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शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बलात्कार की रपट थाने में नहीं उच्च न्यायालय में दर्ज कराएँ

क महिला के साथ छेड़छाड़ हो जाए, यह केवल सारे समाज के लिए शर्म की बात ही नहीं है, अपितु भारतीय दंड संहिता में अपराध है, जिस के लिए अपराधी को दंडित कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार ने यह जिम्मेदारी अपनी पुलिस को सौंपी हुई है। पुलिस इस तरह के मामलों में किस तरह का बर्ताव करती है, यह सर्वविदित है। पुलिस को इस तरह के छोटे-मोटे मामलों पर शर्म नहीं आती। आए भी क्यों जब पुलिस महानिदेशक ऐसा करे तो साधारण पुलिस वाले तो उस का अनुकरण कर ही सकते हैं।
लो छेड़छाड़ की बात छोड़ दी जाए। किसी महिला के साथ बलात्कार हो, वह भी एक के साथ नहीं, एकाधिक महिलाओं के साथ और एक बार नहीं, पूरे सप्ताह भर तक; फिर यह सब करें पुलिस वाले, वह भी पुलिस थाने में और पुलिस थाने से महिला की आँखों पर पट्टी बांध कर कहीं और ले जा कर।   पुलिस को इस पर भी शर्म आने से रही। शायद वे ऐसा न करें तो उन की मर्दानगी पर लोग सन्देह जो करने लगेंगे। फिर जब वे महिलाएँ पुलिस के उच्चाधिकारियों के पास जा कर अपनी रिपोर्ट दर्ज करने की कहें और उच्चाधिकारी सुन लें यह कदापि नहीं हो सकता। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? पुलिस महकमे की इज्जत जो दाँव पर लगी होती है। आखिर पुलिस महकमे की इज्जत किसी महिला की इज्जत थोड़े ही है जिस से जब चाहे खेल लिया जाए। 
ब महिलाएँ क्या करें? कहाँ जाएँ? महिलाओं ने हिम्मत की और उच्चन्यायालय को शिकायत लिखी। उच्च न्यायालय ने पुलिस से जब जवाब तलबी की तब  जा कर पुलिस ने महिलाओं के बयान दर्ज किए। पुलिस को अब भी विश्वास नहीं है कि उन के सिपाही ऐसा कर सकते हैं, यह करतब कर दिखाने वाली अंबाला पुलिस  का कहना है कि यह राजस्थान के बावरिया गिरोह की सदस्य महिलाएँ हैं और खुद पर लगे आरोपों से बचने के लिए उलटे पुलिस पर ऐसे आरोप लगा रही हैं। महिलाओं के आरोप हैं कि पुलिस वालों ने न केवल बलात्कार किया, उन्हें बिजली का करंट भी लगाया जिस से एक महिला का गर्भ गिर गया और यह भी कि एक महिला इस बलात्कार के परिणाम स्वरूप गर्भवती हो गयी। 
खैर, पुलिस आखिर अपने सिपाहियों और अफसरों का बचाव न करेगी तो जनता उस के चरित्र पर संदेह करने लगेगी। लेकिन अब जनता क्या समझे? ये कि अब किसी महिला के साथ बलात्कार हो तो उसे पुलिस में रिपोर्ट करने नहीं जाना चाहिए, बल्कि सीधे उच्च न्यायालय में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। यानी अब पुलिस थाने का काम उच्च न्यायालय किया करेंगे?  
पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न करने का किस्सा आम है। एक आम आदमी, जब भी उसे पुलिस में किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करानी हो तो किसी रसूख वाले को क्यों ढूंढता है? यह किसी एक राज्य का किस्सा नहीं है, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे भारत में पुलिस का यह चरित्र आम है। तो फिर क्यों नहीं पुलिस के चरित्र को बदलने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता। लगता है सरकारों, राजनेताओं और उन के आका थैलीशाहों को ऐसी ही पुलिस की जरूरत है।

शनिवार, 14 मार्च 2009

बालिकाओं से बलात्कार की शर्मनाक घटनाएँ और नागरिकों की सकारात्मक भूमिका।

मेरे नगर कोटा में धुलेंडी की रात को घटी दो बहुत शर्मनाक घटनाएँ सामने आईं।  दोनों बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ।  नगर के कैथूनीपोल थाना क्षेत्र के कोलीपाडा इलाके में बुधवार को एक अधेड ने सात वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार किया।  लेकिन पुलिस ने अभियुक्त को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार किया जिस से  गुरूवार को उसकी जमानत हो गई।   अभियुक्त ने गुरूवार को पीडिता के परिजनों को धमकाया।   इससे लोगों का आक्रोश फूट पडा और उन्होंने महिला संरक्षण समिति की अध्यक्ष संगीता माहेश्वरी के नेतृत्व में थाने में प्रदर्शन किया।  बाद में पुलिस द्वारा बलात्कार मामला दर्ज करने पर ही लोग शांत हुए।
दूसरी घटना रेलवे कॉलोनी थाना क्षेत्र में हुई जिस में एक ठेकेदार ने उस के यहाँ नियोजित श्रमिक की नाबालिग पुत्री का अपहरण कर बलात्कार किया।  अर्जुनपुरा के पास बारां रोड पर एक ठेकेदार ने सडक का पेटी ठेका ले रखा है।  एक श्रमिक दम्पती अपनी नाबालिग पुत्री के साथ ठेकेदार के पास रहकर मजदूरी करते हैं।  बुधवार रात ठेकेदार श्रमिक की नाबालिग पुत्री को बहला-फुसलाकर भगा ले गया।  पुलिस को जब घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने उसकी खोज शुरू की।  इस बीच श्रमिक व उसके साथी ठेकेदार को तलाशते हुए बून्दी जिले के इन्द्रगढ के केशवपुरा गांव पहुंच गए।  गांव में ठेकेदार के छिपे होने की जानकारी पर लोगों ने गांव को घेर लिया।  ठेकेदार एक घर में किशोरी के साथ छिपा मिला जिसे लोगों ने पुलिस को सौंप दिया।  किशोरी की शिकायत पर पुलिस ने धारा 303, 366 व 376 में मामला दर्ज कर लिया।

ये दोनों घटनाएँ बहुत शर्मनाक हैं और दोनों ही घटनाओं में बालिकाएँ कमजोर वर्गों से आती हैं।  लेकिन इन दोनों घटनाओं में नागरिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  पुलिस की भूमिका पहली घटना में अपराधी को बचाने और मामले को रफा-दफा करने की रही लेकिन नागरिकों की सजगता और तीव्र प्रतिक्रिया ने पुलिस को कार्यवाही करने को बाध्य. कर दिया।  दूसरी घटना में भी नागरिकों ने खुद कार्यवाही कर अभियुक्त को पकड़ लिया और बालिका को उस के पंजों से छुटकारा दिलाया।  नागरिक इस तरह जिम्मेदारी उठाने लगें तो समाज में बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।   वे सभी नागरिक अभिनन्दनीय हैं जिन्हों ने इन दोनों घटनाओं में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा की है।   इन दोनों घटनाओं की आगे की कड़ियों पर भी नागरिक नजर रखेंगे तो अपराधी बच नहीं पाएँगे।