@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पार्क
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शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

पार्क या मन्दिर

कोई पन्द्रह बरस पहले मेरी कालोनी के कुछ लोगों का यह मंतव्य हुआ कि कालोनी में बने एक छोटे से पार्क में मंदिर बना दिया जाए जिस से लोगों को पूजा के लिए दूर न जाना पड़े। वे इकट्ठे हो कर मेरे यहाँ पहुँचे और अपना मंतव्य बताया। मुझे सुन कर बड़ा अजीब लगा और गु्स्सा भी आया कि बच्चों, वृद्धों व महिलाओं के खेलने घूमने की एक मात्र जगह को भी नष्ट किया जा रहा है। पार्क इतना छोटा था कि मंदिर बनने के बाद सारा पार्क ही पार्क परिसर बन जाता।

मैं ने उन्हें बताया कि इस तरह तो पार्क खत्म ही हो जाएगा। फिर पूछा कि वे कैसा मंदिर बनाना चाहते हैं। तो वे बोले कि वे मंदिर नहीं एक चबूतरा बनाना चाहते हैं जिस पर शिवलिंग स्थापित करेंगे। 

मैं ने उन्हें कहा कि यह तो अजीब होगा। बकरियाँ और कुत्ते आ कर शिवलिंग को अपवित्र करेंगे। मैं भले ही नास्तिक ठहरा पर जिस प्रतिमा में लोगों की आस्था हो उस के साथ ऐसा बर्ताव तो सहन नहीं कर सकूंगा। आप लोग छोटा सा खूबसूरत मंदिर बनाएँ जिस में शिवलिंग ही नहीं पूरा शिव परिवार भी हो। एक नियमित पुजारी भी हो जो मंदिर की सुरक्षा भी रखे तो तो प्रस्ताव मानने लायक है। पर फिर भी पार्क वाली बात मुझे नहीं जमती। आप ऐसा करें मेरे घर के आगे दस गुणा पच्चीस वर्ग फुट की जगह खाली है। इस में से दस गुणा दस वर्ग फुट में आप लोग अच्छा मंदिर बनाएँ। मैं बाह्मन का बेटा हूँ और संयोग से अपने जीवन के 15 बरस एक बड़े मंदिर में गुजारे हैं जहाँ दादा जी पुजारी थे। पूजा भी मुझे विधि विधान से करनी आती है। पुजारी का काम मैं कर लूंगा। मंदिर का इस्तेमाल आप लोग करना। हाँ जमीन मेरी होगी और मंदिर सबका होगा। पर पूजा प्रबंधन मेरे नियंत्रण में रहेगा।

पता नहीं क्यों उन्हें यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। मंदिर का सपना भी धीरे धीरे छूट गया। आज वहाँ खूबसूरत सा पार्क है। सारी कालोनी उस का उपयोग करती है। किसी के दिमाग में वहाँ मंदिर बनाने का विचार तक नहीं आता। मुझे वह कालोनी छोड़े चार बरस हो चुके हैं।