@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: Price hike
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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

वकील बाबू क्या हुआ?

कुछ दिनों से कान में सुरसुराहट हो रही थी, लग रहा था पेट्रोल के दाम अब बढ़े, अब बढ़े। दिन भर अदालत में व्यस्त रहे वकील बाबू शाम को थक कर घर पहुँचे तो खबर इंतजार ही कर रही थी। कान की सुरसुराहट बंद हो चुकी थी। पेट्रोल के दाम में तीन रुपए का इज़ाफा होने की घोषणा हो चुकी थी। आधी रात के बाद नए भाव से मिलना शुरू हो जाना था। वकील बाबू की कार की टंकी फुल करवाने का अभी आधी रात तक तो मौका था। हिसाब लगाना शुरू किया। 28 लीटर की टंकी, जिस में कम से कम तीन लीटर तो अभी भी भरा होगा, खाली स्थान बचा 25 लीटर। अभी दाम है 67.40 रुपए प्रति लीटर। 25 लीटर के लिए चाहिए 1685/- । जेब टटोली तो वहाँ निकले पाँच सौ के पाँच नोट। पेट्रोल भरवा लिया तो एक ही बचेगा, तीन सौ-सौ के नोटों के साथ। यकायक जेब का इतनी हलकी हो जाना दिल को गवारा न था। वकील बाबू बचत का हिसाब लगाने लगे। कुल तीन-साढ़े तीन रुपए बढ़ने हैं। अधिक से अधिक 75-80 रुपए का फायदा होना था। बस! इतनी सी बचत होगी?

कील बाबू ने कार लेकर पंप पर जाने का इरादा त्याग दिया। शाम को भोजन के समय टीवी समाचार पर नजर पड़ी तो 75-80 रुपए का लालच सताने लगा। मन कह रहा था, कार ले कर निकल पड़। दो-तीन किलोमीटर ही तो है आना-जाना। ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा 10-12 रुपए का पेट्रोल जलेगा, फिर भी 65-70 तो बच ही लेंगे। फिर ख्याल आ गया। पिछली बार तीन पेट्रोल पंपों ने लौटा दिया था तब जा कर चौथे पर पर पेट्रोल मिला था। वह भी आधा घंटा लाइन में लगे रहने के बाद। कम से कम आठ बार इंजन को चालू बंद करना पड़ा था। 40 रुपए का पेट्रोल तो इसी में फुँक गया था। पर तब 5.32 रुपए प्रति लीटर का सवाल था। इस बार इतना ही पेट्रोल फूँकना पड़े और कम से कम एक घण्टा टाइमखोटी किया जाए तो भी टंकी फुल करा कर बचेगा क्या? सिर्फ 30 रुपल्ली। वकील बाबू ने फाइनली तय कर लिया कि कार को गैराज से बाहर निकालना फिज़ूल है, इस से अच्छा तो ये है कि वकालत का काम देखा जाए।

णित, वकील बाबू की पुरानी प्रेयसी जब दिमाग में घुस जाती है तो आसानी से निकलती नहीं। गणना बराबर चल रही थी। कार महीने में 50-55 लीटर पेट्रोल पीती है। कुल मिला कर दो सौ रुपए का पेट्रोल खर्च बढ़ेगा। इतना और कूटना पड़ेगा मुवक्किलों से। वैसे मुफ्त सलाह लेने वाले लोगों में से एक से भी फीस वसूल ली तो घाटा पट जाएगा। इत्ती गणना हुई कि भोजन निपट लिया। वकीलाइन ने सब्जी के भाव बताना शुरू कर दिया। भाव बता चुकने पर पूछा -बाजार सामान लेने कब चलना है? रसोई के डिब्बे खाली हो चले हैं। गणना फिर शुरू हो गई। पेट्रोल खरचा तो सब्जी वाले का भी बढ़ा है। कल सब्जी में पाँच रूपया किलो बढ़ जाना है। दूध वाला कल से दाम तो नहीं बढ़ाएगा, पर पानी बढ़ा देगा। किराने वाला, और .......... ये सब भी तो कहीं न कहीं कसर निकालेंगे। नहीं निकालेंगे तो जिएंगे कैसे। वकील बाबू का महिने में एक मुवक्किल से सलाह की फीस लेने का फारमूला फेल हो गया। अब तो हर मुवक्किल ट्राई करना पड़ेगा।

वैसे ये बहुत बुरी बात है। ये सरकार ... सॉरी! तेल कंपनियाँ हर तीसरे महीने 3-5 रुपए बढ़ा देती हैं। कभी कच्चे के दाम बढ़ने के कारण, तो कभी रुपए का दाम घटने के कारण। सरकार कुछ सोचती ही नहीं। इस तरह दाम बढ़ाने पड़े तो तीन बरस में बारह बार बढ़ाने पड़ेंगे। फिर चुनाव आ जाएगा। लोगों को ताजा ताजा याद रहती है। एक साथ ही दाम 100 रुपए लीटर कर दिए होते तो ठीक था। वकील बाबू भी उस का तोड़ एक बार में ही निकाल लेते। 3 साल में जनता भूल जाती कि दाम 100 रुपए किया था। गुंजाइश निकलती तो ठीक चुनाव के पहले 5-10 रुपए कम किए जा सकते थे। वकील बाबू ने पिछली बार भी कहा था कि दाम सीधे ही 100 रुपया लीटर कर देना चाहिए। पर सरकार के नक्कार खाने में वकील बाबू की तूती कौन सुनता? 
कील बाबूने आज फैसला कर लिया है। कल अदालत में वकीलों, टाइपिस्टों, क्लर्कों, मुवक्किलों.... आदि आदि से बात करेंगे कि मोर्चा जमाया जाए। पेट्रोल का दाम सीधे 100 रुपए किया जाए। बार-बार दाम बढ़ाने से बहुत तकलीफ होती है। धीरे-धीरे गंजा होने से अच्छा है एक बार ही नाई से उस्तरा फिरवा लिया जाए। कम से कम लोग पूछेंगे तो वकील बाबू क्या हुआ?

रविवार, 15 मई 2011

पेट्रोल 100 रुपए लीटर न हुआ

कोई दो माह से हल्ला था कि तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ रहे हैं, तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है, भारत में कभी भी  दाम बढ़ाए जा सकते हैं। सांत्वना यह थी कि कम से कम चार राज्यों के चुनाव तक तो नहीं ही बढ़ेंगे। हम भी तसल्ली से बैठे हुए थे। जब चुनाव संपन्न हो गए तो चर्चा फिर गरम हो गई। हमें भी विश्वास हो गया कि अब तो दाम बढ़ने ही वाले हैं। हम अक्सर एक ही पेट्रोल पंप से पेट्रोल लेते हैं। हमें यह विश्वास है कि वहाँ पेट्रोल मे मिलावट न होगी और कम भी न दिया जाएगा। (कभी विश्वास टूट गया तो नया पेट्रोल पंप पकड़ेंगे)  11 मई को पेट्रोल पंप की और से निकले तो हजार रुपए का डलवा लिया और इंतजार करने लगे कि आधी रात को जरूर ही पेट्रोल के दाम बढ़ जाएंगे और सुबह हम अनुमान लगाएंगे कि ये हजार रुपए का पेट्रोल भराने पर कितने का फायदा हुआ। हमारी आदत है कि चाहे मुसीबत का पहाड़ टूटने वाला हो पर हम जरा से फायदे से इतने खुश हो जाते हैं कि मुसीबत भी रुई के बोरे सी आसान लगने लगती है।
स रात दाम न बढ़े। हम निश्चिंत हो गए। कल शाम जब हम काम से निकले तो पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल वाहनों की लाइन लगी थी। कुछ पेट्रोल पंप पर कर्मचारी आराम कर रहे थे। उन्हों ने पेट्रोल खतम का बोर्ड चस्पा कर रखा था। हम समझ गए कि पेट्रोल के दाम बढ़ चुके हैं। हम चाहते तो थे कि हम भी सस्ते वाला पेट्रोल भरा लें। पर लाइन इतनी लंबी थी कि हो सकता था हमारा नंबर आते-आते 12 बज जाते और हमें लाइन का कोई लाभ न मिलता। कुछ पेट्रोल पंप ट्राई भी करते तो इतना पेट्रोल खप जाता कि लाभ बराबर हो जाता। 
ब आज सुबह अखबार से पता लगा कि पेट्रोल 62.08 रुपए से बढ़ कर 67.40 हो गया है, यानी अब हमें हर लीटर पर 5.32 पैसे अधिक देने पड़ेंगे। इसे कहते हैं दिन दहाड़े डाका पड़ना। पर इस डाके की रिपोर्ट कहीं नहीं हो सकती। डाका मुंसिफ डाले तो कौन उसे सजा दे? इतना सा दाम बढ़ा कर सरकार ने कोई अच्छा काम नहीं किया। सरकार को पेट्रोल का दाम पूरे 100 रुपए प्रति लीटर कर देना चाहिए था। उस के कई फायदे थे। पिछले पाँच-सात सालों से गृह मंत्रालय ने हमारे बाइक चलाने पर जो प्रतिबंध लगाया है वह हट जाता। हम कार घर में खड़ी कर देते और हमें बाइक चलाने को मिल जाती। दूसरे कार से लिफ्ट मांगने वालों को मैं यह कह कर मना कर सकता था कि मैं जरा बाइक में नया हूँ। यह तो थे मेरे व्यक्तिगत फायदे, पर सरकार को उस से क्या लेना-देना। पर सरकार को भी बहुत फायदे थे। जैसे मैं अदालत कार न ले जाता तो उस के पार्क करने के स्थान पर कम से कम तीन बाइक और पार्क हो जातीं। पार्किंग की समस्या का हल निकल जाता।
दाम सौ रुपये प्रति लीटर होने से ये भी फायदा होता कि फिर दाम जल्दी-जल्दी नहीं बढ़ाने पड़ते। तेल कंपनियाँ कम से कम साल-छह महीने यह नहीं कह सकती थी कि उन्हें घाटा हो रहा है। उन्हें होने वाले लाभ का हिसाब रखा जाता और घाटा आरंभ होने पर भी उसे पिछला लाभ बराबर न हो जाए तब तक वे बोलने लायक भी नहीं होतीं। यकायक दाम बढ़ने से बहुत सी बड़ी गाड़ियाँ सड़कों और पार्किंग में नजर आना बंद हो जातीं। सड़कों पर ट्रेफिक कुछ कम होता तो भिड़ने-भिड़ाने के अवसर भी कम होते और इंश्योरेंस कंपनियों को मोटर दुर्घटनाओं में देने वाले मुआवजे के कारण जो नुकसान हो रहा है वह खतम हो जाता वे भी लाभ में आ जातीं। पेट्रोल गाड़ियों की बिक्री कुछ कम होने से भी सड़कों को कुछ राहत मिलती। यदि दाम बढ़ाने का यह काम अगले तीन-चार साल तक टाला जा सकता तो फिर अगले चुनाव तक तो लोग भूल ही जाते कि पेट्रोल के दाम भी कभी बढ़े थे।
खैर, मैं ने हिसाब लगाया कि कल तक मेरी कार में बारह लीटर पेट्रोल मौजूद था। इस तरह मुझे कुल 63.84 रुपए का नकद फायदा हुआ। मैं कल कार में 16 लीटर पेट्रोल और भरवा सकता था। यदि यह भरवा लेता तो मुझे 85.12 रुपए का फायदा और होता। लेकिन मेरे  1080 रुपए कम से कम चार-पाँच दिन पहले ही खर्च हो जाते। पेट्रोल भरवाने के लिए कम से कम तीन घंटे तो पेट्रोल पंप पर लाइन में बिताने पड़ते। इस बीच हजार रुपए की कमाई कराने वाला मुवक्किल हाथ से निकल जाता। कुल मिला कर मैं ने पेट्रोल भराने के लिए लाइन में लग कर अच्छा ही किया। हाँ, दाम सौ रुपए प्रति लीटर हो जाता तो मैं जरूर लाइन में लग पड़ता। फिर चाहे दस हजार का मुवक्किल क्यों न छूट जाता।