@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बच्चे
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मंगलवार, 13 मार्च 2018

वे सब जल्दी ही साथ साथ लड़ेंगे

ह दिनों चलते रहने से पैरों में पड़े छाले लिए जब हजारों हजार किसान मुम्बई शहर पहुँचे तो वहाँ की जनता ने उन का स्वागत किया। किसी ने फूल बरसाए, किसी ने उन्हें पीने का पानी पहुँचाया, किसी ने खाना खिला कर इन किसानों से अपना रिश्ता बनाना चाहा।

आखिर क्या था उन किसानों के पास? वे तो अपने फटे पुराने वस्त्रों के साथ चल पड़े थे।कईयों के जूते चप्पलों ने भी रास्ते में साथ छोड़ दिया था। किसी ने उन्हें पहनाया तो उन्हों ने उसे पहन लिया, कोई उन्हें दवा पट्टी करने लगा। किसानों ने भी इस स्वागत का आल्हाद के साथ उत्तर दिया।

शहर के मेहनतकश गरीब जब गाँवों से आते किसानों में अपने रिश्ते तलाश रहे थे, नए रिश्ते बना रहे थे तब उन के जेहन में कहीं न कहीं वह गाँव भी था जहाँ उन के पूर्वज बरसों रहे। उन में से कई अब भी गाँव में हैं। वे एक दूसरे को पहचान रहे थे, जैसे ही आँखों में पहचान नजर आती वे गले मिलते थे।

ये पहचान वर्गों की पहचान थी। वे पहचान रहे थे कि शहर में आ जाने से खून पूरी तरह से शहरी नहीं हो जाता है उन में बहुत सा गाँव वाला खून भी बचा रहता है। गाँव वाले भी देख रहे थे कि इन शहरियों में तो अब भी आधे से कहीं ज्यादा खून गाँव का है। भले ही शहरों में आ कर वे नौकरी करने लगे हों लेकिन उन का मूल तो वही गाँव है। शहर वाले तो ग्रामीणों को बिलकुल अपने बच्चों जैसे लगे।

इन दृश्यों को देख कर जनता के खेतों में अपनी राजनीति की फसल उगाने में लगे लोग भी, तिरंगे, भगवे, पीले, नीले निशान लिए किसानों का स्वागत करने महानगर के प्रवेश द्वार से भी आगे तक आ गए थे। सब ने किसानों को कहा कि वे सरकार से लड़ाई में उन के साथ हैं। इतना देखने पर सरकार को भी शर्म आई। उसने अपना एक दूत भेजा और कहा कि वे किसानों की मांगों पर गंभीर हैं और उन से बात करेंगे।
बच्चों की पढ़ाई और आराम में खलल न हो, नगर का यातायात न रुके इस के लिए किसान बिना रुके चलते ही रहे और रात को ही मुम्बई पहुंँच गए। अगले दिन सरकार ने बातचीत की, किसानों की अधिकांश मांगें मानने की घोषणा कर दी गयी। यहाँ तक कि सरकार ने किसानों को घरों तक वापस पहुँचाने के लिए दो स्पेशल ट्रेन भी लगा दी। किसानों का महानगर में बने रहने को सरकार ने बड़े खतरे के रूप में देखा।

किसान सरकार की बात मान गए, पर न जाने क्यों फिर भी उन्हें विश्नास है कि सरकार अपनी बातों से मुकर जाएगी और कोई न कोई खेल दिखा देगी। वे बस सरकार की हरकत देखेंगे। खुद को और मजबूत बनाएंगे, अपने मित्र बढ़ाएंगे। वे जानते हैं कि उन्हें शहर में उन के खोए हुए बच्चे मिल गए हैं। वे भी शहर में रहने वाली इस सरकार पर निगाह रखेंगे। जैसे ही कुछ गड़बड़ दीखेगी उन्हें बताएंगे। ये शहरी बच्चे भी सोच रहे हैं कि वे भी अब किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाएंगे, वे भी एका बना कर मजबूत बनेंगे। वे सब जल्दी ही साथ साथ लड़ेगे।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

माता-पिता बच्चों को यातायात के नियम सिखाएँ!!!

राजस्थान में आज विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्र संघों के चुनाव थे। मेरे नगर कोटा में भी दो विश्वविद्यालयों और तीन पाँच महाविद्यालयों में चुनाव थे। आठ से एक बजे तक मतदान हुआ और फिर मतगणना आरंभ हो गई जो परिणाम आने तक चलेगी। मतदान के कारण सभी महाविद्यालय जो कि नगर के मुख्य मार्गों पर स्थित हैं मतदाता छात्र छात्राओं की भारी भीड़ थी। प्रत्याशियों के समर्थकों में मतदान को लेकर उत्तेजना होना स्वाभाविक है, इस की आशंका तब और अधिक होती है जब कि सभी मतदाताओं की रगों में गर्म ताजा लहू दौड़ता हो। इन सारी संभावनाओं के कारण जिन मार्गों पर महाविद्यालय मौजूद हैं उन पर यातायात रोक कर वैकल्पिक मार्गों की ओर मोड़ा जा रहा था। कोटा में नगर से स्टेशन  जाने के दो मुख्य मार्ग हैं इन में से एक पर कोटा के सर्वाधिक छात्र छात्राओं की संख्या वाले जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय और राजकीय महाविद्यालय कोटा पड़ते हैं। यह मार्ग बंद होने से सारा यातायात एक ही मार्ग पर आ गया। जिस का परिणाम यह हुआ कि मार्ग पर जाम लग गया। 
प ऊपर जो मानचित्र देख रहे हैं इस में नीचे दक्षिण पश्चिमी कोने पर एक काला चौकोर बिंदु आप देख रहे हैं वहाँ मेरा वर्तमान निवास है। जो लाल रेखा है वह मेरा नित्य अदालत जाने और वापस लौटने का मार्ग है। इस में बीच में जो समानांतर हरी रेखा देख रहे हैं उस पर दोनों महाविद्यालय हैं और इस मार्ग पर आज यातायात बंद कर दिया गया था। नतीजे में मुझे नीले रंग के वैकल्पिक मार्ग से जाना पड़ा जिस पर पीले रंग के स्थान पर लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा जाम था, जिसे पार करने में मुझे पौन घंटा अधिक लगा। वापसी में मैं ने एक अन्य मार्ग चुना जो  इस मानचित्र में नही दिखाया गया है। यह वापसी का मार्ग साढ़े छह किलोमीटर के नियमित मार्ग के स्थान पर साढ़े ग्यारह किलोमीटर का पड़ा पर वहाँ किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आई। कोटा में इस तरह के जाम की स्थिति कभी कभार ही होती है। हाँ चंबल पुल अवश्य अक्सर जाम होता रहता है। उस के लिए एक समानांतर पुल का निर्माण जारी है। उच्चमार्ग के लिए एक अन्य पुल बन रहा है जो निर्माण के दौरान दुर्घटना के कारण अभी बंद सा पड़ा है। कोटा में नगर में यातायात के मार्ग कम हैं और उन के वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध नहीं हैं। उन के बारे में जल्दी ही कोई स्थाई उपचार राज्य सरकार को तलाशना होगा। क्यों कि नगर की आबादी तो निरंतर  बढ़ ही रही है। मैं भी सोच रहा हूँ कि यदि मैं वर्तमान आवास के स्थान पर न्यायालय परिसर के नजदीक ही कोई नया आवास निर्माण कर लूँ तो रोज इस व्यस्त मार्ग से निकलने की फज़ीहत से बच सकूंगा। यातायात के इन अवरोधों के होने पर तुरंत ध्यान महानगरों की ओर जाता है कि कैसे वहाँ लोग रोज लगने वाले यातायात अवरोधों से निपटते होंगे?
वापसी में जब घर मात्र आधा किलोमीटर रह गया था तो एक दस-ग्यारह वर्ष के बालक साइकिल सवार ने सड़क पार की। आधी सड़क वह पार कर चुका था। मैं ने नियमानुसार उस के पीछे से अपनी कार निकालनी चाही। लेकिन तभी उस ने साइकिल वापस मोड़ ली। मेरी कार की गति बहुत धीमी थी। मैं ने अपनी कार को वहीं रोक दिया। बालक ने वापस साइकिल मोड़ कर सड़क पार कर ली तभी मैं आगे बढ़ा। इस समय बालक गलती पर था। सड़क पार करने के लिए एक भी कदम बढ़ा देने पर किसी भी ओर से कोई भी वाहन आने पर वापस लौटने के स्थान पर तेजी से सड़क पार करनी चाहिए। शायद इस नियम को न तो उस के परिजनों ने उसे सिखाया था। विद्यालयो में तो शायद इस नियम को सिखाना उन के पाठ्यक्रम में नहीं रहा होगा। होगा तो उसे बेकार समझ कर बताया नहीं गया होगा। मैं समझता हूँ कि सभी बालकों को जब वे अकेले सड़क पर जाने लायक हो जाते हैं तभी इस नियम और अन्य यातायात के नियम सिखाने की जिम्मेदारी मात-पिता को निभानी चाहिए।