tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post7577257032010533974..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: राष्ट्रीय संगोष्टी : हिन्दी ब्लागिरी के इतिहास का सब से बड़ा आयोजनदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-6490315862814911072009-11-06T13:35:31.326+05:302009-11-06T13:35:31.326+05:30दुर्भाग्य से इस आयोजन में मैं शामिल नहीं हो सका, ल...दुर्भाग्य से इस आयोजन में मैं शामिल नहीं हो सका, लेकिन यह सही है कि इससे ब्लॉगिंग पर एकेडमिक चर्चा की शुरुआत हो गई है. अब वह वक़्त बहुत दूर नहीं है जब ब्लॉगिंग को गम्भीरली लिया जाने लगेगा.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80322740085007699862009-11-04T17:59:16.623+05:302009-11-04T17:59:16.623+05:30आलेख अच्छा लगा ,कुछ नया मिला बहुत अच्छे से समझा दि...आलेख अच्छा लगा ,कुछ नया मिला बहुत अच्छे से समझा दिया आमने , आभारआभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-64332520504545498902009-10-30T11:05:15.967+05:302009-10-30T11:05:15.967+05:30जाने कैसे ये पोस्ट छूट गई थी...
बहरहाल, आपका शुक्र...जाने कैसे ये पोस्ट छूट गई थी...<br />बहरहाल, आपका शुक्रिया. <br /><br /> सिद्धार्थ जी का कहना :<br /><br /><b>"इस अद्वितीय आयोजन में कितनी तो अच्छी बातें हुईं लेकिन इसका ब्यौरा कम ही लोगों ने दिया है, परन्तु इसमें कितने छेद रह गये इसको गिनाने के लिए कुछ बड़े और अनुभवी लोग ‘माइक्रोस्कोप’ लेकर और बाकी दूर-दराज वाले लोग ‘टेलीस्कोप’ लेकर पिल पड़े हैं।"</b><br /><br />यह तो प्रकट है!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-74461273070072659692009-10-28T12:18:37.787+05:302009-10-28T12:18:37.787+05:30is sare mudde par ab tak ki sabse spashht post.
s...is sare mudde par ab tak ki sabse spashht post.<br /><br />shukriya, kai bhrantiyan thi jo door ho gaiSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-23645082018319664222009-10-27T07:12:40.926+05:302009-10-27T07:12:40.926+05:30हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा की गई राष्ट्रीय...हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा की गई राष्ट्रीय संगोष्टी ब्लागरी के इतिहास की बड़ी घटना है.sahi hai.nice.Randhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-4510526279675645542009-10-26T15:21:08.295+05:302009-10-26T15:21:08.295+05:30आपके इस पोस्ट पर छोटा सा कमेंट से काम नहीं चलने वा...आपके इस पोस्ट पर छोटा सा कमेंट से काम नहीं चलने वाला है.. इस पर तो पूरा पोस्ट बनता है.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-13425598426989565132009-10-26T13:54:28.159+05:302009-10-26T13:54:28.159+05:30जब विश्वविद्यालय एक संगोष्टी आयोजित करता है तो उस ...जब विश्वविद्यालय एक संगोष्टी आयोजित करता है तो उस में कौन लोग बुलाए जाएँ ? और कौन लोग नहीं बुलाए जाएँ? इन का निर्णय भी विश्वविद्यालय ही करेगा, उस ने वह किया भी।<br /><br /><br />जो लोग विश्विद्यालय और अनुदान इत्यादि प्रक्रिया से जुडे हैं वो आप को बता सकते हैं की अनुदान मिलने के बाद वक्ता का चयन होता हैं और <br />निमंत्रण किसको जाए इसका फैसला आयोजक पर होता हैं नाकि विश्विद्यालय पर , आप का व्यक्तव्य एक भ्रांती हैं और मेरी बात की सत्यता के लिये विश्विद्यालय के सम्बंधित विभाग से पता किया जा सकता हैं <br /><br />पहला सत्र उद्घाटन सत्र के साथ ही पुस्तक विमोचन सत्र था। <br /><br />पुस्तक जिसकी थी वो पता लगा हैं <br />जिस संस्थान से पुस्तक छपने के<br />लिये अनुदान मिला हैं यानी हिंदी अकादेमी , उसके कोषाध्यक्ष हैं . किताब उनकी निज की हैं और उसका विमोचन भी निजी तौर पर होता तो क्या बात थी पर उनको अनुदान मिल गया छपने के लिये भी और विमोचन के लिये भी <br />यानी अँधा बांटे रेवाडी फिर फिर अपनों को दे <br /><br />मुख्य अतिथि नामवर सिंह रहे। मैं समझता हूँ कि ब्लागरी को अभी साहित्य के लिए एक नया माध्यम ही माना जा रहा है। शायद इसी कारण से नामवर जी उस के मुख्य अतिथि थे।<br /><br /><br />मुख्य अथित्ति की बात विश्विद्यालय को बतानी होती हैं अनुदान लेनी से पहले और जो लोग विश्विद्यालय मे ऊँचे पदों पर आसीन हैं उनको बुलाया जाता हैं ताकि बदले मे आप को वहां बुलाया जाए और वो काम दिये जाए जिनका पैसा मिलता हैं जैसे phd ki examinarship ityadi <br /><br />बहुत से तथ्य केवल सुने सुनाये होते हैं . और उनपर बिना जाने लिख देना आप के लिये क्या सही हैं . लेकिन ब्लॉग माध्यम हैं अपनी अभिव्यक्ति का इसलिये आप को पूरा अधिकार हैं <br />लिख कर उनसे सहमत होने का जिनसे आप का मन मिलता हैं क्युकी <br />हिंदी ब्लोगिंग अभी केवल मिलने और मिलाने के लिये ही हो रही हैंAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-38305342821867014242009-10-26T12:59:03.988+05:302009-10-26T12:59:03.988+05:30गिने चुने और कभी कभार पोस्ट लिखने का मेरा अनुभव र...गिने चुने और कभी कभार पोस्ट लिखने का मेरा अनुभव रहा है कि वो पोस्ट लोग ज्यादा पसंद करते हैं जो डायरी कि तरह होती है. और मेरे जैसे ब्लोग्गर बस आस पास कुछ दिखा उसे पोस्ट बनाकर लिख देता है. फंडे देना चालु किया नहीं की लोग पढना बंद करते हैं. ये साहित्य नहीं है (वैसे मुझे नहीं पता साहित्य होता क्या है ;)<br />अंग्रेजी में भी इतने लोग ब्लॉग लिखते हैं ऐसी झंझट मैंने उधर देखि नहीं ! जो पेशे से ना मीडिया में है ना साहित्यकार है मुझे तो वही 'असली' ब्लोग्गर लगते हैं. बाकी पेशे वाले क्या बता पायेंगे जी इसके बारे में ?<br />सारे ब्लोगों को एक साथ जोड़ना या विषय और पोस्ट के आधार पर ५-१० वर्ग में विभाजित करना क्या संभव है? <br />और अनामी वाली बात के किस्से मुझे ज्यादा पता तो नहीं है पर मुझे इसमें कोई समस्या नहीं दिखती. क्या अनामी होकर कोई अच्छी टिपण्णी नहीं कर सकता? कई बार ना चाहते हुए भी अनामी होना पड़ता है. हाल ही में मैंने अपने स्टुडेंट की पोस्ट पर अनोनिमस टिपण्णी की और उसे बाद में बताया की टिपण्णी मेरी है. मैंने उसे ये भी बताया कि मैं अपने स्टुडेंटस के बीच अपने ब्लॉग का प्रचार नहीं करना चाहता इसलिए मैंने अपने नाम से टिपण्णी नहीं की. अगर आपको पसंद नहीं तो अनामी टिपण्णी डिलीट कर दीजिये. <br />मैंने ताऊ के साक्षात्कार में कहा था मुझ पर लेखक होने का आरोप मत लगाइए मैं ब्लोग्गर हूँ. अब तो ब्लोग्गर कहने से पहले भी सोचना पड़ेगा :)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-75072024142489299222009-10-26T12:00:06.624+05:302009-10-26T12:00:06.624+05:3010895 हिन्दी ब्लाग में २००० सक्रिय !!!!!!!!
...लोग...10895 हिन्दी ब्लाग में २००० सक्रिय !!!!!!!!<br />...लोग ब्लोगिंग की चिंता छोड़ अपने अपने ब्लॉग की चिंता करें. <br />"चिट्ठा" पर तो अपने मेरे मुँह की बात छीन ली. ये शब्द मुझे भी अटपटा सा लगता है. उसे ब्लोगिंग ही रहने देने में किसी का क्या जाता है ??Kirtish Bhatthttps://www.blogger.com/profile/10695042291155160289noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-30910916525820518142009-10-26T11:58:15.753+05:302009-10-26T11:58:15.753+05:30आयाजन कोई भी हो सभी को संतुष्ट करना संभव नहीं होता...आयाजन कोई भी हो सभी को संतुष्ट करना संभव नहीं होता, विशेषकर जब कोई पहला सम्मेलन आयोजित किया जा रहा हो। निश्चय ही यह ब्लॉग जगत का एक ऐतिहासिक सम्मेलन था, और जब तक इससे बडी रेखा नहीं खींची जाती, जो एक न एक दिन खिंचनी ही है, तब तक तो यह अब तक का सबसे बडा सम्मेलन है ही।<br />और अन्तिम बात, सम्मेलन में मौजूद न रहते हुए भी आपने तार्किक रूप से इसकी समीक्षा की है, देखकर अच्छा लगा।<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">-Zakir Ali ‘Rajnish’</a> <br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">{ Secretary-TSALIIM </a><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">& SBAI }</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-36851240544231270792009-10-26T10:48:15.672+05:302009-10-26T10:48:15.672+05:30द्विवेदी सर,
कनॉट प्लेस का नया नाम राजीव गांधी चौक...द्विवेदी सर,<br />कनॉट प्लेस का नया नाम राजीव गांधी चौक है...कितने लोग इस नए नाम को आत्मसात कर पाए हैं...ब्लॉग और चिट्ठा में भी यही फर्क मुझे नज़र आता है...<br /><br />हमने देखी है ब्लॉग में महकती खुशबू,<br />सिर्फ एहसास है, एहसास ही रहने दो...<br /><br />ब्लॉग को ब्ल़ॉग ही रहने दो<br />इसे कोई नया नाम न दो...<br /><br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-59714198260050645992009-10-26T09:34:55.846+05:302009-10-26T09:34:55.846+05:30आपसे सहमत हूं
पर मुझे इस पूरे आयोजन मे सेटिंग की ...आपसे सहमत हूं <br />पर मुझे इस पूरे आयोजन मे सेटिंग की बू साफ़ आ रही थी।<br />यह सच है कि ब्लागिंग केवल साहित्य नहीं…पर जैसा रिवाज़ रहा है यहां भी साहित्य, ख़ासतौर पर इसकी ब्राह्मण विधा कविता का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-23340706691518316372009-10-26T09:06:15.338+05:302009-10-26T09:06:15.338+05:30वकील साब,हम तो ऐसे सम्मेलनो के पक्षधर हैं,अब मतभेद...वकील साब,हम तो ऐसे सम्मेलनो के पक्षधर हैं,अब मतभेद तो होते ही हैं और फ़िर घर की शादी से हर कोई संतुष्ट नही जाता तो ये तो अंजान लोगो को एक दूसरे से मिलाने का शानदार प्रयास था।सच कहे तो हम लोग सोचते ही रह गये और इलाहाबाद के लोगो न सम्मेलन करके बाज़ी मार ली।विवादो से हम डरते नही है और ये होते ही रहते हैं।इसके बावज़ूद हमारी कोशिश होगी कि रायपुर मे एक सम्मेलन हो और उसके बाद कंही और हो और फ़िर कंही और। ऐसे ही धीरे-धीरे फ़ुल प्रूफ़ काम होगा।अच्छा लगा आपको पढकर वर्ना मन खट्टा ही हो रहा था।किसी भी आयोजन की यादे खट्टी मीठी होनी चाहिये।आपको आदरणीय यूंही नही कहते वकील साब्।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-45189168606770624042009-10-26T05:59:32.896+05:302009-10-26T05:59:32.896+05:30श्री दीनेश भाई जी ,
आपका आलेख अच्छा लगा
स स्नेह,
...श्री दीनेश भाई जी , <br />आपका आलेख अच्छा लगा<br />स स्नेह,<br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-29712620148152075202009-10-26T01:36:32.217+05:302009-10-26T01:36:32.217+05:30संतुलित, निस्पक्ष तथा व्यर्थ विवादों से परे प्रभाव...संतुलित, निस्पक्ष तथा व्यर्थ विवादों से परे प्रभावी रिपोर्ताज। जैसा कि राज भाटिया जी न कहा कि प्रोत्साहन मुख्य है। यहाँ कुछ लोग लालायित बैठे रहते हैं कि कब टांग खींची जाये। समय का दुरुपयोग है और कुछ नहीं। <br /><br />किसने क्या लिखा, कैसे रोक लगे उसकी ज्यादा चिन्ता है, खुद कैसे बहेतर लिखा जाये उसकी कम। <br /><br />यहां भारत से बाहर रहते हुये विषेश नजर थी कि क्या कुछ हो रहा है, कुछ महानुभावों मे रोपोर्ट की जगह अपनी राम कहानी और दुखडा रोने के लिये बचकने ''चिठ्ठे' लिख दिये। मन आहत हुया कि अपरिपक्वता की भी सीमा होती है। खैर बुलबुलों की उम्र अधिक नही होती। इस रिपोर्ताज को पढ कर मन मे सकून हुआ कि अयोजन के श्रम को कुछ तो आदर मिला। बच्चे ने चलना ही शुरू किया और 'दिग्गज' लोग 'टिन्गडी' लगाने लगे। हर्ष की बात है कि हिन्दी ब्लागिरी यहाँ तक आ गयी है -- श्रेय आप तथा अन्य परिपक्व ब्लागीरों का। <br /><br />सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, आयोजन हेतु बहुत् बहुत बधाईयाँ!<br />स्वप्निल भारतीय<br />कल्किआन समूहAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12767868578201017200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-22142796622019728382009-10-26T01:04:21.926+05:302009-10-26T01:04:21.926+05:30सबसे लाजिकल जानकारी और सबसे लाजिकल ऎनेलिसिस है... ...सबसे लाजिकल जानकारी और सबसे लाजिकल ऎनेलिसिस है... ऐसे ही आर्शीवाद बनाये रखे॥ आपसे अच्छे और ईमानदार लेखन की प्रेरणा मिलती है..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-84267600676898223362009-10-26T00:04:01.094+05:302009-10-26T00:04:01.094+05:30पूरे प्रकरण और एक प्रशंसनीय आयोजन पर पहला सारगर्भि...पूरे प्रकरण और एक प्रशंसनीय आयोजन पर पहला सारगर्भित और लौजिकल आलेख...<br /><br />बहुत खूब द्विवेदी जी। आशा है, लोग कम-से-कम इससे तो कुछ सीख लें और व्यर्थ के विवादों से अपने ब्लौग-जगत को परे रखें, जिसका कोई औचित्य नहीं जरा भी। पता नहीं, हम सब क्यों इतने निगेटिव एप्रोच लिये हुये बनते जा रहे हैं हर छोटी-छोटी बातों के प्रति। ऐसे में आपका ये आलेख देखकर वाकई प्रसन्नता होती है।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-66858567513963875862009-10-25T23:37:46.259+05:302009-10-25T23:37:46.259+05:30हम तो अब तक यही समझ नहीं पा रहे थे कि ये कैसा ब्ला...हम तो अब तक यही समझ नहीं पा रहे थे कि ये कैसा ब्लागर सम्मेलन/संगोष्ठी हुई...जिसमें सम्मिलित होने वाला भी दुखी ओर जो सम्मिलित नहीं हो पाए या नहीं किए गए..वो भी दुखी!! प्रत्येक व्यक्ति असंतुष्ट् दिखाई दे रहा है,किन्तु वहाँ जिन मुद्दों पर चर्चा की गई,इस संगोष्ठी का क्या निष्कर्ष निकला ?..उसके बारे में कोई भी कुछ नहीं लिख रहा । <br />लेकिन आपके इस समीक्षात्मक आलेख ने बहुत हद तक हमारी जिज्ञासा का तो शमन कर ही दिया...<br />धन्यवाद्!Pt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-53121988563530240152009-10-25T23:08:47.508+05:302009-10-25T23:08:47.508+05:30अच्छा लिखा है आपने दिनेश जी -चिंतन परक ! मैं ब्लाग...अच्छा लिखा है आपने दिनेश जी -चिंतन परक ! मैं ब्लागरी का पक्षधर हूँ ! अब ये चलने पर भी निर्भर करेगा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-88477299081421636492009-10-25T23:06:53.358+05:302009-10-25T23:06:53.358+05:30आदरणीय द्विवेदी जी,
कल कार्यक्रम की समाप्ति पर बा...आदरणीय द्विवेदी जी,<br /><br />कल कार्यक्रम की समाप्ति पर बाहरी मेहमानों को विदा करने के बाद जबसे घर आया तबसे इस संगोष्ठी के बारे में ब्लॉगजगत की अनेकानेक प्रतिक्रियाओं को पढ़- पढ़कर सोच में पड़ गया था। ऐसी स्थिति बन गयी कि कहीं भी अपनी टिप्पणी देने से अरुचि हो गयी। कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े होने के कारण मुझे कुछ आक्षेप आहत करने वाले भी लगे थे लेकिन इस माध्यम की प्रकृति से परिचित होने के कारण मैने इसे सहज ही यूँ स्वीकार कर लिया है कि एक डगमग तराजू के पलड़े पर जिन्दा मेढ़कों को तौलने की कोशिश इससे ज्यादा कामयाब नहीं हो सकती थी।<br /><br />आपने यह सकारात्मक समीक्षा लिखकर मेरे मन का बोझ काफी हल्का कर दिया, इसलिए आपको हार्दिक धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूँ।<br /><br />मैं यहाँ <b>पुस्तक के बारे में</b> कुछ बातें स्पष्ट करना चाहता हूँ:<br /><br />१. जिस पुस्तक का विमोचन हुआ वह मेरे ब्लॉग <b>‘सत्यार्थमित्र’</b> की पोस्टों का संकलन है जो अगस्त माह में ही मुद्रित होकर आ गयी थी। विभूति नारायण राय जी से पहली बार तब मैं इस पुस्तक को भेंट करने के लिए ही मिला था और उसी समय उनके मस्तिष्क में ऐसे आयोजन की दागबेल पड़ी थी। उन्होंने तत्क्षण मुझे <b>ब्लॉग पर एक बड़ा सम्मेलन</b> करने का प्रस्ताव रख दिया था। अपने तरह की कदाचित् पहली पुस्तक होने के कारण इसका विमोचन भी इसी कार्यक्रम में कराने का वादा उन्होंने तभी कर दिया था। फिर मैं क्या करता?<br /><br />इससे पहले आठ मई को इलाहाबाद में जो ब्लॉगिंग (क्षमा करें- ब्लॉगरी)की कार्यशाला आयोजित करने का उत्साहजनक अनुभव मुझे था उसी के दम पर मैने यह चुनौती स्वीकार कर ली थी। देखिए न ‘राय साहब’ से वह मेरी पहली भेंट थी, और विद्यार्थी जीवन से लेकर सरकारी नौकरी के दौरान मैने किसी <b>वाम या दक्षिण पन्थ</b> के साथ अपने को जुड़ा नहीं पाया है, फिर भी उन्होंने मेरी पृष्ठभूमि जाने बिना ही केवल एक ब्लॉगर समझकर इतना बड़ा सम्मान दे दिया। ऐसे में क्या मुझे इन प्रतिक्रिया देने वाले विचित्र लोगों से पूछकर उन्हें ‘हाँ’ या ‘ना’ का उत्तर देना चाहिए था? <br /><br />मैने तो इसे अपने लिए और ब्लॉगजगत के लिए भी एक अभूतपूर्व अवसर जानकर उसे तत्काल लपक लिया था ताकि पारम्परिक साहित्य से जुड़े लोगों की इस आधुनिक माध्यम से आवाजाही की प्रक्रिया कुछ तेज हो सके। इसमें हम ब्लॉगरों का नुकसान ही क्या था?<br /><br />लेकिन अफसोस है कि हमारे कुछ भाई उधर के लोगों की इस धारणा को ही पुष्ट करने में लगे हुए हैं कि यह ब्लॉग की दुनिया घोर अराजक, उश्रृंखल, गैरजिम्मेदार, छिछले, अतार्किक, कुंठित, हास्यास्पद, मनमौजी, विघ्नसंतोषी और <b>‘खाये-पिए-अघाए’</b> तत्वों से भरी पड़ी है। <br /><br />इस अद्वितीय आयोजन में कितनी तो अच्छी बातें हुईं लेकिन इसका ब्यौरा कम ही लोगों ने दिया है, परन्तु इसमें कितने छेद रह गये इसको गिनाने के लिए कुछ बड़े और अनुभवी लोग ‘माइक्रोस्कोप’ लेकर और बाकी दूर-दराज वाले लोग ‘टेलीस्कोप’ लेकर पिल पड़े हैं।<br /><br />मेरी योजना इस अवसर पर हिन्दी ब्लॉगजगत के सौ चुनिन्दा ब्लॉगों से लेकर सौ उत्कृष्ट पोस्टों का संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की थी, लेकिन समय की कमी के कारण मुझे यह टालना पड़ा। अब सोच रहा हूँ कि यह अच्छा ही हुआ, नहीं तो भाई लोग उन सौ पोस्टों के चुनाव पर भी जूतम पैजार पर उतर चुके होते। यह बात अलग है कि दो-दो बार खुले आमन्त्रण की तिथि आगे बढ़ाये जाने पर भी पर्याप्त संख्या में प्रविष्टियाँ नहीं आ पायीं। अब यदि व्यक्तिगत मेल से कुछ चुनिन्दा ब्लॉगरों से प्रविष्टियाँ माँगी जाएंगी तो ये ही लोग पारदर्शिता की मांग में हल्ला करेंगे। अब तो मुझे और हिन्दुस्तानी एकेडेमी को “ब्लॉगपोस्ट” पुस्तक के प्रकाशन से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा।<br /><br />बातें और भी बहुत सी हैं जो इस अन्धेरे और अन्धेरगर्दी को दूर करने में सक्षम हैं लेकिन अभी इतना ही कहकर आपको पुनः साधुवाद ज्ञापित करता हूँ। सादर।<br /><br /><a rel="nofollow">(सिद्धार्थ)</a>सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-79509221763190495612009-10-25T23:03:19.920+05:302009-10-25T23:03:19.920+05:30विवादित मुद्दों पर एक संतुलित पोस्ट
बी एस पाबलाविवादित मुद्दों पर एक संतुलित पोस्ट<br /><br /><a href="http://www.google.com/profiles/bspabla" rel="nofollow"> बी एस पाबला</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-53296106001119010982009-10-25T22:28:25.631+05:302009-10-25T22:28:25.631+05:30असल में आज हिंदी ब्लॉग जगत कुँए में टर्राते मेढकों...असल में आज हिंदी ब्लॉग जगत कुँए में टर्राते मेढकों का छोटा सा समूह मात्र है. इसीलिए इस तरह के चोंचले होते हैं. जब हिंदी के सक्रिय ब्लोगों की संख्या भी पच्चीस तीस हज़ार पहुँच जाएगी तो ऐसी फालतू बातों के बारे में कोई सोच भी नहीं सकेगा. <br /><br />ब्लॉग की पहली अवधारणा ही यही है की ऐसा वैकल्पिक माध्यम जिसमें घोर अराजकता की हद तक अभिव्यक्ति की आज़ादी हो. दूसरी अवधारणा है की हर इंसान की खुद की एक वेबसाईट जिसमे वह इच्छित माध्यम (दृश्य-श्रव्य-लेख) से खुद को अभिव्यक्त कर सके. <br /><br />ऐसे में किस किस को बुलाओगे? क्या आज अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश भाषा के ब्लोगरों की संघोष्ठी हो सकती है? इनमे से हर भाषा में लाखों विषयों पर करोड़ों लोग लिखते हैं. <br /><br />ऊपर से नामवर सिंह धमका कर चला गया की खुद सुधर जाओ वर्ना तुम्हे सरकार अच्छे से सुधर देगी.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-13850590292348940112009-10-25T21:13:45.406+05:302009-10-25T21:13:45.406+05:30आपका यह आलेख अनेक दृष्टियों से स्वागत योग्य है. प्...आपका यह आलेख अनेक दृष्टियों से स्वागत योग्य है. प्रथम तो तथाकथित खिच खिच से जो माहोल बना है उससे शायद निजात मिले. ऐसे मे कुछ भी लिखने से, टिप्पणि करने से पहले सोचना पडता है. ऐसे लगता है जैसे १९७५ का आपातकाल लगा हो और कुछ भी बोलने से पहले तोलना जरुरी होगया..स्वतंत्रता खत्म सी लगने लगी है. खैर...<br /><br />दूसरे ब्लाग और चिठ्ठा शब्द मे हम आपके साथ हैं...चिठठा हमको भी अटपटा सा लगता है.<br /><br />अब ब्लाग, ब्लागर और पोस्ट..हम तो ये तीन शब्द ही प्रयोग करेंगे...आखिर अंग्रेजी के असंख्य शब्द हैं हमारे पास तो इनसे ही इतनी एलर्जी क्यूं?<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-13697457538303245162009-10-25T21:11:50.845+05:302009-10-25T21:11:50.845+05:30देवेदी जी ये तो नारी के साथ सदा होता आया है उसे मम...देवेदी जी ये तो नारी के साथ सदा होता आया है उसे ममतामयी त्यागमयी पता नहीं कौन कौन सा झुनझुना दे कर मनाते रहे हैं ऐसे ही आपने भी बातों मे हमे टरका दिया। अब हम तो हडताल करने वाले हैं कल ही अपने ब्लाग से ऐलान ्रते हैं आखिर हम भी बराबर के हिस्से की हकदार हैं । लगता है कोई महिला ब्लागर को वकील करना पडेगा हा हा हा चलो रात भर यही कैम्पेन करते हैं। वैसे आप कुछ नरम पडते भी नज़र आ रहे हैं ये ब्लागिरी या बेबे ब्लागिरी भी सही हैअखिर हिन्दोस्तानी तो लगता हैआप अजित जी से पूछें दीपक भारतिय जी के ब्लोग पर भी ब्लाग नाम पर चर्चा है-- देख लें लेकिन नारी शक्ति का जरूर ध्यान रखें धन्यवाद् <br />http://dpkraj.blogspot.com/2009/10/meaning-in-hindi-of-blog-word.htmlनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-59108310982136769732009-10-25T20:59:16.317+05:302009-10-25T20:59:16.317+05:30बहुत ही तरल और सरल लेख लिखा है, दिनेश भाई!बहुत ही तरल और सरल लेख लिखा है, दिनेश भाई!अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com