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बुधवार, 20 जुलाई 2011

पेट का दर्द

हुत दिनों के बाद अदालत आबाद हुई थी। जज साहब अवकाश से लौट आए थे। जज ने कई दिनों के बाद अदालत में बैठने के कारण पहले दिन तो काम कुछ कम किया। दो-तीन छोटे-छोटे मुकदमों में बहस सुनी। उसी में 'कोटा' पूरा हो गया। लेकिन वकीलों और मुवक्किलों को पता लग गया कि जज साहब आ गए हैं और अदालत में सुनवाई होने लगी है। लोगों को आस लगी कि अब काम हो जाएगा। इस बार उन के मुकदमे में अवश्य सुनवाई हो जाएगी। जज साहब ने दूसरे दिन कुछ अधिक मुकदमों में सुनवाई की। एक बड़े मुकदमे में भी बहस सुन ली लेकिन वह किसी कारण से अधूरी रह गई। शायद जज साहब ने एक पक्ष के वकील को यह कह दिया कि वे किसी कानूनी बिंदु पर किसी ऊँची अदालत का निर्णय दिखा दें तो वे उन का तर्क मान कर फैसला कर देंगे। वकील के पीछे खड़े मुवक्किल को जीत की आशा बंधी तो उस ने वकील को ठोसा दिया कि वह नजीर पेश करने के लिए वक्त ले ले। वकील समझ रहा था कि जज ने कह दिया है कि यदि ऐसा कोई फैसला ऊँची अदालत का पेश नहीं हुआ तो उस के खिलाफ ही निर्णय होगा। पर मुवक्किल की मर्जी की परवाह तो वकील को करनी होती है। कई बार तो जज कह देता है कि वह उन की बात को समझ गया है, वह वकील को बता भी देता है कि उस ने क्या समझा है। पर फिर भी वकील बहस करता रहता है, ऊँची और तगड़ी आवाज में। तब जज समझ जाते हैं कि वकील अब मुवक्किल को बताने के लिए बहस कर रहा है, जिस से वह उस से ली गई फीस का औचित्य सिद्ध कर सके।  

दूसरे दिन शाम को ही मेरा भी एक मुवक्किल दफ्तर में धरना दे कर बैठ गया। उस का कहना था कि इस बार उस की किस्मत अच्छी है जो जज साहब उस की पेशी के दो दिन पहले ही अवकाश से लौट  आए हैं। वरना कई पेशियों से ऐसा होता रहा है कि उस की पेशी वाले दिन जज साहब अवकाश पर चले जाते हैं या फिर वकील लोग किसी न किसी कारण से काम बंद कर देते हैं। उसे कुछ शंका उत्पन्न हुई तो पूछ भी लिया कि कल वकील लोग काम तो बंद नहीं करेंगे? मैं ने उसे उत्तर दिया कि अभी तक तो तय नहीं है। अब रात को ही कुछ हो जाए तो कुछ कहा नहीं जा सकता है। मैं ने भी मुवक्किल के मुकदमे की फाइल निकाल कर देखी। मुकदमा मजबूत था। वह  पेट दर्द के लिए डाक्टर को दिखाना चाहता था। नगर के इस भाग में एक लाइन से तीन-चार अस्पताल थे। पहले अस्पताल बस्ती की आबादी के हिसाब से होते थे। लेकिन दस-पंद्रह सालों से ऐसा फैशन चला है कि जहाँ एक अस्पताल खुलता है और चल जाता है, उस के आसपास के मकान डाक्टर लोग खरीदने लगते हैं और जल्दी ही अस्पतालों और डाक्टरों का बाजार खड़ा हो जाता है। वह किसी जनरल अस्पताल में जाना चाहता था, उस ने एक अस्पताल तलाश भी लिया था। वह अस्पताल के गेट से अंदर जाने वाला ही था कि उसे एक नौजवान ने नमस्ते किया और पूछा किसी से मिलने आए हैं। जवाब उस ने नहीं उस के बेटे ने दिया -पिताजी को जोरों से पेट दर्द हो रहा है। वे किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहते हैं। 

नौजवान ने जल्दी ही उस से पहचान निकाल ली। वह उन की ही जाति का था और उन के गाँव के पड़ौस के गाँव में उसकी रिश्तेदारी थी। उस ने नौजवान का विश्वास किया और उस की सलाह पर उस के साथ  नगर के सब से प्रसिद्ध अस्पताल में पहुँच गया। नौजवान इसी अस्पताल में नौकर था और उस ने आश्वासन दिया था कि वह डाक्टर से कह कर फीस कम करवा देगा। इस अस्पताल में दो-तीन बरसों से धमनियों की बाईपास की जाने लगी थी। देखते ही देखते अस्पताल एक मंजिल से चार मंजिल में तब्दील हो गया था। छह माह से वहाँ एंजियोप्लास्टी भी की जाने लगी थी। उसे एक डाक्टर ने देखा, फिर तीन चार डाक्टर और पहुँच गए। सबने उसे देख कर मीटिंग की और फिर कहा कि उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए,जाँचें करनी पडेंगी, हो सकता है ऑपरेशन भी करना पड़े। उन्हें उस की जान को तुरंत खतरा लग रहा है, जान बच भी गई तो अपंगता हो सकती है। वह तुरंत अस्पताल में भर्ती हो गया। बेटे को पचासेक हजार रुपयों के इन्तजाम के लिए दौड़ा दिया गया। जाँच के लिए उसे मशीन पर ले जाया गया। शाम तक कई कई बार जाँच हुई। फिर उसे एक वार्ड में भेज दिया गया। आपरेशन की तुरंत जरूरत बता दी गई। दो दिनों तक रुपए कम पड़ते रहे, बेटा दौड़ता रहा। कुल मिला कर साठ सत्तर हजार दे चुकने पर उसे बताया गया कि उस का ऑपरेशन तो भर्ती करने के बाद दो घंटों में ही कर दिया गया था। उस की जान बचाने के लिए जरूरी था। फीस में अभी भी पचास हजार बाकी हैं। वे जमा करते ही अस्पताल से उस की छुट्टी कर दी जाएगी। उस के पेट का दर्द फिर भी कम नहीं हुआ था। वह दर्द से कराहता रहता था। डाक्टर और नर्स उसे तसल्ली देते रहते थे। उस ने बेटे से हिंगोली की गोली मंगा कर खाई तो गैस निकल गई, उसे आराम आ गया। उसे लगा कि अस्पताल ने उसे बेवकूफ बनाया है। वह मौका देख बेटे के साथ अस्पताल से निकल भागा। 


दूसरे डाक्टर को दिखाया तो उसे पता लगा कि उस की एंजियोप्लास्टी कर दी गई है, जब कि वह कतई जरूरी नहीं थी। अब तो उसे जीवन भर कम से कम पाँच सात सौ रुपयों की दवाएँ हर माह खानी पडेंगी। उसे लगा कि वह ठगा गया है। उस ने अपने परिचितों को बताया तो लोगों ने अस्पताल पर मुकदमा करने की सलाह दी जिसे उस ने मान लिया। इस तरह वह मेरे पास पहुँचा। मैं ने देखा यह तो जबरन लूट है। बिना रोगी की अनुमति के ऑपरेशन करने का  मामला है। मैं ने मुकदमा किया। साल भर में मुकदमा बहस में आ गया। फिर साल भर से लगातार पेशियाँ बदलती रहीं। मैं भी सोच रहा था कि कल यदि बहस हो जाए तो मुकदमे में फैसला हो जाए। 

गले दिन मैं, मेरा मुवक्किल और डाक्टरों व बीमा कंपनी के वकील अदालत में थे। जज साहब बता रहे थे कि बड़ी लूट है। उन का एमबीबीएस डाक्टर बेटा पीजी करना चाहता था। बमुश्किल उसे साठ लाख डोनेशन पर प्रवेश मिल सका है। रेडियोलोजी में प्रवेश लेने के लिए एक छात्र को तो सवा करोड़ देने पड़े। वैसे भी आजकल एमबीबीएस का कोई भविष्य नहीं है, इसलिए पीजी करना जरूरी हो गया है। ये कालेज नेताओं के हैं, और ये सब पैसा उन की जेब में जाता है। अब डाक्टर इस तरह पीजी कर के आएगा तो मरीजों को लूटेगा नहीं तो और क्या करेगा? मैं समझ नहीं पा रहा था कि जज लूट को अनुचित बता रहा है या फिर उस का औचित्य सिद्ध कर रहा है। 


खिर हमारे केस में सुनवाई का नंबर आ गया। जज ने मुझे आरंभ करने को कहा। तभी डाक्टरों का वकील बोला कि पहले उस की बात सुन ली जाए। मैं आरंभ करते करते रुक गया। डाक्टरों का वकील कहने लगा -वह कल देर रात तक एक समारोह में था। इसलिए आज केस तैयार कर के नहीं आ सका है। आज इन की बहस सुन ली जाए, वह कल या किसी अन्य दिन उस का उत्तर दे देगा। जज साहब को मौका मिल गया। तुरंत घोषणा कर डाली। आज की बहस अगली पेशी तक कैसे याद रहेगी? मैं तो सब की बहस एक साथ सुनूंगा। आखिर दो सप्ताह बाद की पेशी दे दी गई। मैं अपने मुवक्किल के साथ बाहर निकल आया। मेरा मुवक्किल कह रहा था। अच्छा हुआ, आज पेशी बदल गई। अब इस जज के सामने बहस मत करना। यह  दो माह में रिटायर हो लेगा। फिर कोई दूसरा जज आएगा उस के सामने बहस करेंगे। मैं उसे समझा रहा था कि आने वाले जज का बेटा या दामाद भी इसी तरह डाक्टरी पढ़ रहा हआ तो क्या करेंगे? इस से अच्छा है कि बहस कर दी जाए। यदि जज गलत फैसला देगा तो अपील कर देंगे। मुवक्किल ने मेरी बात का जवाब देने के बजाय कहा कि अभी पेशी में दो हफ्ते हैं, तब तक हमारे पास सोचने का समय है कि क्या करना है?

मंगलवार, 28 जून 2011

"शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"

निशा, शायद यही नाम है, उस का। उस का नाम रजनी या सविता भी हो सकता है। पर नाम से क्या फर्क पड़ता है? नाम खुद का दिया तो होता नहीं, वह हमेशा नाम कोई और ही रखता है जो कुछ भी रखा जा सकता है। चलो उस लड़की का नाम हम सविता रख देते हैं।

ह ग्यारह वर्ष से जीएनएम  यानी सामान्य नर्सिंग और दाई का काम कर रही है। ग्यारह साल कम नहीं होते एक ही काम करते हुए। इतना अनुभव हो जाता है कि कोई भी अधिक जटिलता के काम कर सकता है। वह भी चाहती है कि उसे भी अधिक जटिल काम मिलें, नौकरी में उस की पदोन्नति हो। पर इस के लिए जरूरी है कि वह कुछ परीक्षाएँ और उत्तीर्ण करे। उस ने प्रशिक्षण  में दाखिला ले लिया। साल भर पढ़ाई की। जब परीक्षा हुई तो परीक्षक की निगाहें उस पर गड़ गईं। उस के काम में कोई कमी नहीं लेकिन फिर भी ... परीक्षक ने कहा पास नहीं हो सकोगी। होना चाहती हो तो कुछ देना पड़ेगा। उसे अजीब सा लगा, उस ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिणाम आया तो वह अनुत्तीर्ण हो गई। फिर एक साल पढ़ाई, फिर परीक्षा और परिणाम की प्रतीक्षा ...

इस बार वही परीक्षक ट्रेनिंग सेंटर के आचार्य की पीठ पर विराजमान था, कामचलाऊ ही सही, पर पीठ तो आचार्य की थी। उस ने सविता को देखा तो पूछा
-तुम पिछले साल उत्तीर्ण नहीं हुई? उस ने उत्तर दिया
-कहाँ सर? आप ने मदद ही नहीं की।
-मैं ने तो तुम्हें उपाय बताया था।
-नहीं सर! वह मैं नहीं कर सकती। हाँ कुछ धन दे सकती हूँ।
-सोच लो, धन से काम न चलेगा।
-सोचूंगी।
 कह कर वह चली आई। सोचती रही क्या किया जाए। आखिर उस ने सोच ही लिया। वह फिर आचार्य के पास पहुँची, कहा
-सर ठीक है जो आप कहते हैं मैं उस के लिए तैयार हूँ। पर मेरी दो साथिनें और हैं, उन की भी मदद करनी होगी। वे दो दो हजार देने को तैयार हैं। आचार्य तैयार हो गए। सविता को चौराहे पर मिलने के लिए कहा।
सविता चौराहे तक पहुँची ही थी कि स्कूटर का हॉर्न बजा। आचार्य मुस्कुराते हुए स्कूटर लिए खड़े थे। वह पीछे बैठ गई। स्कूटर नगर के बाहर की एक बस्ती की ओर मुड़ा तो सविता पूछ बैठी।
-इधर कहाँ? सर!
-वह तुम्हारी अधीक्षिका थी न? वह आज कल दूसरे शहर में तैनात है उस के घर की चाबियाँ मेरे पास हैं, वहीं जा रहे हैं। क्या तुम्हें वहाँ कोई आपत्ति तो नहीं?
-ठीक है सर! वहाँ मुझे कोई जानता भी नहीं।

कुछ देर में स्कूटर घर के सामने रुका। आचार्य ने ताला खोला अंदर प्रवेश किया। कमरा खोल कर सविता को बिठाया। सविता ने अपने ब्लाउज से पर्स निकाल कर चार हजार आचार्य को पकड़ा दिए।
-तुम बैठो! तुम बाहर का दरवाजा खुला छोड़ आई हो, मैं बंद कर आता हूँ।
आचार्य कमरे से निकल गया। सविता के पूरे शरीर में कँपकँपी सी आ गई। उसे लगा जैसे कुछ ही देर में उसे बुखार आ जाएगा। लेकिन तभी ..
आचार्य मुख्य द्वार बंद कर रहा था कि कुछ लोगों ने बाहर से दरवाजे को धक्का दिया। वह हड़बड़ा गया। उसे दो लोगों ने पकड़ लिया। अंदर कमरे में जहाँ सविता थी ले आए। इतने सारे लोगों को देख सविता की कँपकँपी बन्द हुई। आचार्य के पास से नोट बरामद कर लिए गए। उन्हें धोया तो रंग छूटने लगा। आचार्य के हाथों में भी रंग था।

विता को फिर से कँपकँपी छूटने लगी थी। वह सोच रही थी, जब उस के पति और ससुराल वालों को पता लगेगा तो क्या सोचेंगे?  उन का व्यवहार उस के प्रति बदल तो नहीं जाएगा? उस के और रिश्तेदार क्या कहेंगे? क्या उस का जीवन बदल तो नहीं जाएगा? और उस के परीक्षा परिणाम का क्या होगा? सोचते सोचते अचानक उस ने दृढ़ता धारण कर ली। अब कोई कुछ भी सोचे, कुछ भी परिणाम हो। उस ने वही किया जो उचित था और उसे करना चाहिए था। वह सारे परिणामों का मुकाबला करेगी। कम से कम कोई तो होगा जो यह कहेगा "शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"।

चार्य जी, जेल में हैं। पुलिस ने उन की जमानत नहीं ली। अदालत  भी कम से कम कुछ दिन उन की जमानत नहीं लेगी। अच्छा तो तब हो जब उन की जमानत तब तक न ली जाए जब तक मुकदमे का निर्णय न हो जाए।
(कल सीकर में घटी घटना पर आधारित)

शुक्रवार, 27 मई 2011

देव विसर्जन .................... डाक्टर देवता-5


स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन डाक्टर बारदाना से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। डाक्टर ने वाचक को ठीक से देखा और दवाइयाँ लिख दीं। अगले दिन सुबह से उस ने दवाइयाँ लेना आरंभ कर दिया। उस ने दिन में तीन बार दवाइयाँ लीं, लेकिन उसे हर बार दवा लेने के कुछ घंटे बाद नींद सताने लगती और वह सो जाता।  उस से अगले दिन उसे कब्ज हो गई। दिन भर उबासियाँ आती रहीं। एक तरह का नशा सा उस पर छाया रहता। देखने में दृश्यों की शार्पनेस गायब हो गई। सफेद रोशनी में रंग नजर आने लगे। रात को अपने दफ्तर में बुक रैक से टकरा कर पैर घायल हो गया। तीसरे दिन कब्ज ने पूरी तरह कब्जा कर लिया। अदालत में वाचक एक मित्र से उलझ लिया। झगड़ा शांत करने के लिए जज ने सब को कॉफी पिलाई। वाचक को समझ आ रहा था कि कोई दवा ऐसी थी जो उस से यह सब करवा रही थी। उस ने शाम को अंतर्जाल पर इन दवाओँ की जन्मपत्री खोजी तो उसे पता लगा एक दवा अत्यन्त नशीली थी और डाक्टर को उसे लिखने के साथ ही बताना चाहिए था कि उस के क्या असर हो सकते हैं और उसे क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए थीं। अब आगे पढ़िए .....

भाग-5 

रात को गर्म पानी से लिए पंचसकार चूर्ण की एक खुराक का असर यह हुआ कि चौथे दिन सुबह पानी का तीसरा गिलास पीते-पीते ही सीधे टॉयलट भागना पड़ा। दो दिनों की सारी कसर एक बार में ही निकल गई। बाहर निकला तो ऐसा हलका महसूस कर रहा था कि जोर की आँधी चले तो हवा में उड़ जाऊँ। मैं ने एक तीर मार लिया था। जो गोलियाँ दिन में तीन बार ले रहा था, उन में से दोपहर वाली खुराक की कटौती कर दी। अदालत गया तो जेन-100 के असर से एक दो उबासी तो आई, लेकिन अब उस से परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि मजा आ रहा था। दृष्टि धुंधलाई, रोशनी में रंग दिखे तो मुझे मजा आने लगा। चाय पर मुरारी को बोला। आज तो बिना ठंडाई छाने उस का आनंद आ रहा है। कैंटीन की भट्टी के धुएँ में भी रंग नजर आ रहे हैं। वह मुस्कुरा उठा। 
-तुम्हें डाक्टर मजेदार मिला है। स्साला! गोलियों से ठंडाई छनवाता है। पर गोली में दूध-बादाम का आनंद कहाँ से आएगा। उस से सेहत बनती है, इस से शरीर जलेगा।
मुरारी मुझे छेड़ रहा था। मैं ने कहा -दिन की गोली बंद कर दी है आज से। सिर्फ दो बार लूंगा और शाम को सादी ठंडाई ले लूंगा तो उस का आनंद भी शामिल हो जाएगा।  

ब मुझे पता था कि दवाइयाँ क्या क्या असर दिखा सकती है? मैं सतर्क था, उन के असर से मुकाबला करते हुए आनंद ले सकता था। इन दवाओँ का असर यह तो हुआ था कि शरीर में किसी तरह का कोई दर्द नहीं था और हाथ में करंट का दौरा भी कम हो गया था। दिन में एक दो बार ही उस का सामना करना पड़ रहा था। मैं हाथ की स्थिति बदल कर उसे भगा सकता था। अदालत के गंभीर काम मैं ने दवाओं के चलते रहने तक के लिए मुल्तवी कर दिये थे।  दो बजे घर पहुँच कर भोजन किया और बिना दफ्तर में घुसे बिस्तर पकड़ कर सो लिया। शाम नींद खुली तो मैं तरोताजा था। इसी तरह रात का भोजन करने के बाद मैं जल्दी ही बिस्तर पर पहुँच गया था। इस तरह दिनचर्या काबू में आ गई थी। यह आनंद शेष चार दिन तक चलता रहा। आठ दिनों में सारी दवाइयाँ मैं ले चुका था। लेकिन तीन के स्थान पर दो खुराक कर देने के कारण भोजन के साथ खाई जाने वाली एक-एक गोली बच गई थीं। मैं ने उन्हें सुबह नाश्ते के साथ नहीं लिया। मैं जानना चाहता था कि दवा समय से न लेने से क्या हो सकता है। नौ बजे अदालत पहुँचा तो सिर भारी होना आरंभ हो गया। 

कुछ देर में सिर दर्द आरंभ हो गया। गर्मी वैसे ही बहुत अधिक थी, पसीना छूटने लगा। सहायक ने बोला कि शीला के मुकदमे में गवाह आया है, जिरह करनी है। अदालत दो बार बुलवा चुकी है। मैं अदालत तक गया लेकिन जज चाय के लिए उठ चुके थे। मैं भी चाय के लिए रवाना हो गया। कैंटीन पहुँचते ही मुरारी ने पूछा -दवाइयाँ खत्म हुई या नहीं?
-एक-एक गोली बची है और अभी ले कर नहीं आया हूँ। दोपहर के लिए रख छोड़ी हैं। पर सिर दर्द हो रहा है। मैं ने बताया। 
-हाँ बाबू! ये हैंगोवर है। तुम नहीं जानते, कभी पी नहीं ना, इसलिए अब जान लो। अब ये सिर्फ फिर पीने से मिटता है। 
-इसीलिए एक-एक गोली छोड़ दी है। मुरारी हँसने लगा। चाय के बाद पान की दुकान तक वह चूहल करता रहा। मैं वापस अदालत पहुँचा। लेकिन स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं गवाह से जिरह कर सकता। मैं ने विपक्षी वकील को बताया तो वह तारीख बदलवाने को तैयार हो गया। वह तो मुकदमे में वैसे ही देरी करना चाहता था और उसे इस का अवसर मिल रहा था। मुझे कुछ अपराध बोध हुआ। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। जैसे-तैसे दोपहर तक काम निपटाया। फिर मिस्टर पॉल मिल गए। मैं ने उन्हें बताया कि उन के बताए डाक्टर की दवाइयाँ खत्म हो गई हैं। घर पहुँच कर भोजन किया बची हुई आखिरी गोलियाँ लीं। दस मिनट बाद मैं नींद निकाल रहा था। शाम ठीक ठाक गुजरी। रात को नींद भी ठीक आई। 

सवें दिन मैं ठीक था। मुझे गोलियों से मुक्ति मिल गई थी। डाक्टर ने दवाइयाँ खत्म होने  के बाद मिलने को कहा था। पर मेरा मन उस डाक्टर के पास फिर से जाने का नहीं था। पूरी दंत पंक्ति में हलका सा दर्द रहने लगा है। दोपहर तक पैर में जहाँ चोट लगी थी दर्द आरंभ हो गया। घर पहुँचा तो यह दर्द तेज हो गया। मुझे लगा कि अब तक चल रही दर्द निवारक दवाओं से वह रुका हुआ था। अब जोर मार रहा है। शाम तक लगने लगा कि कहीं वाकई कोई फ्रेक्चर तो नहीं है। अब शायद किसी हड्डी डाक्टर के यहाँ जाना पड़े। दूसरे दिन सुबह उठा तो पैर ठीक था लेकिन थोड़ा चलने फिरने में ही फिर दर्द करने लगा। ऐसा कि मैं लंगड़ाने लगा। बर्दाश्त नहीं हुआ तो नवानी को फोन किया। वह अभी बाहर ही था। मैं ने उसे सारी बात बताई, तो कहने लगा कोई फ्रेक्चर-व्रेक्चर नहीं है। कोई पेशी फट गयी है, घर जाकर बर्फ से सेको। घर आ कर बर्फ से सिकाई की तो दर्द में कमी आई। लेकिन शाम को फिर दर्द होने लगा। मैं ने फिर बर्फ सिकाई कर डाली। दो दिन की सिकाई के बाद लगने लगा कि अब पैर ठीक है। तभी पत्नी कहने लगी कि उस के पैर दर्द कर रहे हैं। मैं ने कहा आप की केल्सियम की गोलियाँ हैं कि खत्म हो गई हैं। उन्हें तो खत्म हुए महिने से ऊपर हो गया है। 
-तो तुमने बताया नहीं, मैं ले आता। 
-मैं ने कहा था, पर आप को तो अपने दर्द के मारे फुरसत नहीं है। मुझे याद नहीं आ रहा था कि उस ने कब मुझे कैल्सियम की गोलियाँ खत्म होने के बारे में बताया था। मैंने पत्नी से वायदा किया कि कल अवश्य ले आउंगा। अगले दिन मैं कैल्सियम की गोलियाँ शैल कॉल खरीद रहा था तो मुझे ध्यान आया कि मुझे भी मल्टी विटामिन लिये कई महिने हो गए हैं। मैं ने अपने लिए भी न्यूरोबिअन फोर्ट खरीद लीं। नवानी को बताया तो उस ने कहा कि आप ये गोलियाँ कम से कम एक माह ले लो। मैं दो दिन में पहुँच रहा हूँ। फिर डाक्टर नवीन से मिलने चलते हैं। वह मेरा मित्र है। उसी से बात करेंगे। मैं सोच रहा था, उस देवता डाक्टर से यह मित्र डाक्टर ठीक है। इस से मिलने चला जा सकता है। डाक्टर देवता का यहीँ विसर्जन कर दिया जाए तो ठीक है। अब यदि कभी उस से मिलना होगा तो तभी मिलेंगे जब वह विटनेस बॉक्स में खड़ा होगा और मुझे उस से जिरह करनी होगी।

दवाइयों की जन्मपत्री .................... डाक्टर देवता-4


स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। डाक्टर ने वाचक को ठीक से देखा और दवाइयाँ लिख दीं। अगले दिन सुबह से उस ने दवाइयाँ लेना आरंभ कर दिया। उस ने दिन में तीन बार दवाइयाँ लीं, लेकिन उसे हर बार दवा लेने के कुछ घंटे बाद नींद सताने लगती और वह सो जाता।  उस से अगले दिन उसे कब्ज हो गई। दिन भर उबासियाँ आती रहीं। एक तरह का नशा सा उस पर छाया रहता। देखने में दृश्यों की शार्पनेस गायब हो गई। सफेद रोशनी में रंग नजर आने लगे। रात को अपने दफ्तर में बुक रैक से टकरा कर पैर घायल हो गया। अब आगे पढ़िए .....
भाग-4 
वाइयाँ लेते दो दिन हो चुके थे, तीसरे दिन नींद जल्दी ही खुल गई। शायद यह पिछले दिन जल्दी सोने का परिणाम था। उठते ही चार-पाँच गिलास पानी पिया और अपने कार्यालय में आप बैठा। रात को आज की फाइलें पूरी नहीं देख पाया था, उन्हें देखने लगा। पत्नी अपने समय से उठी और रसोई में जा कर चाय बनाने लगी। फिर दिन बाकायदे आरंभ हो गया। यह दिन भी पिछले दिन की तरह ही था। फर्क था तो सिर्फ इतना की आज तमाम कोशिशों के बावजूद भी परिणाम कुछ नहीं रहा था। कब्ज ने पूरी तरह कब्जा कर लिया था। हालांकि उस से किसी तरह का प्रत्यक्ष दुष्परिणाम दिन भर नजर नहीं आया था। अदालत में दो मुकदमे ऐसे थे जिन में नौकरी से छंटनी किए गए दो कर्मचारी हर पेशी पर आते थे। उन की गवाही होनी थी। लेकिन हर बार यह कह कर गवाही को टाल दिया जाता था कि समझौते के प्रयत्न चल रहे हैं। नियोजक कंपनी के वकील से अदालत में पूछा गया कि क्या कोई संभावना बनी, तो उस ने जवाब दिया कि कंपनी के प्रबंधक से बात नहीं हो पा रही है। यह बहुत चिढ़ाने वाली बात थी। एक और तो मुकदमे में प्रगति रुकी हुई थी और दूसरी ओर प्रबंधक समझौते में कोई रुचि नहीं दिखा रहा था। कर्मचारियों ने जज को कहा कि वे कुछ अधिक नहीं मांग रहे हैं। जो राशि उन्हें छंटनी के समय देने का प्रस्ताव नियोजक ने किया था, उस पर बैंक ब्याज ही और मांग रहे हैं। तभी प्रबंधक के वकील ने चिढ़ कर कहा कि उस वक्त क्यों नहीं ले लिया, अब ब्याज भी क्यों दिया जाए? मुझे लगा कि कर्मचारियों को दबाने का प्रयत्न किया जा रहा है। मुझे इस पर ताव आ गया और मैं प्रबंधक के वकील से अदालत में ही उलझ पड़ा, और उलझता चला गया। मामले को गर्म होते देख जज ने शांति बनाने का उपक्रम किया और वहाँ उपस्थित सभी वकीलों को अपने चैंबर में आ कर कॉफी पीने का न्यौता दे दिया।

चैंबर में जज मुझे समझाता रहा कि मुझे इस तरह गुस्सा नहीं करना चाहिए था। बात मुझे समझ आ रही थी। मैं गुस्सा किये बिना भी उस बात का उत्तर दे सकता था। लेकिन यह गुस्सा मुझे अचानक आया था, और उस पर मेरा कोई काबू नहीं था। मैं अपने ही मित्र वकील से उलझ पड़ने पर शर्मिंदा भी था। लेकिन क्या कहता? मैं ने जज को कहा कि हम यदि गुस्सा न करें तो हमें जजों की कॉफी पीने को कहाँ मिले। लेकिन मुझे समझ आ रहा था कि यह भी उन दवाओं का असर हो सकता था जो मैं इन दिनों ले रहा था। मैं ने निश्चय  किया कि शाम को मैं उन दवाओं के बारे में जानकारी अवश्य करूंगा, जिन्हें मैं ले रहा था।

शाम को आ कर मैं ने अंतर्जाल पर दवाओं की जन्मपत्री की खोज खबर ली। पहली दवा थी ऑम्नाकोर्टिल, इसे मुझे प्रतिदिन एक लेना था। पहले और दूसरे दिन 40 मिग्रा, तीसरे और चौथे दिन 30 मिग्रा, फिर दो दिन 20 मिग्रा और अंतिम दो दिन 10 मिग्रा। अंतर्जाल पर तलाशने पर इस के साइड इफेक्ट्स इस तरह मिले -  

Steroids like Omnacortil are life saving drugs but can cause number of side effects on prolonged use like change your skin (rough skin, stretch marks), hair loss (baldness), mood changes (aggressive behavior), headaches, sexual changes (in males : breast enlargement and lack of erection), kidney and liver problems.
 
इस दवा के साइड इफेक्ट्स लंबे समय तक उपयोग से आने थे। इसलिए इस पर मैं ने अधिक ध्यान नहीं दिया। अब इस उम्र में त्वचा वैसे ही रुखी हो चली थी, सिर के बाल पहले ही जा चुके थे, यौन परिवर्तनों से भी अब क्या फर्क पड़ना था? हाँ किडनी और लीवर दोनों जरूर चिंता का विषय थे। मैं ने सोच लिया कि आठ दिन के बाद इस दवा को तो कभी नहीं लेना है।

दूसरी दवा टोल्पा-डी थी। तलाश करने पर यह एक एंटीइन्फ्लेमेटिक दवा निकली। इस के साइड इफेक्ट्स क्या थे? ये भी सर्च से पता नहीं लगे। तीसरी दवा ज़ेन-100 थी इस का जेनेरिक नाम कार्बामेजेपाइन था। जब इस के बारे में पढ़ा, तो पता लगा कि इसे उपयोग करने के विशेष निर्देश भी हैं, जैसे-

Special Instruction :

1. Keep all appointments with your doctor and the laboratory so that your doctor can monitor your response to this drug.
2. Your dose may need to be adjusted frequently, especially when you first take carbamazepine.
3. You probably will have blood and urine tests and eye examinations periodically to check how this medication is affecting you.
4. Carbamazepine can cause dizziness, blurred vision, drowsiness, and incoordination.
5. Do not drive a car, operate any dangerous machinery or do anything that requires alertness until you know how this drug affects you.
6. Do not stop taking this medication until your doctor specifically tells you to do so.
7. Stopping the drug abruptly can cause seizures.
8. Your doctor probably will want to decrease your dose gradually.
9. Take carbamazepine exactly as your doctor has directed.
10. Do not take more or less of it than as instructed.
11. If you continue to have seizures, contact your doctor.
12. Be sure that you have enough medication on hand at all times.
13. If you give this drug to a child, observe and keep a record of the child's moods, behavior, sleep patterns, ability to perform tasks requiring thought, and seizures. 

और इस के साइड इफेक्ट्स इस तरह बताए गए थे-
1. Dizziness; blurred vision; hallucinations; insomnia, agitation, and irritability (in children); drowsiness; tiredness; confusion; headache; incoordination; speech problems; dry mouth; mouth or toungue irritation; If these effects last for more than few days, contact your doctor.
2. Nausea, vomiting, abdominal pain, loss of appetite, diarrhoea or constipation. Take the medication with meals. If these problems persist, contact your doctor.
3. Fever; sore throat; mouth sores; easy bruising; thiny purple-colored skin spots; yellowing of skin or eyes; irregular heartbeat; faintness; swelling of feet and lower legs; bloody nose; unusual bleeding; red, itchy skin rash
. Contact your doctor immediately.

न्हें पढ़ कर मैं एक-दम सन्न रह गया। मुझे अब पता लग रहा था कि मुझे दुनिया इतनी रंगीन क्यों दिखाई दे रही थी? दृश्यों की शार्पनेस क्यों गायब हो गई थी? मैं ने बुक रैक से ठोकर खा कर अपना ही पैर कैसे घायल कर डाला था? मैं अपने मित्र वकील से क्यों उलझ पड़ा था? मुझे इतनी भारी कब्ज क्यों हो गई थी? आदि...आदि। इतनी सारी बातें थीं और मुझे बताई तक न गईं। न डाक्टर ने, न केमिस्ट ने और न ही मेरे साथ गए दवा प्रतिनिधि नवानी ने। मुझे सब से ज्यादा गुस्सा तो इस बात पर आ रहा था कि उन्हों ने मुझे ड्राइविंग के लिए मना क्यों नहीं किया था। मैं एक्सीडेंट ही कर बैठता तो?  मैं ने तुरंत नवानी को फोन किया। उसे इस दवा के बारे में बताया। वह कहने लगा।
-मैं ने उस दिन ही कहा था कि यह दवा ठीक नहीं है। पर आप खुद ही कहते रहे कि जो डाक्टर ने लिखा है वे सब दवाएँ लेनी हैं और उसी मात्रा में लेनी हैं। इसलिए मैं कुछ भी न बोला, और मुझे भी कहाँ इतना सब पता था इस दवा के बारे में। मैं ने तो कभी यह दवा बेची नहीं। 

वानी के इतना कह देने के बाद मैं उस से क्या कहता? मैं ने उसे जल्दी से जल्दी मिलने को कहा। लेकिन वह शहर से बाहर था, वह भी पूरे सात दिनों के लिए। अब जो भी निर्णय लेना था, मुझे ही लेना था। मैं ने दवा का सारा साहित्य एक बार फिर पढ़ा। मुझे लगा कि इस दवा को एक दम बंद करना भी ठीक नहीं है। हो सकता है सीजर्स हों। वै कैसे होंगे? इस का पता मुझे नहीं था नवानी भी बाहर था। मैं ने तय किया कि इस की मात्रा कम कर दी जाए। अब मैं ने निश्चय किया कि मैं यह दवा सिर्फ सुबह नाश्ते और शाम को भोजन के साथ ही लूंगा। रात को सोने के पहले मैं ने एक काम और किया कि आयुर्वेदिक चूर्ण पंचसकार की एक खुराक गर्म पानी के साथ ले ली। जिस से कम से कम कब्ज को तो बेकब्जा कर सकूँ। 

... क्रमशः

गुरुवार, 26 मई 2011

दूसरा दिन ...................... डाक्टर देवता-3




स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। डाक्टर ने वाचक को ठीक से देखा और दवाइयाँ लिख दीं। अगले दिन सुबह से उस ने दवाइयाँ लेना आरंभ कर दिया। उस ने दिन में तीन बार दवाइयाँ लीं, लेकिन उसे हर बार दवा लेने के कुछ घंटे बाद नींद सताने लगती और वह सो जाता। अब आगे पढ़िए .....

भाग-3

गले दिन सुबह उठा तो एक दम ताजा महसूस हुआ। डाक्टर की बताई पेट ठीक रहने की गोली कल सुबह खाई थी। फिर भी मैं ने छह गिलास पानी एक साथ पी डाला, मेरी सोच थी कि इस से गोली के काम में मदद मिलेगी और शौच में आसानी होगी। इस के बाद घर में ही इधर-उधर टहलने लगा, लेकिन हाजत का कोई नामोनिशाँ तक न था। पत्नी रसोई में थी। कुछ देर बाद उस ने कॉफी ला कर दी। मैं ने बैठ कर उसे पिया और ताजा अखबार की सुर्खियाँ देखता रहा। कॉफी खत्म हो जाने के बाद फिर से टहलने लगा। दस मिनट तक भी कोई हलचल न हुई तो मैं परेशान होने लगा। अब मुझे समझ आ रहा था कि डाक्टर ने यह पेट वाली गोली क्यों दी थी। उस की दीगर दवाओं से कब्ज होने वाली थी और उसी से बचाने को उस ने यह गोली दी थी। पर शायद यह पर्याप्त नहीं थी और दूसरी दवाओं ने अपना काम कर दिया था। मैं ने गोली, छह गिलास पानी, एक कॉफी की ताकत के ऊपर अपनी मसल पावर भी आजमाने का निश्चय किया और सीट पर जा बैठा। इतनी सारी शक्तियाँ एक साथ होने ने असर तो दिखाया पर परिणाम लगभग चौथाई ही रहा। इस से कम ही सही पर कुछ संतुष्टि तो हुई। मैं ने हाथ साफ करते हुए सोचा कि आधे घंटे बाद एक आजमाइश और की जा सकती है। बाहर निकल कर फिर चार गिलास पानी पिया और शेव बनाने लगा। शेव के बाद कंप्यूटर पर बैठ कर मेल देखा। आधा घंटे बाद की कोशिश बिलकुल नाकामयाब रही। मैं ने खाली पेट वाली गोली खाई और स्नान करने चला गया। अदालत जाने के पहले नाश्ते के ठीक बाद कल वाली तीन गोलियाँ लेना कतई न भूला। 

दालत की अपनी सीट पर आ कर बैठा और अपनी आज की कार्यसूची देख ही रहा था कि मुहँ खुला और खुलता ही चला गया। मैं चाहता था उस का खुलना कहीं रुक जाए। लेकिन वह अपनी अधिकतम सीमा तक खुला। यहाँ तक कि पेशियों ने और अधिक खुलने के लिए जोर भी लगाया। लेकिन अब और अधिक खुलना संभव नहीं रहा था। कुछ देर जोर लगाने के बाद पेशियाँ सुस्त हो गईं और मुहँ अपने ठिकाने आ गया। इस सारी क्रिया को मेरे सहायक वकीलों ने अत्यन्त आश्चर्य के साथ देखा। मैं ने कुछ पेशियों पर जाने के लिए सहायकों को निर्देश दिया और सोचने लगा कि मुझे उस वक्त किस मुकदमे की पेशी पर जाना चाहिए। तभी पेशियों ने फिर मुहँ पर अपनी ताकत आजमाई। पहले वाली क्रिया ठीक उसी तरह दोहराई गई। इस बार तो मैं ने अपनी गर्दन को इधर-उधर हिलाया भी कि उस के ऊपर विराज रहे सिर के अंदर कहीं कुछ अटक रहा हो तो निकल जाए और पेशियाँ अपनी क्रिया दोहराना बंद कर दें। किसी पेशी पर अदालत में जज के सामने यदि पेशियों ने अपनी हरकत दोहरा दी तो अपना तो सारा इंप्रेशन ही कचरा हो जाएगा।  मैं ने अपनी सीट पर ही बैठ कर केस फाइलें  देखना आरंभ कर दिया। कुछ देर बाद मोबाइल की घंटी बजने लगी। मैं ने देखा यह पंडित की कॉल थी यह याद दिलाने के लिए कि चाय का समय हो गया है। मैं ने समय देखा तो दस बजने वाले थे। मुझे यह कॉल अच्छी लगी। जैसे अचानक डूबते को कोई सहारा मिल गया हो। मैं तुरंत उठ कर केंटीन की ओर चल दिया। रास्ते में पंडित और मुरारी भी मिल गए। 

केंटीन में जा कर बैठते ही मुहँ फिर खुल गया। क्रिया संपूर्ण होने के बाद मुरारी ने पूछ ही लिया। आज रात सोये नहीं क्या, अभी तक मुहँ खुल रहा है? मैं क्या कहता। उन्हें बताया कि कल खूब सोया हूँ। सुबह ताजा भी था लेकिन यहाँ अदालत आते ही यह सब शुरू हो गया, यह तीसरी है। मुझे लग रहा है कि यह डाक्टर की दवा का असर है। इस के बाद मुरारी ने पूरा उपदेश झाड़ डाला। 
- तुम्हेँ उस डाक्टर के पास जाना ही नहीं चाहिए था। तु्म्हें सिर्फ और सिर्फ गरदन की कसरत करनी चाहिए। सब ठीक हो जाते। तु्म्हें तो पैसा फालतू खर्च करते आनंद आता है। जितने पैसे उसे दे कर आए हो उतने में तो दो दिन की शाम की ठंडाई का प्रबंध हो जाता।   बढ़िया बादाम में छनती। तुम ने ये आंनद लेने का काम तो बंद कर दिया है। इसीलिए ये सब चक्कर हो रहे हैं। तुम शाम को आ जाओ पावर हाउस के पास हनुमान मंदिर पर। शाम को तुम्हें बढ़िया बादाम छनवा देते हैं। कल ही गर्दन और हाथ का करंट बन्द समझो। 
उस के इस उपदेश पर मैं क्या कहता? मैं ने उसे बस इतना कहा -यहाँ साला हाथ में करंट दौड़ता फिर रहा है और तुम्हें मजाक सूझ रहा है। 
-अब मजाक पर नाराज मत होओ। तुम्हारा इलाज अभी से किए देते हैं। इतना कह कर उस ने केंटीन वाले छोकरे को जोर से आवाज लगाई और कहा -समौसे भेज दे, एक-एक। फिर ऑर्डर संशोधित किया - नहीं दो समौसे और एक कचौड़ी लाओ। बड़े वकील साहब को कचौड़ी पसंद है।  
मैं उसे मना करता ही रह गया कि मैं नाश्ता कर आया हूँ, मैं कुछ न लूंगा। कुछ देर में कचौड़ी समौसे आ गए और चाय के पहले निपटा दिये गये। हम पान की दुकान तक साथ आए पान खाया। वापस लौटते वक्त पेड़ से छन कर आ रही धूप की चिलकियों में मुझे इंद्रधनुष जैसे रंग दिखाई दिए। 
मैं ने मुरारी को कहा- आज तो दुनिया बड़ी रंगीन लग रही है। 
मुरारी कहने लगा -क्यों न लगेगी? शाम को हनुमान मंदिर का न्यौता जो मिल गया है। अभी शाम तक ऐसे ही रंगीन  लगेगी और छनने के बाद दुगनी हो जाएगी। कल सुबह एक दम तरोताजा अदालत न पहुँचो तो नाम बदल देना। 

मेरे बैठने का स्थान आ गया था, वे मुझे छोड़ आगे बढ़ गए। मेरे लिए सहायकों की रिपोर्ट मौजूद थी। कि मुझे किन किन अदालतों में जाना है। मैं आवश्यक फाइलें उठा कर चल दिया। काम से निबटते-निबटते दो बज गए। जैसे ही घर आने को तैयार हुआ मिस्टर पॉल ने टोक दिया -अब तो हमारे साथ कॉफी पी सकते हैं? मैं उन के आग्रह को कैसे ठुकरा सकता था, उन्हों ने ही तो मेरे लिए डाक्टर बारदाना से समय लिया था। कुछ समय उन के साथ कॉफी पीने में लगा। कैंटीन से वापसी में उन्हों ने पूछा -दवाओँ से आराम तो हुआ होगा। मैं ने उन्हें बताया कि कंरट के दौरे कम हो गए हैं,  पर डाक्टर ने दवा ऐसी दी है कि दुनिया रंगीन नजर आने लगी है।
-ये तो अच्छी बात है, दुनिया रंगीन नजर आने लगे। वैसे क्या हुआ है? उन्हों ने पूछा। 
-बस कुछ नहीं हर चीज ऐसे नजर आ रही है जैसे चित्र की शार्पनेस समाप्त हो जाए। सारे चेहरे एक जैसे खूबसूरत दिखाई देने लगे हैं। मिस्टर पॉल हँस पड़े। 
मैंने उन्हें कहा -कुछ भी हो आठ दिन की दवा तो अवश्य ही लूंगा। जिस से कोई न कहे कि मैं ने इलाज को बीच में त्याग दिया। मिस्टर पॉल को उन की सीट पर छोड़ कर मैं अपनी कार की ओर चल दिया। कार धूप में तप कर बिलकुल गर्म हो रही थी। मैं ने मुंशी से कपड़ा गीला कर मंगवाया और स्टेयरिंग को ठंडा किया तो वह पकड़ने काबिल हुई। मैं घर चला आया। लंच के साथ फिर दो गोलियाँ गटकीं, ऑफिस में दस-पंद्रह मिनट काम निपटाया। फिर मुझे नींद सी आने लगी। मैं अपने कमरे में आ कर बिस्तर शरण हो गया। सुबह तो पत्नी ने फेरी वाले से दूध ले कर काम चला लिया था। शाम साढ़े चार पर दूध लेने जाना था। पत्नी को कहा कि वह मुझे ठीक साढ़े चार पर जगा दे। 

शाम को दूध ले कर आया। जैसे ही दफ्तर में घुसा। पता नहीं दायाँ पैर कुछ तिरछा चला गया और दीवार के पास लकड़ी की बुक रैक से टकराया। एक दम तेज दर्द उठा जो बहुत देर तक बना रहा। मुझे लगा कि चोट गहरी लगी है। शायद पैर की किसी उंगली का डिसलोकेशन हुआ हो या फिर कोई लाइन फ्रेक्चर। दर्द कम हुआ तो मैं फिर से काम में जुट गया। रात्रि के भोजन के साथ फिर गोलियाँ लीं तो दस बजे ही निद्रा सताने लगी और मैं फिर से बिस्तर पर था। मैं ने पैर की उंगली को टटोला तो वहाँ दबाने पर दर्द होता था। कहीं कोई सूजन नहीं थी। मैं ने आश्वस्ती की साँस ली कि कम से कम फ्रेक्चर तो नहीं होगा। होता तो पैर अवश्य सूज गया होता। कुछ ही देर में मैं सो रहा था। 
... क्रमशः

बुधवार, 25 मई 2011

दवाइयाँ शुरु ...................... डाक्टर देवता-2

अब तक आपने पढ़ा  ...

स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। वाचक फिर से हॉल में जा कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा। अब आगे वाचक से ही सुनें उस की कहानी ...

भाग-2
कोई तीन-चार मिनट के बाद दरवाजा खुला और एक मरीज व उस का साथी बाहर निकला। रिसेप्सनिस्ट ने मुझे अंदर जाने को कहा। मैं और नवानी आगे-पीछे अंदर घुसे। डाक्टर बारदाना अब अकेला था। उस ने मुझे उस के दाहिनी और रखे स्टील के एक गोल स्टूल पर बैठने का संकेत किया। नवानी डाक्टर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। मैं ने उसे बताना आरंभ किया।
 -कोई दस दिन पहले रात को सोने के समय जब मैं बाईं करवट लेटा तो मुझे दायीँ भुजा में असहनीय दर्द हुआ। कोई आधा घंटा बाद दर्द गायब हो गया। लेकिन उस के बाद से दायाँ हाथ कुछ खास स्थितियों में रखने पर अचानक कंधे से पंजे की ओर करंट सा दौड़ने लगता है, लेकिन हाथ की स्थिति बदलते ही सामान्य हो जाता है। इस कारण से उन खास स्थितियों में हाथ को रखने में भय सा लगने लगा है। मैं ने डाक्टर को वे स्थितियाँ भी बतानी चाही जिन में ऐसा होता था। लेकिन डाक्टर इस के पहले ही उठ खड़ा हुआ और मुझे दीवार के नजदीक लगी एक ऊंची बैंच पर लेटने को कहा। मैं वहाँ से उठा और बैंच पर जा लेटा। इस बीच डाक्टर ने अपने पीछे की मेज से एक हथौड़ीनुमा औजार उठाया और मेरे पास आ गया। पहले उस ने औजार को पास रख दिया। मुझे हाथ पीछे की ओर दबाने को कहा और उसी समय उस ने हाथ को आगे की ओर दबाया। यह क्रिया उस ने दोनों हाथों, पैरों और मेरी गर्दन के साथ की। मुझे दस वर्ष पहले की याद आ गई। जब मुझे गर्दन में जबर्दस्त दर्द हुआ था और मैं गर्दन को मोड़ भी नहीं सकता था। डाक्टर ने मुझे फीजियोथेरेपिस्ट के हवाले कर दिया था। उस ने कुछ दिन मेरी गर्दन को ट्रेक्शन दिया था। उस के बाद कुछ नियमित व्यायाम बताए थे। मेरा दर्द दूर हो गया था और उन व्यायामों के लगातार चलते आज तक किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आई थी। 

डाक्टर बारदाना ने इसी तरह के कुछ व्यायाम कराने के बाद मुझे फिर लिटा दिया और मेरे पैरों व हाथों की हड्डियों के जोड़ों  पर हथौड़ीनुमा औजार से ठकठकाया। मुझे लगा कि वह हथौड़ी से हड्डी को मारने पर निकलने वाली आवाज को ध्यान से सुन रहा है। फिर उस ने मुझे अपने पास आने को कहा। डाक्टर ने बताया कि मुझे यह समस्या गर्दन की वजह से है। उस ने गर्दन का एक्स-रे कराने का सुझाव दिया और पर्चे पर दवाइयाँ लिखने लगा। दवाइयाँ लिख चुकने के बाद उस ने आठ दिन दवाइयाँ लेने के बाद फिर से दिखाने को कहा। पर्चा नवानी ने अपने हाथ में थाम लिया। मैं ने डाक्टर को धन्यवाद दिया और फीस देने लगा तो उस ने बाहर रिसेप्सनिस्ट को देने को कहा। हम बाहर निकल आए। हमारे निकलते ही एक मरीज अपने साथी के साथ फिर डाक्टर के कमरे में घुस गया। 

मैं ने रिसेप्सनिस्ट को दो सौ रुपए दिए, उस ने पचास रुपए मुझे लौटाए। लेकिन उन रुपयों की कोई रसीद नहीं दी। पहले घट चुके घटनाक्रम के कारण मेरी रसीद मांगने की हिम्मत भी न हुई। हम बाहर आ गए। नवानी तब तक पर्चा पढ़ चुका था और उस में लिखी दवाइयों पर टिप्पणी कर रहा था। मैं ने उस की टिप्पणी पर ध्यान नहीं दिया। मैं ने सामने की दुकान से सब दवाइयाँ लेने के लिए कहा तो नवानी ने मना कर दिया और कहा कि को-ऑपरेटिव की दुकान से लेंगे। यह दुकान अस्पताल परिसर में थी। हम अस्पताल परिसर में आ गए। वहाँ दवाइयाँ लेने में कोई आधा घंटा लगा। मैं दवाइयाँ उसी रात से आरंभ करना चाहता था। लेकिन नवानी ने कहा कि सुबह से लेना अन्यथा क्रम बिगड़ जाएगा। घर आ कर नवानी ने बताया कि किस किस काम के लिए हैं। मुझे इतना ध्यान रहा कि एक गोली रोज सुबह पेट साफ रखने के लिए दी गई हैं।  मैं ने उस की इन बातों पर कोई गौर नहीं किया।  डाक्टर ने मुझे किसी दवा के लिए नहीं बताया था कि कौन सी कब लेनी है और कैसे लेनी है। वैसे मैं ने आम तौर पर देखा है कि डाक्टरों के पास इतना समय नहीं होता। यह काम उन्हों ने उन केमिस्टों के लिए छोड़ दिया है जहाँ से दवा खरीदी जाती है। लेकिन मुझे तो केमिस्ट ने भी कुछ नहीं बताया था। मैं ने भी नवानी के साथ होने के कारण नहीं पूछा। अब मैं ने नवानी को कहा कि वह मुझे सिर्फ इतना बता दे कि कौन सी गोली कब-कब लेनी है। नवानी यह बता कर कि कौन सी दवा कब लेनी है, अपने घर चला गया।

गले दिन सुबह शौच से निवृ्त्त होते ही मुझे खाली पेट वाली गोली का स्मरण हुआ और उसे पानी के साथ ले लिया। अदालत के लिए रवाना होने के पहले नाश्ते के तुरंत बाद मैं ने दवाएँ देखीं। तीन गोलियाँ थीं जो मुझे लेनी थीं। उन में आठ गोलियाँ ऐसी थीं जो पहले दो दिन 40 मिग्रा की, अगले दो दिन 30 मिग्रा की, उस से अगले दो दिन 20 मिग्रा की और आखिरी दो दिन 10 मिग्रा की गोलियाँ लेनी थीं। मैं ने उन में से 40 मिग्रा वाली गोली चुनी और दो अन्य गोलियों में से एक-एक ले कर तीनों एक साथ पानी से गटक लीं। अदालत जा कर सामान्य कामकाज करने लगा। दस बजे मुझे उबासियाँ आने लगीं। हलका सा सिर भारी हुआ। मुझे लगा कि चाय का समय निकल गया है इसलए ऐसा हो रहा है। तभी मोबाइल की घंटी बज उठी। मित्र लोग चाय के लिए बुला रहे थे। काफी पीने के बाद मुझे कुछ अच्छा महसूस हुआ। मैं फिर काम पर लग गया। काम से निबट कर घऱ पहुँचा तो मुझे भूख सी लग आई थी। मैं ने भोजन किया और सुबह जो तीन गोलियाँ लेनी थीं उन में से मिग्रा वाली गोली के अतिरिक्त दो गोलियाँ और लीं और अपने कार्यालय में आ बैठा। कुछ देर काम करने के बाद ही मुझे लगा कि नींद आएगी। मैं उठा और अपने शयन कक्ष में आ लेटा। मुझे जल्दी ही नींद आ गई।

मेरी नींद खुली तो शाम ढल रही थी। घड़ी छह से ऊपर का समय बता रही थी। मैं कोई ढाई घंटे सोया था। पत्नी ने कॉफी बना कर दी। तो मुझे स्मरण हुआ कि आज दूध लाना तो छूट गया है। मैं ने पत्नी को उलाहना दिया कि उसने जगाया ही नहीं दूध लाना था। उस ने कहा -आप गहरी नींद में थे तो मैं ने जगाया नहीं।
-अब दूध का क्या होगा?
-सुबह तक का हो जाएगा। सुबह ले आएंगे। पत्नी का इस तरह बोलना मुझे अच्छा लगा।
रात के भोजन के बाद मैं ने फिर से वे दो गोलियाँ खाईँ। काम करता रहा लेकिन फिर से जल्दी ही नींद आने लगी। मैं ने भी सोचा कि सुबह जल्दी दूध लेने जाना पड़ेगा। हो सकता है नींद जल्दी न खुले। इसलिए जल्दी सो लो। मैं ने कार्यालय बंद कर अपने शयनकक्ष की राह ली। 
... क्रमशः

मंगलवार, 24 मई 2011

डाक्टर देवता

ह पिछले सोमवार की बात है। कुछ दिनों से दाएँ हाथ को कुछ विशेष स्थितियों में दो तीन मिनट रखे रखने पर कंधे से पंजे की तरफ कंरट सा दौड़ता महसूस होता था। हाथ की स्थिति बदलने पर वह सामान्य हो जाता। मैं सोचता कि ऐसा क्यों हो रहा होगा। जो बात समझ आई वह यह थी कि कहीं कोई तंत्रिका घायल है और उस पर दबाव पड़ने पर ऐसा होता है। मैं ने इस का उल्लेख अपने मित्रों से किया।  सब ने तत्काल किसी न किसी चिकित्सक को दिखाने की सलाह दी। मैं अपने काम में लग गया। दो घंटे बाद वापस लौटा तो  मिस्टर पाल बोले -मेरी अपने मित्र मेडीकल कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल डाक्टर पी. के. शर्मा से बात हो गई है, उन्हों ने प्रोफेसर बारदाना से बात कर के शाम सात बजे का समय लिया है। आप शाम सात बजे दिखा आएँ, प्रोफेसर बारदाना नगर के सब से अच्छे न्यूरोफिजिशियन हैं। मैं भौंचक्का रह गया। वस्तुतः मैं फँस गया था। पॉल ने अपना मित्रता का कर्तव्य पूरा कर दिया था। अब मैं उस की बात न  मानता तो गलत ही नहीं, बहुत गलत होता। वह सोचता कि उस ने अपने मित्र का अहसान भी लिया और मुझे डाक्टर को दिखाने में ही संकोच हो रहा है। मैं सोच में पड़ गया।
मुझे हमेशा चिकित्सकों से बहुत परेशानी होती है। विशेष रूप से उन चिकित्सकों से जिन के पास अपने मरीज के लिए समय नहीं होता। मरीज एक भी सवाल पूछ ले, तो उन्हें परेशानी होने लगती है। मुझे कई लोगों ने कहा था कि उस न्यूरोफिजिशियन के यहाँ शाम को मेला सा लगता है, और वह मरीजों को ऐसे निपटाता है जैसे रेलवे की टिकट खिड़की पर टिकट बाबू पैसेंजरों को निपटा रहा हो। मुझे इन चिकित्सक महोदय का मरीज देखने का स्थान भी पता न था, न उन की शक्ल कभी देखी थी। मैं ने कभी किसी चिकित्सक के यहाँ रोगियों को हमेशा किसी न किसी के साथ देखा था। रोगी कभी अकेला नहीं होता था।  मैं ने भी सोचा कि मुझे भी अकेले नहीं जाना चाहिए। मुझे अकेला देख डाक्टर न जाने क्या सोच बैठे। पर मैं  किसे साथ ले जाता?  मेरे अनेक मुवक्किल दवा प्रतिनिधि हैं, जिन का काम  चिकित्सकों से मिलना ही होता है। मुझे नवानी का खयाल आया। मैने तुरंत उसे फोन किया और सारी बात बताई। उस ने वादा किया कि वह शाम को अवश्य आ जाएगा। अब मैं निश्चिंत हो गया था। अब डाक्टर से निपटने की जिम्मेदारी दवा प्रतिनिधि नवानी की थी। 
शाम को नवानी समय पर आ गया। हम डाक्टर बारदाना के यहाँ पहुँचे। घर के बाहर बहुत सी कारें और मोटरसायकिलें खड़ी थीं, कुछ लोग भी खड़े थे। किसी सामान्य व्यक्ति के घर के बाहर ऐसा होता तो लोग सोचते, जरूर इस घर में कोई गमी हो गई है। घर के बाहर लॉन में बहुत सी कुर्सियाँ पड़ी थीं उन पर भी लोग बैठे थे, कुछ लोग नीचे दूब पर ही बैठे थे, कुछ टहल रहे थे। अंदर एक बडे से हॉल में तकरीबन पंद्रह लोग बेंचों पर बैठे थे। हॉल में से एक दरवाजा अंदर की ओर खुलता था जो अभी बंद था। उस दरवाजे के ठीक बाहर एक आदमी  टेबल कुर्सी लगाए बैठा था, वह डाक्टर का रिसेप्सनिस्ट था। नवानी ने उस से डाक्टर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि डाक्टर अभी विजिटिंग रूम में नहीं हैं। नवानी ने तुरंत मुझे कहा कि कुछ इंतजार करना पड़ेगा। 
कुछ देर बाद ही वहाँ एक और दवा प्रतिनिधि नरेश आ गया। उस के साथ एक स्त्री और एक पुरुष था। उस ने मुझे देखते ही पूछा -भाई साहब, आप! यहाँ कैसे?
-दाहिने हाथ में कुछ समस्या है, इसीलिए दिखाने आया हूँ। मैंने कहा। 
-आप ने मुझे बताया ही नहीं। मैं पहले से डाक्टर से समय ले कर आप को मिला देता। इस तरह के कामों  के लिए तो आप को मुझे सेवा का अवसर देना चाहिए। नरेश ने यह सब इतनी जोर से कहा था कि हॉल में बैठे सब लोगों ने सुना था। सब मेरी ओर देखने लगे थे। मुझे लगा कि मैं तुरंत ही एक विशिष्ठ व्यक्ति में तब्दील हो गया हूँ। शायद सब लोग सोचने रहे थे कि अब कम से कम और दो रोगी उन के और डाक्टर के बीच आ गए हैं। उन में से कुछ ने घड़ी भी देखी कि अब उन का नंबर कितने बजे आएगा। मुझे शर्म आने लगी थी कि मैं इंतजार कर रहे रोगियों और उन के साथ आने वाले लोगों की निगाहों में चुभने लगा था। नरेश ने विजिटिंग रूम का दरवाजा खोल कर देखा तो डाक्टर वहाँ आ चुके थे। पहले से अंदर बैठे किसी रोगी को देख रहे थे। उस ने साथ आए स्त्री-पुरुष को अपने साथ अंदर चलने को कहा और उन्हें साथ ले कर अंदर घुस गया। इस बीच नवानी बाहर चला गया था। मुझे भी लोगों की चुभती नजरों से दूर होने का यही तरीका नजर आया कि मैं बाहर जा कर उसे तलाश करूँ। मैं बाहर आया तो वह मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था। मुझे देखते ही उस ने फोन बंद कर पूछा -डाक्टर आ गए? 
मैं ने कहा - हाँ आ गए हैं। नरेश किसी स्त्री-पुरुष को साथ ले कर आया था, उन्हे ले कर डाक्टर के पास अंदर चला गया है। 
-तब हम भी चलते हैं। वह मुझे साथ ले कर फिर हॉल में आ गया। कुछ ही देर में नरेश स्त्री-पुरुष के साथ बाहर आ गया। नवानी ने रिसेप्सनिस्ट को बताया कि मेरे लिए स्वयं डाक्टर पी.के. शर्मा ने प्रो. बारदाना से समय ले रखा है। इस पर उस ने बताया कि अंदर मरीज हैं। वे बाहर आ जाएँ तो आप चले जाइएगा। 
कुछ ही मिनटों में एक मरीज बाहर आ गया। नवानी मुझे साथ ले कर अंदर घुस लिया। वहाँ प्रोफेसर बारदाना एक रोगी को देख रहे थे। वे नवानी को देख कर भड़क गए। आप अंदर कैसे आ गए? मैं यहाँ से उठ कर चला जाता हूँ। प्रोफेसर अपनी कु्र्सी से उठ कर खड़ा हो गया। बेचारा नवानी सकपका गया। उस ने प्रोफेसर से कहा मैं बाहर चला जाता हूँ। नवानी तुंरत बाहर चला गया। मैं वहीं खड़ा रह गया। प्रोफेसर मुझे देखता रह गया। मैं ने उसे बताया कि मैं भी जा रहा हूँ। पर इतना बता देना चाहता हूँ कि मुझे डाक्टर पी. के. शर्मा ने आप से मिलने को कहा था। डाक्टर कुछ कहता इस के पहले मैं बाहर निकल आया। 
वानी बाहर खड़ा था। मुझे अब वहाँ रुकना वाजिब नहीं लग रहा था। मैं ने नवानी को कहा -बाहर चलो। मैं बाहर आ गया। पीछे-पीछे नवानी भी बाहर आ गया। 
मैं ने नवानी से कहा -वापस चलते हैं। हमें इस डाक्टर को नहीं दिखाना। शहर में बहुत डाक्टर हैं।
-भाई साहब! केवल दस मिनट रुको। हम दिखा कर ही चलेंगे। 
-कोई लाभ नहीं। इस वक्त डाक्टर जिस मूड में है, उसे दिखाना मूर्खता से कम नहीं। 
इस बीच नरेश भी वहाँ आ गया। कहने लगा -मैं डाक्टर से समय ले कर आता हूँ। कैसे नहीं देखेगा? 
मैं ने उसे कहा कि मुझे अब दिखाना ही नहीं है। वह कहने लगा -अभी मत दिखाओ, कल सुबह आप किस समय आ सकते हैं मैं डाक्टर से वही समय ले लेता हूँ। 
-मुझे इस डाक्टर को दिखाना ही नहीं है। शहर में बहुत डाक्टर हैं। 
तभी अंदर से कोई आया और कहने लगा -डाक्टर साहब ने आप को बुलाया है। अब नवानी और नरेश दोनों मेरे पीछे पड़ गए। कहने लगे जब डाक्टर खुद आप को बुला रहा है तो आप दिखा कर ही जाना चाहिए। मैं भी डाक्टर को दिखाने के इस झंझट से मुक्त होना चाहता था। मैं उन के साथ फिर हॉल में आ गया। वहाँ रिसेप्सनिस्ट ने मुझे देखते ही कहा -अन्दर एक मरीज है। उस के निकलते ही आप अंदर चले जाइएगा। मैं फिर उस के पास पड़ी खाली कुर्सी पर बैठ गया।
... क्रमशः

सोमवार, 16 मई 2011

लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे भी खुल सकते हैं

चानक बोदूराम की लगी लगाई नौकरी छूट गई। वह बड़े भाई की जगह नौकरी लगा था। हालाँकि तब उस का बड़ा भाई जीवित था पर अस्वस्थ हो गया था। अस्वस्थता के बावजूद वह नौकरी करता रहा। वह पूरी ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य करता। मालिकान उस की कर्तव्य परायणता से प्रभावित थे, इतने कि एक बार तो मालिकान में से कुछ उसे जनरल मैनेजर बनाने का प्रस्ताव कर बैठे थे। वह तो उसी ने मना कर उन्हें संकट से उबार लिया था। लेकिन फिर घर वाले बहुत नाराज भी हुए, कि आखिर जनरल मैनेजर बनने का प्रस्ताव उसने क्यों ठुकरा दिया? बाद में वह खुद भी मानने लगा कि उस ने ऐसा कर के ऐतिहासिक गलती की थी। फिर एक दिन ऐसा आया कि उस की अस्वस्थता बढ़ने लगी। उसे कर्तव्य पूरा करने में परेशानी होने लगी। आखिर उस ने इस्तीफा दे दिया। उस ने पूरे तेईस साल तक कर्तव्य निभाया था। मालिकान ने उस की सेवाओं का कर्ज चुकाने को उस के भाई बोदूराम को उस की जगह नौकरी दे दी।

बोदूराम अपने भाई से कम हुनरमंद नहीं था। कुछ अधिक ही था। उस ने भाई वाला काम संभाल लिया। उस से बेहतर करने लगा। सब लोग उस की तारीफ भी करते। लेकिन उस का ध्यान केवल काम की और ही लगा रहता। वह किसी की न सुनता। धीरे-धीरे कंपनी के दूसरे अधिकारी, कर्मचारी नाराज रहने लगे। उस की शिकायत करने लगे। कोई भी काम खराब होता झट से उस के मत्थे थोप दिया जाता। वह समझ ही नहीं पाता कि आखिर उस से ऐसा क्या हुआ है जिस से हर बुरी चीज उस के मत्थे थोप दी जाती है। वह अपने खिलाफ आरोपों का जोरदार खंडन करता। अपने किए कामों की सूची गिना देता। उस का ध्यान इस और गया ही नहीं कि कंपनी  में उस के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। उस ने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। लोग उस से अधिक से अधिक नाराज होने लगे। शिकायतें बढ़ने लगीं। वह इसी दंभ में फूला रहा कि जब वह सब कुछ ईमानदारी से कर रहा है तो उसे आँच पहुँचाने वाला कौन है? 

खिर उस की शिकायतें इतनी हो गई कि पूरी कंपनी में खबर फैल गई कि इस बोर्ड मीटिंग के बाद उस का पत्ता साफ हो जाएगा। वह फिर भी कहता रहा कि उस का कुछ न बिगड़ेगा। लेकिन बोर्ड मीटिंग हुई,  ऐसा नहीं था कि उस के समर्थन में लोग नहीं थे। लेकिन समर्थन का स्वर कमजोर पड़ गया और उसे निकाल दिया गया। उस ने भी मान लिया कि उसे निकाल दिया गया है, वह घर आ बैठा। अभी उस के घर पर मिलने वालों का ताँता लगा हुआ है, लोग उस के पास ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी के घर स्यापा करने जाते हों। जो आता है वही अफसोस जताता है। कहता है गलती तो तुमने कुछ भी न की थी, बस षड़यंत्र का शिकार हो गए। उस की समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह लोगों को क्या कहे? 

ज सुबह उस के यहाँ एक आदमी आया और कहने लगा -तुम्हारी किस्मत सही थी जो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया गया। एक तुम्हीं थे जो कंपनी को बरबाद होने से रोक रहे थे। कंपनी अब लाभ का सौदा नहीं रही है। मरी हुई लाश से पेट भरने वाले गिद्ध मंडराने लगे थे। तुम उन के मार्ग की रुकावट थे। तुम्हें निकाल दिया गया। अब मार्ग में कोई बाधा नहीं है। गिद्ध अपना पेट भर सकते हैं। तुम काबिल आदमी हो। यही एक काम नहीं है जिसे तुम कर सकते हो। तुम चाहो तो अपना काम खुद का काम कर सकते हो। अपनी खुद की कंपनी खड़ी कर सकते हो। पहले तुम्हारे भाई भी यही कहता था कि वह जरूर अपनी कंपनी खड़ी कर लेगा। लेकिन उस ने अपना जीवन कंपनी की सेवा में गुजार दिया। तुम्हें भी न निकाला जाता तो तुम भी यही करते। अब तुम्हें मौका मिला है तो आज से ही अपना काम शुरू कर दो।  ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें नौकरी से निकाला गया और वे अपना खुद का काम आरंभ कर के बहुत बड़ी हस्ती बन गए। जो नौकरी में रह गए वे पूरी जिन्दगी मालिकों की सेवा करते रहे, सेवक ही बने रहे। तुम चाहो तो खुद मालिक बन सकते हो। लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे खुलने का अवसर सामने होता है।
बोदूराम को मिलने आया आदमी चला गया। लेकिन बोदूराम को विचलित कर गया। बोदूराम सोच रहा है क्या करे? वापस कहीं नौकरी पाने का यत्न करे या खुद का काम आरंभ करे।