@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: दर्द
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रविवार, 3 दिसंबर 2017

व्यायाम किया और दर्द गायब

फिस मुश्किल से आधा किलोमीटर था, साथ में हमेशा बहुत सारी फाइल्स होने और रास्ते में ट्रेफिक न होने के कारण पैदल न जा कर अपनी एक्टिवा से जाता था। वापसी में एक दिन उसे बहुत सारी मोटरसाइकिलों के बीच घिरा पाया। निकालने को मशक्कत करनी पड़ी। पीछे से उठाना भी पड़ा। बस यह पीछे से उठाना भारी पड़ गया। अचानक कमर में कुछ चटखा और लगा कि रीढ़ की हड्डी में कुछ हुआ है। शाम तक साएटिका जैसा दर्द होने लगा। मैं ने अपने एक सरजिकल एड कंपनी के सेल्समेन मित्र को बताया तो उसने कमर पर बांधने की बैल्ट लाकर दे दी जो रीढ़ को सीधा रखने में मदद करती है। मैं उसे बांधने लगा। ुकुछ दिन में कमर सामान्य रहने लगी। लेकिन मैं बैल्ट को कम से कम अदालत जाने के पहले से घर लौटने तक बांधने लगा। 

कोई महीने भर पहले फिर ऐसा हुआ की एक्टिवा को पीछे से उठा कर हटाने की नौबत आ गयी। पहले तो मैं ठिठका, फिर आसपास देखा। ऐसा कोई नहीं था जिस से मैं निस्संकोच मदद के लिए बोलता। कमर पर बेल्ट भी बंधी थी। आखिर खुद ही एक्टिवा को उठा कर निकाला। फिर वैसा ही चटखा हुआ। फिर से साएटिका जैसा दर्द होने लगा। कभी तो इतना कि चलते चलते दो कदम रखना भी दूभर हो जाता। रुकना पड़ता और दर्द हलका होेने पर आगे चलता। अब तो नौबत यह हो गयी कि सुबह शाम एक एक गोली दर्द निवारक लेनी पड़ने लगी।

इसी बीच किसी संबंधी के रोग के सम्बन्ध में इंटरनेट काफी सर्च किया और समाधान तलाशे। फिर ध्यान आया कि साएटिका के लिए भी तो समाधान वहाँ मिल सकता है। मैं ने तलाश करना आरंभ किया। कई विकल्प वहाँ थे जिन में एक विकल्प नियमित व्यायाम का था। व्यायाम का उल्लेख देखते ही मुझे याद आ गया कि नियमित रूप से प्रातः भ्रमण करीब डेढ़ वर्ष से बन्द सा है और व्यायाम भी। प्रातः भ्रमण तो शायद इन दिनों मेरे लिए संभव नहीं लेकिन व्यायाम तो मैं कर ही सकता था। मैं ने साएटिका के व्यायाम देखे तो पता लगा कि ये तो वही साधारण व्यायाम हैं जिन्हें में रोज करता रहा था। 

कल रात मैंने सोने के पहले बिस्तर पर कुछ व्यायाम किए तो पाया कि पेशियाँ वैसी स्टिफ नहीं हैं जैसी होने की मुझे संभावना थी। शायद यह दिन भर अदालत में अपने व्यवसायिक कामों के लिए घुटनों में दर्द होने पर भी चलते फिरते रहने के कारण था जो अब मेरी आदत सी बन गयी है। 

सुबह उठ कर मुश्किल से पाँच-सात मिनट साएटिका के लिए बताए गए व्यायाम किए। स्नान किया और नाश्ता कर के घर से निकला। आज मुझे चलने में वैसी समस्या नहीं आ रही थी जैसी पिछले कुछ दिनों से आ रही थी। साएटिका जैसा वह दर्द भी पूरी तरह गायब था। आज से फिर सोच लिया है कि कुछ भी हो यह पाँच से दस मिनट का ्व्यायाम कभी नहीं छोड़ना है।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कभी दर्द सहने के बजाए, दर्द निवारक ले लेना चाहिए

तवार की सुबह नींद टूटी तो गर्दन ने हिलने से इन्कार कर दिया। मैं धीरे-धीरे बिस्तर पर बैठा हुआ। मैं ने उसे बाईं तरफ घुमाया तो कोई विशेष तकलीफ नहीं हुई, लेकिन जब दायीं ओर घुमाया तो तकरीबन पाँच डिग्री घूमने के बाद ही तेज दर्द हुआ और गर्दन आगे घुमाई नहीं गई। मुझे छह साल पहले की याद हो आई। जब इस ने मुझे बहुत परेशान किया था। तब मुझे हड्डी डाक्टर की शरण लेनी पड़ी थी। उस ने कुछ दर्द निवारक औषधियाँ दी थीं और फीजियोथेरेपिस्ट के पास रवाना कर दिया था। फीजियोथेरेपिस्ट ने मुझे देखा, और एक जिम जैसे कमरे में भेज दिया। वहाँ एक दीवार में छत के पास एक बड़ी सी घिरनी लगी थी जिस से एक रस्सी लटकी हुई थी जिस के एक सिरे पर वजन लटकाने की सुविधा थी। दूसरे सिरे पर गर्दन को फँसाने के इंतजाम के रूप में एक चमड़े का बना हुआ लूप था। गनीमत यह थी कि यह लूप छोटा नहीं हो सकता था। वरना यहाँ मुझे ठीक उस घिरनी के नीचे एक स्टूल पर बैठा दिया गया गरदन को उस लूप में फँसा कर रस्सी के दूसरे सिरे पर कोई वजन लटका दिया गया। मुझे लग रहा था कि फाँसी पर चढ़ाए जाने वाले अपराधी में और मुझ में कुछ ही अंतर शेष रहा होगा। इस क्रिया को ट्रेक्शन कहा गया था। मैं समझ गया कि मेरी गर्दन को आहिस्ता-आहिस्ता खींचा जा रहा है। अनुमान भी हुआ कि गर्दन की छल्ले जैसी हड्डियों के बीच कोई तंत्रिका वैसे ही फँस गई है जैसे मोगरी (मूली की फली) की सब्जी खाने पर उस के तंतु दाँतों के बीच फँस जाते हैं और अनेक प्रयास करने पर ही बाहर आते हैं।
खैर, गर्दन खींचो कार्यक्रम लगभग एक सप्ताह चलता रहा। इस बीच मुझे आराम होने लगा। सप्ताह भर बाद फीजियोथेरेपिस्ट ने मुझे गर्दन की कुछ कसरतें बताई और मैं वे करने लगा। उन कसरतों का नतीजा यह रहा कि पिछले छह साल से गर्दन के छल्लों के बीच किसी तंत्रिका के फँसने की नौबत नहीं आई। लेकिन अब यह क्या हुआ? निश्चित ही यह पिछले दो माह से किसी तरह की कसरत न करने और बेहूदा तरीके से सोने का असर है। मैं अपनी इस अकर्मण्यता पर केवल शर्मिंदा हो सकता था। जो मैं खूब हो लिया। अपनी शर्म को छिपाने के लिए मैं अपने दर्द को छुपा गया। मैं ने किसी को न बताया कि मेरी गर्दन का क्या हाल है। रोज की तरह व्यवहार किया। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया गर्दन के दर्द में कमी आती गई। लेकिन शाम होते ही जैसे ही सर्दी का असर बढ़ा गर्दन का दर्द फिर से उभरने लगा। मैं ने रात्रि को दफ्तर में बैठ कर काम करना चाहा लेकिन न कर सका। बीच बीच में गर्दन गति अवरोधक का काम करती रही। सोमवार की सुबह जब नींद खुली तो उस का वैसा ही आलम था जैसा कि इतवार को था। इस दिन सुविधा यह थी कि मैं अदालत जा सकता था। सोमवार को भी दिन चढने के साथ दर्द कम हुआ लेकिन शाम पड़ते ही हालत वैसी ही हो गई। मैं फीजियोथेरेपिस्ट की बताई कसरतें भी कर चुका था लेकिन गर्दन थी की मानती न थी। रात को दफ्तर में बैठ कर कुछ काम भी करना पड़ा। आधी रात को बिस्तर पर पहुँचा तो जैसे तैसे निद्रा आ गई। 
मंगलवार की सुबह फिर वैसी ही रही। यह दिन बहुत बुरा गुजरा। एक तो एक बहुत जरूरी काम था  जिसे मैं दो दिन से टाले जा रहा था। उसे कैसे भी पूरा करना था। लेकिन पहले दो दिनों की तरह दिन चढ़ने के साथ दर्द में कोई कमी नहीं आ रही थी, वह जैसे का तैसा बना हुआ था। बस दो दिनों से दर्द सहने की बन गई आदत ने बहुत साथ दिया। जैसे-तैसे दिन तो अदालत में गुजर गया। लेकिन शाम बहुत बैचेनी हो गई। मुझे लगा कि गर्दन के इस तिरछेपन में सर्दी की भी भूमिका है। मैं ने शाम पड़ते ही गरदन को मफलर में लपेट कर सर्दी से पूरी तरह बचाने की कोशिश की। लेकिन मेरी इस हरकत ने मेरी पोल खोल दी। पत्नी जी ने पकड़ लिया। तुरंत सवालों की झड़ी लग गई। .... जरूर पेट खराब रहा होगा, गैस बनी होगी, आज कल कसरतें बिलकुल बंद कर दी हैं, वजन कितना बढ़ गया है.... आदि आदि। मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था। होता भी तो क्या था? हर जवाब को बहाना ही समझा जाता। आखिर नौ बजते-बजते तो हालत खराब हो गई। दर्द असहनीय हो गया। पत्नी जी ने सुझाया कि अब परेशान होने के बजाय अलमारी में से नौवाल्जिन की गोली निकालो और खा लो। मेरे पास इस प्रस्ताव को टालने का कोई मार्ग नहीं था। मैं ने निर्देश पर तुरंत अमल किया। ये क्या? पन्द्रह मिनट भी नहीं बीते हैं कि मैं बिस्तर से निकल कर दफ्तर में आ बैठा हूँ, दर्द कम होता जा रहा है और इस पोस्ट को लिखते-लिखते इतना कम हो चुका है कि अब मैं दो घंटे और बैठ कर अपना काम पूरा कर सकता हूँ। जिस से मुझे कल अपने मुवक्किलों के सामने शर्मिंदा न होना पड़े।
भी-अभी एक बात और सीखी कि कभी दर्द सहने के बजाए दर्द निवारक का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। जिस से आप की दैनिक गतिविधियाँ मंद न पडें और मस्तिष्क को भी आराम मिले। गर्दन के छल्लों में फँसी तंत्रिका भी दो चार दिन में अपने मुकाम को पा कर स्वस्थ हो ही लेगी। फिर तसल्ली की बात यह भी है कि सर्दी के दिन अब कितने रह गए हैं। आज का दिन, कल के दिन से दो सैकंड छोटा था आज की रात साल की सब से लंबी रात होगी, और कल का दिन साल का सब से छोटा दिन, वह आज से एक सैकंड छोटा होगा। फिर परसों का दिन 23 दिसंबर, वह कल के दिन से एक सैकंड बड़ा होगा। फिर उस के बाद दिन शनैः शनैः बड़े होते जाएँगे और सर्दी कम। आप चाहें तो नीचे बनी सारणी में देख सकते हैं.......
 
कोटा, राजस्थान में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय

दिनांक
सूर्योदय
सूर्यास्त
दिनमान
समयांतर


21 दिसंबर 2010
07:07
17:42
10h 34m 21s
− 02s

22 दिसंबर 2010
07:08
17:42
10h 34m 21s
< 1s

23 दिसंबर 2010
07:08
17:43
10h 34m 23s
+ 01s

24 दिसंबर 2010
07:09
17:43
10h 34m 26s
+ 03s

25 दिसंबर 2010
07:09
17:44
10h 34m 32s
+ 05s

26 दिसंबर 2010
07:10
17:44
10h 34m 40s
+ 07s

27 दिसंबर 2010
07:10
17:45
10h 34m 50s
+ 10s