के साथ ही होती हैं घर की रोनकें। रोचक विवरण । रोचक विवरण है शुभकामनायें मगर भाभी जी के मन को महसूस कर रही हूँ काम करते हुये भी आँखें नम ही होंगी।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-40199632030067585472010-03-11T02:00:54.194+05:302010-03-11T02:00:54.194+05:30हमारी होली का समापन तो उसी दिन शाम तक हो गया था ! ...हमारी होली का समापन तो उसी दिन शाम तक हो गया था ! अपनों से मिलना हो जाए तो फिर होली का मजा वैसे ही दुगुना हो जाए.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-66957581370414706442010-03-10T22:43:35.642+05:302010-03-10T22:43:35.642+05:30हां सर बिल्कुल सच कहा आपने .....अब तो त्यौहारों के...<i> <b> हां सर बिल्कुल सच कहा आपने .....अब तो त्यौहारों के बहाने से ही बाल बच्चे मिल पाते हैं अपने परिवारों से ...और न्हाण के बारे में जानना अच्छा लगा .. </b> </i><br /><a href="http://www.google.com/profiles/ajaykumarjha1973#about" rel="nofollow"> अजय कुमार झा </a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-21971803181456588462010-03-10T19:35:51.125+05:302010-03-10T19:35:51.125+05:30बहुत सुन्दर विवरण । आपकी पोस्ट आपके बेटे से पहले ब...बहुत सुन्दर विवरण । आपकी पोस्ट आपके बेटे से पहले बेंगळुरु पहुँच गयी ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-66116562648764905292010-03-10T18:13:19.454+05:302010-03-10T18:13:19.454+05:30घर सिमट गया है..
और आप फैल रहे हैं...अनवरत...घर सिमट गया है..<br />और आप फैल रहे हैं...अनवरत...रवि कुमार, रावतभाटाhttps://www.blogger.com/profile/10339245213219197980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-38160553896094067472010-03-10T14:41:22.929+05:302010-03-10T14:41:22.929+05:30बहुत सुंदर लेख लिखा, लेकिन जब पढा कि दोनो बच्चे त्...बहुत सुंदर लेख लिखा, लेकिन जब पढा कि दोनो बच्चे त्योहार मना कर अपनी जगह वापिस चलेगे तो मन बहुत उदास हुआ, मुझे तो बच्चो के संग ही सब अच्छा लगता है, वेसे ही स्थिति आप की भी लगती है.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80712271254101480772010-03-10T10:55:32.966+05:302010-03-10T10:55:32.966+05:30जैसे आपके यहाँ नहान होता है यहाँ मालवा में रंग पंच...जैसे आपके यहाँ नहान होता है यहाँ मालवा में रंग पंचमी होती है यानि होली के दिन गुलाल से और पंचमी के दिन गीले रंगों से. पर बात तो वही है बस दिन अलग है .शोभाhttps://www.blogger.com/profile/12010109097536990453noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-30525102779307195102010-03-10T09:39:49.992+05:302010-03-10T09:39:49.992+05:30परंपराओं की सुंदर जानकारी दी आपने. बाद मे जब लोग भ...परंपराओं की सुंदर जानकारी दी आपने. बाद मे जब लोग भूल जायेंगे तब आपके ब्लाग पर ऐसी जानकारी दी गई है..का उल्लेख होगा.<br /><br />बच्चों की व्यथा कथा तो आपकी हमारी उम्र वालों के साथ ऐसा ही है. शुभकामनाएं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-85700171680331130682010-03-10T08:13:24.408+05:302010-03-10T08:13:24.408+05:30न्हाण के बारे में पहली बार जानकारी मिली...ब्लॉगिंग...न्हाण के बारे में पहली बार जानकारी मिली...ब्लॉगिंग का ये भी ब़ड़ा लाभ है कि देश के अलग-अलग हिस्सों के तीज-त्योहारों से भी अवगत हुआ जा सकता है...<br /><br />वैसे द्विवेदी सर, ये देखा गया है कि अपने दूर रहते हैं तो दिल के ज़्यादा करीब हो जाते हैं...लेकिन इस भौतिकतावादी युग में एक छत के नीचे रहते हुए भी कई परिवारों में सदस्य एक दूसरे से खिंचे-खिंचे और दिल से दूर दिखाई देते हैं....ऐसा क्यों...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-28759362188438395742010-03-10T07:49:40.311+05:302010-03-10T07:49:40.311+05:30अब तो बच्चों का घर आना ही एक त्यौहार हो गया है। ...अब तो बच्चों का घर आना ही एक त्यौहार हो गया है। ऐसे में, त्यौहार पर बच्चों का आना तो मानो सोने में सुहागा।<br />इन क्षणों से मेरा साबका पहले ही हो चुका है। ऐसे खालीपन को झेलना अपने आप में कष्टदायक है।<br />आपकी यह पोस्ट मानो मेरे लिए लिखी गई हो।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-40421133982838535132010-03-10T06:36:57.625+05:302010-03-10T06:36:57.625+05:30सही है बेटे बेटी के आने पर होली दिवाली और जाने पर ...सही है बेटे बेटी के आने पर होली दिवाली और जाने पर समापन ! यही अनुभव हमारा भी है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-87179665707829091662010-03-10T03:26:46.273+05:302010-03-10T03:26:46.273+05:30घर की रौनक परिवार के सदस्यों से ही होती है, सजावट ...घर की रौनक परिवार के सदस्यों से ही होती है, सजावट और साजोसामान से नहीं। फिर बच्चों के बड़े होने और बार बार घर लौटने से मिलती खुशियों का तो कहना क्या। <br />बढ़िया पोस्ट।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-72452094956351549132010-03-10T00:54:25.363+05:302010-03-10T00:54:25.363+05:30बढ़िया लेख। बच्चों के आने से त्यौहार त्यौहार से लगत...बढ़िया लेख। बच्चों के आने से त्यौहार त्यौहार से लगते हैं, अन्यथा कब आए कब गए पता भी नहीं चलता।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-17131393421712113642010-03-10T00:48:47.427+05:302010-03-10T00:48:47.427+05:30दो साल तक उदयपुर में रहने के दौरान लगभग हर दूसरे म...दो साल तक उदयपुर में रहने के दौरान लगभग हर दूसरे माह कोटा से गुजरता था। शाम को कोटा में दूसरी ट्रेन के इंतजार में दो तीन घंटे स्टेशन पर ही गुजरते थे। आपने स्टेशन पर खीचीं गई तस्वीरें दिखाकर उदयपुर प्रवास के दिनों की यादें ताजा करा दीं। शुक्रिया द्विवेदी जी।Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.com