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शनिवार, 27 नवंबर 2010

दिखावे की औपचारिकता

न दिनों अपने आसपास लगातार कुछ ऐसा घटता रहा है कि ब्लाग लेखन की गति बाधित होती रही है। पिछले दस दिनों में एक दिन छोड़ कर शेष दिनों बरसात होती रही। मैं नगर के जिस क्षेत्र में रह रहा हूँ वहाँ की सड़क के किनारे पिछले दिनों ही सीवर लाइन के लिए पाइप डाले गए। निकली हुई मिट्टी वापस भर दी गई। लेकिन बहुत सी मिट्टी बाहर थी। बीच-बीच में जहाँ चैम्बर बनाए गए थे वहाँ मिट्टी का ढेर था। बरसात से सारी मिट्टी बह कर सड़क पर आ गई। पैदल चलना दूभर हो गया। मेरे घर के आगे की सड़क उसी मुख्य सड़क पर जहाँ मिलती है वहीं सीवर लाइन का पाइप डालने से जितनी सड़क टूटी वहाँ मिट्टी भर दी गई थी, लेकिन बरसात से बैठ गई और गड्ढा हो गया, उपर से चिकनी मिट्टी का कीचड़। वहाँ हो कर दुपहिया वाहन का निकलना तक दूभर हो गया। अब यदि कहीं जाना है तो अपनी कार में जाइए और उसी से वापस आ जाइए। यह सुविधा मेरे पास तो है लेकिन बाकी लोग? उन का आना-जाना कैसे हो रहा है? वे ही जानते हैं। 
प्ताह भर पहले सुबह-सुबह कार ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। बेचारी क्या करती। यह संकेत वह पिछले दो माह में तीन-चार बार दे चुकी थी। धकियाया  जाता तो चल पड़ती और एक-दो सप्ताह कोई शिकायत नहीं करती। मैं ने जिन्हें बताया उन्हों ने कहा कि बैटरी दिखाओ। मैं ने बैटरी वाले के यहाँ जो मेरा एक मुवक्किल भी है, बैटरी दिखाई, उस ने जाँच करवा कर बताया कि बैटरी बिलकुल ठीक है, इस का सेल्फ लोड ले रहा है आप उस की सर्विस कराइये। इस बीच समय नहीं मिला और सर्विस नहीं करवा पाया। वैसे कार की सर्विस का समय भी निकल चुका था। आखिर मैं ने कार को कुछ लोगों की मदद से धकिया कर चालू किया और उस के अस्पताल पहुँचा दिया। पास ही स्थित इस अस्पताल ने शाम को चमचमाती कार मेरे हवाले कर दी। कार एक सप्ताह शानदार चलती रही।फिर तीन दिन पहले एक शादी में गए, वहाँ से किसी को उन के घर छोड़ा, तो वहाँ कार ने फिर चालू होने से मना कर दिया। कार किसी तरह चालू कर हम घर ले आए। रात को बरसात आरंभ हो गई।  और सुबह कार ने चालू होने से इन्कार कर दिया।
मैं ने कार को रिवर्स में अपने घर से उतारा और रिवर्स में उसे चालू करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसने  इस तरह चालू होने से मना कर दिया। समय ऐसा था कि कोई धकियाने वाला नहीं दिखाई दिया। एक सज्जन आए तो उन्हों ने कोशिश की पर कार को चालू नहीं होना था वह चालू नहीं हुई। बरसात ने सड़क को कीचड़ से भर दिया था। पैदल कार-अस्पताल तक जाना संभव नहीं था। अस्पताल का फोन नंबर भी नहीं मिल रहा था। सोचा बाइक से जाया जाए। पर मुझे बाइक का इतना अभ्यास नहीं कि कीचड़ वाली सड़क और गड्ढों में आत्मविश्वास से चला सकूँ। आखिर बहुत दिनों से धूल खा रहा अपना बीस साल पुराना साथी बजाज स्कूटर काम आया। उस की धूल साफ की गई। फिर उसे दायीं तरफ झुका कर सलामी दी गई। एक सलामी से काम न चला तो दूसरी सलामी दी, जिस के बाद एक किक में स्टार्ट हो गया। 
कार अस्पताल में भीड़ थी।  मैं ने प्रबंधक को बताया कि चार दिन पहले सर्विस के समय मैं ने बताया था कि गाड़ी सेल्फ यूनिट से स्टार्ट होने मना करती है  इसे विशेष रूप से चैक कर लें। प्रबंधक कहने लगा, हमने चैक किया था और कार सामान्य रूप से चालू हो रही थी। हम ने उसे छेड़ना उचित नहीं समझा। अब मैं कुछ देर में मिस्त्री को फुरसत होते ही भेजता हूँ। वैसे भी आज तो सेल्फ यूनिट की सर्विस नहीं हो पाएगी। मैं परेशान, स्कूटर या बाइक से अदालत जाना कठिन था, बीच-बीच में बारिश हो रही थी। मैं घर आ कर मिस्त्री का इंतजार करता रहा। उसे न आना था, न आया। मैं ने आखिर महेन्द्र भाई (नेह) को शिकायत लगाई। वे कोटा के सब से बड़े सर्वेयर और क्षति निर्धारक हैं। उन के बात करने पर अस्पताल वाले ने संदेश दिया कि आप बाइक ले कर अस्पताल आ जाएँ। हम मिस्त्री भेजते हैं। मैं मिस्त्री को लेकर आया। वह एक नई बैटरी साथ ले कर आया था। बैटरी बदलते ही कार सामान्य रूप से चालू हो गई। कार को चालू छोड़ कर मिस्त्री ने अपनी बैटरी निकाल ली और पुरानी वापस डाल दी। कहने लगा आप अब तुरंत बैटरी बदल दीजिए। 
मैं ने कार से मिस्त्री को ठिकाने छोड़ा और बैटरी वाले के पास पहुँचा। उस ने बैटरी को चैक किया तो फ्लूड का घनत्व सही पाया लेकिन सेल सांसे गिन रहे थे। नई बैटरी डाल दी गई। मैं ने बैटरी वाले को पूछा कि दो सप्ताह पहले जब बैटरी चैक कराई थी तब क्या हुआ था। कहने लगा हमने तब केवल घनत्व जाँचा था। मैं ने उसे कहा कि मैं जब कह रहा था कि स्टार्ट होने में समस्या है तो आप को सेल भी जाँचना चाहिए था। उस के स्थान पर आप ने सेल्फ यूनिट की सर्विस कराने को कहा। उस दिन सेल जाँच लिया जाता  तो यह समस्या नहीं होती। उस ने अपने कर्मी की गलती स्वीकार की और कहा कि आगे से हर उपभोक्ता के मामले में इस बात का ध्यान रखूंगा।  मैं कार-वर्कशॉप आया, वर्कशॉप मैनेजर को धन्यवाद किया, इस उलाहने के साथ कि जब मैं ने सेल्फ यूनिट के ठीक काम न करने की शिकायत दर्ज कराई थी तो कार सर्विस के दौरान सेल्फ दुरुस्त पाए जाने पर बैटरी को जाँचना चाहिए था और उसी दिन बैटरी बदलने की सलाह दे देनी चाहिए थी। उस ने अपनी गलती स्वीकार की। 
मैं ने कष्ट इसलिए पाया कि बैटरी वाले ने और वर्कशॉप ने अपनी सेवाएँ ठीक से नहीं की थीं और यह सेवा दोष एक उपभोक्ता मामला बन चुका था। मैं चाहता तो दोनों को परेशानी और मानसिक संताप के लिए हर्जाना देने को कह सकता था। मना करने पर उपभोक्ता अदालत में जा सकता था। लेकिन दोनों ने गलती स्वीकार की थी। और भविष्य में सेवाएँ सुधारने का वायदा किया था। मैं यह भी जानता था कि उपभोक्ता अदालत में मुकदमों की भरमार है वहाँ भी साल-दो साल फैसला होने में लग जाएंगे। मुकदमे से परेशानी होगी वह अलग है। लेकिन यह जरूर है कि इन दोनों में से किसी ने भी सेवा में कोताही की तो मैं उपभोक्ता अदालत को शिकायत अवश्य करूंगा। हमारे यहाँ सेवादोष हर जगह मिलता है। उस का मुख्य कारण है कि उपभोक्ता सेवा प्रदाता या विक्रेता की शिकायत नहीं करता। उधर उपभोक्ता अदालतों की हालत यह है कि वहाँ मुकदमे जल्दी निपटाए ही नहीं जाते। अधिकतर जज  सेवानिवृत्त हैं और केवल समय बिता रहे हैं। फिर कभी कोरम पूरा नहीं होता, कभी सदस्यों की नियुक्ति नहीं होती तो कभी जज नहीं है। जब अदालतें मुकदमों के निपटारे में समय लगाने लगती हैं तो उपभोक्ता अदालत में मामला ले जाने से कतराने लगता है।  यदि उपभोक्ता अदालतों में मामलों के निर्णय छह माह से एक वर्ष के भीतर होने लगें तो विक्रेता और सेवाप्रदाताओं को उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा देने पर मजबूर होना पड़े। पर लगता है सरकारें समस्या के वास्तविक समाधान पर कम और दिखावे की औपचारिकता पर अधिक ध्यान देती हैं।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

सत्तू की परेशानी कम न हुई, उसे उपभोक्ता अदालत जाना पड़ा, जहाँ उसे राहत मिली लेकिन बहुत कम

आप ने अब तक पढ़ा......
27 सितंबर 2004 को अचानक सत्तू के मोबाइल फोन पर लगातार फोन आने लगे जो सब के सब सचिन तेंदुलकर के लिए थे। यह परेशानी उस के मोबाइल सेवा प्रदाता एयरटेल द्वारा जारी एक विज्ञापन के कारण था। जिस से लोग यह समझ बैठे थे कि विज्ञापन में दिया गया टेलीफोन नं. सचिन का है, जब कि वह सत्तू का है। सत्तू परेशान हो गया। वह किसी को फोन नहीं कर सकता था, जो उसे फोन करना चाहते थे उन्हें उस का फोन हमेशा एंगेज मिल रहा था। उस ने एयरटेल को शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उस ने एक कानूनी नोटिस भी कंपनी को दिलाया। पढ़िए आगे क्या हुआ .......
त्तू की ओर से मैं ने जो नोटिस दिया था उस की कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया कंपनी की ओर से नहीं हुई। सत्तू को कोई राहत दी जाती या उस से कोई बात की जाती उस के स्थान पर वही विज्ञापन दिसंबर में फिर से अखबारों में प्रकाशित कराया गया। उस के बहुत खूबसूरत बड़े पोस्टर जगह जगह लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर यह विज्ञापन चस्पा किया गया। जिस का नतीजा फिर यह हुआ की सत्तू के पास फिर से सचिन तेंदुलकर को पूछने वाले फोन आने लगे। वह फिर उसी तरह की परेशानी में आ गया जैसी उसे 27 सितंबर के बाद लगभग एक माह तक रही थी।
स बीच सत्तू के प्री-पेड खाते में धन कम हो गया था और वैधता की अवधि समाप्त होने को थी। उस ने 9 अक्टूबर 2004 को कैश कार्ड का नवीनीकरण कराया।  मोबाइल फोन पर यह संदेश आ रहा था कि उस की वैधता की अवधि 8 अक्टूबर 2005 है। लेकिन 17 जनवरी 2005 को उस के मोबाइल पर फोन आना जाना बंद हो गए और 'सिम कार्ड कनेक्शन फेल्ड' संदेश आने लगा। सत्तू ने तुरन्त ही एयरटेल के स्थानीय सेवा केंद्र से संपर्क किया तो उसे बताया गया कि उस के सिम कार्ड की वैधता तो 8 नवम्बर 2004 को ही समाप्त हो चुकी थी, 17 जनवरी तक फोन कंपनी की गलती से चालू रहा। इस के बाद भी 60 दिनों तक रिचार्ज नहीं कराए जाने के कारण सिम कनेक्शन फेल्ड हुआ है। हालांकि सेवा केन्द्र से मिले इस उत्तर ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए थे कि 60 दिन भी 7 जनवरी को ही समाप्त हो चुके थे 17 जनवरी तक सिम कैसे चालू रहा? इस से पहले जब 8 नवम्बर 2004 को वैधता समाप्त हुई थी तब क्यों नहीं कनेक्शन एक तरफा नहीं किया गया? इन प्रश्नों का एक ही उत्तर था कि यह सब जानबूझ कर कंपनी द्वारा किया गया था। खैर! सत्तू ने अपने कैश कार्ड पर छपी शर्तों को पढ़ा तो पता लगा कि कैश कार्ड की वैधता की अवधि में उसे पुनः चार्ज कर के अवधि बढ़ाई जा सकती है। नहीं करा सकने पर उस की कुछ सेवाएँ हटा ली जाती हैं लेकिन उपभोक्ता वैधता समाप्ति के 60 दिनों में उसे रिचार्ज करवा कर वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता है। इस के बाद  सिम कार्ड कनेक्शन फेल हो जाने पर भी 30 दिन की अवधि में उपभोक्ता सिम कार्ड एक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को चालू करवा सकता है। 
कंपनी के अनुसार उस की वैधता 8 नवम्बर को समाप्त हुई थी तो वह 7 जनवरी तक वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता था। और 6 फरवरी तक वह रिएक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को फिर से चालू करवा सकता था। उस ने दिनांक 22 जनवरी 2005 को सिम एक्टीवेशन शुल्क रुपए 113/- जमा करवाया और रसीद प्राप्त कर ली। स्थानीय सेवा केंद्र उस के नंबर को नए सिम कार्ड पर स्थापित करने के लिए प्रयत्न करने लगा। लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी वह सत्तू का नंबर चालू नहीं करा सका और सेवा केंद्र ने हाथ खड़े कर दिए। कहा कि उस का पुराना नंबर चालू नहीं किया जा सकता। कंपनी एवज में नया नंबर देने को तैयार है साथ ही उसे एक वर्ष तक सिम कार्ड की सारी सेवाएँ निशुल्क यानी मुफ्त प्रदान की जाएंगी। लेकिन सत्तू को पुराने नंबर की एवज में यह सब मंजूर नहीं था। उस ने मुझे आ कर कहा -अंकल जी, अब तो मुकदमा करना ही पड़ेगा। हम ने मुकदमा तैयार कर 4 फरवरी 2005 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जिस में  असुविधाओँ और व्यवसाय की हानि के लिए पाँच लाख रुपए, बिना अनुमति सत्तू का टेलीफोन नंबर विज्ञापन के लिए उपयोग करने हेतु दस लाख रुपए, शारीरिक व मानसिक संताप के लिए दो लाख रुपए तथा परिवाद का खर्चा रुपए पाँच हजार कुल रुपए 17 लाख 5 हजार की मांग की गई।

पभोक्ता मंच में मुकदमे में तमाम साक्ष्य प्रस्तुत कर देने के उपरांत 24 जनवरी 2006 को मुकदमा बहस के लिए निश्चित हो गया। लेकिन मंच में कभी अध्यक्ष और कभी सदस्य न होने के कारण और कभी अन्य कारणों से बहस न हो सकी। अंत में 11 अगस्त 2010 को बहस संपन्न हुई। जहाँ सत्तू की और से उक्त सभी तथ्य मंच के सामने रखे गए। जब कि कंपनी की तरफ से केवल यह कहा गया कि इन के सिम की वैधता की अवधि समाप्त हो जाने के कारण इन का कनेक्शन शर्तों के मुताबिक समाप्त किया गया है। इस एक पंक्ति के अलावा कंपनी के वकील ने कोई बहस नहीं की। फैसला क्या होना था यह उसी दिन तय हो गया। निर्णय के लिए 23 अगस्त की तारीख निश्चित कर दी गई। 
23 अगस्त 2010 को उपभोक्ता मंच द्वारा दिए गए अपने निर्णय में मंच ने कंपनी को सत्तू के नंबर का अवैध रूप से उपयोग करने का,  सत्तू के लिए परेशानियाँ खड़ी करने का और सेवा में त्रुटि करने का दोषी माना। राहत यह दी कि कंपनी सत्तू का पुराना नम्बर 9829137100 बहाल करे, इस नंबर को बहाल करने में बाधा हो तो कोई नया नंबर दे कर सभी सेवाएँ नियमित करे, और सत्तू को व्यवसाय की क्षति के लिए 10,000/- रुपए असुविधा के लिए 10,000/- रुपए और परिवाद खर्चा रुपए 2000/- कुल बाईस हजार रुपए अदा करे। सत्तू इस फैसले से प्रसन्न नहीं है। उस का कहना है कि उसे बहुत कम क्षतिपूर्ति दिलाई गई है। वह आगे राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के समक्ष इस निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करना चाहता है।

सोमवार, 15 मार्च 2010

उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के लिए संगठित हो कर खुद आगे आना होगा

ज अट्ठाइसवाँ विश्व उपभोक्ता दिवस था। 1983 में कंजूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने इसे आरंभ किया था। यह संस्था इसी वर्ष अपने जन्म का पचासवाँ वर्ष भी मना रही है। दुनिया में पैदा हुआ मानव समाज का प्रत्येक सदस्य एक उपभोक्ता है। इस संस्था के गठन का मूल मकसद यही था कि दुनिया भर के सभी उपभोक्ता यह जानें कि बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए उनके क्या हक हैं। साथ ही सभी देशों की सरकारें उपभोक्ताओं के अधिकारों का ख्याल रखें। प्रतिवर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष उपभोक्ता दिवस एक नया नारा देती है। इस वर्ष का नारा है "हमारा धन हमारा अधिकार"। इस नारे के माध्यम से इस वर्ष वित्तीय सेवाओं के संदर्भ में उपभोक्ता अधिकारों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
पभोक्ता आंदोलन के प्रभाव ने भारत सरकार को उपभोक्ता संरक्षण के लिए कानून बनाने के लिए बाध्य किया। इस तरह भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधनियम 1986 अस्तित्व में आया और उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए जिला स्तर पर उपभोक्ता प्रतितोष मंच, राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता प्रतितोष आयोग अस्तित्व में आए। तब से अब तक देशभर के जिला उपभोक्ता मंचों में दर्ज 28 लाख मामलों में से 25 लाख से अधिक मुकदमों का निपटारा किया जा चुका है। राजस्थान दूसरे स्थान पर है जहां 2 लाख 20 हजार से अधिक मामलें निपटाये जा चुके है।
राजस्थान राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग ने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और कर्नाटक को पीछे छोड़ते हुए ने 40 हजार से अधिक मामलों का निस्तारण करके देश में प्रथम स्थान हासिल किया है। देश के विभिन्न राज्य आयोगों द्वारा अब तक करीब चार लाख मामलों का निस्तारण किया गया है और इनमें हर दस में से एक प्रकरण राजस्थान में निपटाया गया है। महाराष्ट्र द्वितीय, मध्यप्रदेश तृतीय और कर्नाटक चतुर्थ स्थान पर है यहां के राज्य आयोगों ने अब तक 30 से 32 हजार मुकदमों का निपटारा किया है। 31 जनवरी तक राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में दर्ज 62972 मामलों में 55192 का निपटाया किया जा चुका है। इसी तरह देशभर के राज्य आयोगों में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 496378 मामलें दायर किये गये जिनमें से 387974 का निपटारा किया जा चुका है। इस अवधि में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक और लक्षद्वीप में सबसे कम मामलें दर्ज किए गए।
ये तो वे तथ्य हैं जो आंकड़ों के माध्यम से सामने आए हैं। लेकिन ग्राउंड लेवल पर क्या हाल हैं? यह केवल उपभोक्ता प्रतितोष मंच या आयोगों के कार्यस्थलों पर जा कर ही पता किया जा सकता है। कोटा में पिछले दो वर्षों तक जिला उपभोक्ता प्रतितोष मंच किसी न किसी कारण से कार्य करने में अक्षम रहा है। काम को गति देने के लिए अब झालावाड़ जिले के उपभोक्ता प्रतितोष मंच को इस की सहायता के लिए लगाया गया है जो माह में दो सप्ताह कोटा में रह कर काम करता है। फिर भी उपभोक्ता विवादों में निर्णय की गति संतोषजनक नहीं बन सकी है।
ज मैं उपभोक्ता प्रतितोष मंच गया तो वहाँ सदा की तरह मध्यान्ह अवकाश के पूर्व केवल कार्यालय का ही काम होता है। मैं उपभोक्ता प्रतितोष मंच के अध्यक्ष से मिलना चाहता था। लेकिन वे मध्यान्ह अवकाश तक मंच के कार्यालय में उपलब्ध नहीं थे। कार्यालय के कर्मचारियों को पता नहीं था कि आज विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस है। मंच के एक सदस्य अवश्य वहाँ मिले उन्हों ने बताया कि आज मंच की ओर से कोई विशेष कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया है और न ही मंच की किसी कार्यक्रम में भागीदारी है। वहाँ यह जानकारी मिली कि इस संबंध में जो भी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं वे रसद विभाग द्वारा आयोजित किए जाते हैं। जिला रसद अधिकारी अपने कार्यालय में कंप्यूटर पर व्यस्त मिले। उन्हों ने बताया कि उन्हें तो बिलकुल फुरसत नहीं है। वे तो विधानसभा से आई प्रश्नावलियों के उत्तर तैयार करने के सब से मुश्किल कर्तव्य में उलझे पड़े हैं।
मैं ने जब उन्हें बताया कि आज विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर कुछ तो उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी जनता तक पहुँचाने के लिए होना चाहिए था। उन्हों ने कहा कि एक स्कूल में इस विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई है और रैली भी निकाली जाएगी। अब तक ये काम हो चुके होंगे। वे हों न हों पर कल अवश्य ही इन दोनों कामों के संपन्न हो जाने की खबरें स्थानीय अखबारों में अवश्य ही होंगी।
कुल मिला कर देश मे उपभोक्ता आंदोलन बहुत कमजोर है। यह तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन मजबूत हो कर आगे नहीं आते। लोगों को खुद अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा। अपने अधिकारों के लिए लगातार आवाज उठाना होगी। आप टिकट की लाइन में लगे हैं या बिल भरने की बारी, जैसे ही आई कांच व जाली के पीछे बैठे शख्स ने गुटखा चबाते हुए कह दिया थोड़ी देर बाद आना और आप बगैर किसी प्रतिरोध के लाइन में ही खड़े रह गए तो आपके हित में कौन बोलेगा। न व्यक्तिगत स्तर पर प्रतिरोध होता है, न संगठित विरोध। हालांकि ठगे गए उपभोक्ता को न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता प्रतितोष मंचों की व्यवस्था है और अनुभव बताता है, जो भी वहां जाता है न्याय जरूर पाता है, लेकिन वहां तक जाने की जहमत तो उपभोक्ता को उठाना ही पड़ेगी। खाद्य पदार्थो में मिलावट जैसे संगीन मामले भी उपभोक्ता संरक्षण के दायरे में आते हैं। हाल ही में एक ब्रांडेड अचार में मरा चूहा निकलने पर जुर्माने का फैसला हुआ, लेकिन क्या उसके बाद भी उपभोक्ता जागे? क्या उस ब्रांड को लेकर विरोध के स्वर उभरे? यहाँ तक कि यहाँ ब्लाग जगत में भी उपभोक्ता हितों के बारे में आज भी सब से कम ही लिखा गया है।