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शनिवार, 7 नवंबर 2009

कंप्यूटर के लिए पुराना रेमिंग्टन हिन्दी की-बोर्ड कहाँ मिलेगा?


ज की यह पोस्ट एक मित्र की जरूरत पर लिख रहा हूँ।  मेरे एक मित्र हैं जगदीश गुप्ता, उम्र है तिरेसठ वर्ष लेकिन अब भी बिलकुल जवान हैं। वे मेरे शहर के बेहतरीन हिन्दी टाइपिस्ट हैं और पिछले चालीस साल से अधिक से टाइप कर रहे हैं। अस्सी शब्द प्रति मिनट उन की टाइप करने की गति है। उन के पास लगभग चालीस साल पुराना ही मैकेनिकल रेमिंग्टन टाइपराइटर है। जिस में उस जमाने में चलने वाला की बोर्ड बना हुआ है। वे उसी पर काम करते आ रहे हैं। पिछले कुछ बरसों से हम उन के पीछे पड़े थे कि अब तो कंप्यूटर ले लो। वे कंप्यूटर का लगातार मजाक उड़ाते रहे। लेकिन आखिर उन को सद्बुद्धि आ ही गई और पंद्रह दिन पहले एक अदद कंप्यूटर उन्हों ने खरीद लिया। कंप्यूटर भी हम ने ही खरीदवाया।


ब उन की मुसीबत मेरे सर आ गई है। वे चाहते हैं कि उन के पुराने रेमिंग्टन टाइपराइटर पर जो ले-आउट है उस का कोई हिंदी फोंट मिल जाए या इन्स्क्रिप्ट टाइपिंग के लिए कोई की-बोर्ड मिल जाए। ऐसा सुना है कि कुछ फोंट उस की बोर्ड के लिए बनाए भी गए हैं। हम उस फोंट/या की-बोर्ड को तलाश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक असमर्थ रहे हैं। यदि कोई साथी बता सके कि यह फोंट कहाँ मिल सकता है? या यह की-बोर्ड कहाँ बन सकता है और कितने खर्च पर तो न केवल हमारे जगदीश जी को सुविधा होगी और वे तुरंत कंप्यूटर पर हिन्दी टाइप कर सकेंगे, अपितु कंप्यूटर पर अधिकतम गति से टाइप करने वाला एक साथी तुरंत मिल जाएगा।

रेमिंग्टन का पुराना हिंदी की-बोर्ड ले-आउट इस प्रकार है ....





पुराना रेमिंग्टन की बोर्ड


सोमवार, 14 सितंबर 2009

हिन्दी इनस्क्रिप्ट टाइपिंग सीखें, हिन्दी में काम की गति और शुद्धता बढ़ाएँ और अधिक काम करें

मनुष्य  प्रजाति को अपने संरक्षण और विकास के लिए यह आवश्यक था कि वह जाने कि  जिस दुनिया में वह रहता है उस में क्या है जो उस के श्रेष्ठ जीवन और उस की निरंतरता के लिए सहायक है, और क्या घातक है। कौन सी वनस्पतियाँ हैं जो जीवन के लिए पोषक हैं और कौन सी हैं जो घातक हैं? शिकार, भोजन संग्रह और मौसम से संबंधित वे क्या जानकारियाँ हैं जो उस के जीवन को सुरक्षित बनाती हैं। इन  जानकारियों के प्राप्तकर्ता के लिए यह भी आवश्यक था कि उन्हें वह अपने समूह को संप्रेषित करे। जिस से समूह को इन्हें  जुटाने में अपना समय जाया न करना पड़े।  जानकारियों और सूचनाओं के संप्रेषण की आवश्यकता ने बोली के विकास का मार्ग प्रशस्त किया और जब मनुष्य ने इन्हें संकेतों के माध्यम से संप्रेषित करने का आविष्कार कर लिया तो भाषा ने आकार ग्रहण किया।
अलग अलग समूहों ने अपनी अपनी भाषाएँ और लिपियाँ विकसित कीं।  जैसे जैसे समूहों में आपसी संपर्क हुए भाषाओं का विकास हुआ और आज की आधुनिक भाषाएँ अस्तित्व में आईं। भाषाएँ कभी जड़ नहीं होतीं। वे लगातार विकासशील होती है। जिस भाषा में विकासशीलता का गुण नष्ट हो जाता है, जड़ता  आ जाती है वह शनैः शनैःअस्तित्व खोने लगती है। भाषा की आवश्यकता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उस की मनुष्य को कितनी और क्यों आवश्यकता थी और है? जो भाषा मनुष्य की  वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करती रहेगी, और भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिएविकसित होती रहेगी। उसे अधिकाधिक लोग अपनाते रहेंगे। किसी भी भाषा की उन्नति इस बात पर निर्भर करती है कि वह मनुष्य समाज की कितनी आवश्यकता की पूर्ति करती है। यदि कोई ऐसी भाषा विकसित हो सके जो  पूरी मनुष्य जाति की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर दे और नई उत्पन्न हो रही आवश्यकताओं की पूर्ति करती रहे तो लगातार विकसित होती रहेगी और उस का अस्तित्व बना रहेगा।  इस तरह हम कह सकते हैं कि भाषा मनुष्य द्वारा आविष्कृत वह उपकरण है जिस की उसे संप्रेषण के लिए आवश्यकता थी। इस उपकरण का मनुष्य की नवीनतम आवश्यकताओं के लिए विकसित होते रहना आवश्यक है। 

हिन्दी हमारी मातृभाषा है। वह हमारे लिए सर्वाधिक संप्रेषणीय है और संज्ञेय भी।  हम अधिकांशतः उसी का उपयोग करते हैं। हमारी आवश्यकता की पूर्ति उस से न होने पर हम अन्य भाषाओं को सीखने की ओर आगे बढ़ते हैं। यदि हिन्दी हमारी तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगे तो क्यों कर हम अन्य भाषाओं को सीखने की जहमत क्यों उठाएँगे। लेकिन हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरी दूसरी भाषाओं को सीखना पड़ता है। जिस का सीधा सीधा अर्थ है कि हिन्दी को अभी मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विकसित होना है।  यदि किसी दिन हिन्दी इतनी विकसित हो जाए कि वह मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगे तो अधिकाधिक लोग हिन्दी सीखने लगेंगे और एक दिन वह हो सकता है जब कि वह मनुष्य जाति द्वारा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली भाषा बन जाए। 
हम मन से चाहते हैं कि हिन्दी एक विश्व भाषा हो जाए। सारी दुनिया हिन्दी बोलने लगे। उस का दुनिया में एक छत्र साम्राज्य हो। दूसरी भाषाएँ संग्रहालय की वस्तु बन कर रह जाएँ। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है कि हम हिन्दी को इस योग्य बनाएँ। दुनिया में जितना भी ज्ञान है वह हिन्दी में संग्रहीत हो। हम अपना नवअर्जित ज्ञान हिन्दी में सहेजना आरंभ करें। हिन्दी का भविष्य इस पर निर्भर है कि हम हिन्दी वाले  नए ज्ञान को अर्जित करने मे कितना आगे बढ़ पाते हैं? अभी तो हालात यह हैं कि जो भी नया ज्ञान  हम हिन्दी वाले अर्जित करते हैं उसे सब से पहले अंग्रेजी में अभिव्यक्त  करते हैं। हम अंग्रेजी में सोचते हैं और फिर हिन्दी में अनुवाद करते हैं। कुछ लोग हिन्दी को भी उस दिशा में डाल रहे हैं कि एक हिन्दी भाषी को भी उसे समझने के लिए पहले अंग्रेजी में समझना पड़े।

 देवनागरी इन्स्क्रिप्ट कुंजीपट
आज हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं क्यों कि 14 सितम्बर को इसे भारत की राजभाषा घोषित किया गया।  लेकिन वस्तुतः यह हिन्दी दिवस नहीं है अपितु हमारा राजभाषा दिवस है। हम हमेशा रोना रोते हैं कि सरकार इस के लिए कुछ नहीं करती, या करती है तो बहुत कम करती है और दिखावे भर के लिए करती है।  लेकिन हम खुद उस के लिए क्या कर रहे हैं। सरकार ने कंप्यूटर पर देवनागरी और तमाम भारतीय भाषाएं लिखने के लिए इन्स्क्रिप्ट कुंजीपट विकसित करने के काम को कराया, उस के लिए  टंकण शिक्षक बनवाया जिस से केवल एक सप्ताह में  ही हिन्दी टाइपिंग सीखी जा सकती है। लेकिन हम  हिन्दी वाले जो कंप्यूटर पर काम करते हैं वे ही नहीं सीख पा रहे हैं।  उस के लिए हम हजारों लाखों हिन्दी शब्दों की रोमन वर्तनी सीखने को तैयार हैं लेकिन एक सप्ताह उंगलियों को कसरत कराने को तैयार नहीं हैं।

 आसान हिन्दी कम्प्यूटर-टंकण शिक्षक
यदि हिन्दी को विश्वभाषा बनना है तो वह हिन्दी की अंदरूनी ताकत से बनेगी। उस की अंदरूनी ताकत हम हिन्दी वाले हैं। हम कितना ज्ञान हिन्दी में सहेज पाते हैं? हम कितना नया ज्ञान हिन्दी में, सिर्फ और सिर्फ हिन्दी में अभिव्यक्त करते हैं। इसी पर हिन्दी का विकास निर्भर करेगा। इस बात को हिन्दी के शुभेच्छु जितना शीघ्र हृदयंगम कर लें और अपने पथ पर चलने लगें उतना ही इस का विकास तीव्र हो सकेगा। फिलहाल तो मेरा एक निवेदन है कि हम जो कंप्यूटर और इंटरनेट पर हिन्दी का काम कर रहे हैं, कम से कम अपना इनस्क्रिप्ट कुंजीपट का प्रयोग सीख लें। यह सीखने पर ही पता लग सकता है कि यह कितना आसान है और कितना उपयोगी और कितनी ही परेशानियों से एक बार में छुटकारा दिला देता है।  इस से हिन्दी में काम करने की गति और शुद्धता बढ़ेगी और हम हिन्दी का अधिकाधिक काम कर सकेंगे।   मैं आशा कर सकता हूँ कि अगले साल जब हम राजभाषा दिवस मनाएँ तो इन्स्क्रिप्ट कुंजीपट से टंकण कर रहे हों।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

विराम चिन्ह कैसे टंकित करें? विष्णु बैरागी जी का अनुभव

विराम चिन्हों को कैसे टंकित किया जाए?  इस विषय पर पहले ही दो आलेख आ चुके हैं।  मेरे विचार में उतना लिखा जाना पर्याप्त था।  जिस तरीके से टंकित किए जाने की बात उन दो आलेखों, अर्धविराम (;), अल्पविराम (,), प्रश्नवाचक चिन्ह(?) और संबोधन चिन्ह (!) कैसे लगाएँ? और विराम चिन्हों पर फिर से एक विचार
  में कही गई थी, उसे लगभग सभी पाठकों की सहमति भी मिली थी।  बात इतनी सी थी कि लगी आदत छूटती नहीं। 

लेकिन बैरागी जी का ई-पत्र मिला और उसे सार्वजनिक करने का आग्रह भी।  मेरे विचार में जिस तरह उन्हों ने अपने विचार प्रकट किए हैं वे अनेक लोगों को पुरानी आदत छुड़ाने में मदद कर सकते हैं।  ई-पत्र इस प्रकार है...

दिनेशजी,
नमस्‍कार,
पूर्णविराम से पहले रिक्ति न रखने का आपका सुझाव पूर्णत: उपयोगी रहा।  वैयाकरणिकता और व्‍यावहारिकता का सुन्‍दर समन्‍वय है आपका परामर्श।
आपके इस परामर्श के बाद आज पहली पोस्‍ट लिखी/प्रस्‍तुत की (आपके परामर्श पर अमल करते हुए) और देखा कि यह मेरी ऐसी पहली पोस्‍ट रही जिसमें पूर्ण विराम, अगली पंक्ति में पृथक शब्‍द के रूप में नहीं गया।  इससे पोस्‍ट की सुन्‍दरता और प्रभाव में तो वृध्दि हुई ही, पूर्ण विराम से किसी पंक्ति के प्रारम्‍भ होने से जो व्‍याकुलता उपजती थी, उससे भी मुक्ति मिली।  
मेरी इस टिप्‍पणी को आप सार्वजनिक कर सकते हैं (अपितु अवश्‍य कीजिएगा)।  सम्‍भवत:, अन्‍य मित्रों को भी यह उपाय उपयोगी अनुभव हो।
हां, पुरानी आदत, इस पर अमल करने में बाधक बन रही है।  नई आदत डालने में समय भी लगेगा और अतिरिक्‍त श्रम भी।  किन्‍तु जो मिला है, उसके लिए यह बहुत ही कम कीमत है।
आपने प्रस्‍तुति का  भोंडापन दूर करने में सहायता की।  यह उपकार से कम नहीं है।
विनम्र,
--
 मुझे इस से आगे एक भी शब्द कहने की जरूरत नहीं।

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

अर्धविराम (;), अल्पविराम (,), प्रश्नवाचक चिन्ह(?) और संबोधन चिन्ह (!) कैसे लगाएँ?

अंतर्जाल के पृष्ठों पर और आम तौर पर ब्लाग पर कभी कभी देखता हूँ कि आलेख का वाक्य समाप्त हो रहा है वहीँ पंक्ति भी समाप्त हो रही है।  वहाँ अंत में पूर्णविराम (खड़ी पाई) (।) होना चाहिए।  पर वह नदारद नजर आती है।  जब अगली पंक्ति देखते हैं तो वहां वाक्य आरंभ होने के पहले यह खड़ी-पाई खड़ी पाई जाती है।  जैसे हिन्दी में नियम यह हो गया हो कि वाक्य के अंत में नहीं अपितु प्रारंभ में पूर्णविराम की खड़ी-पाई (।) खड़ी करने के लिए कोई अध्यादेश पारित हो गया हो और नहीं लगाने पर दण्ड मिलने वाला हो।  या ऐसा लगता है कि आलेख में कोई आतंकवादी घुस आने के कारण रेड ऐलर्ट जारी हो गया हो और बाजार के हर कोने में पुलिस वाले की तरह खड़ी पाई तैनात करनी जरूरी हो गई हो।  जिस से भले ही सुरक्षा हो न हो, बाजार आने वालों को तसल्ली रहे कि हाँ, चौकसी बढ़ गई है।

अब सिपाहियों की ड्यूटी लग जाए और होम गार्ड घरों में दुबके रहें यह तो होना संभव नहीं है। आखिर नागरिक सुरक्षा उपाय तो करने पड़ेंगे।  तो कभी कभी ये अल्प विराम (,) महाशय भी इसी तरह पंक्ति के अंत के बजाय अगली पंक्ति के आरंभ में गणपति की भाँति मुस्तैद खड़े नजर आते हैं।  कुछ भी हो दृश्य भले ही उटपटांग हो लेकिन चौकसी पूरी दिखाई देती है।

यह होता अनजाने में है।  वास्तव में हम ने कम्प्यूटर खरीद लिए हैं, लेकिन टंकण-कला किसी उस्ताद से नहीं सीखी।  बस यहीं कसर रह गई।  अगर हम टंकण कला किसी उस्ताद से सीखते या दस-बारह रुपए खर्च कर किसी टंकण कला के अभ्यास वाली किताब खरीद कर पढ़ लेते तो काम चल जाता यह ऊटपटांग दृश्य उपस्थित नहीं होता।  चलिए किस नियम भंग के कारण ऐसा होता है?  उसे बता ही दिया जाए।

नियम यह है कि जब वाक्य पूरा हो तो वाक्य के अंतिम शब्द के अंतिम अक्षर और पूर्ण (।) या अल्पविराम (,) के बीच कोई रिक्त-स्थान याने (स्पेस) नहीं छोड़ा जाए।  अल्पविराम (,) लगाने के बाद एक रिक्त-स्थान (सिंगल स्पेस) और पूर्ण विराम (।) के बाद दो रिक्त-स्थान (डबल स्पेस) छोड़ें जाएँ।

अब यदि आप वाक्य समाप्ति के बाद और पूर्ण विराम (।) के पहले एक रिक्त-स्थान छोड़ देते हैं औरवहीं आप के पृष्ठ की चौड़ाई समाप्त हो जाती है तो पूर्ण विराम (।) दूसरी पंक्ति में सब से पहले खड़ा हो जाता है।  यही हाल अल्पविराम (,)  का होता है।  यदि पृष्ट की चौड़ाई समाप्त भी न हो रही हो तो भी आप एक रिक्त-स्थान पूर्ण विराम (।) के पहले छोड़ते हैं और बाद में नहीं, या वहाँ भी एक ही रिक्त-स्थान छोड़ते हैं तो भी पूर्ण विराम (।) समाप्त हुए वाक्य के अंत में लगा हुआ दिखाई देने के स्थान पर शुरू होने वाले वाक्य के पहले दरबान की तरह खड़ा दिखाई देता है।

तो आप याद रखेंगे ना, कैसे लगाने हैं विराम चिन्ह?

  1. बिना कोई रिक्त-स्थान (स्पेस) छोड़े पूर्ण विराम (।), अर्धविराम (;), अल्पविराम (,), प्रश्नवाचक चिन्ह(?) और संबोधन चिन्ह (!) लगाएँ।
  2.  अर्धविराम (;) व अल्पविराम के बाद एक रिक्त स्थान (सिंगल स्पेस) और पूर्ण विराम, प्रश्नवाचक चिन्ह तथा संबोधन चिन्ह (!) के बाद दो रिक्त स्थान (डबल स्पेस) अवश्य छोड़ें।
इस आलेख में इन नियमों का पालन किया गया है।