@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शाहनवाज के घर से हिन्दी भवन तक

मंगलवार, 3 मई 2011

शाहनवाज के घर से हिन्दी भवन तक

शाहनवाज के घर पहुँचे तो आधी रात होने में एक घंटा भी शेष न था। तुरंत ही एक सुंदर स्त्री पानी ले कर हाजिर थी। शाहनवाज ने तआर्रुफ़ कराया -ये आप की बहू है। मैं ने उन्हें अभिवादन किया। फरीदाबाद से चलने के पहले ही बता चुका था कि मैं भोजन कर के चला हूँ, फिर भी उन्हों ने भोजन के लिए पूछा। मैं ने उन्हें कहा -सिर्फ कॉफी पीना चाहता हूँ। हम बातों में लगे ही थे कि कॉफी के साथ बहुत सारा नाश्ता आ गया। खुशदीप भाई और सतीश सक्सेना जी से बात हुई। सुबह हम सब का मिलना तय हुआ। देर रात तक शाहनवाज मुझे हमारीवाणी के तकनीकी पहलू बताते रहे। 

सुबह नींद खुली तो लगा कि अभी पाँच बजे होंगे। घड़ी देखी तो पौने आठ बजने वाले थे। कमरे में रोशनी का प्रवेश कम होने से ऐसा लग रहा था। मैं तुरंत उठ बैठा। कुछ ही देर में शाहनवाज आ भी आ गए, और उन के पीछे-पीछे कॉफी भी। हम फिर बातों में मशगूल हो गए। उधर खबर लगी कि टीम छत्तीसगढ़ (टीसी) दिल्ली पहुँच चुकी है और पहाड़गंज के किसी होटल में प्रातःकर्म निपटा रही है। इस बीच शाहनवाज की प्यारी सी, छोटी छोटी दो बेटियों से मुलाकात हुई। वे नींद से उठ कर आयी थीं और सीधे शाहनवाज से चिपक गई थीं। उन्हें सुबह के नाश्ते में पिता से स्नेह चाहिए था, जो उन्हें भरपूर मिला। स्नान और नाश्ते से निवृत्त होते-होते साढ़े दस बज गए। हम ने खुशदीप जी के यहाँ जाना तय किया, लेकिन रवाना होने के पहले उन से बात कर लेना उचित समझा। बात की तो पता लगा कि सतीश भाई उनके यहाँ हैं और वे इधर ही आ रहे हैं। कुछ ही देर में दोनों हमारे बीच थे। वे कचौड़ियाँ और मिठाई साथ लाए थे। हम ने हमारीवाणी के संबंध में चर्चा आरंभ कर दी। इस चर्चा में हम ने हमारीवाणी संकलक और हमारीवाणी ई-पत्रिका के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए। फिर फोटो सेशन हुआ। चारों के चित्र लेने के लिए बहूजी को कैमरा सौंपा गया। हमारी योजना अजय. झा के यहाँ जाने की थी। उन के पिता को उन से बिछड़े पखवाड़ा भी नहीं हुआ था। हम उन से अब तक नहीं मिल सके थे। इसी कारण शाम के कार्यक्रम में भी उन के आने की कोई संभावना नहीं थी। लेकिन देरी हो चुकी थी कि वे कई दिन के अवकाश के बाद पहली बार अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे। हम ने उन के कार्यस्थल पर मिलना उचित नहीं समझा।
हमारीवाणी टीम के सदस्य शाहनवाज के घर
चित्र  सौजन्य : सतीश सक्सेना
फिर पाबला जी से बात हुई, टीसी अभी होटल में जमी थी। हम तुरंत ही उन के होटल के लिए रवाना हो गए।  वहाँ पहुँचे तो सब के सब लॉबी में ही मिले। सुनीता शानू भी वहाँ थीं सब को अपने यहाँ ले जाने को आई थीं। सतीश जी को अपने किसी निजि समारोह में शिरकत के लिए जाना था लेकिन शानू जी के आग्रह के सामने वे पिघल गए और उन्हों ने जिस गाड़ी में टीसी सवार थी उस के पीछे अपनी कार लगा दी। कोई आधे घंटे में हम वहाँ पहुँचे और पूरे सवा घंटे आतिथ्य का आनन्द लिया। सतीश भाई को फिर अपने निजि समारोह की याद आई, खुशदीप जी को भी स्मरण हुआ कि कुछ ब्लागर उन के घर पहुँचने वाले हैं। हम तुरंत वहाँ से चले। लेकिन बीच में हिन्दी भवन रुकने का लोभ संवरण न कर सके। वहाँ पहुँच कर अविनाश वाचस्पति को फोन किया। तो उन्हों ने पीछे से आ कर हमें चौंका दिया। कुछ ही देर में रविन्द्र प्रभात भी वहीं मिल गए। दोनों से बात हुई। वे तैयारियों में जुटे थे। हम अविनाश जी के साथ पीछे कार तक गए। हिन्दी साहित्य निकेतन के गिरजाशरण अग्रवाल भी वहीं थे और कार से पुस्तकें व मोमेण्टो उतरवा रहे थे। उन्हें व्यस्त देख हमें लगा कि हम उन के काम में मदद करने के स्थान पर व्यवधान बन सकते हैं। हम ने उन से काम भी पूछा, लेकिन अविनाश जी का कहना था कि आप लोग समय पर पहुँच जाएँ इतना ही पर्याप्त है। वहाँ से चले तो ढाई बज चुके थे और हमें जा कर वापस भी लौटना था। इसलिए बिना समय व्यर्थ किए हम वहाँ से चल दिए। मुझे और शाहनवाज को छोड़ सतीश भाई और खुशदीप चल दिए। मेरे पास कोई काम न था। शाहनवाज को कुछ जरूरी घरेलू काम निपटाने थे। मैं ने तनिक विश्राम करना उचित समझा। मैं सो कर उठा तो पौने चार बज रहे थे। शाहनवाज  चिंतित हो रहे थे कि अब समय पर नहीं पहुँच सकेंगे तो अविनाश जी को अच्छा नहीं लगेगा। हम तुरंत ही तैयार हो कर बाइक से ही हिन्दी भवन रवाना हो गए।

म पहुँचे तो पाँच बज चुके थे। सारे रास्ते शाहनवाज चिंतित थे कि देरी से आने के कारण अविनाश जी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। मैं उन्हें सान्त्वना देता रहा कि समारोह अभी आरंभ ही न हुआ होगा। हिन्दी भवन के बाहर बहुत लोग खड़े थे। पता चला अभी समारोह आरंभ नहीं हुआ है। शाहनवाज को  तसल्ली हुई।  ऊपर हॉल के बाहर की लॉबी में पहुँचे। तो वहाँ वे सभी पुस्तकें जिन का विमोचन होना था टेबलों पर सजी थीं। हमने उन्हें खरीदना चाहा तो बताया गया कि विमोचन के पहले बिक्री नहीं की जाएगी। हम ने कुछ दूसरी पुस्तकें देखीं। इस बीच ब्लागरों से मिलना आरंभ हो गया। मेरी कठिनाई थी कि मैं कम लोगों को पहचान पा रहा था, लेकिन अधिकांश ब्लागर मुझे सहज ही पहचान रहे थे। शायद मेरी सपाट खोपड़ी उन के लिए अच्छा पहचान चिन्ह बन गई थी। वहाँ बहुत लोगों से मिलना हुआ। मैं सब के नाम बताने लगूंगा तो कुछ का छूटना स्वाभाविक है। फिर जिन के नाम छूट जाएंगे मैं उन का दोषी हो जाउंगा। इस लिए मैं कुछ एक ब्लागरों का ही यहाँ उल्लेख करूंगा। हम लॉबी छोड़ कर हॉल में पहुँचे। वहाँ करीब ढाई सौ दर्शक बैठ सकते थे। लगभग चौथाई हॉल में लोग बैठे थे। देरी होने के कारण रविन्द्र प्रभात कुछ ब्लागरों के भाषण करवा रहे थे। हम ने निगाह दौड़ाई तो अनेक परिचित ब्लागर वहाँ दिखाई दिए। उन में से अनेक को पहचानने में शाहनवाज ने मेरी मदद की। मैं वहाँ बैठने के स्थान पर बाहर लॉबी में जाना चाहता था, जिस से अधिक से अधिक ब्लागरों से भेंट कर सकूँ। लेकिन तभी रविन्द्र प्रभात जी ने मंच से घोषणा की कि कुछ देर में दिनेशराय द्विवेदी ब्लागरी के कानूनी पहलुओं पर संक्षिप्त जानकारी देंगे।  इस घोषणा से मैं बंध गया। पहले से कुछ तय नहीं था। इसलिए सोचने लगा कि क्या बोलूंगा? 
समारोह के दौरान हिन्दी भवन का लगभग पूरा हॉल, कितना खचाखच भरा है? 
चित्र  सौजन्य : पद्म सिंह
मैं बोलने से बहुत घबड़ाता हूँ। जब भी बोलता हूँ, मुझे समय सीमा का ज्ञान नहीं रहता, और श्रोताओ को भी। संचालक समय बीतता देख कुड़कुड़ाता रहता है। अक्सर ही संचालक की पर्ची मुझ तक पहुँचती है कि जरा संक्षिप्त करो। छात्र जीवन में पहली बार जब मुझे जबरन अपनी इच्छा के विपरीत मुझे बोलना पड़ा था तो पाँच मिनट की सीमा तय थी। लेकिन मैं बोलता रहा, श्रोता तालियाँ बजाते रहे।  मैं मंच से उतरा तो पता लगा मैं पूरे सवा घंटे बोल चुका हूँ। यहाँ स्थिति कुछ विचित्र थी। वास्तव में  विशेष अतिथि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की प्रतीक्षा हो रही थी, वे कभी भी वहाँ पहुँच सकते थे। उन के पहुँचने पर बोलने वाले को तुरंत ही मंच से विदा होना पड़ता। तब वक्ता की स्थिति बहुत असहज हो जाती। ऐसा लगता जैसे किसी को पूरा खाने के पहले ही खाने की टेबल से उठा दिया गया हो। मैं ने तय किया कि मैं एक या दो मिनट में अपना संदेश पूरा कर दूंगा। 

जैसे ही मंच से बोलने वाले वक्ता ने अपना वक्तव्य पूरा किया, मुझे बुलाया गया। मैं ने मंच पर पहुँच कर इतना ही बोला कि "समाज में बोलने और लिखने के कानून हैं। यदि उन को हम तोड़ते हैं तो अपराध होता है, जिस के लिए सजा हो सकती है, दीवानी दायित्व भी आ सकता है। वे सभी कानून ब्लागरी पर भी लागू होते हैं, कोई अलग से कानून नहीं है। इसलिए ब्लागरों को चाहिए कि वे सभी सावधानियाँ जो समाज में उन्हें बरतनी चाहिए ब्लागरी में भी बरतें।" मैं दो मिनट से कम समय में ही मंच से उतर आया था। मेरे बाद फिर किसी को मंच पर बोलने के लिए बुला लिया गया। तभी बोलने वाले को बीच में हटा कर सूचना दी गई कि विशेष अतिथि आ चुके हैं और हमारे स्वागत के पहले मीडिया वाले उन का बाहर स्वागत कर रहे हैं। मुझे तसल्ली हुई कि मैं समय रहते मंच से उतर लिया। वरना......।  मैं ने अपना मोबाइल निकाल कर समय देखा तो पौने छह से ऊपर समय हो चुका था। समारोह पौने दो घंटे पीछे चल रहा था। 

25 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपने तो लाइव कर दिया...

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

जब आप बोल रहे थे तो हम श्रोता पूरा ध्यान व कान व मन लगाकर सुन रहे थे। किसी और को इतनी तसल्ली से नहीं सुना।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post.

कम बोलना सदा सुखी रहना।

सुनीता शानू ने कहा…

यह सच है आपको पहचानने में कोई गलती नही कर पाता। शायद आप ठीक कह रहे हैं पहचानने मे सहायक है आपके बाल...कम होना:)
आपसे मिलकर अच्छा लगा। आपने आयोजन का विवरण बहुत सुंदर ढँग से दिया।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपको बोलते सुना ...मुलाक़ात ..या कहूँ कि परिचय नहीं हो पाया ....

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया धाराप्रवाह वर्णन ...आभार आपका भाई जी !

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप को तो सभी झत से पहचान जाते हे, याद कर जब हम मिले थे:)

डा० अमर कुमार ने कहा…

.
इतने सिलसिलेवार ढँग से ब्यौरा किसी किस्सागो की याद दिलाता है ।
आप अगल बगल के नज़ारों, मौसम का मिज़ाज़ और बदगुमान ट्रैफ़िक की चर्चा जोड़ कर एक अच्छा शब्दचित्र बना सकते हैं ।
इतनी तफ़सील देने के लिये आभार आपका

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

गुरुवर जी, चलिए कोई बात नहीं ! समारोह में आपको नहीं सुन पाया था लेकिन आपकी पोस्ट से यह तो पता चला कि-आपने क्या व्यक्तव दिया था.बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने.समारोह में बेशक कुछ कमियां क्यों न रह गई हो मगर आपकी व अन्य ब्लोगरों की पोस्टे उसकी पूर्ति कर रही है.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत विस्तृत रिपोर्टिंग चल रही है..लग रहा है कि जैसे हम वहीं हैं. बहुत बढ़िया/

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अच्छी रिपोर्टिंग।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

aapse milkar achha laga aur aapki baten bhi...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aapne jo kaha... humne suna

प्रमोद ताम्बट ने कहा…

आपको कौन नहीं पहचानता जनाब, मेरे ख्याल से आप जैसा जाज्वल्यमान व्यक्तित्व पूरे ब्लॉग संसार में कोई नहीं है। आपसे मिलकर वाकई बहुत अच्छा लगा।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आगे?

निर्मला कपिला ने कहा…

itane vistaar se. hame lagaa saaXaat dekh rahe haiM pooree yaatraa ko| sab se mil kar bahut achha laga.

Shah Nawaz ने कहा…

वोह तो ठीक है द्विवेदी जी, लेकिन यह मक्खन परिवार को क्यों आपने मेरे पीछे लगा दिया है??? ज़रा देखिये इनकी हरकतें....


खुशदीप सहगल की बग़ावत

मैं तो जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठ गया हूँ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सहसा यदि बोलने को कह दिया जाये तो बहुत सोचना पड़ जाता है कि क्या बोलें।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बुज़ुर्ग कह गए कि बोलने की चांदी से सोने की खामोशी अच्छी है पर कोई वकील न बोले तो घोडे और घास की दोस्ती का हिसाब हो जाएगा :)

Gyan Darpan ने कहा…

आपके सारगर्भित उदबोधन के साथ साथ आपका सानिध्य भी अच्छा लगा |

Unknown ने कहा…

बढ़िया बढ़िया लाइव ...

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां रनिंग कमेंट्री चल रही है -चलने दीजिये !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

नाइस

जीवन और जगत ने कहा…

ब्‍लागिंग समारोह की जीवन्‍त रिपोर्ट दी है आपने। धन्‍यवाद।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

रोचक...