@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शुभ मुहूर्त
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रविवार, 7 जनवरी 2024

मुहूर्त

मुश्किल पहला मकान बना। सपना यूँ पूरा होगा सोचा न था। कुछ पैसे पास में थे। सोचा था इससे प्लाट ही खरीदूंगा। दलाल ने एक दिन प्लाट बताया। मुझे ठीक लगा तो मैंने एडवांस दे दिया। अगले ही दिन सारे असल कागज पटक गया। दो तीन साल यूँ ही पड़ा रहा। पैसा नहीं था पास में, लेकिन लोगों की फूँक में मकान शुरू कर दिया। आखिर दो कमरे, टायलट, स्टोर, रसोई और डाइनिंग बन कर खड़े हो गये थे। फिनिशिंग चल रही थी।
उधर पिताजी लगातार पूछ रहे थे जल्दी कर। कब तक रामलला बन कर किराया देता रहेगा। आखिर तंग आ कर मैंने कहा मुहुर्त निकाल दो। पिताजी और मामाजी ने मिल कर शुभ मुहुर्त निकाल दिया। मुहूर्त की तारीख तक मकान के दरवाजों, खिड़कियों, अलमारियों में किवाड़ नहीं लग पाए थे। पुताई भी एक दिन पहले पूरी हुई। दो दिन पहले पिताजी गाँव से आ गए डाँटने लगे, काम पूरा नहीं हुआ था तो आगे का मुहूर्त निकाल लेते। मैं प्रत्यक्ष में क्या कहता? मन ही मन कहा, मैं तो मुहूर्त वगैरा का झंझट पालता ही नहीं, आप ही पीछे पड़े थे मुहूर्त के। अब तो परसों ही गृह प्रवेश होगा। मुहूर्त हुआ तो उसी दिन एक अतिथि ने टॉयलट में साँपजी को देख लिया। उसे वहाँ से भगा दिया गया।
खैर, सप्ताह भर बाद घऱ में शिफ्ट हो गए। करीब 19-20 साल उसमें रहे भी। फिर परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि उस मकान को निकालना पड़ा। वैसे भी मकानों के बारे में मेरी अवधारणा आम लोगों जैसी नहीं है। बल्कि मेरा सोचना है कि घर का मकान भी 20-30 साल में नया बना कर पुराना निकाल देना चाहिए। इससे नया पन आ जाता है, जीवन में ताजगी बनी रहती है। नयी जरूरतें पूरी हो जाती हैं। वरना उसी खोल में मरते खपते रहना पड़ता है। विस्टा तो आप को अब तक याद होगा ही। पहले ही नियमित सत्र में सुरक्षा टें बोल गयी।

मुहूर्त वगैरा सब चौंचले हैं। पंडित-ज्योतिषी को कुछ दक्षिणा एक्स्ट्रा दे दो तो जब चाहे मुहूर्त निकाल देते हैं, यहाँ तक कि जन्मपत्रियाँ तक मिला देते हैं। हम एक शादी के लिए मुहूर्त निकाल कर मैरिज हॉल किराए पर लेने निकले तो पता लगा शहर के सारे अच्छे मेरिज प्लेस एक ही व्यवासायी डील करता है। तय मुहूर्त पर एक भी जगह खाली नहीं थी। मैरिज हॉल वाला बोला, आजकल मुहूर्त पंडितजी नहीं हम टेण्ट हाऊस वाले तय करते हैं।
 
तो मेरी सोच है कि बस जिस दिन काम पूरा हो जाए वही सब से बड़ा मुहूर्त होता है। इसलिए मकान पूरा बन जाए तभी उसमें रहने जाना चाहिए। पहले जाने का मतलब है कि अधूरे काम धीरे धीरे पूरे होते हैं कई तो कभी पूरे नहीं होते। समय निकल जाने पर जरूरतें बदलती हैं और मकान पूरा होने के बजाए उसका नक्शा ही बदलने लगता है।
 
मैंने सुना है इसी माह अधूरे मंदिर में रामजी की प्रतिमा में प्राणों की प्रतिष्ठा की जाएगी। मुहूर्त निकाल लिया गया है। वैसे मंदिर पूरा हो जाता तो ठीक रहता। पर क्या करें। चौबीसा चुनाव भी तो जीतना है। अब रामजी को अधूरा घर पसंद आएगा या नहीं ये तो भविष्य ही तय करेगा। एक बात जरूर है कि पंडित-ज्योतिषियों को दक्षिणा अच्छी खासी मिली होगी।

बुधवार, 30 अगस्त 2023

मुहूर्तों की निस्सारता

लेकिन मुहूर्त देखने का व्यवसाय करने वाले ब्राह्मणों, गैर ब्राह्मणों और अखबारों, वेबसाइटों और मीडिया ने आज भी भद्रा -भद्रा का जाप करके भसड़ मचा रखी है।

मुझे भी अपनी किशोरावस्था में ज्योतिष और पंडताई का काम दादाजी ने सिखाया, उद्देश्य यही था कि यदि जीवन में कुछ सार्थक नहीं कर सका तो ब्राह्मण का बच्चा है यही सब करके पेट भराई तो कर ही लेगा।

उस समय जो सीखा और बाद में खोजबीन करके पढ़ा उसके हिसाब से मेरी समझ में यह सारा ज्ञान मिथ्या है और केवल डराने और रोजी रोटी चलाने का जरिया मात्र है।

मेरी एक कविता है...

क्या जोशी, क्या डाक्टर, क्या वकील
डरे को और डरावे,
फिर डर से निकलने का रास्ता बतावै,
जो ऐसा न करे तो घर के गोदड़े बिकावै।

ज्यादातर ब्राह्मणों को भद्रा के मामले में शास्त्रीय तथ्यों का ज्ञान तक नहीं है, वे भद्रा भद्रा करके लोगों को डराते हैं।

हालाँकि किसी भी ग्रंथ में रक्षाबंधन, प्रथम श्रावणी के अलावा बाद वाले श्रावणी कर्म और श्रवण पूजा हेतु शुभाशुभ देखने की जरूरत होने के बारे में कुछ भी नहीं कह रखा है। इसलिए कभी भी रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।

महुर्त चिंतामणि ग्रन्थ कहता है, पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्थ में भद्रा रहती है, तथा तिथि के पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है। इस का सीधा अर्थ है कि आज 10.58 सुबह से पूर्णिमा आरंभ हो रही है उसमें पूर्वार्ध में अर्थात रात्रि 9.01 तक भद्रा रहेगी। लेकिन तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा होने से रात्रि में शुभ है। जिसका अर्थ है कि सूर्यास्त के बाद वह शुभ है, सूर्यास्त के बाद रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।

इसलिए जिन्हें रक्षाबंधन मनाना है मुहूर्त की टेंशन छोड़ो, मस्ती से पूरे दिन और रात कभी भी रक्षाबंधन मनाओ।


बुधवार, 3 नवंबर 2010

कहीं आप धनतेरस के चक्कर में गैरजरूरी खरीददारी तो नहीं करने जा रहे?


ल सुबह अखबार सामने थे, एक स्थानीय अखबार में यह खबर थी ........
  

 हो सकता है आप ने भी मेरी तरह यह बात नोट की हो कि हर माह कम से कम दो बार ऐसी खबरें अखबारों के मुखपृष्ठ पर अपना स्थान बनाती हैं। मैं भी इसे खबर कह रहा हूँ, पर क्या वाकई यह एक खबर है। वस्तुतः इस में खबर जैसी कोई चीज नहीं है। केवल एक तथ्य है कि इस बार धनतेरस बुधवार को पड़ रही है और बुधवार को पड़ने वाली अगली धनतेरस चौदह वर्ष बाद 30 अक्टूबर 2024 आएगी। इस तथ्य का किसी के लिए कोई महत्व नहीं है। लेकिन हमारी बाजार व्यवस्था ने इस तथ्य को एक खबर बना कर अखबार और अन्य समाचार माध्यमों में प्रस्तुत किया है। इस का उद्देश्य पाठकों को खरीददारी के लिए प्रेरित करना है। यदि खरीददार बाजार में नहीं आएगा तो बाजार कैसे चलेगा। ये खबरें हर एक-दो सप्ताह के बाद आप समाचार पत्रों और अन्तर्जाल के समाचार परोसने वाले वेब पृष्टों पर देख सकते हैं।

 
 मैं ने कल सुबह की खबर को पढ़ने के बाद ' खरीददारी के शुभ मुहूर्त' वाक्य को गूगल में खोजा और 0.13 सैकंड में 987 परिणाम प्राप्त किए। हालांकि गूगल खोज के लिए यह संख्या अधिक नहीं है। लेकिन यह इस बात को भी करता है कि इस तरह के समाचारों का चलन खास तौर पर एक-दो वर्ष में ही सामने आया और तेजी से बढ़ता चला गया। इसे बड़े कॉरपोरेट समाचार पत्रों ने आरंभ किया और उस की नकल स्थानीय समाचार पत्र भी करने लगे। यह मौजूदा मंदी से निपटने के लिए ईजाद किए गए तरीकों में से एक है। जो पाठकों को गैर जरूरी खरीददारी करने के लिए प्रेरित करता है। जिस चीज की उपभोक्ता को आवश्यकता होती है वह तो खरीदता ही है। इस तरह की खबरें गैर जरूरी खरीददारी को प्रेरित करती हैं। यह विक्रय के अमरीका द्वारा ईजाद किए गए उस तरीके का एक अंग है जो यह सिखाता है कि माल इस लिए नहीं बिकता कि उपभोक्ता को उस की आवश्यकता है। बल्कि उत्पादकों को चाहिए कि वे अपने विक्रय अभियानों के माध्यम से लोगों को महसूस कराएँ कि उन्हें उन के उत्पाद की आवश्यकता है। 
मैं तो दीवाली के त्यौहार के पहले दिन आप से यही पूछना चाहता हूँ कि आप भी तो आज धनतेरस के शुभ मुहूर्त में कोई गैर जरूरी वस्तु खरीदने तो नहीं जा रहे हैं। मेरी मैं बता दूँ कि मैं तो जरूरी वस्तु की खरीद भी आज के दिन टालना चाहूँगा। बाजार में भीड़ बहुत है, दुकानदार को आप की सुनने की फुरसत नहीं और वह भीड़ का लाभ उठा कर आप को अधिक कीमत ले कर भी घटिया से घटिया माल टिकाने को बेताब है।