@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: Amitabh bachchan
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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

संतानें पिता के नाम से ही क्यों पहचानी जाती हैं?

बुजुर्ग कहते हैं कि शाम का दूध पाचक होता है। जानवर दिन भर घूम कर चारा चरते हैं, तो यह मेहनत का दूध होता है और स्वास्थ्यवर्धक भी।  मैं इसी लिए शाम का दूध लेता हूँ।  डेयरी से रात को दूध घरों पर सप्लाई नहीं होता।  इसलिए खुद डेयरी जाना पड़ता है। आज शाम जब डेयरी पहुँचा तो डेयरी  के मालिक  मांगीलाल ने सवाल किया कि भीष्म को गंगा पुत्र क्यों कहते हैं। उसे पिता के नाम से क्यों नहीं जाना जाता है।  मैं ने कहा -गंगा ने शांतनु से विवाह के पूर्व वचन लिया था कि वह जो भी करेगी, उसे नहीं टोका जाएगा।  वह अपने पुत्रों को नदी में बहा देती थी। जब उस के आठवाँ पुत्र हुआ तो राजा  शांतनु ने उसे टोक दिया कि यह पुत्र तो मुझे दे दो। गंगा ने अपने इस पुत्र का नहीं बहाया, लेकिन शांतनु द्वारा वचन भंग कर देने के कारण वह पुत्र को साथ ले कर चली गई।  पुत्र के जवान होने पर गंगा ने उसे राजा को लौटा दिया। इसीलिए भीष्म को सिर्फ गंगापुत्र कहा गया, क्यों कि शांतनु को वह गंगा ने दिया था। उस की जिज्ञासा शांत हो गई। लेकिन मेरे सामने एक विकट प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि 'क्यों संतानें पिता के नाम से ही पहचानी जाती हैं, माता के नाम से क्यों नहीं?'

आखिर स्कूल में भर्ती के समय पिता का नाम पूछा और दर्ज किया जाता है। मतदाता सूची में पिता का नाम दर्ज किया जाता है। तमाम पहचान पत्रों में भी पिता का नाम ही दर्ज किया जाता है। घर में भी यही कहा जाता है कि वह अपने पिता का पुत्र है। क्यों हमेशा उस की पहचान को पिता के नाम से ही दर्ज किया जाता है?
इस विकट प्रश्न का जो जवाब मेरे मस्तिष्क ने दिया वह बहुत अजीब था। लेकिन लगता तार्किक है।  मैं ने डेयरी वाले से सवाल किया। तो उस ने इस का कोई जवाब नहीं दिया। उस के वहाँ मौजूद दोनों पुत्र भी खामोश ही रहे। आखिर मेरे मस्तिष्क ने जो उत्तर दिया था वह उन्हें सुना दिया।

माँ का तो सब को पता होता है कि उस ने संतान को जन्म दिया है। उस का प्रत्यक्ष प्रमाण भी होता है। लेकिन पिता का नहीं। क्यों कि उस की एक मात्र साक्ष्य केवल संतान की माता ही होती है। केवल और केवल वही बता सकती है कि उस की संतान का पिता कौन है? समाज में इस का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होता कि पुत्र का पिता कौन है? समाज में यह स्थापित करने की आवश्यकता होती है कि संतान किस पिता की है। यही कारण है कि जब संतान पैदा होती है तो सब से पहले दाई (नर्स) यह बताती है कि फंला पिता के संतान हुई है। फिर थाली बजा कर या अन्य तरीकों से यह घोषणा की जाती है कि फलाँ व्यक्ति के संतान हुई है। संतान का पिता होने की घोषणा पर पिता किसी भी तरह से  उस का जन्मोत्सव मनाता है। वह लोगों को मिठाई बाँटता है। अपने मित्रों औऱ परिजनों को बुला कर भोजन कराता है और उपहार बांटता है। इस तरह यह स्थापित होता है कि उसे संतान हुई है।
मैं ने अपने मस्तिष्क द्वारा सुझाया यही उत्तर मांगीलाल को भी दिया। उस में आपत्ति करने का कोई कारण उसे नहीं दिखाई दिया, उस ने और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने इस तर्क को सहज रुप से स्वीकार कर लिया।
अब आप ही बताएँ मेरे मस्तिष्क ने जो उत्तर सुझाया वह सही है कि नहीं। किसी के पास कोई और भी उत्तर हो तो वह भी बताएँ।

बुधवार, 3 जून 2009

अमिताभ ने उपाधि ठुकरा कर एक तीर से तीन निशाने साधे

आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के प्रति जो अपमान जनक व्यवहार हो रहा है उस से प्रत्येक भारतीय आहत है। ऐसे में अमिताभ बच्चन  ने ऑस्ट्रेलिया की क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी से मिलने वाली डॉक्टरेट की मानद उपाधि लेने से इनकार कर दिया। उन्हें यह उपाधि थी। अमिताभ ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर लगातार हो रहे हमलों से नाराज हैं।
ऑस्ट्रेलिया के शहरों में भारतीय छात्रों के खिलाफ नस्लवादी हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं ऑस्ट्रेलियाई सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाने के स्थान पर सिर्फ यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि ये हमले नस्लवादी नहीं है।
अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि वह उस संस्थान के खिलाफ कोई असम्मान नहीं दिखाना चाहते, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में अपने देशवासियों पर हो रहे हमलों से दुखी हैं, ऐसे में उनकी अंतरात्मा यह स्वीकार नहीं करती कि उस देश के संस्थान से कोई उपाधि प्राप्त करें जहां उनके देशवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा हो।

क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी ने बॉलिवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से कहा है कि वह आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलों के विरोध में उसकी ओर से दी जाने वाली डॉक्ट्रेट की उपाधि को नहीं लेने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
अमिताभ बच्चन  ने उपाधि स्वीकार नहीं कर पाने संबंधी अपनी विवशता के बारे में यूनिवर्सिटी को शनिवार को सूचित कर दिया था। यूनिवर्सिटी के कुलपति पीटर कोलड्रेक ने अमिताभ के उसी पत्र के जवाब में अपने फैसले पर 'हम आपकी मजबूरी समझ सकते हैं। हम आपके भावनाओं का सम्मान करते हैं लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि आप अपने फैसले पर एक बार फिर विचार करें। इससे दोनों देशों के रिश्ते सुधर सकते हैं। आपके हाथ में एक बड़ी जिम्मेदारी है और मेरा आग्रह है कि आप इसी को ध्यान में रखकर कोई फैसला करें।'
अमिताभ बच्चन ने उपाधि ठुकरा कर ठीक ही किया। ऐसे माहौल में यदि वे आस्ट्रेलिया जाते हैं तो वह किसी भी प्रकार से ठीक न होता। इस से उन की छवि पर भी विपरीत असर आता। लेकिन क्या यह इतनी सी बात है? नहीं। बात कुछ पीछे से आरंभ होती है। यह एक तीर से तीन शिकार है। इस से संपूर्ण भारत में उन की छवि और निखरती है, ऐसे माहौल में वे आस्ट्रेलिया जाने से बच गए और तीसरा यह भी कि यह राज ठाकरे को भी एक करारा जवाब है। जो खुद महाराष्ट्र में इस से भी खराब व्यवहार उत्तरभारतियों के साथ कर चुके हैं।