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गुरुवार, 4 जून 2009

डॉ. अरविन्द जी मिश्रा, तो सुनिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई पर राग मालकौंस

पिछली चिट्ठी "सुनें,राग मालकौंस ! तनाव शैथिल्य से मुक्ति पाने का प्रयास करें"  पर डॉक्टर अरविंद जी मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए फरमाइश की थी ........
ये तो सुन लिया ! किसी और का गाया हुआ है दिनेश जी ? या फिर केवल वाद्ययंत्र से निकला मालकौंस सुनने को मिल सकता है ?
तो फिर देर किस बात की है? सुनिए आप के ही नगर बनारस के हीरक शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई पर राग मालकौंस में यह बंदिश...................
 
यह कैसा भी तनाव मिटा सकती है...
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सुनें,राग मालकौंस ! तनाव शैथिल्य से मुक्ति पाने का प्रयास करें।

आज डॉ0 अरविंद मिश्रा ने अपने ब्लाग क्वचिदन्यतोअपि..........! पर लिखा है कि बर्लिन और अमेरिका में विगत २५ वर्षों से शोधरत भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक वैज्ञानिक डॉ जैस्लीन ए मिश्रा ने  कल  बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अकैडमी स्टाफ कालेज में संपन्न हुए एक रोचक व्याख्यान में शास्त्रीय संगीत के मानव शरीर पर प्रभावों के बारे में चर्चा की जिसे  टाईम्स आफ इंडिया के आज केअंक में भी कवर किया गया है।  डॉ जैस्लीन ए मिश्रा डॉ. अरविंद मिश्रा जी की चाची हैं। 

इस व्याख्यान में डॉ जैस्लीन ए मिश्रा कहा कि उन्हों ने अपने शोध के दौरान यह पाया  है की राग मालकौंस की तनाव शैथिल्य में अद्भुत भूमिका है !

यहाँ मैं उस्ताद आमिर खान द्वारा गाया गया राग मालकौंस सुनिए, इसे कुछ दिन दोहराएँ और देखें वास्तव में यह आप के तनाव को शिथिल करता है या नहीं।  प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएँ।


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