@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पुस्तक मेला
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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

इंतजार खत्म !! किताब हाज़िर है ........................ "शब्दों का सफ़र"

जिस किताब का अर्से से मुझे इंतजार था,  वह कल भोपाल पुस्तक मेले में पहुँच रही है।  
ज जब भाई अजित वडनेरकर ने बताया कि " शब्दों का सफर" पुस्तक श्रृंखला की पहली पुस्तक भोपाल में आयोजित राजकमल प्रकाशन के पुस्तक मेले में पहुँच रही है तो अपनी प्रसन्नता का वारापार नहीं रहा। अजित के इसी नाम के हिन्दी ब्लाग का कब से उपयोग करता आ रहा हूँ। लेकिन मन नहीं भरता। इच्छा होती है कि यह सब किताब के रूप में अपने कार्यालय की सब से नजदीक की शेल्फ पर हो। अजित भाई के श्रम ने यह दिन दिखाया। 'शब्दों का सफर' अब पुस्तक रुप में आ चुका है और बिना जंघशीर्ष साथ लिए मैं इसे अपने सफरी थैले में साथ रख कर ले जा सकता हूँ और यात्रा के समय का सदुपयोग कर सकता हूँ। कल पहली बार यह किताब भोपाल पुस्तक मेले में पहुंचने वाले लोगों को देखने को मिलेगी। जो कल नहीं पहुँच सकते हों वे इसे दो दिन और देख सकते हैं जब तक हिन्दी भवन, पॉलिटेक्नीक चौराहा, भोपाल में यह पुस्तक मेला उपलब्ध है। 

ल ही शाम 6.30 बजे पुस्तक मेला स्थल पर लेखक से मिलिए कार्यक्रम में अजित जी उपलब्ध होंगे। भोपाल और नजदीक के लोग तो इस अवसर पर वहाँ उपस्थित होंगे ही। क्या नज़ारा हो सकता है यह सोच कर ही मैं रोमांचित हो उठा हूँ। यह दुर्भाग्य ही है कि मैं भोपाल में नहीं हूँ। कल ही कोटा में मोहन न्यूज एजेंसी को बोलता हूँ कि राजकमल से इस पुस्तक की प्रतियाँ बिक्री के लिए मंगा लें और पहली प्रति मुझे विक्रय करें।  आप भी अपने नजदीक के पुस्तक विक्रेता को ऐसा ही कह सकते हैं। वैसे राजकमल की वेबसाइट पर आर्डर देकर भी इसे सीधे मंगाया जा सकता है।

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

मार्क्स फिर से फैशन में .....

हसन सरूर लंदन से दी हिन्दू के लिए लिखते हैं ....... 

पूंजीवाद के वैश्विक संकट के समय कार्ल मार्क्स पश्चिम में फिर से फैशन में लौट आए हैं। उन का मौलिक काम दास कैपीटल फिर से बेस्ट-सेलर्स की सूची में है। उन की अपनी मातृभूमि जर्मनी में इस किताब की  अलमारियां खाली हो रही हैं, क्यों कि असफल बैंकर्स और स्वतंत्र बाजार के अर्थशास्त्रियों की  वैश्विक आर्थिक गलन को समझने की कोशिश नाकाम रही। मार्क्स के जन्मस्थान ट्रायर में दर्शनार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है और एक फिल्मकार एलेक्जेंडर क्लूग दास कैपिटल के फिल्मीकरण की योजना बना रहे हैं। फ्रांसिसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने इसे दिशा-निर्धारक कहा है, जर्मन वित्त मंत्री पीर स्टीनब्रुक सर्वत्र इस की प्रशंसा कर रहे हैं और पोप इस के महान विश्लेषणात्मक गुणों की सराहना।

आर्चविशप कैंटरबरी रोवन विलियम्स मार्क्स के विश्लेषण को स्मरण करते हुए कहते हैं कि मार्क्स ने बहुत पहले दिखा दिया था कि निरंकुश पूँजीवाद एक प्रकार की पौराणिक कथा, घिसी हुई वास्तविकता और निर्जीव शक्तियों का अभिकर्ता हो जाएगा।  

आखिर क्या है? इस मार्क्स की दास कैपीटल में कि इस के लेखक को पूरी एक शताब्दी तक जम कर गालियाँ दी गई, जम कर कोसा गया।  आज फिर उन्हीं गालियाँ देने वालों के अनुयायी फिर से उसी मार्क्स को स्मरण कर रहे हैं। आखिर कुछ तो लिखा होगा उस ने।

बहुत पहले, करीब तीस साल पहले जब कार्ल मार्क्स भारत में बहुत चर्चा का विषय था। मैं ने पूंजी का हिन्दी अनुवाद खरीदा था, बहुत सस्ते में। मगर इस साल दीवाली की सफाई में वह नहीं मिला। मुझे उसे पढ़ने की फुरसत मिलती इस से पहले कोई उसे खुद अपने पढ़ने के लिए या फिर अपना पुस्तकालय सजाने के लिए ले गया।  

सोचता हूँ मार्क्स की पूंजी दास कैपिटल की एक प्रति मैं भी कहीं से प्राप्त कर पढ़ लूँ। जान लूँ , कि क्यों इन तमाम जाने माने लोगों को यह किताब पूँजी के वैश्विक संकट के समय याद आ रही है? वह मुझे मिल गई तो उसे जरूर पढ़ूंगा और आप को बताऊंगा भी, कि क्या लिखा है उस में? 

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2008

पुस्तक मेला लगाने पर रोक

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सूचना के अधिकार को गंभीर चुनौती

कोलकाता पुस्तक मेला के उद्धाटन के एक दिन पहले कोलकाता उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने उस पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि इस से पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो सकता है तथा आसपास रहने वाले नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा। साथ ही प्रदूषण एक्ट, पर्यावरण सुरक्षा एक्ट तथा ध्वनि प्रदूषण एक्ट का भी उल्लंघन हो सकता है। यह निर्णय दरगाह रोड सिटीजंस कमेटी समेत कुछ संस्थाओं द्वारा दायर की गई एक याचिका पर दिया गया है।

29 जनवरी को मेले का उद्घाटन होना था। जोरशोर से स्टालों का निर्माण कार्य चल रहा था। हाईकोर्ट के इस फैसले से मेले के आयोजन पर प्रश्न चिह्न लग गया। निर्देश आने के तुरंत बाद बांस-बल्लियों को खोलने का काम शुरू कर दिया गया। पिछले दो साल से कोलकाता पुस्तक मेला आयोजन स्थल को लेकर विवादों से घिरा रहा है। पिछले वर्ष साल्टलेक स्टेडियम में मेला लगा था लेकिन पहले की तरह भीड़ नहीं जुटी। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।

इस पोस्ट के उक्त दोनों चरण जागरण की खबर के आधार पर हैं। हालांकि मुझे यह सूचना भाई शिवकुमार मिश्र के ब्लॉग से लगी थी। यह एक गंभीर बात है। एक ऐसे पुस्तक मेले पर ठीक एक दिन पूर्व रोक लगा दिये जाने से मेला आयोजकों एवं उसमें भाग लेने वाली संस्थाओं को बड़ी आर्थिक हानि होगी जो कि किसी भी प्रकार से इस उद्योग कि कठिनाइयों को देखते हुए बड़ा झटका है। कोई भी पुस्तक मेला मानव समाज के ज्ञान में वृद्धि ही करता है। उस से प्रदूषण फैलने पर रोक को प्रोत्साहन ही प्राप्त होता न कि उसे बढ़ाने को। इस से वे लाखों लोग ज्ञान को विस्तार देने से वंचित हो जाऐंगे जो इस पुस्तक मेले में शिरकत करते। इस से इन के सूचना के अधिकार का हनन होता।

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में उच्च न्यायालय से कोई गंभीर गलती हुई है। इस तरह तो कोई भी जनता के भले के कार्यक्रम को रोका जा सकता है और मानव समाज की प्रगति के मार्ग को अवरुद्ध किया जा सकता है। इस मामले में यह भी अन्वेषण किया जाना चाहिए कि दरगाह रोड सिटीजंस कमेटी कितने और किस किस्म के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार तो कोई थोड़े से लोग समाज के विकास में न्यायालयों का सहारा ले कर बाधा बन खड़े होंगे।

इस मसले पर कानूनी लड़ाई को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मजबूती से लड़ा जाना चाहिए ही। इस तरह के निर्णयों के विरुद्ध आवाज भी उठानी चाहिए। लेखकों, प्रकाशकों, पाठकों और सभी पुस्तक प्रेमियों को सामूहिक आवाज उठानी चाहिए। आखिर भारत जैसे जनतंत्र में पर्यावरण के बहाने से बुक फेयर को रोका जाना एक गंभीर घटना है। आगे जा कर इसी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जा सकता है। उंगली उठते ही रोक देनी चाहिए। अन्यथा कल से हाथ उठेगा।