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रविवार, 19 जुलाई 2020

कोराना वायरस: अर्थव्यवस्था और प्रतिरोधक क्षमता

डर और अपराधबोध के उपकरणों के माध्यम से जनता के साथ खेल खेलना शासकों और धर्माचार्यों का पुराना आजमाया तरीक़ा रहा है। जब यह चरम सीमा तक पहुंच जाता है तो जनता पर सबसे ज्यादा चोट की जाती है। यहां तक कि कम्युनिस्ट और खुद को शातिर समझने वाले लोग भी इस खेल में शामिल हो कर इसे अंजाम देने लगते हैं।
कोवाड गांधी
हिंदी अनुवाद : असीम सत्यदेव


इस तकनीकी विकास के युग में व्यापक जनसमुदाय के अंदर सामूहिक डर (मास हिस्टीरिया) जंगल की आग की तरह फैल जाता है, खास तौर से जब शासकों और, या धर्म के जरिए उसे प्रोत्साहित किया जाता है। गणेश दूध पीना इसका एक उदाहरण था। एक और उदाहरण स्काई लैब गिरने की ख़बर थी। 2000ई. (y2k) संकट जैसे भयग्रस्तता के कई और उदाहरण हैं। झारखंड जेल में एक आदिवासी ने मुझे बताया था कि उनके सुदूर गांव में लोगों ने 31 दिसम्बर, 2000 तक दुनिया ख़त्म हो जाने की बात पर विश्वास कर अपनी बकरियों को रोज काटना शुरू कर दिया था।
डर और अपराधबोध के उपकरणों के माध्यम से जनता के साथ खेल खेलना शासकों और धर्माचार्यों का पुराना आजमाया तरीक़ा रहा है। जब यह चरम सीमा तक पहुंच जाता है तो जनता पर सबसे ज्यादा चोट की जाती है। यहां तक कि कम्युनिस्ट और खुद को शातिर समझने वाले लोग भी इस खेल में शामिल हो कर इसे अंजाम देने लगते हैं। हम आपस में भावनात्मक तरीके से एक-दूसरे पर प्रहार करते हैं और हमारे अपराधबोध की भावना और डर से लाभ उठाया जाता है।

जब हम अपने तरह- तरह के डर पर नजर डालते हैं तो देखते हैं कि बहुत सारे डर हमें घेरे रहते हैं-- अस्वीकार किए जाने, असफल होने, बीमारी इत्यादि का डर और सबसे ज्यादा मौत का डर जो मौजूदा कोराना बीमारी के कारण हमारे अंदर समा गया है। यह सच है कि यह वायरस उच्च स्तर का संक्रामक है जो किसी वस्तु पर और मानव शरीर से बाहर 3-4 घंटे तक जीवित रहने की क्षमता रखता है। इसलिए यह जंगल की आग की तरह फैल सकता है। किन्तु इसकी मृत्यु दर सामान्य इनफ्लुएंजा से ज्यादा की नहीं है। इसके ज्यादातर शिकार वृद्ध और पहले से बीमार लोग हो रहे हैं। मृत्युदर अनुमानतः 3% से 0.5% तक है। लेकिन सरकारी प्रचार तंत्र और मीडिया ने इसे भयानक जानलेवा वायरस घोषित कर दिया है। इसलिए चारों तरफ भय व्याप्त हो गया है। मौत का डर, अपनों के खोने का डर, अनजाना डर।।। और इस भय ने रोजगार का खात्मा, कारोबार की हानि, बचत का नुक़सान और असुविधाओं को पैदा किया है। जिसने आने वाले दिनों में भुखमरी से मौत की आशंका को बढ़ाया और हमारी जीने की क्षमता को घटाया है।

दरअसल समूची विश्व अर्थवयवस्था पहले से ही गम्भीर संकट में चल रही है। जैसा कि हाल ही में मानस चक्रवर्ती ने कहा है कि - पिछले हफ़्ते इक्विटी ही नहीं बल्कि बॉन्ड व माल, यहां तक की सोने के भाव में भारी गिरावट आ गई है। यह गिरावट इतनी ज्यादा थी कि सिर्फ नकदी ही सुरक्षित है। वह भी सिर्फ अमरीकी डालर ही मुख्य रूप से सुरक्षित स्वर्ग हो गया है। जिसकी मांग बढ़ती गई है। अमरीका, यूरोप और अन्य विकसित अर्थवयवस्थाओं में ब्याजदर जीरो की तरफ लुढ़कता जा रहा। इस स्थिति में खरीददार के लिए सुरक्षित आखिरी रास्ता सिर्फ खरीदना ही होता है। सरकारों ने कारोबार उपभोक्ताओं को इस बढ़ते संकट से उबारने लिए दसियों खरब डॉलर खर्च करना मंजूर कर लिया है। (भारत में अभी ऐसी स्थिति नहीं आयी है।) 

लेकिन यहां वायरस के फैलाव को रोकने के एक मात्र उपाय के रूप में सामाजिक मेल-मिलाप को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को ठप कर दिया गया है। स्पेन, इटली और फिर दुनिया कि पांचवीं बड़ी अर्थवयवस्था कैल्फोर्निया को ठप्प कर दिया गया है। इससे विश्व अर्थव्यवस्था को बड़ा धक्का लगना ही है।

फार्चून के अनुसार दूसरी तिमाही में ज्यादातर देशों की जीडीपी दर भयानक रूप से (-8%) से (-15%) तक गिर गई है। गोल्डमेन सैच ने इसे और कम होने की बात (पानी सर से ऊपर जाने) कही है।

बैंक ने आज शोध नोट जारी किया है। जिसके अनुसार "अमरीकी अर्थव्यवस्था के अचानक ठप्प" हो जाने के कारण 2020 की दूसरी चौथाई में जीडीपी में 24% गिरावट की आशंका है।

पूरी दुनिया की सरकारों द्वारा जिस पैमाने पर लाकडाउन किया गया है, उससे अर्थवयवस्थाओं में सुधार की कोई उम्मीद नहीं बची है। पिछले छह महीने से चले आ रहे आर्थिक संकट के लिए, जिसका कोराना से कुछ लेना देना नहीं है, यह एक बहाना हो गया है। 1929 की महामंदी के लिए पूंजीवादी व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया था। परंतु मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदारी को बकायदा व्यवस्थागत समस्या को वायरस समस्या की ओर इसे मोड़ दिया गया है। 

बहरहाल विश्व आज दो मुख्य समस्याओं का सामना कर रहा है। कोई नहीं कह सकता कि इनमें कौन ज्यादा जानलेवा है। पहली समस्या कोराना वायरस की है और दूसरी समस्या अर्थव्यवस्था की है। पहली समस्या दुनिया भर में फैल कर मौत का तांडव मचा सकती है। तो दूसरी से पूरी दुनिया को भुखमरी और बीमारी कि सबसे बुरी हालत में ला सकती है। पहली से हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर लड़ने की सोच सकतें हैं। लेकिन दूसरी पर हमारा नियंत्रण नहीं है।

प्रतिरोधक क्षमता का मनोविज्ञान

विज्ञान ने प्रतिरोधक क्षमता पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव (प्लसबो थ्योरी) को मान लिया है। इसके अनुसार मानव के दिमाग मे वह क्षमता होती है कि वह अपने शरीर को बीमारी से उबार ले। यदि उसे किसी दवा या उपचार पर भरोसा हो जाए, भले ही उसमे औषधीय गुण नहीं हो और वह चीनी की गोली मात्र हो। मेडिकल के विद्यार्थी अध्ययन में यह पाते हैं कि बहुत सी बीमारियों में से एक तिहाई का उपचार मनोवैज्ञानिक असर के चमत्कार से हो जाता है। बीमारियों के इलाज में मनोवैज्ञानिक प्रभाव अब सर्वमान्य हो चुका है। कोराना वायरस जैसी बीमारी जिसकी कोई दवा नहीं है से लड़ने में हमारी मजबूत प्रतिरोधक क्षमता केंद्रीय भूमिका निभा सकती है।

विज्ञान का नया क्षेत्र न्यूरोइम्युनोलॉजी है। जिसे आम भाषा में ऐसे कह सकतें हैं कि मस्तिष्क द्वारा स्नायु तंत्र पर नियंत्रण के जरिए प्रतिरोधक क्षमता मजबूत की का सकती है। यह सुस्वीकृत तथ्य है कि तनाव बढ़ाने वाला हार्मोन (कोर्टिसोल) हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। इससे हम वायरस या बैक्टीरिया से लड़ाई में कमजोर पड़ जाते हैं। दूसरी तरफ़ सकारात्मक नजरिया और प्रसन्नता वाले हार्मोन(एंडोर्फिन, डोपामाइन, सेरोटोनिन) हमारी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। अतः वायरस का डर और भयानक वातावरण का फैलना उससे लड़ने में हमारी प्रतिरोधक शक्ति को कमजोर कर सकता है।

अब यह भलीभांति मान लिया गया है कि आत्मविश्वास के बजाय डर के माहौल में गम्भीर बीमारी से लड़ने की क्षमता घट जाती है। कोराना जैसी बीमारी की कोई दवा नहीं है। प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करके ही इसका सामना किया जा सकता है। इसलिए प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी को रोकने की प्राथमिकता महत्वपूर्ण है। जो भी पद्धति अपनायी जाय वह तार्किक व प्रभावी होनी चाहिए। और हर तरीके से बीमारी का तार्किक मूल्यांकन कर डर व भयग्रस्तता के प्रचार का प्रभावी तरके से काट करनी चाहिए। भारतवासियों की गरीबी के कारण पहले से कमजोर प्रतिरोधक क्षमता को उनके आत्मविश्वास को बढ़ाकर मजबूत करने की जरूरत है। कम से कम भय का आतंक फैलाना बन्द करके उनमें वायरस के संक्रमण को मजबूत होने से बचाएं।

लगभग 70 वर्षीय कोबाड गांधी, सीपीआई माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य रहे हैं। कुछ ही समय पहले वे 8 साल जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आए हैं।इस समय वे कैंसर समेत कई रोगों से लड़ रहे हैं। उपरोक्त लेख उन्होंने मूलतः अंग्रेज़ी में लिखा है। ब्लॉग ‘दस्तक नए समय की’ से साभार

शनिवार, 21 मार्च 2020

गणगौर एडवाइजरी जारी करे सरकार


'भँवर म्हाने पूजण दो गणगौर'

यह उस लोक गीत का मुखड़ा है जो होली के अगले दिन से ही राजस्थान भर में गाया जा रहा है। राजस्थान में वसंत के बीतते ही भयंकर ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। आग बरसाता हुआ सूरज, कलेजे को छलनी कर देने और तन का जल सोख लेने वाली तेज लू के तेज थपेड़े बस आने ही वाले हैं। अनवरत पसीना टपकाने वाले ऐसे निकट भविष्य के पहले राजस्थान में अगले शुक्रवार 27 मार्च को गणगौर का त्यौहार मनाया जाने वाला है।

गणगौर प्रतिमाएँ अनेक घरों पर बिठा दी गयी हैं। रोज उनकी पूजा की जा रही है। गीत गाए जा रहे हैं। यह अभी व्यक्तिगत स्तर पर है। पर अगले शुक्रवार को यही सब सामुहिक रूप ले लेने वाला है। उस से पहले गणगौर पर बनने वाले पकवान गुणे बनना आरंभ हो चुके हैं। कल मुझे भी हुकुम हुआ कि गुड़ लाना है, गुणे बनाने के लिए। गुड़ आया तो दो घण्टे बाद ही टेबल पर गुड़ और गेहूँ के आटे के बने गुणे नजर आने लगे। रात तक वे तले जा कर खुले में रख दिए गए, जिस से उन की बची खुची नमी भी निकल ले। सुबह वे डिब्बे में बंद हो चुके हैं। किसी को भी इनका स्वाद अगले शुक्रवार गणगौर के दिन पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा।

गणगौर के दिन अर्थात अगले शुक्रवार 27 मार्च को सुबह से ही मुहल्ले में स्त्रियों की हलचल बढ़ जाएगी। वे सजेंगी-सँवरेंगी, बेसन के आटे से शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के लिए गहने गढ़ेंगी, फिर पूजा का थाल सजा कर उस घर को जाएंगी जहाँ मुहल्ले मे गणगौर घाली हुई है। वे पूजा के लिए अकेले ही नहीं जातीं। दो-दो चार-चार के समूह में पूजा के लिए जाती हैं। वहाँ एकत्र हो कर गीत गाती हैं, नाचती हैं। आमोद प्रमोद चलता है। साँयकाल गणगौर की प्रतिमाओँ को सरानेसामुहिक रूप से जलूस बना कर नदी तालाब पर जाती हैं। इस जलूस के आगे बैंड-बाजा होता है। कुछ नहीं तो एक ढोली ढोल बजाता हुआ जरूर चलता है। नदी पर वे प्रतिमाओं को सराने के पहले और बाद में गीत गाती हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करती हैं। देर रात तक यह काम चलता रहता है। पहले तो सारी व्यवस्थाएँ पुरुष ही करते थे। अब यह कमान लगभग पूरी तरह स्त्रियों के हाथों में है। पुरुष इन कामों में केवल वान्छित सहयोग करते हैं। राजस्थान में स्त्रियों के लिए इस त्यौहार का बहुत महत्व है। पुरुषों के लिए भी यह त्यौहार अपनी प्रियाओं को प्रसन्न रखने, रूठी प्रियाओं को मनाने और वैवाहिक जीवन में सूख चुके रोमांस को तरलता प्रदान करने का होता है। इस त्यौहार में पुराने वक्त में मनाए जाने वाले मदनोत्सव के अवशेष मौजूद हैं।

त्यौहार तो आ चुका है। लेकिन उसके साथ ही राजस्थान में वायरस कोविद-19’ की भयानक उपस्थिति एक बड़े संकट का कारण हो सकती है। इस वायरस से फैली बीमारी को संयुक्त राष्ट्र संघ महामारीघोषित कर चुका है। ऐसे में इस त्यौहार के समय सतर्कता बहुत आवश्यक हो गयी है। इस त्यौहार में स्त्रियों का समूह में एकत्र होना पर्याप्त समय तक साथ रहना। पुरुषों का सहयोग के लिए नजदीक बने रहना। फिर समारोह है तो अपरिचित भी इसमें सम्मिलित होते हैं। ऐसे में सामुहिक रूप से इसे मनाना वायरस के प्रसार के लिए बहुत मुफीद हो सकता है। आज ही खबर है कि भीलवाड़ा में तीन चिकित्सक और तीन नर्सिंग छात्र इस कोरोना की चपेट में हैं। उन में लक्षण दिखाई देने के पहले वे सैंकड़ों लोगों के संपर्क में आए होंगे और उनमें से अनेक को वायरस स्थानान्तरित हुए हो सकते हैं। इसी कारण से इस नगर को पूरी तरह से लॉक डाउनकी स्थिति में लाने की कवायद चल रही है। आशा है प्रशासन और भीलवाड़ा की जनता इस लॉक डाउन को सहयोग करेंगे और वायरस का विस्तार रुक सकेगा।

इस घटना को देखते हुए आगामी दिन बहुत ऐहतियात रखने के होंगे। गणगौर पूजा वास्तव में शिव-पार्वती पूजा है। जिन परिवारों की स्त्रियाँ इस त्यौहार को मनाती हैं उन के घरों में शिव-पार्वती प्रतिमाएँ या तस्वीरें अवश्य होती हैं। सभी स्त्रियाँ अपने अपने घरों में रह कर इन प्रतिमाओं/ तस्वीरों की पूजा कर के त्यौहार मना सकती हैं। उन्हें इस के लिए बाहर निकलने की जरूरत नहीं होगी। इस अवसर पर जो मीठे और चरपरे गुणे बनाए जाते हैं उन्हें आपस में बदला भी जाता है। इस बार यह काम न किया जाए तो बेहतर है। क्यों कि इस अदला-बदली में वायरस स्थानान्तरण भी हो सकता है। आज कोरोना वायरस से फैली इस विश्वव्यापी महामारी के समय में गणगौर के त्यौहार को भी निबन्धित रीति से मनाना पड़ेगा। यह निबन्धित रीति क्या हो, यह बताने के लिए राज्य सरकार को तुरन्त एडवाइजरी जारी करनी चाहिए।


शनिवार, 31 मार्च 2012

गलती करो तो भुगत लो, पर गाँठ जरूर बांध लो


यूँ तो मुझे सब लोग कहते हैं कि मैं बहुत सुस्त वकील हूँ। पर मैं जानता हूँ कि जल्दबाजी का नतीजा अच्छा नहीं होता। अभी कुछ दिन पहले एक मुकदमे में सफलता हासिल हुई। मुवक्किल बहुत प्रसन्न थे। मिठाइयों के डब्बे और कोटा की मशहूर कचौड़ियाँ ले कर अदालत पहुँचे। उन्हों ने मुझे ही नहीं, मेरे सभी सहयोगियों, क्लर्कों और अदालत के चाय क्लब के दोस्तों को नवाजा। वे इतना लाए थे कि सब का मन भरपूर हो गया। मिठाइयों और कचौड़ियों का स्वाद ले कर कॉफी की चुस्कियाँ ली गईं। फिर वे हमें पान की दुकान तक ले चले। रास्ते में मैं ने उन्हें कहा कि लोग मुझे बहुत सुस्त वकील कहते हैं। तो उन की प्रतिक्रिया थी कि वे सही कहते हैं। लेकिन मैं उस के साथ एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि आप मनचाहा परिणाम भी लेते हैं जो अधिक महत्वपूर्ण है।  सही है कि जब हम कोई काम पूरा जाँच परख कर करेंगे तो उस का मनचाहा परिणाम भी मिलेगा और इस सब में समय लगना तो स्वाभाविक है। लेकिन कभी कभी मेरे जैसा व्यक्ति भी गलती कर ही बैठता है।

ह गलती तब होती है जब आप खुद पर जरूरत से अधिक विश्वास कर बैठते हैं। कई बार सुरक्षा को ताक पर रख देते हैं। पिछले शनिवार मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। रात के कोई सवा बारह बजे होंगे। घड़ियाँ और कलेंडर तारीख बदल चुके थे। मैं भी अपने काम का समापन कर सोने के लिए जा ही रहा था। कंप्यूटर बन्द करने के पहले आदतन मेल बॉक्स देखने लगा तो वहाँ एक मेल बेटे की आईडी से आई हुई थी। मैं ने सोचा जरूर कुछ महत्वपूर्ण संदेश होगा। मेल को खोला तो वहाँ केवल एक लिंक मिला। तुरंत उस पर चटका लगा दिया। एक जाल पृष्ठ खुला। वहाँ कोई सोफ्टवेयर डाउनलोड करने की सुविधा थी।  आनन फानन में मैने उसे डाउनलोड भी कर डाला और जैसा कि अक्सर होता है एक एक्जीक्यूटेबल फाइल हमारे कंप्यूटर में सुरक्षित हो गई। इतना करने के बीच में एक बार यह चेतावनी भी मिली कि यह कोई मेलवेयर भी हो सकता है। मैं ने उस की भी अनदेखी कर डाली।  इस बात का विश्वास था कि बेटे ने भेजा है तो कोई असुरक्षित वस्तु हो ही नहीं सकती। फिर इस तरह के मेलवेयर की चेतावनी पिछले दिनों मुझे मेरी ही वेबसाइट के बारे में इतनी बार मिली है कि मैं उस का आदी हो चुका था। खैर!

तना करने में केवल दस मिनट खर्च हुए। मैंने उसे तुरंत ही एक्जीक्यूट कर दिया और वह जो भी सोफ्टवेयर था वह इंस्टॉल हो गया। जैसे ही वह इंस्टाल हुआ उस ने कंप्यूटर को स्केन कर डाला और कुछ ही मिनटों में एक सौ से अधिक मेलवेयर फाइलें तलाश कर दीं। फिर कहने लगा इन फाइलों को हटाने और दुरुस्त करने के लिए मुझे उस के निर्माता से पूरा पैकेज खरीदना चाहिए जिस की कीमत थी 98 डालर। यह तो  मेरे बस में न था कि कंप्यूटर की सुरक्षा के लिए पाँच हजार रुपए खर्च किए जाएँ। । मुझे संदेह होने लगा कि यह सब बेटे की नहीं बल्कि बेटे के नाम से किसी और की करतूत है। मैं ने उस सोफ्टवेयर को अनइंस्टॉल करना चाहा। लेकिन यह संभव नहीं था। मैं ने सोचा सुबह यह सब बेटे से ही पूछा जाएगा। मैं ने कंप्यूटर बंद किया और जा कर सो गया। 
सुबह उठा कंप्यूटर संभाला। आदतन सब से पहले मेल जाँचने के लिए ब्राउजर खोला तो वह पहली मेल देखते देखते क्रेश हो गया। वह बार बार ऐसा ही करने लगा। एक मेल पढना भी संभव नहीं रहा। दूसरे दो ब्राउजर्स के साथ कोशिश की तो उन का भी वही हाल हुआ। हर बार वही रात को इंस्टॉल किया हुआ सोफ्टवेयर सर पर बंदूक तान कर कह रहा था निकाल पाँच हजार मैं तेरे कंप्यूटर को ठीक कर दूंगा। मैं सोच रहा था यह कौन आफत आ पड़ी? एक तो ठीक से चल रहा कंप्यूटर का इस ने कबाड़ा कर दिया और अब ब्लेक मेल कर रहा है। मेरा बस होता तो इसे घर में घुसने ही न देता। पर मैं बेटे के नाम से आए व्यक्ति को कम से कम ड्राइंगरूम तक तो आने से भी कैसे रोकता?

तने में बेटी सो कर उठी। मैं ने उसे अपना हाल बताया तो कहने लगी- यह मेल तो मुझे भी मिली थी, लेकिन मैं ने तो भैया को रात ही फोन कर के पूछ लिया था। उस की मेल आईडी हैक हो गई है और उस से यह मेल कई लोगों को भेजी गई है। मैं ने और बेटी ने दो घंटे तक प्रयत्न किया कि घर में इस तरह छद्म तरीके से घुस बैठे राक्षस को निकाल फैंका जाए। पर वह निकलने को तैयार न था और दूसरे काम भी न करने दे रहा था। मैं ने बेटे से संपर्क किया तो उस की सलाह थी कि यह ऐसे न निकलेगा। कंप्यूटर ही फॉर्मेट करना पड़ेगा। आखिर मैं ने मोर्चा संभाला। ऑपरेटिंग सिस्टम वाले ड्राइव से सभी जरूरी फाइलें हटा कर दूसरे ड्राइव मे डाली और ड्राइव को फॉरमेट कर फिर से आपरेटिंग सिस्टम डालना आरंभ किया। आपरेटिंग सिस्टम काम करने लगा तो दूसरे ए्प्लीकेशन चालू किए। इस बीच सिस्टम ने मॉनीटर निचले दाय़ें कोने पर झंडी टांग दी कि विंडो की यह प्रति असली नहीं है। मुझे तो यह झंडी दो मिनट के लिए भी बर्दाश्त न थी। बेटे से जानकारी ली गई। माइक्रोसोफ्ट से प्रति की जाँच कराई गई। जाँच के बाद उस ने प्रति को असली पाया। फिर अपडेटस् और सर्विस पैक्स आने लगे। माइक्रोसोफ्ट ने अपना वायरस प्रतिरोधक (माइक्रोसोफ्ट सीक्योरिटी असेंशियल) मुफ्त भेंट किया। हम निहाल हो गए। हमारा कंप्यूटर अब दौड़ रहा है।

मैं अपने बेटे पर कैसे अविश्वास कर सकता था? लेकिन मुझे बेटे के नाम से मिली वस्तु पर जरूर अविश्वास करना चाहिए था। क्यों कि विश्वासघात वहीं होता है जहाँ घोर विश्वास होता है। उस वस्तु के बारे में मिली चेतावनी को अनदेखा नहीं करना चाहिए था।  सब से बढ़ कर तो यह कि किसी भी काम को बहुत देख-परख कर सोच समझ कर काम करने की आदत किसी भी विश्वास के तहत कभी त्यागनी नहीं चाहिए।

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

क्या ब्लागवाणी पर ट्रॉजन वायरस का हमला हुआ है और वह इसकी वाहक बन रही है?


कोटा से यात्रा पर रवाना होने के पहले ब्लागवाणी देखी तो एंटीवायरस ने चेतावनी दी कि वायरस आ रहे हैं। देखा तो स्रोत ब्लागवाणी है। तो क्या ब्लागवाणी पर ट्रॉजन वायरस का हमला हुआ है। यदि ऐसा है तो यह हिन्दी ब्लागरों के लिए चिंता की बात है। कृपया ब्लागवाणी के प्रबंधक इस को जाँचें और इसे वायरस हीन करने का प्रयत्न करें। वरना बहुत लोगों के कंप्यूटर वायरस ग्रस्त हो सकते हैं।