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शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

मुश्किल का दूध

दिनांक - 6 अगस्त 2010, प्रातः 5:15,
भी-अभी दूध ले कर लौटे हैं। 
यूँ, छह माह पहले तक दूध घर पर आ जाया करता था। आधा किलोमीटर के दायरे में सात आठ दूध डेयरियाँ हैं। जिन में सरस दूध डेयरी के आउटलेट भी हैं, जिन में थैली बंद दूध भी मिलता है। लेकिन यह दूध कभी श्रीमती शोभाराय को पसंद नहीं आया। न जाने कब का निकला होता है। फिर उन का पेस्चराइजेशन कर के उसे थैलियों में बंद किया जाता है। निश्चित ही दूध का प्राकृतिक स्वाद उस से छिन जाता है। शोभा इन का दूध लाती भी थी तो केवल दही जमाने के लिए। 
गूजर की झौंपड़ी के बाहर भैंसें
हले गाँवों से आने वाले दूधियों से दूध लिया करते थे। सात-आठ साल पहले जब कोटा के आस पास लहसुन की खेती बढ़ गई तो दूध में उस की महक शामिल होने लगी। दूधियों का दूध बंद कर दिया गया। एक गूजर की डेयरी से दूध आने लगा। पाँच-छह साल उस से दूध आता रहा। उस का भी बड़ा अजीब किस्सा था। वह दो-तीन क्वालिटी का दूध सप्लाई किया करता था। एक सब से अधिक कीमत का, एक सब से कम कीमत का और दो उस के बीच की कीमत के। हमारे यहाँ सब से अधिक कीमत का दूध आता रहा। लेकिन उस की गुणवत्ता लगातार गिरती रहती थी। तब तक, जब तक कि कीमतें न बढ़ जातीं। कीमतें बढ़ जाने पर अचानक गुणवत्ता में सुधार हो जाता था। चार-छह माह बाद फिर से उस की गुणवत्ता गिरने लगती थी और तब तक गिरती रहती थी जब तक कि फिर से एक बार दूध की कीमतें न बढ़ जातीं। साल भर पहले इस डेयरी के दूध में भी लहसुन की महक आने लगी। शिकायत की गई तो कहा कि वह ऐसा दूध घर पर सप्लाई नहीं कर सकता, दूध डेयरी से लेने आना पड़ेगा। बिना महक का दूध सिर्फ बोराबास के पठार से आता है। उधर लहसुन की खेती नहीं होती। उधर लहसुन की खेती क्या होती? उधर खेती होती ही नहीं थी, मीलों जंगल जो है। मैं कोई साल भर तक उस के यहाँ से दूध लाता रहा। लेकिन कभी-कभी वहाँ भी गड़बड़ हो जाती। आखिर उस का दूध बंद करना पड़ा। अब समस्या खड़ी हुई कि दूध कहाँ से लाएँ?
गूजर की झौंपड़ी
ब श्रीमती जी ने एक नया स्रोत तलाश किया। कोई एक किलोमीटर पर दशहरा मैदान है। उसी में कोई बीस-तीस गूजरों ने अपनी झोंपड़ियाँ डाल रखी हैं। वे भैंस-गाय पालते हैं। सुबह-शाम ग्राहकों को दूध सामने दुह कर देते हैं। वहीं कुछ व्यापारियों के डेरे भी हैं जो दिन में दो बजे और सुबह दो बजे अपने जानवर दुहते हैं। सुबह का दूध तो खुद दूधिए बस्ती में बेचने के लिए ले जाते हैं और उस में उतना ही पानी मिला कर सस्ते में बेचते हैं। दिन का दूध अवश्य सीधे ग्राहकों को मिल जाता है।  डेयरी से दूध बंद हुआ तो उस के सब से अच्छे दूध का भाव पच्चीस रूपये लीटर था। लेकिन ये सामने दुहने वाले गूजर तीस के भाव सामने भैंस दुह कर दूध देते थे। परेशानी यही थी कि वहाँ दूध दुहने के समय के पहले पहुँचना पड़ता है। जरा भी देरी हुई कि दूध में पानी या गाय का दूध मिला देना गूजरों के बाँए हाथ का खेल है। अब रोज-रोज दशहरा मैदान जाना तो संभव नहीं। हम ने तीन दिनों का दूध एक साथ लाना आरंभ कर दिया। सरस डेयरी ने दूध के भाव बढ़ाए शहर की दूसरी डेयरियों ने भी भाव में वृद्धि कर दी। दशहरा मैदान में भी भैंस का दूध तीस से पैंतीस हो गया। इस साल जुलाई माह बिना बरसात के निकल गया। 
गूजर की झौंपड़ी के पास उपला उद्योग
म जिस गूजर के यहाँ से दूध लाते हैं वह सुबह पौने पाँच बजे और शाम को चार बजे अपने जानवरों को दुहता है। अब इसी समय वहाँ जाया जाए तभी दूध सही मिले। अब अक्सर अदालत से लौटते तो पाँच से ऊपर का समय हो जाता है। हम सुबह के समय दूध लाने लगे। सप्ताह में तीन दिन सुबह साढ़े-चार उठना और कार से दूध लाना आरंभ हो गया। गूजर की झौंपड़ी मुख्य सड़क से कोई सौ-डेढ़ सौ मीटर अंदर मैदान में है। जुलाई में तो बरसात न हुई अगस्त के आरंभ से बरसात होने लगी तो मैदान में कीचड़ होने लगा। पैदल चलना तो कठिन था ही कार का जाना भी कठिन हो गया। आज तो पक्की सड़क पर भी कार चलाना कठिन हो गया। कल सुबह बरसात हुई थी। मैदान में आज सुबह तक कीचड़ था। गाएँ सारी सड़क पर आ बैठी थीं और सारी सड़क उन्हों ने अवरुद्ध कर रखी थी। हम जैसे-तैसे कार ले कर गूजर की झोंपड़ी से बीस मीटर दूर तक पहुँचे। लेकिन वे दस मीटर भी पार करना भारी था। गूजर के यहाँ एक ग्राहक बैठा था और वह भैंस दुह रहा था। श्रीमती जी कार से उतरी लेकिन वे मुश्किल से दस मीटर तक पहुँच सकीं आगे कीचड़ के कारण जाना कठिन था। आखिर शेष दस मीटर गूजर खुद दूध की बाल्टी ले कर आया और दूध नाप गया। श्रीमती जी वापस लौट कर कार में बैठीं तो कार को वापस मोड़ना कठिन हो गया। जैसे-तैसे आगे पीछे कर कार को वापस घुमाया और अपने घर पहुँचे।
गूजर से दूध ले कर लौटती श्रीमती शोभाराय
 मैं ने कहा - आज का दूध बहुत मुश्किल का दूध है, और इस का भरोसा भी नहीं कि इस में पानी मिला है या गाय का दूध। श्रीमती जी कहने लगीं अभी गर्म करते ही पता लग जाता है। खैर पोस्ट समाप्त होने के पहले वे कॉफी का प्याला टेबुल पर रख गईं। मैं टाइप करते-करते उसे खत्म भी कर चुका हूँ। मुझे दूध में कोई खोट नहीं दिखा, न स्वाद का न पानी का।