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मंगलवार, 20 जनवरी 2009

होटल में बाघ या बाघ के घर इंसान

पत्रिका की खबर है,  राजस्थान के एक गांव शेरपुर के निकट के एक होटल में घुस आया। अफरा-तफरी मच गई।  वह रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की दीवार फांदकर होटल परिसर में घुसा वहां उसने करीब पांच मिनट चहलकदमी की।  बाघ को देखने के लिए लोगों की भीड जमा हो गई। 

बाघ एक पखवाडे में तीसरी बार आबादी क्षेत्र में घुस आया था।  बाघ के पार्क से बाहर आने का मुख्य कारण सरसों के खेत हैं।  इन दिनों खेतों में उगी सरसों में नील गाय व जंगली सुअर रहते हैं और बाघ को यहाँ शिकार करने में आसानी रहती है। 

खबर कतई चौंकाने वाली है।  सुबह ज्ञान दत्त जी अपने आलेख मे इंसानों की बढ़ रही आबादी के थम जाने की सुखद कल्पना कर रहे थे।  मैं उस के विश्वसनीय होने की कामना कर रहा हूँ।  पर यह मनुष्य के सायास प्रयासों के बिना हो सकेगा ऐसा नहीं लगता है।

वह जंगल था,  बाघ के साम्राज्य का एक भाग।  हमने उस के साम्राज्य को सीमित कर दिया और बाकी जगह हथिया ली।  वहाँ खेत बना दिए।  होटल बना दिए ताकि उस विगत के सम्राट के दर्शनार्थियों की सुविधा दी जा सके, कायदे से उन की जेबें तराशी जा सकें। 

हकीकत यह है कि बाघ तो अपने ही साम्राज्य में है।  इंसान उस के साम्राज्य में कब का घुसा बैठा है।