@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शहीद
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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

जलियाँवाला बाग के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि!!!

ज बैसाखी (वैशाखी) है। यह दिन अधिकांशतः 13 अप्रेल को ही होता है क्यों कि यह उस दिन होता है जिस दिन सूर्य की मेष संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य मीन राशि के क्षेत्र को छोड़ कर मकर राशि के क्षेत्र में प्रवेश करता है। हमारा ग्रीगेरियन कलेंडर भी सौर गणना से बनता है। इस कारण से सूर्य की सभी संक्रांतियाँ हर वर्ष एक ही तिथि को आती हैं। हालांकि लीप इयर के आस पास इस में एक दिन का अंतर हो सकता है। 
मेष राशि राशिचक्र की पहली राशि है इस कारण से हम कह सकते हैं कि यह सौर वर्ष का पहला दिन भी है। इन्हीं दिनों खेतों से रबी की फसलें आती हैं तो किसानों के घर प्रसन्नता का वातावरण रहता है। पंजाब में बैसाखी को सब से अधिक उत्साह और समारोह पूर्वक मनाया जाता है। वहाँ स्थान स्थान पर मेले लगते हैं। लोग सरोवरों व नदियों में स्नान करते हैं और मंदिरों व गुरुद्वारों में शीश नवातेहैं। लंगर लगते हैं और लोग प्रसन्न दिखते हैं विशेष रूप से किसान का मन गेहूं की खडी फसल को देखकर नाचने लगता है। गेहूं को पंजाबी कनक माने सोना कहते हैं और यह फसल किसान के लिए सोना ही है। बैसाखी पर कनक की कटाई शुरू हो जाती है। पंजाबी कहीं भी रहें, बैसाखी को नहीं भूलते। 
गुरु गोविंद सिंह ने 1699 ई. की बैसाखी पर आनंदपुर साहिब में विशेष समागम किया। इसमें देश भर की  सिख संगतों ने शामिल होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। उन्हों ने इस मौके पर संगत को ललकार कर कहा था "देश की गुलामी की कडियां तोडने के लिए मुझे एक शीश चाहिए। गुरु साहिब की ललकार सुनकर पांच सूरमाओं दया सिंह खत्री, धर्म सिंह जट, मोहकमसिंह छीवां,साहिब सिंह व हिम्मत सिंह ने अपने शीश गुरु साहिब को भेंट किए। ये सिंह गुरु साहिब के पांच प्यारे हुए। गुरु साहिब ने पहले इन्हें अमृत पान करवाया फिर उनसे खुद अमृत पान किया। इस तरह खालसा पंथ का जन्म हुआ। हर वर्ष बैसाखी पर खालसा का जन्म दिवस मनाया जाता है।बैसाखी पंजाबियों का सबसे बडा मेला है।  इसका नाम लेते ही उन के दिलों की धडकनें बढ जाती है, शरीर थिरकने लगते हैं और भंगडा शुरू हो जाता है।
13अप्रैल, 1919 को ही जलियांवालाबाग में देश की आजादी के लिए  रही सभा जनरल डायर के सिपाहियों  ने  अपनी बंदूकों के मुहँ खोल दिए। लोग गोलियों के आगे सीना ताने खडे रहे और शहीद हो गए। जो आग उस दिन देश के सीनों में सुलगी उसी के कारण आज हम अंग्रेजों के पंजों से आजाद भारत में साँस ले रहे हैं।  इसी जलियाँवाला बाग की शहादत ने भगतसिंह को एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित किया था। क्या हम आज भी शहीद भगत सिंह के उस लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं जिस में एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी का और एक देश द्वारा दूसरे के शोषण की समाप्ति निहित थी। निश्चय ही यह लक्ष्य अभी बहुत दूर है। उस के लिए दुनिया के बहुत लोगों को अभी बलिदान देने शेष हैं। हम आज के दिन संकल्प कर सकते हैं कि हम उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने जीवन का कुछ समय अवश्य देंगे।

 
 अंत में
जलियाँवाला बाग के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि!!!

सोमवार, 23 मार्च 2009

भगत सिंह उवाचः ......


आज भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के शहीदी दिवस पर कोटा के श्रमजीवी विचार मंच ने एक पर्चा वितरित किया है।  इस पर्चे में भगतसिंह आज क युवाओं और नागरिकों को संबोधित कर रहे हैं। क्या कहते हैं वे जानिए खुद .....

  • मैं जानता हूँ कि आप मेरी कुर्बानी का आदर करते हैं। लेकिन मैं ने यह कुर्बानी इसलिए नहीं दी कि भावी पीढ़ियाँ मेरा आदर करें।  बल्कि इस लिए कि मेरे देश की तरुणाई जागे, उस का खून खौले। वे मृत्यु की परवाह किए बिना देश और देशवासियों की आजादी और उन्नति के लिए हर प्रकार की गुलामी, गैर बराबरी और अवनति के बंधनों तो तोड़ फेंक दें।
  • सोचिए, अपने और देश-दुनिया के हाल के बारे में सोचिए!
  • सोचिए, और अपने हुक्मरानों से सवाल कीजिए कि आखिर इस बदहाली की जिम्मेदारी किस की है? यह जिम्मेदारी इन हुक्मरानों की कैसे नहीं है? 
  • सब को शिक्षा सब को काम, सब को रोटी, कपड़ा और मकान, सब को चैन सब को आराम, जो दे सके ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। 
  • हमारे वक्त में हम ने पाया कि साम्राज्यवादी बेड़ियों में फँसी सामंती समाज व्यवस्था यह सब नहीं दे सकती, हम उस से लड़ें।
  • ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्ति मिली लेकिन अब अमरीकी साम्राज्यवाद के अप्रत्यक्ष जाल में हम लगभग फँस गए हैं।
  • सामंती बाहुबली अपनी सत्ता बनाए हुए हैं।  पूँजी वादी व्यवस्था असुरक्षा और अनिश्चय के भंवर जाल में फँस गई है।
  • शोषण-दमन असुररक्षा और अनिश्चय,  भूख और बेकारी, गरीबी और अपमानपूर्ण जिन्दगी से छुटकारे की राह कौन तलाशेगा?
  • विद्यमान व्यवस्था के पेचोखम कौन समझेगा? 
  • मैं पूछता हूँ आप लोग, देश की युवा पीढ़ी नहीं तो और कौन?

विनीत-
महेन्द्र नेह, शिवराम, टी.जी. विजय कुमार, महेन्द्र पाण्डे, नारायण शर्मा, शब्बीर अहमद, परमानन्द कौशिक, तारकेश्वरनाथ तिवारी, हरदयाल सिंह,  ओम प्रकाश गुप्ता, चाचा मजीद, गोपाल सिंह मास्टर, लक्ष्मण सिंह हाड़ा, बाबा अमर सिंह विजय शंकर झा एवं अन्य साथी