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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

वाह! सांसद जी ........ वाह ! ...... कमाल किया आप ने ! ...... अब जरा तैयार हो जाइए!

सासंद जी,
प हर बार इलाके में वोट मांगने आए। कुछ ने आप का विश्वास किया,  कुछ को आपने जैसे-तैसे-ऐसे-वैसे पटाया। आप के पिटारे में लाखों वोट इकट्ठे होते रहे और आप संसद में जाते रहे। वहाँ गए तो आप ने संविधान की कसम ली कि आप देश की जनता की भलाई के लिए काम करेंगे। आप वहाँ गए थे, सरकार चुने जाने के लिए नफरी बढ़ाने, कानून बनाने पर अपनी मोहर लगाने, जनता की बात कहने और उस के लिए लड़ने के लिए, जनता को न्याय दिलाने के लिए। पर क्या आप का कर्तव्य यह भी नहीं बनता था क्या कि आप कानून के रखवाले भी बने रहें। आप के सामने कानून की धज्जियाँ उड़ गईं, आप उन धज्जियों को घोल कर पी गए और  बीस बरस तक सांस भी नहीं ली। इस बीच आप न जाने क्या क्या कहते रहे, लेकिन यह बात कैसे इतने दिन पची रही। आप को कभी उलटी नहीं आई?

सांसद जी,
प के लिहाज से शायद यह पुण्य का काम था कि दारू की दुकानें बंद न हों, गरीब लोग परेशान न हों, दारू के अभाव में जहरीली दारू पी कर न मरें। इसीलिए आप की जुबान पर अब तक ताला पड़ा रहा। अब आपने जुबान खोली भी है तो उस जज का नाम नहीं बता रहे हैं, जिसे वह 21 लाख रुपए दिए गए थे। आप ये भी कह रहे हैं कि आप के पास साबित करने को सबूत नहीं हैं। आप ने व्यर्थ ही इतने बरसों तक बात को छुपाए रखने की मशक्कत की, वरना उस अपराध के सब से पहले सबूत तो आप ही थे। आप! लाखों की जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, संसद सदस्य। इस सबूत को तो आपने ही नष्ट कर दिया, इस तरह आप ने अपराध किया। फिर इतने बरसों तक आप ने इस बात को छुपा कर एक और अपराध किया। अपराधी तो आप भी हैं ही। पर यह सब करने की जरूरत आप को क्या थी? 

सांसद जी, 
हीं ऐसी बात तो नहीं कि वे सभी दारूवाले आप के मिलने वाले हों, आप को चुनाव जीतने के लिए भारी-भरकम चंदा दिया हो, आप को सांसद बनाने में बड़ी भूमिका अदा की हो। आप को अपने इन हमदर्दों पर दया आ गई हो कि दुकानें बंद हो जाएंगी तो क्या खाएंगे? जिन्दा कैसे रहेंगे? अगला चुनाव कैसे लड़ेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि जज साहब और इन दारूवाले मित्रों के बीच की कड़ी आप ही हों, और इसीलिए यह बात इतने दिन इसी लिए छुपा रखी हो।

सांसद जी,
र आप यह कैसे भूल गए कि आप उसी राज्य के सांसद हैं, जिस राज्य ने इन दुकानों को बंद करने का आदेश दिया था? आप यह कैसे भूल गए कि आप के प्रान्त से  एक जज हुए थे सु्प्रीम कोर्ट में, वी.आर. कृष्णा अय्यर और वे अभी तक जीवित ही नहीं हैं सक्रिय भी हैं। फिर भी आप ने यह बात खोल दी। अब मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि इस बात को खोलने के पीछे आप की मंशा क्या है? या फिर आप की मजबूरी क्या है? लेकिन अब आपने बात खोल ही दी है तो भुगतना तो पड़ेगा ही। थाने में आप के खिलाफ अपराध दर्ज हो गया है। ये सवाल मैं नहीं पूछ रहा हूँ, बल्कि बता रहा हूँ कि ऐसे ही सवाल पुलिस आप से पूछने वाली है। जरा तैयार हो जाइए!