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रविवार, 4 मई 2014

भाजपा का घोषणापत्रः फासीवादी दस्तावेज

  • अनिल यादव

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जो अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है, वह भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए घातक ही नहीं, बल्कि उसके संवैधानिक मूल्यों के भी विपरीत है। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का दंभ भरने वाली भाजपा का घोषणापत्र भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाता नजर आता है। भाजपा द्वारा जारी किए गए घोषणा-पत्र को गंभीरता से देखें तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि विकास का झुनझुना बजाने वाले मोदी और उनके सिपहसलारों का उद्देश्य कुछ दूसरा ही है। घोषणा-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर ही ’एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का श्लोगन भाजपा की मानसिकता की तरफ इशारा करता नजर आता है। वस्तुतः जब भी हमारे मस्तिष्क में ’एक’ की प्रस्तुति होती है, त्यों ही हम दो के अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं। एक भारत कहने का अर्थ साफ है कि भाजपा का घोषणा-पत्र बनाने वाली समिति किसी ’दूसरे’ भारत के बारे में जानती है, अर्थात वह भारत को एक नही मानती है। भाजपा का ’एक’ भारत कैसा होगा? कहीं यह हिन्दू राष्ट्र की तरफ इशारा तो नही है? क्या भाजपा पुराने संघी अवधरणा की तरफ इशारा करती नजर नही आ रही है कि भारत के भीतर कई पाकिस्तान हैं।

मोदी ने अपने पूर्वोत्तर की एक रैली में कहा था कि जहां भी हिन्दुओं पर अत्याचार होगा, उसके लिए भारत सुरक्षित जगह होगी। वह भारत ही लौटकर आएंगे। अब 2014 के भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र ने इसे बिल्कुल साफ कर दिया है। भाजपा के घोषणा-पत्र में स्पष्ट लिखा है कि अपनी जमीन से उजाड़े गए हिन्दुओं के लिए भारत सदैव प्राकृतिक गृह रहेगा और यहां आश्रय लेने के लिए उनका स्वागत है। इससे साफ है कि भाजपा भारत को हिन्दू राष्ट्र के तौर पर ही देखती है।

एक अप्रैल 2014 को नेपाल में भाजपा के अनुषांगी संगठन विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल नें विराट नगर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि यदि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो नेपाल को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित कर दिया जाएगा। एक तरफ भारतीय संविधान जहां किसी भी देश के खिलाफ षडयंत्र न रचने और मैत्रीपूर्ण संबंधों की वकालत करता है, वहीं दूसरी तरफ सत्ता का ख्वाब सजा रही भाजपा और उससे जुड़े हुए नेताओं का विचार बेहद घातक है, जो सिर्फ भारत के लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि बल्कि पड़ोसी मुल्को के लोकतंत्र के लिए भी घातक है।

ऐतिहासिक तथ्य है कि शुरू से ही भाजपा और संघ परिवार के लिए नेपाल बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्र रहा है। सावरकर जैसे हिन्दूवादी दार्शनिक ने तो यहां तक घोषणा की थी कि भारत आजाद होगा तो उसे नेपाल में विलय कर दिया जाएगा। नेपाल नरेश को सावरकर ने विश्व हिन्दू सम्राट की उपाधि भी प्रदान की थी। जब नेपाल के लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्षरत थे तो 2006 में गोरखपुर में आयोजित हिन्दू महा सम्मेलन में ’राजनीति का हिन्दुत्व करण और हिन्दुओं का सैन्यकरण’ का नारा बुलंद किया गया था। इसी क्रम में 23 से 25 अप्रैल 2008 में देवीपाटन मंदिर बलरामपुर में विश्व हिंदू महासंघ की कार्यकारिणी की बैठक में साफ कहा गया था कि नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की बहाली होकर रहेगी, चाहे हमें हिंसा का सहारा ही क्यों न लेना पड़े। परन्तु, हिन्दुत्ववादियों को इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई।

भाजपा के 2009 के घोषणा-पत्र को देखा जाए तो इसमें साफ लिखा है कि यदि वो सत्ता में आएं तो नेपाल के प्रति नीति की समीक्षा करेंगे। आखिर यह इशारा क्या था? भाजपा का दुर्भाग्य था और नेपाली लोकतंत्र का सौभाग्य कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार पीएम इन वेटिंग ही रह गए। यदि हम भाजपा के 2014 के घोषणा-पत्र के प्रस्तावना को ध्यान से देखें तो साफ जाहिर हो जाता है कि भाजपा हिन्दुत्व और विदेश नीति को लेकर क्या सोचती है। भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में उल्लेख किया है कि कोई भी राष्ट्र अपने आप को, अपने इतिहास को, अपनी जड़ों को, अपनी शक्तियों और सफलता को ध्यान में रखे बिना अपने विदेश नीति को तय नहीं कर सकता है। वस्तुतः भाजपा अपने घिसे पिटे तर्कों के आधार पर भारत को प्राचीन में एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखती है। वह अपनी जड़ों को नेपाल की हिन्दू राजशाही से भी जोड़कर देखना चाहती है।

नेपाल से जुड़े पूर्वाचल में हिन्दुत्व के पैरोकार योगी आदित्यनाथ ने तो भारत के हिन्दू राष्ट्र होने का खाका भी तैयार कर लिया है। योगी आदित्यनाथ के लोग पूर्वांचल में खुले मंचों से मुसलमानों से उनके वोट देने के वैधानिक अधिकार को छीनने की बात करते नजर आते है। आदित्यनाथ के लोग न सिर्फ भारत के आंतरिक संप्रभुता के विरुद्ध हैं, बल्कि नेपाल जैसे संप्रभु राष्ट्र की संप्रभुता के लिए भी घातक हैं। ज्ञातव्य हो कि मालेगांव बम विस्फोट के बाद एटीएस चार्जशीट में गोडसे की बेटी और सावरकर की बहू हिमानी सावरकर नें स्वीकार किया है कि भारत में सैन्य विद्रोह के लिए नेपाल से मदद ली जाएगी और ’बाहर’ से ही भारत की सरकार को चलाया जाएगा। इसके साथ ही साथ नेपाल में भी कई आतंकवादी घटनाओं में योगी आदित्यनाथ का नाम भी आया है।

भारत पर अध्ययन के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले पाॅल ब्राश नामक विद्वान ने ’द पाॅलिटिक्स आॅफ इंडिया सिंस इन्डिपेंन्डेन्स’ में लिखा है कि हमें यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय समाज और राजनीति बहुत सारे उन पूर्व- फासिस्ट समय के हिंसक लक्षणों को प्रदशित कर रही है, जिन्होंने अनगिनत शहरों में स्थानीय रूप से अपने ’क्रिस्टलनाख्त’ (हिटलर के समय नाजी ठिकाने, जो यहूदियों पर हमला करने के लिए बनाए गए थे) बना लिए हैं। भाजपा ने ऐसे असंवैधानिक मुद्दों को अपने घोषणा-पत्र में शामिल करके सत्ता में आना चाहती है। ताकि जब वह सत्ता में आए तो उसके पास यह तर्क हो कि भारत की जनता ने उसके घोषणा-पत्र को स्वीकार किया है।

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

निगम चुनाव के मतदान के बाद का दिन

राजस्थान की कुछ स्वायत्त संस्थाओं के लिए मतदान कल संपन्न हो गए। 26 नवम्बर को मतगणना होगी और पता लग जाएगा कि मतदाताओं ने क्या लिखा है। इस चुनाव में मतदाताओं के पास विकल्प नहीं थे। वही काँग्रेस और भाजपा द्वारा मनोनीत और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार। कोटा नगर निगम के लिए भी मतदान हुआ। लोगों का नगर की गंदगी, सड़कों, रोडलाइट्स, निर्माण आदि से रोज का लेना देना है। उन की वार्ड पार्षद से इतनी सी आकांक्षा रहती है कि मुहल्लों की सफाई नियमित होती रहे, रोड लाइट्स जलती रहें, सड़कें सपाट रहें, अतिक्रमण न हों। लेकिन उन की ये आकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं होतीं। हो जाएँ तो अगले चुनाव  में उम्मीदवारों के पास कहने को क्या शेष रहे?

पिछली तीन टर्म से कोटा नगर निगम में भाजपा का बोर्ड रहा। नगर की सफाई, रोशनी, अतिक्रमण आदि की स्थिति वैसी ही नहीं है जैसे आज से पन्द्रह वर्ष पहले थी। हर टर्म में बद से बदतर होती गई है। अधिकांश पार्षदों ने अपने रिश्तेदारों के नाम ठेके ले कर अपने बैंक बैलेंस बढ़ाए हैं। उन्हें सफाई के लिए मिलने वाले रोज मजदूरी के मजदूरों की फर्जी हाजरी भर कर ठेकेदार से कमीशन खाने के कीर्तिमान बनाए हैं। नगर वैसे का वैसा है।

मेरे घर के सामने एक पार्क है। इस की व्यवस्था नगर निगम के पास है। जब भी इस की सफाई और घास कटाई की आवश्यकता होती है पार्षद के पास जाना होता है। वह कभी मजदूर लगा देता है कभी हटा देता है। जब वह नहीं सुनता है तो निगम के अफसरों और विधायक को कहना पड़ता है। उस का असर होता है तत्काल कोई न कोई व्यवस्था हो जाती है। लेकिन चार दिन बाद वही अंधेरी रात।

निगम चुनाव के बीस दिन पहले बिना कुछ कहे मजदूर आए साथ आया पुराना पार्षद। पार्क की घास की छंटाई और सफाई कर दी। घास को पानी दिया। रोज सार संभाल होने लगी। नालियाँ सड़कें भी साफ हुई। कचरा भी समय से उठने लगा। लोग प्रसन्न हुए कि चुनाव के बहाने कुछ तो हुआ। कुछ लोगों ने इस अवसर का व्यक्तिगत लाभ भी उठाया। अपने घरों के बागीचों को भी साफ कराया। कुछ ने अपने गमलों में मिट्टी भरवा कर नए पौधे लगवा लिए।

ज मतदान के बाद का पहला दिन है। पार्क से काम करने वाला माली गायब है। आज सड़क बुहारने वाले भी नहीं आए हैं। कचरा परसों उठा था, आज उठने का नंबर था लेकिन अभी तक कोई नहीं आया है, जानते हैं आएगा भी नहीं। आएगा तो तब जब कचरा सड़क रुद्ध करने लगेगा और कोई शिकायत करेगा। मैं सोचता हूँ कि कहीं पार्षद मिल जाए तो उसे कहूँगा। पर उस से भी क्या लाभ मुझे पता है उस का जवाब होगा कि अब तो 26 तारीख के बाद नए पार्षद से बात करना।

रविवार, 25 मई 2008

गुर्जर-2............यह आँदोलन है या दावानल ?

कोटा के आज के अखबारों में गुर्जर आंदोलन छाया हुआ है।

अखबारों ने जो शीर्षक लगाए हैं, उन्हें देखें.....................

सिकन्दरा में कहर - हालात बेकाबू, 23 और मरे, दो दिन में 39 लोग मारे गए, 100 से अधिक घायल - जवानों ने की एसपी व एसडीएम की पिटाई - हिंसक आंदोलन बर्दाश्त नहीं...वसुन्धरा - तीन कलेक्टर दो एसपी बदले - मौत का बयाना - कोटा में आज दूध की सप्लाई बंद, हाइवे पर जाम लगाएँगे - रेल यातायात ठप, बसें भी नहीं चलीं - टिकट विंडो भी रही बन्द - कोटा-दिल्ली-आगरा के बीच रेल सेवाएँ ठप,यात्रियों ने आरक्षण रद्द कराए, परेशानी उठानी पड़ी, रेल प्रशासन को करोड़ों का नुकसान, कई परीक्षाएँ स्थगित - लाखों के टिकट रद्द - श्रद्धांजली देने के खातिर गूजर नहीं बाँटेंगे दूध - ट्रेनें रद्द होने से कई परीक्षाएँ रद्द - एम.एड. परीक्षा टली - प्री बी.एड परीक्षा बाद में होगी - रेलवे ट्रेक की भी क्षति - श्रद्धांजलि देने की खातिर गुर्जर नहीं बाँटेंगे दूध - गुर्जर आंन्दोलन की आँच हाड़ौती में भी फैली - नैनवाँ पुलिस पर हमला - चार पुलिसकर्मी घायल- गर्जरों ने पहाड़ियों पर जमाया मोर्चा - राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर बाणगंगा नदी के पास जाम - कोटा शिवपुरी ग्वालियर सड़क संपर्क दो घंटे बन्द रहा - बून्दी बारां व झालावाड़ में जाम - स्टेट हाईवे 34 पर आवागमन बन्द - रावतभाटा रोड़ पर देर रात जाम - बून्दी जैतपुर में जाम पुलिसकर्मी पिटे - झालावाड़ बसें बन्द - 17 गुर्जर बन्दियों ने दी अनशन की धमकी - सेना सतर्क, बीएसएफ पहुँची, आरफीएसएफ की एक कम्पनी बयाना जाएगी - हर थाने को दो गाड़ियाँ - रात को दबिश - हाड़ौती के कई कस्बों में आज बन्द - राजस्थान विश्व विद्यालय की परीक्षाएं स्थगित - पटरी पर कुछ भी नहीं - ... प्रदेश में अशांति की अंतहीन लपटें - भरतपुर बयाना के हालात=पटरियाँ तोड़ी फिश प्लेटें उखाड़ी - दूसरे दिन बयाना में पहुँची सेना, शव लेकर रेल्वे ट्रेक पर बैठे रहे बैसला - डीजीपी ने हेलीकॉप्टर से लिया जायजा - चिट्ठी आने तक नहीं हटेंगे बैसला- गुर्जर आन्दोलन = गुस्सा+ जोश= पाँच किलोमीटर - यह तो धर्मयुद्ध है - जोर शोर से पहुँची महिलाएँ - चाहे चारों भाई हो जाएँ कुर्बान - मेवाड़ में सड़कों पर उतरे गुर्जर - राजसमन्द में हाईवे जाम - हजारों गुर्जरों का बयाना कूच - छिन गया सुख चैन- ठहरी साँसें - अटकी राहें - सहमी निगाहें - हैलो भाई तुम ठीक तो हो - कई रास्ते बंद जयपुर रोड़ पर खोदी सड़क - 8 कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त - किशनगढ़ भीलवाड़ा बन्द सफल - दो गुर्जर नेता गिरफ्तार - करौली -टोक में सड़कें सुनसान - चित्तौड़गढ़ अजमेर अलवर और करौली आज बन्द - सहमे रहे लोग आशंकाओं में बीता दिन - शकावाटी में भी बिफरे गुर्जर - नीम का थाना में एक बस को आग के हवाले किया - चार बसों में तोड़ फोड़ - बस चालक घायल कई जगह रास्ता जाम- पाटन में सवारियों से भरी बस को आग लगाने का प्रयास - सीकर झुन्झुनु के गुढ़ागौड़ जी व खेतड़ी में गुर्जरों की सभाएँ और सीएम का पुतला फूँका ............

..........................................आपने पढ़े खबरों के हेडिंग ये एक दिन के एक ही अखबार से हैं। दूसरे अखबार से शामिल नहीं किये गए हैं। अब आप अंदाज लगाएँ कि यह आँदोलन है या दावानल ?

इस दावानल का स्रोत कहाँ है? वोटों के लिए और सिर्फ वोटों के लिए की जा रही भारतीय राजनीति में ?  पूरी जाति,  वह भी पशु चराने और उन के दूध से आजीविका चलाने वाली जाति से आप क्या अपेक्षा रख सकते हैं। यह पीछे रह गए हैं तो उस में दोष किस का है? इन के साथ के मीणा अनुसूचित जाति में शामिल हो कर बहुत आगे बढ़ गए हैं। गुर्जरों को यह बर्दाश्त नहीं। उन्हें राजनीतिक हल देना पड़ेगा। पर मीणा वोट अधिक हैं। उन्हें नाराज कैसे करें?

  

पिछड़ेपन को दूर करने की नाकाम दवा आरक्षण के जानलेवा साइड इफेक्टस हैं ये।

ये आग भड़क गई है। नहीं बुझेगी आरक्षण से। पीछे कतार में अनेक जातियाँ खड़ी हैं।

आरक्षण को समाप्ति की ओर ले जाना होगा। पिछड़ेपन को दूर करने और समानता स्थापित करने का नया रास्ता तलाशना पड़ेगा। मगर कौन तलाशे?

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

किताबों में बन्द। कानून का राज?

और क्या हाल हैं? कोई भी मिलते ही पूछता है।

इस सवाल के अनेक जवाब हो सकते हैं। मगर सब के सब पिटे हुए, घिसे हुए। इन जवाबों में ही एक घिसा-पिटा जवाब यह भी है कि '' बस आप के राज में जी रहे हैं।

यह आप का, उन का, मेरा, काँग्रेस, बीजेपी, वाम-मोर्चा, माया, मुलायम, ममता, जया, लालू या और किसी का राज ही खतरे की घंटी है। हमारे देश में सामान्यतया इन में से ही किसी का राज चलता रहता है। संविधान इसे जनता के लिए, जनता के द्वारा जनता पर राज कहता है। मगर इस बात को कोई मानता नहीं। मानता इसलिए नहीं कि ऐसा कोई राज इस देश में कभी आया ही नहीं। तो फिर राज किसका है? जनता जानती है, और कहती भी है। पर बात ये नहीं है। बात यह है कि राज किस का? और कैसा होना चाहिए?

-वास्तव में होना चाहिए, कानून का राज।

-यह कैसा होता है? कैसे होगा?

-कानून का राज, मतलब उन कानूनों का राज, जो किताबों में दर्ज हैं। जिन्हें हमारी संसद और विधानसभाओं ने बनाया है और जिन्हें वह वक्त-जरुरत बनाती रहती है, और बनाती रहेगी। यानी देश के राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, दूसरे मंत्री, सारे नौकरशाह, सारे सरकारी - गैर सरकारी कर्मचारी, सारे पूंजीपती, जमींदार, दुकानदार, व्यापारी, सारी सेना, पुलिस, सारे साहित्यकार, कलाकार, सारे किसान मजदूर जिस कानून को मानते हों और उसी के अनुसार चलते हों।

अब आप सोच रहे होंगे कि 'ऐसा भी कोई होता है क्या? कानून को न मानने वाले भी तो होते हैं। अगर सभी कानून को मानने वाले हों तो फिर राज की जरूरत ही क्या रह जाएगी। पुलिस, वकील और कचहरी की जरूरत भी नहीं होगी। सब लोग अपने आप चलते रहेंगे, समाज भी चलता रहेगा। नहीं, नहीं ऐसा तो हो ही नहीं सकता। और हो जाए तो ये पुलिस वाले, वकील, जज, ये अदालतों के बाबू-मुंशी टाइपिस्ट, ये सब कहाँ जाऐंगे? क्या करेंगे?

आप ने सही सोचा। वैसे कुछ लोग कहते हैं - राज नाम की चीज पहले नहीं हुआ करती थी। यह बाद में पैदा हुई। अब आचार्य बृहस्पति कह गए हैं कि जो पैदा होता है वह मरेगा। इसॉलिए मान लेते हैं कि राज भी कभी पैदा हुआ था तो मरेगा भी। यानी ऐसा भी वक्त आएगा जब राज नहीं रहेगा। इसलिए भी माने लेते हैं कि ये बात है मजेदार। वाकई, मजेदार। क्या बात है? सचमुच ऐसा भी वक्त आएगा जब राज ही नहीं रहेगा। वाकई मजेदार है।

लो आप मजा लेने में लग गए। मैं बात कर रहा था कानून के राज की और आप बे-राज का मजा लेने लगे। भाई मैं एक सीरियस बात करना चाहता हूँ। इसे मजाक में मत उड़ाओ।

-मजाक में न लें, तो करें क्या? संसद, विधानसभाएं कानून बनाती हैं, इसलिए कि देश मे, समाज में सब कुछ ठीक चले। पर लोग हैं कि कहाँ मानते हैं। कानून रख देते हैं ताक पर, अपने हिसाब से चलते रहते हैं।

-कानून को मनवाने का कानून भी तो साथ में बनाते हैं।

-बनाते हैं तो क्या? सिर्फ दिखाने के लिए। सजा तो तब हो जब पुलिस चालान करे। पुलिस चालान करती कहाँ है?

-करती क्यों नहीं? करती तो है?

-सिर्फ दिखाने के लिए। पब्लिक को बताने के लिए। पुलिस को चालान करने के लिए हेड कांस्टेबल या उस से ऊँचे अफसर चाहिए। वो हैं नहीं।

-कहाँ गए?

-थोड़े से हैं। उन्हें मंत्री जी की सुरक्षा, अफसरों की सुरक्षा में लगा दिया। बचे जो चुनाव कराने में लगे हैं। बाकी दंगे कराने, दंगे मिटाने और घर से भाग कर शादी करने वाली लड़कियों को ढूंढ़ने में लगे है।

-फिर कोई रपट दर्ज कराए तो उस पर तो कार्रवाई करते होंगे, .... मेरा मतलब करनी पड़ती होगी।

-करते हैं। समझाते हैं, रपट दर्ज करने वालों को। दुनियांदारी समझाते हैं। बताते हैं, क्या क्या करना होगा? फिर अदालत जाना होगा। वकील, मुन्शी, बाबू, रीड़र, जज सब से निपटना पड़ेगा। समझा कर समझौता कराते हैं।

-ऐसा? पर क्यों कराते हैं जी समझौता।

-बस अदालतें कम हैं जी, बहुत कम। पुलिस भी कम है।

-ऐसा? तो फिर क्या होगा जी?

-बस। ऐसे ही चलता रहेगा। काँग्रेस, बीजेपी, वाम-मोर्चा, माया, मुलायम, ममता, जया, लालू या और किसी का राज। संसद, विधानसभाऐं कानून बनाती रहेंगी। कानून रहेगा किताबों में कैद और राज चलता रहेगा।

और वो कानून का राज?

किताबों में बन्द।

ऐं............, किताबों में बन्द।