@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: भाई ने भाई मारा रे

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

भाई ने भाई मारा रे


महेन्द्र नेह ने पिछले दिनों कुछ पद लिखे हैं, उन में से एक यहाँ प्रस्तुत है। 
उन के अन्य पद भी आप अनवरत पर पढ़ते रहेंगे।
 
 'पद'

  • महेन्द्र 'नेह' 

    भाई ने भाई मारा रे

 ये कैसी अनीति अधमायत ये कैसा अविचारा रे।

एक ही माँ की गोद पले दोउ नैनन के दो तारा रे।। 



जोते खेत निराई कीनी बिगड़ा भाग संवारा रे।

दोनों का संग बहा पसीना घर में हुआ उजारा रे।। 

                                    

अच्छी फसल हुई बोहरे का सारा कर्ज उतारा रे।

सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे।। 



कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे।

खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
                         

 

कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे।

रक्तिम हुई धरा, अम्बर में घुप्प हुआ अॅंधियारा रे।।

8 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

पारिवारिक झगडे हुबहू वर्णन --बहुत खूब सूरत अभिव्यक्ति
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

देख घर की दुर्दशा करेजा फट गया सारा रे
माँ बन गई बेचारी, और बाप हुआ बेचारा रे

बहुत सम-सामयिक पद हैं द्विवेदी जी, आपका आभार इसे साझा करने के लिए और 'नेह' जी को बधाई।

प्रकाश गोविंद ने कहा…

सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे।।
कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे।
खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे।
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रचना के माध्यम से पारिवारिक कलह का सटीक वर्णन

आभार

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ..

Asha Joglekar ने कहा…

समय के साथ बदलते पारिवार के स्वरूप का यथार्थ
वर्णन ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जीवन बीता अनुबंधों में,

Dr ajay yadav ने कहा…

हकीकत से रूबरू कराती रचना

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कठि‍न समय है.