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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

जन संस्कृति के सर्जक शिवराम के दूसरे स्मृति दिवस के कार्यक्रमों में आप सादर आमन्त्रित हैं ...

मुझे पहली ही मुलाकात में उन्होने प्रभावित किया था, बल्कि कहिए कि मैं भौंचक्का रह गया था। मैं छात्र ही था। एक नया साहित्यिक मंच बनाया था, लेकिन वह गति नहीं पकड़ रहा था। उन्होंने मुझे एक पर्चा पकड़ाया जिस में तीन दिनों का लंबा कार्यक्रम था। कुछ गोष्ठियाँ थीं, नाटक थे और कविसम्मेलन था। देश भर से स्थापित लोग आ रहे थे। पर्चा देने वाला छह माह पहले ही नगर के टेलीफोन एक्सचेंज में आरएसए के पद पर स्थानांतरित हो कर आया था। छह माह पहले नगर में आया हुआ व्यक्ति ऐसा आयोजन कैसे करवा सकता है? यह मेरी समझ में नहीं आ रहा था। मैं भी कार्यक्रम के साथ हो गया। एक नाटक में अभिनय भी किया। कार्यक्रम सफल हुआ और अंतिम कार्यक्रम के समापन के बाद आधी रात को देश में आपातकाल लग गया। कार्यक्रमों मे तत्कालीन सरकार की बहुत आलोचना हुई थी। अतिथि गिरफ्तार न कर लिए जाएँ इसलिए रातों रात उन्हें नगर से रवाना किया गया। लेकिन कार्यक्रम के आयोजक को कतई फिक्र न थी। खैर!

नाटक प्रस्तुत करने के पहले दर्शकों से संवाद करते शिवराम
गे उन के साथ बहुत जमी। वे पथ प्रदर्शक नेता भी बने और जीवन पर्यन्त एक सच्चे साथी भी बने रहे। उन में बहुत खूबियाँ थीं। वे नाटककार, कवि, आलोचक, संपादक, ओजस्वी वक्ता, अच्छे संगठक, अच्छे नेता भी थे। उन का नाटक "जनता पागल हो गई है" बहुत पहले ही अतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था। वे जीवन के आखिरी क्षण तक काम करते रहे। उन की ऊर्जा की प्रेरणा मार्क्सवाद-लेनिनवाद था और श्रमजीवी वर्ग की शक्ति और नेतृत्व में उन का विश्वास उस का स्रोत था।

शिवराम ऐसे ही साथी थे। दो बरस पहले हम से बिछड़़ने के समय वे हमारी पार्टी एमसीपीआई (यू) के पोलिट ब्यूरो के महत्वपूर्ण सदस्य थे, अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक-सामाजिक मोर्चा के महामंत्री थे। पर किसी कारखाने के गेट पर मजदूरों की मीटिंग करने के बाद उस के लिए प्रेसविज्ञप्ति लिखने और उसे अखबार के दफ्तर तक पहुँचाने के काम को करने तक में उन्हें कोई झिझक नहीं थी।

न की दूसरे स्मृति दिवस पर हम 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यक्रम कर रहे हैं। आप सब भी उस में सादर आमंत्रित हैं। निमंत्रण पत्र यहाँ है ...

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

जन-गण के पक्ष में रचनाकर्म करने के साथ उन तक पहुँचाना भी होगा


किसी ने कहा शिवराम बेहतरीन नाटककार थे हिन्दी नुक्कड़नाटकों के जन्मदाता, कोई कह रहा था वे एक अच्छे जन कवि थे, किसी ने बताया शिवराम एक अच्छे आलोचक थे, कोई कह रहा था वे प्रखर वक्ता थे, किसी ने कहा वे अच्छे संगठनकर्ता थे और हर जनान्दोलन में वे आगे रहते थे, एक लड़की कह रही थी, बच्चों को वे मित्र लगते थे। टेलीकॉम वाले बता रहे थे वे जबर ट्रेडयूनियनिस्ट थे, दूसरे ने बताया वे श्रेष्ठ अभिनेता और नाट्यनिर्देशक थे। भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) के जिला सचिव बता रहे थे वे पार्टी के पॉलिट ब्यूरो के सदस्य थे, उन के देहान्त का समाचार मिलते ही एक और पॉलिट ब्यूरो सदस्य उन की अंत्येष्टी में कोटा पहुँचे थे और जब सब लोग कह रहे थे कि कोटा और राजस्थान के जनान्दोलन की बहुत बड़ी क्षति है तो वे कहने लगे कि वे कोटा की नहीं देश भर के श्रमजीवी जन-गण की क्षति हैं। पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व उन से देशव्यापी नेतृत्वकारी भूमिका की अपेक्षा रखता था। इतने सारे तथ्य शिवराम के बारे में सामने आ रहे थे कि हर कोई चकित था। शायद कोई भी संपूर्ण शिवराम से परिचित ही नहीं था। हर कोई उन का वह दिखा रहा था जो उस ने देखा, अनुभव किया था। इन सब तथ्यों को सुनने के बाद लग रहा था कि संपूर्ण शिवराम को पुनर्सृजित कर उन्हें पहचानने में अभी हमें वर्षों लगेंगे। फिर भी बहुत से तथ्य ऐसे छूट ही जाएंगे जो शायद उन के पुनर्सर्जकों के पास नहीं पहुँच सकें। जब वे 'संपूर्ण शिवराम' का संपादन कर के उसे प्रेस में दे चुके होंगे तब, जब उस के प्रूफ देखे जा रहे होंगे तब और जब वह प्रकाशित हो कर उस का विमोचन हो रहा होगा तब भी कुछ लोग ऐसे आ ही जाएंगे जो फिर से कहेंगे, नहीं इस शिवराम को वे नहीं जानते, हम जिस शिवराम को जानते हैं वह तो कुछ और ही था। 

शिवराम को हमारे बीच से गए एक वर्ष हो चुका है। यहाँ कोटा में उन के पहले वार्षिक स्मरण के अवसर पर 1 अक्टूबर 2011 को भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड), राजस्थान ट्रेड यूनियन केन्द्र और अखिल भारतीय जनवादी युवा मोर्चा ने दोपहर एक बजे श्रद्धांजलि सभा तीन बजे 'अभिव्यक्ति नाट्य और कला मंच' के कलाकारों ने सभास्थल के बाहर सड़क पर उन के सुप्रसिद्ध नाटक "जनता पागल हो गई है" का नुक्कड़-मंचन किया। इस के बाद दूसरे सत्र में एक गोष्ठी का आयोजन किया।  प्रेस-क्लब सभागार में हुई श्रद्धांजलि सभा दिल्ली से आए मुख्य-अतिथि शैलेन्द्र चौहान द्वारा मशाल-प्रज्ज्वलन के साथ आरंभ हुई। इस सभा में हाड़ौती अंचल के विभिन्न श्रमिक कर्मचारी संगठनों एवं सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ शिवराम की माताजी और पत्नी श्रीमती सोमवती द्वारा उनके के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा में उन के पुत्र रवि कुमार, शशि कुमार और डॉ. पवन अपनी भूमिकाओं के साथ उपस्थित थे। 

शैलेन्द्र चौहान ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें शिवराम की स्तुति करने के बजाय उनके विचारों, कार्य-पद्धति और श्रमजीवी जन-गण के प्रति समर्पण से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होने कहा कि पुरानी जड़ परम्परा और नैतिकता के स्थान पर श्रमिकों, किसानों के जीवन के यथार्थ से जुड़ी सच्चाइयों का अध्ययन करते हुए क्रांतिकारी नैतिकता को आत्मसात करना चाहिए। क्रांतिकारी नैतिकता के बिना जन-गण के किसी भी संघर्ष को आगे बढ़ा सकना संभव नहीं है।  सफल प्रथम-सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साम्यवादी विजय शंकर झा ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था अपने पतन के कगार पर है, व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन से ही देश की शोषित, पीड़ित जनता के जीवन में खुशहाली संभव है। शिवराम इस परिवर्तन के लिए समर्पित थे। श्रद्धांजलि-सत्र के पश्चात् शिवराम के प्रसिद्ध नाटक जनता पागल हो गई हैकी नुक्कड़ नाटक प्रस्तुति को सैंकड़ों दर्शकों ने देखा और सराहा। नाटक में रोहित पुरूषोत्तम (सरकार), आशीष मोदी (जनता), अजहर (पागल), पवन कुमार (पुलिस अधिकारी) और कपिल सिद्धार्थ (पूंजीपति) की भूमिकाओं को बेहतरीन रीति से अदा किया। लगा जैसे इसे शिवराम ने ही निर्देशित किया हो।  

साँयकालीन सत्र में साथी शिवराम के संकल्पों का भारतविषय पर मुख्य वक्ता साहित्यकार महेन्द्र नेह ने कहा कि वर्तमान दौर में  अमेरिका सहित पूरी पूंजीवादी दुनिया गहरे आर्थिक संकट में फँस गई है। हमारे देश के शासक घोटालों और भ्रष्टाचार में लिप्त होकर जन-विरोधी रास्ते पर चल पड़े हैं। आने वाले दिनों में समूची दुनिया में जन-आन्दोलन बढ़ेंगे तथा भ्रष्ट-सत्ताएं ताश के पत्तों की तरह बिखरेंगी। सत्र के अध्यक्ष आर.पी. तिवारी ने कहा कि मेहनतकश जनता का जीवन निर्वाह शासकों ने मुश्किल बना दिया है, लेकिन बिना क्रान्तिकारी विचार और संगठन के परिवर्तन संभव नहीं। दोनों सत्रों में त्रिलोक सिंह, प्यारेलाल, टी.जी. विजय कुमार, शब्बीर अहमद, विजय सिंह पालीवाल, जाकिर भाई, विवेक चतुर्वेदी, पुरूषोत्तम यकीन’, तारकेश्वर तिवारी और राजेन्द्र कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन महेन्द्र पाण्डेय ने किया। दोनों सत्रों के दौरान प्रसिद्ध नाट्य अभिनेत्री ऋचा शर्मा ने शिवराम की कविताओं का पाठ किया, शायर शकूर अनवर एवं रवि कुमार ने शायरी एवं कविता पोस्टर प्रदर्शनी के माध्यम से अपनी बातें कही।

2 अक्टूबर को कोटा के प्रेस क्लब सभागार में ही विकल्प’ अखिल भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा' द्वारा जन-संस्कृति के युगान्तरकारी सर्जक साथी शिवरामएवं अभावों से जूझते जन-गण एवं लेखकों-कलाकारों की भूमिकाविषयों पर परिचर्चाओं का आयोजन किया। कार्यक्रम का आगाज हाडौती अंचल के वरिष्ठ गीतकार रघुराज सिंह हाड़ा, मदन मदिर, महेन्द्र नेह सहित मंचस्थ लेखकों ने मशाल प्रज्ज्वलित करके किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में ओम नागर और सी.एल. सांखला ने शिवराम के प्रति अपनी सार्थक कविताएँ प्रस्तुत की तथा ऋचा शर्मा ने शिवराम की कुछ प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया।

प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार रघुराज सिंह हाड़ा ने बताया कि शिवराम का लेखन ठहराव से बदलाव की ओर ले जाने का लेखन है। उन्हों ने साहित्य के बन्धे-बन्धाए रास्तों को तोड़ कर आम जन के पक्ष में युगान्तरकारी भूमिका निभाई। मुख्य वक्ता मदन मदिर ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि सत्ता और मीडिया ने जनता के पक्ष की भाषा और शब्दों का अवमूल्यन कर दिया है। शिवराम ने अपने नाटकों और साहित्य में जन भाषा का प्रयोग करके अभिजनवादी संस्कृति को चुनौती दी। वे सच्चे अर्थों में कालजयी रचनाकार थे। कथाकार लता शर्मा ने कहा कि शिवराम ने अपनी कला का विकास उस धूल-मिट्टी  और जमीन पर किया जिसे श्रमिक और किसान अपने पसीने से सींचते हैं। उनका लेखन उनकी दुरूह यात्रा का दस्तावेज है। डॉ. फारूक बख्शी ने फैज अहमद फैज की गज़लों के माध्यम से शिवराम के लेखन की ऊँचाई को व्यक्त किया। डॉ. रामकृष्ण आर्य ने शिवराम को एक निर्भीक एवं मानवतावादी रचनाकार बताया। टी.जी. विजय कुमार ने उन्हे संघर्षशील एवं विवेकवान लेखक की संज्ञा दी। प्रथम सत्र का संचालन महेन्द्र नेह ने किया।

दूसरे सत्र में अभावों से जूझते जन-गण एवं लेखकों-कलाकारों की भूमिकाविषय पर आयोजित परिचर्चा का आरंभ संचालक शकूर अनवर ने गालिब की शायरी के माध्यम से अपने समय की यथार्थ अक्कासी और आजादी के पक्ष में शिवराम की भूमिका को खोल कर किया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिनेशराय द्विवेदी ने कहा कि शिवराम की भूमिका स्पष्ट थी, उन के संपूर्ण कर्म का लक्ष्य जन-गण की हर प्रकार के शोषण की मुक्ति था। उन्हों ने अपने नाट्यकर्म, लेखन, संगठन और शोषित पीड़ित जन के हर संघर्ष में उपस्थिति से सिद्ध किया कि साहित्य युग परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा सकता है। लेखकों और कलाकारों को जन-गण के पक्ष में रचनाकर्म करना ही नहीं है, प्रेमचंद की तरह उसे जनता तक पहुँचाने की भूमिका भी खुद ही निबाहनी होगी। मुख्य वक्ता श्रीमती डॉ. उषा झा ने अपने लिखित पर्चे में साहित्य की युग परिवर्तनकारी भूमिका को कबीर, निराला, मुक्तिबोध आदि कवियों के उद्धरणों से सिद्ध किया।  अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि बाजारवाद ने हमारे साहित्य एवं जन-संस्कृति को सबसे अधिक हानि पहुँचाई है। नारायण शर्मा ने कहा कि जब प्रकृति क्षण-क्षण बदलती है तो समाज को क्योंकर नही बदला जा सकता ? रंगकर्मी संदीप राय ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि नाटक जनता के पक्ष में सर्वाधिक उपयोगी माध्यम है। प्रो. हितेश व्यास ने कहा कि शिवराम ने विचलित कर देने वाले नाटक लिखे और प्रतिपक्ष की उल्लेखनीय भूमिका निभाई। अरविन्द सोरल ने कहा कि समय की निहाई पर शिवराम के लेखन का उचित मूल्यांकन होगा।

प्रसिद्ध चित्रकार व कवि रवि कुमार द्वारा शिवराम की कविताओं की पोस्टर-प्रदर्शनी को नगर के प्रबुद्ध श्रोताओं, लेखकों, कलाकारों ओर आमजन ने सराहा। विकल्पकी ओर से अखिलेश अंजुम ने सभी उपस्थित जनों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।     
जनता पागल हो गई है' नाटक की एक प्रस्तुति