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रविवार, 10 फ़रवरी 2008

“कुत्ते से सावधान” या “कुत्तों से सावधान”

किसी नए व्यक्ति से मिलने जाते हैं तो पहले उस का पता हासिल करना होता है। फिर किसी साधन से वहाँ तक पहुँचना पड़ता है। स्थान नया हो तो दस जगहों पर पूछते हुए जब गन्तव्य पर पहुंचते हैं तो बड़ी तसल्ली होती है, कि पहुँच गए। पर वहां घर के मुख्य द्वार पर लगी तख्ती फिर होश उड़ा देती है। जिस पर लिखा होता है कुत्ते से सावधान" या कुत्तों से सावधान। अब आप बुलाने वाली घंटी को ढूंढते हैं, मिल जाने पर उसे दबाते हैं, कि कुत्ता या कुत्ते स्वागत गान कर देते हैं। फिर कुछ या कई मिनटों के बाद कोई आकर गेट खोलता है, आप का इंटरव्यू करता है कि आप घर में घुसाने लायक व्यक्ति हैं, कि नहीं ?

जब तक कोई बहुत बड़ी गरज न हो या फिर कोई अपने वाला ही न हो, तो ऐसे वक्त में खुद पर बड़ी कोफ्त होती है, कि पहले ही क्यों न पता कर लिया कि जहाँ जा रहे हो वह जगह कुत्ते वाली तो नहीं है ? और पता लग जाता तो शायद वहाँ तक पहुँचते ही नहीं।

आज हर व्यक्ति के पास बहुत कम समय है। दाल-रोटी का जुगाड़ ही सारा समय नष्ट कर देता है। ऐसे समय में हमें दूसरे लोगों के समय की कीमत पहचानना चाहिए। खास कर हिन्दी चिट्ठाकारों को जरूर पहचानना चाहिए।

मैं हिन्दी चिट्ठाकारी में नया जरूर हूँ। मगर अपने इस काम के प्रति संजीदा भी रहना चाहता हूँ। जैसे कहा जाता है कि जो रोज नहीं पढ़ता उसे पढ़ाने का अधिकार नहीं। इसी तरह मेरा सोचना है कि जो रोज कम से कम बीस चिट्ठे नहीं पढ़ता उसे चिट्ठा लिखने का भी कोई अधिकार नहीं।

अब आप चिट्ठे पढ़ेंगे तो टिप्पणी जरुर करेंगे। करना भी चाहिए। चिट्ठा लिखने का कोई तो आप का उद्देश्य रहा होगा। अनेक बार चिट्ठा लिखने का उद्देश्य केवल किसी चिट्ठे पर लिखे आलेख पर टिप्पणी करने से भी पूरा हो जाता है। इस तरह आप किसी विषय पर दोहराने वाला आलेख लिखने से बच जाते हैं और आप को एक नए बिन्दु पर चिट्ठा लिखने का अवसर मिल जाता है। जो चिट्ठाकार और पाठक दोनों के लिए ही उत्तम और समय को बचाने वाला है। इस कारण से सभी संजीदा चिट्ठाकारों को समय बचाने के मामले में सजग रहना चाहिए।

यह सारी बात यहाँ से उठी है कि अनेक नए-पुराने चिट्ठों पर जरुरी समझते हुए टिप्पणी करने पहुँचे, टिप्पणी टाइप भी कर दी, आगे बढ़े तो वर्ड वेरीफिकेशन ने रास्ता रोक दिया। वैसा ही लगा जैसे किसी से मिलने पहुँचे हों और दरवाजे पर तख्ती दिख गई हो कुत्ते से सावधानया कुत्तों से सावधान

अब मेरी समझ में यह नहीं आया कि हिन्दी चिट्ठाकारों को इस वर्ड वेरीफिकेशन की जरूरत क्या है ? कोई मशीन तो आप के चिट्ठे पर टिप्पणी करने आने वाली नहीं है, आयेंगे सिर्फ इंसान ही। और अगर मशीन भी आ कर कोई टिप्पणी कर रही हो तो उस से आप को नुकसान क्या है ? अधिक टिप्पणियाँ आप की रेटिंग को ही बढ़ाएगी।

टिप्पणीकर्ता कितना असहज महसूस करता है जब उस के सामने टिप्पणी टाइप करने के बाद यह वर्ड वेरीफिकेशन टपकता है। वह हिन्दी में टाइप कर रहा है। इस वर्ड वेरीफिकेशन के कारण उसे वापस अंग्रेजी में टोगल करना पड़ता है। कभी कभी शीघ्रता में कोई अक्षर समझ में न आए य़ा हिन्दी लिखते लिखते यकाय़क अंग्रेजी पर जाने के कारण अभ्यास से गलत अक्षर टाइप कर दे तो उसे दुबारा यह परीक्षा देनी पड़ती है। एक दुष्प्रभाव यह भी छूटता है कि चिट्ठाकार के बारे में यह समझ बनती है कि वह कभी दूसरों को पढ़ता और टिप्पणी नहीं करता है।

सभी हिन्दी चिट्ठाकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने अपने चिट्ठों से वर्ड वेरीफिकेशन की तख्ती हटा ही दें। मैं आप को बता दूँ कि कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठों पर टिप्पणियाँ नहीं आती थीं। मेरे व्यक्तिगत निवेदन के बाद से उन्हों ने वर्ड वेरीफिकेशन को हटाया और उन चिट्ठों को टिप्पणियां मिलने लगीं।