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शुक्रवार, 1 मई 2009

बंगला, साइकिल, लालटेन एकता जिन्दाबाद! ... : जनतन्तर कथा (22)

हे, पाठक!
माया बहन जी की सभा से तेजी से लौट कर सूत जी अपने ठिकाने पहुँचे।  चाहते थे इस प्रदेश में आए हैं तो बैक्टीरिया पार्टी के राजकुमार, महारानी या राजकुमारी किसी से तो मुलाकात हो या उन का भाषण ही सुनने को मिल जाए।  तभी उन के चल-दूरवार्ता यंत्र ने आरती आरंभ कर दी, जय जगदीश हरे ........। कोई बात करना चाहता था।  उन्हों ने यंत्र के दृश्य पट्ट पर दृष्टिपात किया तो क्रमांक अनजान था।  फिर भी उन्हों ने बटन दबा कर उसे सुना।  प्रणाम,  गुरूवर! स्वर परिचित था।  शिष्य, कौन हो? स्वर नहीं पहचाना।  कैसे पहचानेंगे गुरूवर? स्वर सुने दिन बहुत हो गए।  मैं सनत बोल रहा हूँ।  मैं ने आप को बहनजी की रैली में देखा था। आप के नजदीक आना चाहता था, लेकिन  तब तक आप सरक लिए।  नैमिषारण्य से आपके यंत्र का क्रमांक प्राप्त किया है,  आप से मिलना चाहता हूँ।  सनत का स्वर पहचानते ही सूत जी के मुख पर चमक आ गई बहुत दिनों से किसी अपने वाले से न मिले थे।  सनत से पूछा, तुम भी यहीं डटे हो? क्या समाचार हैं?  -गुरूवर क्यूं न डटें?  समाचारों की सारी सम्पन्नता यहीं तो  है।  पूरे चाचा खानदान की चकल्लस यहीं है,  बंगले में साइकिल और लालटेन मुस्तैद हैं, माया महारानी है, राम मंदिर के सैनानी हैं, चौधरी साहब की विरासत इधर है।  आप के लिए सुंदर संवाद है मेरे पास,  साथ में विजया घोंट कर छानने वाला एक चेला भी है।  सूत जी को लगा पिछले पूरे सप्ताह की कमी आज ही पूरी हो जानी है।  सनत को बोल दिया- अविलम्ब चेले समेत आ जाओ।  सूत जी को संध्या अच्छी गुजरने का विश्वास हो गया था।  चेले आएँ तब तक कमर सीधी करने लेट गए।

हे, पाठक!
 दो घड़ी बीतते बीतते चेले ने अपने चेले समेत दर्शन दिए।  आते ही कहने लगा गुरुवर देर हो गई।  लेकिन विजया वहीं पिसवा लाया हूँ।  यहाँ सितारा में सिल-बट्टा मिलना नहीं था।  आप तो कोई अच्छा सा शीतल रस मंगाइए जिस से छानने की कार्यवाही आगे बढ़े।  खस का शरबत और आम का रस मंगाया गया। विजया छनी और बम भोले के नाम से उदरस्थ की गई।  तीनों बारी बारी से टेम बना आए।  फिर तीनों ने बारी बारी से स्नान किया।  तब तक रंग चढ़ चुका था।  भोजन तो हो लेगा, लेकिन उस से पहले तीनों को शीतल रबड़ी स्मरण हो आई।  सनत ने चेले को दौड़ाया।  वह आधी घड़ी में वापस लौटा।  केशर और बादाम से संस्कारित शीतल रबड़ी कण्ठ से उतरते ही रंग और दुगना हो गया। सनत बोला- गुरूवर अपना जंघशीर्ष दो, एक चक्रिका सुननी है।  क्या है इस में? सूत जी की जिज्ञासा बोली। -बस तिलंगों का संवाद है।

हे, पाठक!
 चक्रिका को जंघशीर्ष पर चलाया गया।  आवाजें आने लगी...... देखिएगा जब से भारतबर्ष बना है। चरचा है किसी दलित को पंचायत का मुखिया बनना चाहिए।  इस बार तो यह अवसर चूकना मूर्खता होगी। आप लोगों का साथ मिले तो यह संभव हो सकता है। मेरे अलावा इस योग्य और कोई नहीं।  -यह निकटवान का स्वर था।   ........ हमने पाँच बरस तक रैलें दौड़ाई हैं, सारी दुनिया को दिखा दिया, कैसे दौड़ाई जाती हैं? मौका तो हमारे लिए भी यही है, अब कोई सारी उमर रेल थोड़े ही चलाते रहेंगे .......  बात समाप्त होती उस से पहले ही तीसरी आवाज आई........देखिए आप दोनों ने तो पाँच बरस राजसुख भोगा है। हम ही बीच में बनवासी भए। हमने तो अपने दूत को भेजा भी था कि समर्थन  देने को तैयार हैं।  पर घास तक डाली गई।  बाद में हम ही सरकार बचाने के काम आए।  दावा तो हमारा कउन सा कच्चा है।  अब महारानी जाने क्यों फिर से वही पुराना नाम उछाल रही हैं।

हे, पाठक!
पर तीनों की कैसे मुराद पूरी हो? इस का कोई सूत्र निकलना चाहिए। तभी निकटवान बोल पड़े  -उस में कउन बरी बात है। हम तीनों को एक एक बरस बिठाय दें।   फिर भी दो बरस बच रहें।  उसमें महारानी किसी अउर को बिठाय के तमन्ना पूरी कर लेय।  तो फिर डील पक्की रही।  दोनों बोले पक्की। फिर साथ लड़ेंगे। बंगला, साइकिल, लालटेन एकता जिन्दाबाद! ... .... .... जिन्दाबाद! ....जिन्दाबाद! .....
इस के आगे चक्रिका रिक्त थी।
कैसा संवाद है? गुरूवर!
अतिसुंदर, सूत जी बोले- नैमिषारण्य में तो आनंद छा जाएगा।  कथा सुन लोग झूम उट्ठेंगे।  चलो अब समय हो चला है, भोजन शाला चलते हैं।

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

बहन जी की रैली : जनतन्तर कथा (21)

हे, पाठक! 
यात्रा की थकान से निद्रा देर से खुली,वातायन पर लटक रहे पर्दे के पीछे से बाहर की रोशनी अंदर झांक रही थी। द्वार के नीचे से कुछ अखबार अंदर प्रवेश कर गए थे। सूत जी उठे, स्नानघर में घुस लिए। स्नान हुआ, ध्यान हुआ, फिर सुबह के कलेवे का आदेश दे अखबार बाँचने बैठे।  मुखपृष्टों पर सब जगह  इस चुनाव के नायक नायिका जूते-चप्पल छाए थे।  एक ही नगर में वर्तमान और प्रतीक्षारत प्र.मुखियाओं के सामने निकल आए थे वर्तमान ने चलाने वाले को माफ कर दिया और प्रतीक्षारत ने क्या किया? पता नहीं चला। चुनाव का अवसर है, संसद बंद है। सारी गतिविधियाँ सड़कों और मैदानों में हो रही हैं तो संसद का ये स्थाई निवासी रौनक देखने वहाँ चले आए तो चलाने वाले का क्या दोष? उन्हें माफ किया ही जाना चाहिए।   कल से वापस संसद में चलेंगे तब भी तो माफ करना पड़ेगा न?

हे, पाठक! 
अखबारों से ही नगर की दिन भर की गतिविधियों की खबर मिली।  नगर में साइकिल सवारी का महत्वाकांक्षी न्यायालय से स्वीकृति न मिलने पर साइकिल दुकान पर मिस्त्री गिरी कर रहा था और बहन जी की पप्पी-झप्पी लेने का महत्वाकांक्षी हो चला था।  नगर के आस पास ही चक्कर लगा रहा था।   वायरस दल की ओर से तीन बार महापंचायत के मुखिया रहे  इस बार नगर से चुनाव न लड़ने से नगर में हलचल नहीं थी। पप्पी-झप्पी वाले को अदालत ने रोक दिया था।   दो-दो कलाकारों के बाहर हो जाने से दर्शकों को चित्रपट में रुचि नहीं रह गई थी और केवल पोस्टर देख-देख लौट रहे थे।    वायरस दल का स्थानापन्न अभिनेता मुखिया जी से चिट्ठी लिखा कर लाया था।  अब आज कल चिट्ठी सिफारिश पर कौन चित्रपट देखता है? बैक्टीरिया दल नगरों के स्थान पर ग्रामों में सेंध लगाने में व्यस्त था।   रात में भी चल सके इस लिए साइकिल पर लालटेन टांग ली गई थी फिर भी रास्ता नहीं सूझ रहा था।  बहन अकेले पिली पड़ी थी, उसे अपनी अभियांत्रिकी पर भरोसा था, कहती थी खंड पंचायत की मुखिया बन सकती हूँ तो महापंचायत की क्यों नहीं? नगर में उस की सभा शाम को थी।  कलेवा कर सूत जी नगर का भ्रमण पर निकल पड़े।
हे, पाठक!
नगर में पैदलों और दुपहिया वालों की मुसीबत हो गई थी।  रात से ही चौपायों की संख्या यकायक बढ़ गई थी और वे इधर-उधर आ-जा रहे थे।  बढ़े हुओं में तिहाई तो पुलिस के थे जो नगर में व्यवस्था बनाने में लगे थे, विशेष रूप से उस मैदान के आसपास जहाँ बहन जी शाम को भाषण पढ़ने वाली थीं।  चोरी-चकारी, लूट-डकैती, तस्करी वगैरा की गुंजाइश पूरे खंड में न्यूनतम रह गई थी।  इन के प्रायोजक किसी न किसी दल के प्रचार में लगे थे।  पुलिस निश्चिंत हो कर बहन जी की सेवा में लगी थी।  इस में वे भी थे जिन्हें बहन जी ने हटा दिया था और अदालत ने फिर से बिठा दिया था।  बढ़े हुए शेष दो तिहाई चौपाए सार्वजनिक परिवहन में लगे निजि वाहन थे जो श्रोताओं और दर्शकों को गाँवों से ला रहे थे।  परिवहन विभाग का निरीक्षक वाहनों के नंबर नोट कर रहा था जिन के परमिट पक्के करने थे।  सूत जी मैदान के नजदीक पहुँचे वहाँ अभी भी तैयारियाँ चल रही थीं।  ग्रामीण लोग सजावट देख देख उस और जा रहे थे, जहाँ सरकारी अभियंताओं की निगरानी में ठेकेदारों ने भोजन-पानी की भोजन-पानी की पर्याप्त से अधिक व्यवस्था कर रखी थी।  सब देख कर सूत जी वापस लौट पड़े।
हे, पाठक!
सूत जी ने दोपहर का भोजन कर तनिक विश्राम किया और ठीक समय से मैदान पहुंच गए मैदान में बना पांडाल तमाम कोशिशों के भी भर नहीं पा रहा था।  कुछ दूर अभी भी वाहन आए जा रहे थे, पर उन में से उतरे लोग कुछ ही लोग पांडाल की ओर आ रहे थे, कुछ कहीं और जा रहे थे।   बहन जी के आने का समय हो चला था। पांडाल भर नहीं पा रहा था, कोशिशें जारी थीं।  एक घड़ी गुजरी, दूसरी गुजर गई।  बहन जी पूरे पांच घड़ी देरी से आई।  पांडाल फिर भी खाली था।  मंचासीन होते ही उन्हों ने पांडाल पर दृष्टिपात किया।  चौपायों के मालिकों के अंदर एक शीत लहर विद्युत धारा की तरह दौड़ गई।  उन्हें वर्तमान परमिट कैंसल होते प्रतीत हो रहे थे।  माल्यार्पण और स्तुति गान के बाद बहन जी माइक पर आ गईं।

हे, पाठक!
बहन जी आते ही आयोग पर बरस पडीं।  वह उन्हें महापंचायत का मुखिया नहीं बनने देना चाहता इस लिए बैक्टीरिया दल के इशारे पर बहुत रोड़े अटका रहा है।  आज की इस सभा में बहुत लोग उन के इशारे पर आने से रोक दिए गए।  फिर आया पप्पी-झप्पी के महत्वाकांक्षी को आड़े हाथों लिया।  हम इस तरह के लोगों को सीधे अंदर कर देते हैं।  या तो सीधे सीधे हमारे तम्बू में आ जाओ या फिर हम बड़े घर पहुँचा देंगे, मुकदमे हम ने दर्ज करवा दिए हैं।  फिर सब पर एक साथ बरस पड़ीं, बहुजन एक हो रहा है तो लोगों की आँख की किरकिरी हो गया है। ये साइकिल, हाथ, फूल वाले और भी सब लोग बहुजन को बिखेरने में लगे हैं।  पर उन को पता नहीं है कि इस बार मेरा ही नंबर है और कोई है ही नहीं जिस पर चुनाव के बाद सहमति बने।  इस के बाद कागज समाप्त हो गया।  लोगों ने बीच बीच में बहुत तालियाँ बजाईं।  बहन जी पढ़ने के बाद वापस सिंहासन पर नहीं बैठी मंच से उतर कर सीधे अपने वाहन में बैठीं और चल दीं।  इस के साथ ही सब लोग दौड़ पड़े।  सूत जी भी तेजी से वापस लौटे।  थोड़ी देर में रास्ते में जाम लगने वाला था।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....