@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

नैण क्यूँ जळे रे म्हारो हिवड़ो बळे

ब के ताँई बड़ी सँकराँत को राम राम!
खत खड़ताँ देर न्हँ लागे। दन-दन करताँ बरस खड़ग्यो, अर आज फेरूँ सँकराँत आगी। पाछले बरस आप के ताँईं दा भाई! दुर्गादान जी को हाडौती को गीत 'बेटी' पढ़ायो छो। आप सब की य्हा क्हेण छी कै ईं को हिन्दी अनुवाद भी आप के पढ़बा के कारणे अनवरत पे लायो जावे। भाई महेन्द्र 'नेह' ने घणी कोसिस भी करी, पण सतूनों ई न्ह बेठ्यो। आखर म्हें व्हानें क्हे दी कै, ईं गीत को हिन्दी अनुवाद कर सके तो केवल दुर्गादान जी ही करै। न्हँ तो ईं गीत की आत्मा गीत म्हँ ही रे जावे, अनुवाद म्हँ न आ सके। म्हारी कोसिस छे, कै दुर्गादान जी गीत 'बेटी' को हिन्दी अनुवाद कर दे। जश्याँ ई अनुवाद म्हारे ताईँ हासिल होवेगो आप की सेवा में जरूर हाजर करुंगो। 
ज दँन मैं शायर अर ‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच का सचिव शकूर अनवर का घर 'शमीम मंजिल' पे ‘सृजन सद्भावना समारोह 2011’ छै। आज का ईं जलसा म्हँ हाडौती का सिरमौर गीतकार रघुराज सिंह जी हाड़ा को सम्मान होवेगो। ईं बखत म्हारी मंशा तो या छी कै व्हाँ को कोई रसीलो गीत आप की नजर करतो। पण म्हारे पास मौजूद व्हाँ की गीताँ की पुस्तक म्हारा पुस्तकालय में न मल पायी। पण आज तो सँकरात छे, आप के ताँईं हाडौती बोली को रसास्वादन कराबा बनाँ क्श्याँ रेह सकूँ छूँ। तो, आज फेरूँ दा भाई दुर्गादान जी को सब सूँ लोकप्रिय गीत ' नैण क्यूँ जळे रे ...' नजर करूँ छूँ ........

'हाडौती गीत' 

नैण क्यूँ जळे
  • दुर्गादान सिंह गौड़
नैण क्यूँ जळे रे म्हारो हिवड़ो बळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ये आँसू क्यूँ ढळे? 


याँ काँपता होठाँ की थैं कहाण्याँ तो सुणो
याँ खेत गोदता हाथाँ की लकीराँ तो गणो
लगलगतो स्यालूडो़ काँईं रूहणी तपतो जेठ 
मेहनत करताँ भुजबल थाक्या तो भी भूखो पेट

कोई पाणत करे रे कोई खेताँ नें हळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........

रामराज माँही आधी छाया आधी धूप
पसीना म्हँ बह-बह जावे चम्पा बरण्यो रूप
ओ मुकराणा सो डील गोरी को मोळ मोळ जाय
बळता टीबा गोरी पगथळियाँ छाला पड़ पड़ जाय

झीणी चूँदड़ी गळे रे य्हाँ की उमर ढळे 
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........


अब के बेटी परणाँ द्यूंगो आबा दे बैसाख
ज्वार-बाजरा दूँणा होसी नपै आपणी साख
पण पड़्या मावठी दूंगड़ा रे फसलाँ सारी गळगी
दन-दन खड़ताँ पूतड़ी की धोळी मींड्याँ पड़गी

तकदीराँ की मारी उबी नीमड़ी तळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........

मत बिळखे मत तड़पे कान्ह  कुँवर सा पूत
मत रबड़े रीती छात्याँ नें कोनें य्हाँ में दूध
मती झाँक महलाँ आड़ी वे परमेसर का बेटा
वे खावैगा दाख-छुहारा, थैं जीज्यो भूखाँ पेटाँ

रहतो आयो अन्धारो छै दीप के तळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........
स गीत में दुर्गादान जी ने इस वर्गीय समाज के एक साधारण किसान परिवार की व्यथा को सामने रखा है। वह कड़ाके की शीत  रात्रियों में और जेठ की तपती धूप में अपने शरीर को खेतों में गलाता है। उस का मासूम शिशु फिर भी भूख से तड़पता रहता है और शिशु की माता के गालों पर उस की इस दशा को देख आँसू टपकते रहते हैं। साथ में श्रम करते हुए सुंदर पुत्री का रूप पसीने बहता रहता है और गर्म रेत पर चलने से पैरों के तलवों में छाले पड़ जाते हैं वह सोचता है कि अब की बार फसल अच्छी हो तो वह बेटी का ब्याह कर देगा। लेकिन तभी मावठ में ओले गिरते हैं और फसल नष्ट हो जाती है। घर में खाने को भी लाले पड़ जाते हैं। वैसे में बच्चे जब जमींदार और साहुकारों के घरों की ओर आशा से देखते हैं तो किसान उन को कहता है कि वे तो परमेश्वर के बेटे हैं जिन का भाग्य दीपक जैसा है और हम उस के तले में अंधेरा काट रहे हैं।

अंत में फिर से सभी को मकर संक्रान्ति का नमस्कार!

बुधवार, 12 जनवरी 2011

सारा पाप किसानों का

रित क्रांति किसान ले कर आया। लेकिन उस का श्रेय लिया सरकार ने कि उस के प्रयासों से किसानों ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग सीखा और अन्न की उपज बढ़ाई, देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हुआ। किसान सरकारों और रासायनिक खाद व कीटनाशक उत्पादित करने और उस का व्यापार कर उन के मुनाफे से अपनी थैलियाँ भरने वाली कंपनियों की वाणी पर विश्वास करता रहा और पथ पर आगे बढ़ता रहा। लेकिन इस वर्ष पड़ी तेज सर्दी के कारण जब फसलें पाला पड़ने से खराब हुईं तो किसान अपनी मेहनत को नष्ट होते देख परेशान हो उठा। खेती अब वैसी नहीं रही कि जिस में बीज घर का होता था और खाद पालतू जानवरों के गोबर से बनती थी। मामूली लागत और कड़ी मेहनत से फसल घर आ जाती थी। अब एक फसल के लिए भी किसान को बहुत अधिक धन लगाना पड़ता है। बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई आदि सब कुछ के लिए भारी राशि खर्च करनी पड़ती है। अधिकांश किसान इन सब के लिए कर्ज ले कर धन जुटाते हैं। 
ब पाले ने न केवल फसल बर्बाद की अपितु किसान पर इतना कर्जे का बोझा डाल दिया कि जिसे वह चुका ही न सके। मध्यप्रदेश के दमोह जिले में इसी बर्बादी के कारण दो किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ऐसे में सरकार का फर्ज तो यह बनता था कि वह किसानों की इस प्राकृतिक आपदा से हुई हानि के का आकलन करे और कर्ज के बोझे से दबे किसानों को कुछ राहत पहुँचाए। किसानों की सरकार से यह अपेक्षा तब और भी बढ़ जाती है जब जिस जिले में यह बर्बादी हुई है, राज्य का कृषि मंत्री उसी जिले का हो। लेकिन कृषि मंत्री ने क्या किया? 
राज्य के कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया अपने गृह जिले पहुँचे और बजाय इस के कि वे किसानों को लगे घावों पर मरहम लगाएँ, उलटे पुराण कथा बाँचना आरंभ कर दी। उन्हों ने कहा कि "यह सब किसानों के पापों का फल है। खेती में रसायनों का इस्तेमाल बढ़ने से मिट्टी की सेहत खराब हुई है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी है। ऐसा होने से मिट्टी में नमी नहीं रहती और पाला अपना असर दिखा जाता है। वेद पुराणों में कामधेनु व कल्पवृक्ष का जिक्र है, मगर आज हम उनसे दूर हो चले हैं। इसलिए प्राकृतिक प्रकोप बढ़ा है। एक ओर जंगल कट गए हैं तो दूसरी ओर गाय का उपयोग कम हो रहा है। इस तरह संतुलन गड़बड़ा गया है, जिसके चलते यह सब हो रहा है" 
ह सही है कि कुसमरिया जी जैविक कृषि के भारी समर्थक हैं, वे चाहते हैं कि मध्यप्रदेश एक जैविक कृषि के लिए जाना जाए। लेकिन इस का अर्थ यह तो नहीं कि किसी व्यक्ति को जब चोट लगे तो उस पर नमक छिड़का जाए। उन्हों ने यह कहीं नहीं कहा कि उन के इस पाप में सरकारें भी भागीदार रही हैं जिन्हों ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया। उन्हों ने यह भी नहीं कहा कि राज्य सरकारों ने ऐसा इसलिए किया क्यों कि इन पदार्थों के उत्पादकों और व्यापारियों ने सरकार बनाने की संभावना रखने वाली राजनैतिक  दलों को चुनाव लड़ने के लिए चंदे दिए थे और व्यक्तिगत रूप से मंत्रियों और अफसरों को मालामाल कर दिया था। वे ऐसा कहने भी क्यों लगे? आखिर कोई अपने आप पर भी उंगली उठाता है? 

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

सभी कानून, नियम और आदेश प्रभावी होने के पहले सरकारें अपनी-अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध क्यों न कराएँ

न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर
ह वास्तव में बहुत बड़ी बात है कि हम देश की सारी महिलाओं के पास यह जानकारी पहुँचा पाएँ कि उन के कानूनी अधिकार क्या हैं? ऑल इंडिया वूमन लायर्स कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अल्तमश कबीर ने महिला वकीलों को यही कहा कि उन्हें देश की महिलाओं में उन के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए काम करना चाहिए, जिस से वे यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से अपना बचाव कर सकने में सक्षम हो सकें। उन्हों ने यह भी कहा कि उन्हें महिलाओं को यह भी बताना चाहिए कि वे अपने अधिकारों को प्राप्त करने के संघर्ष में कानून को किस तरह से एक सहायक औजार के रूप में उपयोग कर सकती हैं। उन का कहना था कि जागरूकता के इस अभियान में ग्रामीण महिलाओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।
मुझे नहीं लगता कि न्यायाधिपति अल्तमश कबीर के इस आव्हान महिला वकीलों ने बहुत गंभीरता के साथ ग्रहण किया होगा, यह भी हो सकता है कि खुद न्यायाधिपति भी अपने भाषण में कहे हुए शब्दों को बहुत देर तक गंभीरता के साथ न लें और केवल सोचते रह जाएँ कि वे एक अच्छा भाषण दे कर आए हैं जिस पर बहुत तालियाँ पीटी गई हैं। लेकिन उन्हों ने जो कुछ कहा है वह केवल महिला वकीलों को ही नहीं सभी वकीलों को गंभीरता के साथ लेना चाहिए, यहाँ तक कि इस बात को सरकारों और उन के विधि व महिला मंत्रालयों को गंभीरता से लेना चाहिए और इस दिशा में अभियान चलाया जाना चाहिए। अभी तो हालत यह है कि महिलाओं से संबंधित कानून और उन की सरल व्याख्याएँ हिन्दी और भारत में बहुसंख्यक महिलाओं द्वारा बोली-समझी जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
यूँ तो मान्यता यह है कि जो भी देश का कानून है उस की जानकारी प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिए। इस लिए सरकारों का यह भी जिम्मा है कि वे हर कानून की जानकारी जनता तक पहुँचाएँ। लेकिन शायद सरकारें इस काम में कोई रुचि नहीं रखतीं। जब कि होना तो यह चाहिए कि हर राज्य की अपनी वेबसाइट पर उस राज्य में बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में उस राज्य में प्रभावकारी सभी कानून और नियम उपलब्ध हों। कम से कम हिन्दी जो कि राजभाषा है उस में तो उपलब्ध हों हीं। लेकिन इस ओर राज्य सरकारों की ओर से इस तरह की कोई पहल होती दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसी हालत में सर्वोच्च न्यायालय स्वप्रेरणा से सभी सरकारों को यह आदेश दे सकता है कि वे निश्चित समयावधि में सभी कानूनों, नियमों और उन के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों को अपनी वेबसाइट पर अंग्रेजी, हिन्दी और राज्य की भाषा में उपलब्ध कराएँ और जब भी नए कानून, नियम और आदेश प्रभावी हों, उस से पूर्व उन्हें अपने-अपने राज्य की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए।

'विकल्प' सृजन सम्मान 2011 वरिष्ठ साहित्यकार रघुराज सिंह हाड़ा को

दैनिक भास्कर के कोटा संस्करण में आज यह खबर छपी है -
वरिष्ठ साहित्यकार रघुराजसिंह हाड़ा होंगे सम्मानित 
‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच की ओर से नववर्ष एवं मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को दोपहर 1:30 बजे श्रीपुरा स्थित शमीम मंजिल पर ‘सृजन सद्भावना समारोह 2011’ का आयोजन होगा। विकल्प के सचिव शकूर अनवर ने बताया कि इस वर्ष विकल्प का सृजन सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार रघुराजसिंह हाड़ा (झालावाड़) को दिया जाएगा। समारोह के मुख्य अतिथि कवि बशीर अहमद मयूख होंगे। अध्यक्षता अंबिकादत्त, प्रो. हितेश व्यास एवं रोशन कोटवी करेंगे। विशिष्ठ अतिथि मेजर डीएन शर्मा ‘फजा’, प्रो. एहतेशाम अख्तर, निर्मल पांडेय, दुर्गाशंकर गहलोत, टी विजय कुमार व रिजवानुद्दीन होंगे। सम्मान समारोह के बाद वृहद काव्य गोष्ठी का आयोजन होगा, जिसमें हाड़ौती अंचल के प्रमुख कवि एवं शायरों का काव्यपाठ होगा। संचालन चांद शेरी एवं हलीम आईना करेंगे। सृजन सम्मान वाचन कृष्णा कुमारी करेंगी तथा सद्भावना वक्तव्य अरुण सेदवाल देंगे।
जी, हाँ! हर मकर संक्रांति पर शकूर 'अनवर' के घर 'शमीम मंजिल' पर एक हंगामा समारोह होता है। शांति के प्रतीक श्वेत कपोतों की उड़ानें, फिर आसमान में इधर-उधर गोते खाती, पेंच लड़ाती पतंगों में शामिल होती शमीम मंजिल की पतंगें, गुड़-तिल्ली की मिठाइयाँ और चावल-दाल की खिचड़ी, हाड़ौती अंचल के किसी कवि-साहित्यकार का सम्मान और काव्यगोष्टी। पिछले वर्ष के इस हंगामा समारोह के चित्र और रिपोर्ट यहाँ मौजूद हैं।
यह चित्र पिछले साल के समारोह का है, जिस में दिखाई दे रहे हैं शकूर 'अनवर', महेन्द्र 'नेह',बशीर अहमद मयूख श्रीमती लता, ऐहतेशाम अख़्तर और चांद शेरी डॉ. कमर जहाँ बेगम का शॉल ओढ़ा कर सम्मान करते हुए। इस में मैं भी हूँ जनाब अब इसे पहेली समझते हुए बताइए कि कहाँ हूँ, पहेली का जवाब इस साल के समारोह की रिपोर्ट में देखियेगा।
ब आप सोच रहे होंगे कि ऊपर वाली खबर में भी दिनेशराय द्विवेदी तो कहीं हैं ही नहीं। तो भाई, इस खबर में सिर्फ कवियों के नाम छपे हैं। बाकी सारे काम तो अपने ही जिम्मे हैं, जैसे पतंग उड़ाना, तिल्ली-गुड़ के लड्डू और खिचड़ी उदरस्थ करना और फोटो उतारना। आ सकें, तो आप भी आएँ, यह एक आनंदपूर्ण दिन होगा।

रविवार, 9 जनवरी 2011

रोशनियाँ कैद नहीं होतीं


जब जनआकांक्षाओं को पूरा करने में 
असमर्थ होने लगती हैं, सत्ताएँ 

जब उन के वस्त्र
एक-एक कर उतरने लगते हैं,
जब होने लगता है उन्हें, अहसास 
कि उन के अंग, जिन्हें वे छिपाना चाहते हैं
अब छिपे नहीं रहेंगे 

तो सब से पहले 
वे टूट पड़ती हैं 
रोशनियों पर

कि रोशनियाँ ही तो हैं 
जो लोगों को दिखाती हैं, ये सब
कि कैद कर दी जाती हैं, रोशनियाँ
तब दीखता है, अंधेरा ही अंधेरा

तुम क्या महसूस नहीं करते
कि ऐसा ही अंधेरा है, आजकल 
वह आ रहा है, आसमान पर 
एक दिशा से
और गहराता जा रहा है 
दसों दिशाओं पर

पर नहीं जानते वे लोग 
जो रोशनियों को कैद करने में जुटे हैं
कि रोशनी को कैद कर दो 
तो वह ताप बढ़ाती है
और एक दिन फूट पड़ती है
एक विस्फोट के साथ
  • दिनेशराय द्विवेदी

शनिवार, 8 जनवरी 2011

कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त

र्वीले अतीत की सब लोग बात करते हैं। लेकिन अपने अतीत के गौरव की बात करते समय हमें इस बात पर तनिक भी लज्जा नहीं आती कि वे भी हम ही थे, जिन्हों ने अपने गौरव को मिट्टी में मिला दिया। ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने हमारे गौरव को इस अंजाम तक पहुँचाया? और क्या उस चीज से हम अब भी निजात पा सके हैं? इसी बात को शायर शकूर 'अनवर' किस तरह कहते हैं? आप खुद ही देखिए -


ग़ज़ल
कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त
  • शकूर 'अनवर'

उठे  तो     सारे  जमाने  पे     छा  गए  हम  लोग
गिरे तो   ज़ात की पस्ती में    आ  गए  हम  लोग


जो  एक     जिन्से-मुहब्बत    हमारी  अपनी  थी
उसी को     बेच के   दुनिया में   खा गए हम लोग


हमारे     आबा-ओ-अजमाद    ने   जो   छोड़े   थे 
वो नक़्श     सारे के सारे     मिटा गए    हम लोग


हम   अपने आप के    दुश्मन   बने हुए हैं    यहाँ
खुद   अपनी राह में    काँटे बिछा गए    हम लोग


कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त
जिधर से निकले   वहीं घर   जला गए   हम लोग


निकल के   बहरे-मुहब्बत से   आजकल 'अनवर'
हवस के      अंधे कुवें      में समा गए     हम लोग


शकूर 'अनवर' कोटा के अजीम शायरों में से एक हैं, आप उन का परिचय यहाँ जान सकते हैं।

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

वर्तमान में श्रेष्ठ हिन्दी ब्लाग संकलक 'हमारी वाणी'

जून 18, 2010 को ब्लागवाणी अचानक तंद्रा में चली गई। बहुत हंगामा हुआ, लोगों ने तरह-तरह के सुझाव दिए कि किसी भी तरह ब्लागवाणी की तंद्रा टूटे और वह वापस सजग हो मैदान में आ जाए। लेकिन छह माह से अधिक समय हो चुका है,  अभी तक ब्लागवाणी तंद्रा में है। फिर दिसम्बर 2010 के अंत तक चिट्ठाजगत ने बिना कुछ कहे विदाई ले ली। इस बार बहुत हो हल्ला नहीं हुआ। लेकिन अचानक दो सब से महत्वपूर्ण संकलकों की अनुपस्थिति इन दिनों ब्लागर बहुत शिद्दत के साथ महसूस कर रहे हैं। प्रतिदिन ही कहीं न कहीं यह बात सामने आती है कि एक अच्छा संकलक होना चाहिए। हालाँकि ब्लागवाणी अभी जहाँ रुकी थी वहाँ अभी भी नजर आती है और इस पर सदस्य लोगिन भी हो रहा है। कभी भी इस की तंद्रा टूट सकती है।

संकलक की इस कमी को पूरा करने के लिए पहले तो हिन्दी ब्लाग जगत सामने आया। यह ब्लागस्पॉट की कुछ सुविधाओं का उपयोग कर बनाया गया एक संकलक जैसा ब्लाग है। इस के कुछ दिन बाद ही जर्मनी के लोकप्रिय ब्लागर राज भाटिया जी ब्लाग परिवार नाम से हिन्दी ब्लाग जगत जैसा ही एक ब्लाग ले कर सामने आए। अब राज भाटिया जी चाहते हैं कि वे एक एग्रीगेटर बनाना चाहते हैं, लेकिन उन के पास तकनीकी जानकारी की कमी है। उन्हें कोई तकनीकी सहयोग करे तो वे एक ऐसा संकलक लाना चाहते हैं जिस का अपना खुद का डोमेन हो, जिस के बारे में उन का आश्वासन है कि वह उन के जीतेजी बन्द नहीं होगा। राज जी बहुत बड़ा काम हाथ में ले रहे हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि वे इस काम को करने में सफल हो सकेंगे और हिन्दी ब्लाग जगत को एक अच्छा संकलक मिल जाएगा।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि एक अच्छा संकलक मौजूद ही न हो। ब्लागवाणी बन्द होने के उपरांत कुछ हिन्दी ब्लागरों के प्रयास से ही हमारी-वाणी आरंभ हुआ और वह बहुत अच्छे तरीके से काम करते हुए अधिकांश उन आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है जिन की पूर्ति ये दोनों महत्वपूर्ण संकलक कर रहे थे। यह संकलक इस के विकास के लिए लगातार सुझाव भी आमंत्रित कर रहा है। यदि किसी ब्लॉगर को कोई कमी इस में दिखाई देती है तो वह सुझाव दे सकता है। इन सुझावों के आधार पर इस का विकास होता रहे तो हमारी-वाणी एक संपूर्ण हिन्दी/भारतीय संकलक का स्थान ले सकता है। अभी इस संकलक के लिंक 'ताजा ताजा ' ताजा पोस्टें विवरण सहित देखी जा सकती हैं। यदि कोई विवरण न देख कर ब्लागपोस्ट का शीर्षक ही देखना चाहे तो  'ताजा 100 ' लिंक पर जा कर देख सकता है। इस के अतिरिक्त ब्लागर 'मेरा पन्ना' लिंक पर जा कर स्वयं की प्रोफाइल देख सकता है तथा 'हमारे साथी' पर जा कर इस संकलक पर सदस्य ब्लागीरों की सूची देख सकता है। इस के अतिरिक्त इस संकलक पर अधिक 'पसंद' और ज्यादा पढ़े गए ब्लागों की सूची भी क्रमवार उपलब्ध है। एक विशेषता यह भी है कि यदि कोई ब्लागपोस्ट किसी समाचार पत्र में स्थान पाती है तो उसे अलग से दिखाया गया है, जैसे दैनिक जागरण में आज ही छपी तीसरा खंबा की पोस्ट के बारे में यहाँ सूचित किया  गया है और लिंक को क्लिक करने पर 'ब्लाग इन मीडिया' की लिंक खुलती है। यही नहीं यहाँ नये जुड़े ब्लागों को अलग  से सूची भी उपलब्ध है। इस तरह यह संकलक ब्लागीरों की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ती करता है।
र्तमान में यदि कोई कमी दिखाई देती है तो वह यह है कि इस संकलक पर कुल 892 ब्लाग के ही लिंक उपलब्ध हैं, अर्थात इन्हीं ब्लागों की पोस्टों की सूचनाएँ इस संकलक पर उपलब्ध हो पाती हैं। जब कि हिन्दी ब्लागों की संख्या इस से लगभग 12 गुना अधिक तक जा चुकी है। इस कमी को भी पूरा किया जा सकता है। इस के दो तरीके हैं, पहला तो यह कि स्वयं संकलक संचालक शेष हिन्दी ब्लागों को इस से जोड़ दें, दूसरा यह कि स्वयं ब्लाग संचालक अपने ब्लाग को इस संकलक पर पंजीकृत कराएँ। दूसरा मार्ग अधिक उचित प्रतीत होता है कि जो भी ब्लागीर अपने ब्लाग को इस संकलक पर दिखाना चाहता है,  पहले स्वयं सदस्य बने और फिर ब्लाग को पंजीकृत कराए। 
मेरी दृष्टि में 'हमारी वाणी' एक अच्छे संकलक की लगभग सभी जरूरतें पूरी करता है और हिन्दी ब्लागों के लिए बहुपयोगी संकलक है। जिन ब्लागीर साथियों ने अभी इस संकलक पर खुद को सदस्य नहीं बनाया है, तुरंत इसकी सदस्यता ग्रहण करें और अपने ब्लागों को इस पर पंजीकृत कराएँ।