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सोमवार, 19 अप्रैल 2010

काम पड़ेगा तो जाना ही पड़ेगा, गर्मी हो या सर्दी

18 अप्रेल, 2010
पंखा सुधारता मिस्त्री
ड़नतश्तरी ने चित्रों को सही पहचाना वे फरीदाबाद सैक्टर 7-डी के ही थे। बेटी पूर्वा वहीं रहती है। उसी के कारण सपत्नीक वहाँ जाना हुआ। हो सकता था मुझे दो दिन और रुकना पड़ता।  हम कोटा के वकीलों ने 30 अगस्त से छह दिसंबर तक चार माह से कुछ अधिक समय हड़ताल रखी। सारे मुकदमों में विलंब हुआ और यह भी कि उन की अगली तिथियों का प्रबंधन हम न कर पाए। इस के कारण सब ऊल-जलूल तरीके से तारीखों में फिट हो गए। उन्हों ने अब बाहर निकलना दूभर कर दिया है। यदि दो दिन और रुकता तो अपने मुवक्किलों को  अप्रसन्न करता।  लेकिन अभी हमारा समाज बहुत सहयोगी है। मैं ने समस्या का उल्लेख पूर्वा के मकान मालिक से किया तो उन्हों ने कहा -ये भी कोई समस्या है। आप चिंता न करें जरूरत पड़ी तो यह काम मैं स्वयं करूंगा। हम निश्चिंत हुए और आज ही वापस लौट लिए।
कोटा अदालत चौराहे की दोपहर
रोज सुबह आठ बजे अदालत निकल जाना और दोपहर बाद दो बजे तक वहाँ रहना इस भीषण गर्मी में नहीं अखरता।एक तो काम में न सर्दी का अहसास होता है और न गर्मी का। दूसरे कोटा में जहाँ अदालत है वहाँ  आसपास वनस्पति अधिक होने से तापमान दो-चार डिग्री कम रहता है और नमी बनी रहती है। इस कारण गर्मी बरदाश्त हो लेती है। वापस लौट कर घर पर कूलर का सहारा मिल ही जाता है। गर्मियाँ कटती रहती हैं। लेकिन कल सुबह छह बजे ट्रेन कोटा से रवाना हुई और सूरज निकलने के साथ ही गर्मी बढती रही। मथुरा पहुँचते पहुँचते जनशताब्दी का दूसरे दर्जे का डब्बा बिलकुल तंदूर बन चुका था। जैसे तैसे 12 बजे बल्लभगढ़ उतरे तो वहाँ सूरज माथे पर तप रहा था। पूर्वा के आवास पर पहुँचे तो घऱ पूरा गर्म था। कुछ देर कूलर ने साथ दिया और फिर बिजली चली गई। आधी रात तक बिजली कम से कम छह बार जा चुकी थी। बिजली 15 से 30 मिनट रहती और फिर चली जाती। वह शहर में ही ब्याही नई दुल्हन की तरह हो रही थी जो ससुराल में कम और मायके अधिक रहती है।
पंछियों के लिए परिंडा 
रात हो जाने पर हिन्दी ब्लाग जगत के शीर्ष चिट्ठाकार रह चुके अरूण अरोरा (पंगेबाज) जी के घर जाना हुआ।  हमारा सौभाग्य था कि वे घर ही मिल गए। उन्हों ने कुछ मेहमान आमंत्रित किए हुए थे इसलिए वे शीघ्र घर लौट आए थे। वर्ना इन दिनों उन का अक्सर ही आधी रात तक लौटना हो पाता है और सुबह जल्दी घर छोड़ देते हैं। पिछले वर्ष जब सभी उद्योग मंदी झेल रहे थे तब उन्हों ने बहुत पूंजी अपने उद्योग में लगाई थी। मैं सदैव चिंतित रहा कि इस माहौल में उन्हों ने बहुत रिस्क ली है। लेकिन यह जान कर संतोष हुआ कि पूंजी लगाने का सकारात्मक प्रतिफल मिल रहा है। हम उन के घरपहुँचे तब बिजली नहीं थी और रोशनी व पंखा इन्वर्टर पर थे। हमें बात करते हुए दस ही मिनट हुए थे कि वह भी बोल गया। घर से अंधेरा दूर रखने के लिए मोमबत्ती का सहारा लेना पड़ा। कुछ देर में उन के आमंत्रित मेहमान भी आ गए और हम ने विदा ली। रात भर बिजली आती-जाती रही।
सूर्यास्त होने ही वाला है
मारी समस्या हल हो चुकी थी। दोपहर पौने दो बजे कोटा के लिए जनशताब्दी थी। हम उस से वापल लौट लिए। फरीदाबाद हरियाणा सरकार का कमाऊ पूत है। समूचे हरियाणा का आधे से अधिक आयकर इसी शहर से आता है। निश्चित ही राज्य सरकार को भी यहाँ से इसी अनुपात में राजस्व मिलता है। इस शहर की हालत बिजली के मामले में ऐसी है तो यह अत्यंत चिंताजनक बात है। रात को चर्चा करते हुए पंगेबाज जी ने तो कह ही दिया था -और दो काँग्रेस को वोट, अब यही होगा। मैं ने पूछा क्या हरियाणा में इतनी कम बिजली पैदा होती है। तो वे कहने लगे -बिजली तो जरूरत जितनी पैदा होती है लेकिन कांग्रेस की सरकार है तो दिल्ली को बिजली देनी होती है। हम यहाँ भुगतते हैं। अब असलियत क्या है? यह तो कोई खोजी पत्रकार आंकडे़ जुटा कर ही बता सकता है।
लो सूरज विदा हुआ
वापसी यात्रा में जनशताब्दी का डब्बा फिर से तंदूर की तरह तप रहा था। जैसे-तैसे छह घंटों का सफर तय किया और कोटा पहुँचे। मैं शोभा से कह रहा था कि इस भीषण गर्मी में घर छोड़ कर बाहर निकलना मूर्खता से कम नहीं है। वह नाराज हो गई। इस में काहे की मूर्खता है, काम पड़ेगा तो जाना ही पड़ेगा, गर्मी हो या सर्दी। यहाँ आ कर अखबार देखा तो पता लगा कि कल के दिन कोटा का अधिकतम तापमान 45.7 डिग्री सैल्शियस था।