@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: प्रलय
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शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

सांख्य का सार

हम सांख्य को संक्षेप में इस तरह समझ सकते हैं-

1.  प्रलय की अवस्था में सारा पदार्थ, समस्त तत्व एक अपूर्वता (Singularity) में निहीत होता है।  इसे साँख्य प्रधान अथवा मूल प्रकृति कहता है।

2.  मूल प्रकृति के तीन आंतरिक अवयव सत्व, रजस् और तमस् होते हैं जिन्हें गुण कहा गया है। प्रलय की अवस्था में साम्य होने से मूल प्रकृति अचेतन प्रतीत होती है। लेकिन ये आंतरिक अवयव लगातार क्रियाशील रहते हैं केवल साम्य बनाए रखते हैं। तीनों अवयवों को सम्मिलित रूप से त्रिगुण कहा गया है और प्रकृति को त्रिगुण मय।

3.   त्रिगुणों द्वारा स्थापित साम्य के भंग होने से जगत का विकास आरंभ होता है।

4.   प्रकृति से अन्य 24 तत्वों की उत्पत्ति होती है। ये तत्व भी प्रकृति की भाँति त्रिगुणमय होते हैं।  किन्तु उन में किसी एक गुण की प्रधानता होती है, जिस से उन का चरित्र और कार्य निर्धारित होता है।

5.   प्रथमतः सत्व की प्रधानता वाले तत्व महत् की उत्पति होती है, जिसे बुद्धि भी कहा गया है। यह साँख्य का दूसरा तत्व है। यह प्रकृति से उत्पन्न होने से भौतिक है, लेकिन उस का रूप मानसिक और बौद्धिक है

6.   महत् से रजस् प्रधानता वाले तीसरे तत्व अर्थात अहंकार की उत्पत्ति हुई, जो स्वः की अनुभूति को प्रकट करता है। यह साँख्य का तीसरा तत्व है।

7.   अहंकार से तत्वों के दो समूह उत्पन्न होते हैं। सात्विक अहंकार से ग्यारह तत्वों का प्रथम समूह जिस में एक मनस या मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं।

8.   चौथा तत्व मन, बुद्धि से पृथक है।  यह ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के बीच सामंजस्य रखते हुए बाह्य जगत से संकेत और सूचनाएं प्राप्त करता है, उन्हें निश्चित धारणाओं में परिवर्तित करता है और अनुभवकर्ता अहंकार को सूचित करता है।  साँख्य का यह मन अहंकार का उत्पाद है और खुद भी उत्पादित करने की क्षमता रखता है। लेकिन बुद्धि के बारे में यह कथन उचित नहीं।  साँख्य तत्व बुद्धि,  स्वयं तो प्रकृति का उत्पाद है, लेकिन वह उत्पादन की क्षमता से हीन है।

9.   सात्विक अहंकार से उत्पन्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ  1.श्रोत्र, 2.त्वक, 3.चक्षु, 4.रसन और 5.प्राण  हैं।

10. सात्विक अहंकार से ही उत्पन्न पाँच कर्मेन्द्रियाँ 1.वाक, 2.पाणि, 3.पाद, 4.पायु और 5.उपस्थ हैं। 

11. तामस अहंकार से उत्पन्न पाँच तन्मात्राएँ अथवा सूक्ष्मभूत 1.शब्द, 2.स्पर्श, 3.रूप, 4.रस और 5.गंध हैं। 

12.  इन पाँच तन्मात्राओं या सूक्ष्मभूतों से उत्पन्न पाँच स्थूलभूत या  महाभूत 1.आकाश 2.वायु 3.अग्नि 4.जल और 5.पृथ्वी हैं।
मूल साँख्य के ये 24 तत्व हैं।

13.  इस तरह प्रकृति से जगत का विकास होता है। विकास का अंतिम चरण पुनः प्रलय है। जब सभी 23 तत्वों में निहित त्रिगुण पुनः साम्यावस्था में पहुँच जाते हैं। पुनः प्रधान या मूल प्रकृति स्थापित हो जाती है। इस मूल प्रकृति में त्रिगुणों का साम्य भंग होने से पुनः एक नवीन जगत का विकास प्रारंभ हो जाता है।

14.  परवर्ती साँख्य वेदांत के प्रभाव से 25वें तत्व पुरुष को मानता है। जो वेदान्त की आत्मा के समान है। लेकिन यह वेदांत के ब्रह्म से भिन्न है। पुरुष अनेक हैं। प्रत्येक शरीर के लिए एक भिन्न पुरुष है। इस पुरुष की मुक्ति के लिए ही प्रकृति विकास करती है। पुरुष का कोई कार्य नहीं है। वह केवल दृष्टा है जो प्रकृति के विकास को देखता रहता है। प्रकृति उसे दिखाने के लिए ही विकास करती है।

15.  परवर्ती साँख्य भी किसी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता। उस का मानना है कि ईश्वर को सिद्ध नहीं किया जा सकता, उस का कोई अस्तित्व नहीं है।

16. योग प्रणाली भी साँख्य का ही विस्तार है जो ईश्वर या ब्रह्म को 26 वाँ तत्व मानती है। उस का मानना है कि ब्रह्म या ईश्वर से मूल प्रकृति और पुरुष उत्पन्न होते हैं और फिर पुरुष की मुक्ति के लिए प्रकृति उसी भांति विकास करती है, जिस भांति दर्शकों के मनोरंजन के लिए एक नर्तकी नृत्य करती है।

17.  प्रकृति-परिणामवाद साँख्य का मूल सिद्धान्त है। उस का कथन है कि प्रकृति सत्य है, और उस का परिणाम यह जगत भी सत्य है।

18.  वेदांत का सिद्धांत ब्रह्म-विवर्तवाद है जिस का कथन यह है कि एक ब्रह्म ही सत्य है और यह जगत मिथ्या है, और मूल कारण ब्रह्म की विकृति है।
(समाप्त)


गुरुवार, 6 अगस्त 2009

जगत का विकास, प्रलय और पुनः जगत का विकास

साँख्य कारिका के पुरुष केवल अनुमान हैं। ईश्वर कृष्ण कहते हैं कि ये सब प्रकृति के तत्व हैं वे सब उपभोग के लिए हैं इस कारण भोक्ता जरूरी है। इसी से पुरुषों की सिद्धि होती है। इस से कमजोर प्रमाण पुरुषों की सिद्धि के लिए दिया जाना संभव नहीं है।  लेकिन साँख्य की जगत व्याख्या की जो विधि है उस में पुरुष किसी भी तरह से प्रासंगिक नहीं होने से कोई मजबूत साक्ष्य मिलना संभव नहीं था। यह साक्ष्य भी चेतन पुरुष को सिद्ध नहीं कर सका और साँख्य प्रणाली के अनुसार उसे एक से अनेक होना पड़ा, कारिकाकार को कहना पड़ा कि प्रत्येक शरीर के लिए एक अलग पुरुष है और बहुत से पुरुष हैं।  इन प्रमाणों से प्रतीत होता है कि पुरुष की उत्पत्ति शरीर से है। कुल मिला कर पुरुष प्रत्येक शरीर का गुण बन कर रह जाता है। वह शरीर के साथ अस्तित्व में आता है और मृत्यु के साथ ही उस की मुक्ति हो जाती है।  हम कारिका और उस के बाद के साँख्य ग्रन्थों में पुरुष की उपस्थिति पाते हैं। लेकिन सभी तरह के तर्क देने के उपरांत भी साँख्य पद्धति में पुरुष एक आयातित तत्व ही बना रहता है।
मेरा अपना मानना है कि साँख्य पद्धति ने उस काल में अपनी विवेचना से जगत की जो व्याख्या की थी वह सर्वाधिक तर्कपूर्ण थी,  उसे झुठलाया जाना संभव ही नहीं था।  इस कारण से प्रच्छन्न वेदांतियों ने सांख्य में पुरुष की अवधारणा को प्रवेश दिया और उसे एक भाववादी दर्शन घोषित करने के अपने उद्देश्य की पूर्ति की। कुछ भी हो, इस से साँख्य पद्धति का हित ही हुआ।  यदि यह भाववादी षडदर्शनों में सम्मिलित न होता तो इस की जानकारी और भी न्यून रह जाती।  फिर इस की केवल आलोचना ही देखने को मिलती।  प्रधान (मूल प्रकृति) को अव्यक्त कहा गया है। इस अव्यक्त के साथ एक और अव्यक्त माना जाना संभव नहीं है।  इस मूल प्रकृति से ही जगत का विकास होना तार्किक तरीके से समझाया गया है।  विकास के पूर्व की अवस्था को प्रलय की अवस्था कहा गया है जब केवल अव्यक्त प्रकृति होती है और उस के तीनों अवयवों के साम्य के कारण उस में आंतरिक गति होने पर भी वह अचेतन प्रतीत होती है।  सांख्य इसी तरह यह भी मानता है कि जगत का विकास तो होता ही है,  लेकिन उस का संकुचन भी होता है और यह जगत पुनः एक बार वापस प्रलय की अवस्था में आ जाता है और त्रिगुण साम्य की अवस्था हो जाने से संपूर्ण जगत पुनः प्रधान में परिवर्तित हो जाता है। 
साँख्य की यह व्यवस्था केवल बिग बैंग जैसी नहीं है  जिस में बिग बैंग के उपरांत यह जगत लगातार विस्तार पा रहा है और उस का सम्पूर्ण पदार्थ एक दूसरे से दूर भाग रहा है।  आज वैज्ञानिकों ने श्याम विवरों (ब्लेक होल) की खोज कर ली है। इन श्याम विवरों में पदार्थ की गति इस सिद्धांत के विपरीत है। अर्थात इन की सीमा में कोई भी पदार्थ इन से दूर नहीं जा सकता यहाँ तक कि प्रकाश की एक किरण तक भी नहीं। हमारी नीहारिका के केंद्र में भी एक ऐसे ही ब्लेक होल की उपस्थिति देखी गई है। श्याम विवर जगत के संकुचन के सिद्धांत की पुष्टि करते है। साँख्य के इस सिद्धांत की  कि जगत पुनः प्रधान में परिवर्तित हो जाता है विज्ञान की नयी खोजें पुष्टि कर रही हैं।  प्रधान की अचेतन अवस्था को  ही साँख्य  में प्रलय की संज्ञा दी गई है और प्रधान से पुनः नए जगत के विकास की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।