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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

क्या मोदी सरकार जल्दी बहुमत खो देगी?



खबर है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों के अमल पर डेढ़ साल के लिए रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने को तैयार है। इसके बाद जरूरत पड़ने पर अमल पर रोक आगे भी बढ़ाई जा सकती है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से इतर एक नई कमेटी बनेगी जिसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधि होंगे। यही कमेटी तीनों कृषि कानूनों के पहलुओं के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चर्चा करेगी। इसी के हिसाब से आगे कृषि कानूनों में संशोधन किए जाएंगे। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मामले वापस लिए जाएंगे। एनआईए समन ठंडे बस्ते में डाल निर्दोषों पर कार्रवाई नहीं होगी।

सरकार को बहुत जल्दी थी कानून बनाने की। उसने संसद में जाने के बजाए अध्यादेश जारी कर दिए। क्या उसके पहले इन अध्यादेशों से प्रभावित होने वाले पक्षों से विचार विमर्श नहीं किया जा सकता था? पर क्यों किया जाए? सरकार नहीं है यह, भगवान है। जिसकी बात जनता को स्वीकार करनी होगी। वरना देवता निपट लेंगे। यही सोचा गया था न। फिर आपने पेंडेमिक के हल्ले के बीच बिना बहस के तीनों को कानून बना दिया। बना सकते हैं भाई संसद में आपका पूर्ण बहुमत है। यह बहुमत अभी 2024 तक रहने वाला है। यदि ये कानून निरस्त कर दिए जाएँ तो सभी पक्षों से विचार विमर्श के बाद, सहमति बनने के बाद इन्हें नए सिरे से दुबारा बनाया जा सकता है। तो सरकार क्यों नहीं चाहती कि इन्हें निरस्त कर दिया जाए? अब जो प्रक्रिया सरकार ने सुझायी है उसे कानून के लिए विधेयक आने के पहले पूरी करना चाहिए था। कपड़े खरीदने के पहले दर्जी से पूछ लेना चाहिए था कि पोशाक में कपड़ा कितना लगेगा? अब कपड़ा कम ले आए हैं, पोशाकें बहुत तंग सिल गयी हैं तो डेढ़ साल तक क्या इस बात का इन्तजार करेंगे कि देश इन पोशाको को पहनने लायक दुबला हो जाए?

सरकार के मुखिया जी रोज तीन पोशाकें एक दम नयी पहनते हैं। सम्भवतः एक पोशाकें दुबारा नहीं पहनते। डरते हैं कहीं उन पर भी नेहरू की तरह पेरिस में कपड़े धुलवाने का मिथ्या आरोप नहीं लगा दे। तीन कथित कृषि कानूनों की इन पोशाकों को जो इस देश को रास नहीं आ रही हैं, जिन्हें पहनने से उसके हाथ-पैरों ने मना कर दिया है। उन्हें आप डेढ़ बरस तक होल्ड पर रख कर उसका आल्टरेशन (संशोधन) क्यूँ कराना चाहते हैं? क्या आपके मुखिया जी अब भी आल्टर की हुई पोशाकें पहनते हैं? क्या आपको लगता है कि डेढ़ बरस में आपकी ये सरकार बहुमत खो देगी?

शनिवार, 13 सितंबर 2008

क्या कहता है गणपति का सिंदूरी रंग और उन की स्त्री-रूप प्रतिमाएँ?

बात गणपति से आरंभ हुई थी। फिर बीच मैं गौरी आ गईं, और कुछ लोकोत्सव। अब फिर गणपति के पास चलते हैं। आज पांडालों में गणपति प्रतिमाएँ सजी हैं, उन्हें चतुर्दशी तक विदा कर दिया जाएगा। लेकिन गणपति की प्राचीन प्रतिमाएँ मौजूद हैं। उन से पूछें वे क्या कहती हैं? वे अनेक रूप की है और प्रत्येक 2 का अपना अलग नाम है। इन में उन्मत्त उच्चिष्ठ गणपति और नृत्य गणपति, बल गणपति, भक्ति विघ्नेश्वर गणपति, तरुण गणपति, वीर विघ्नेश्वर गणपति, लक्ष्मी गणपति, प्रसन्न गणपति, विघ्नराज गणपति, भुवनेश गणपति, हरिद्र गणपति आदि हैं। इन सब के हाथों में पाश और अंकुश दो आयुध हैं। ये दोनों आयुध हाथी के शिकार और नियंत्रण  के लिए उपयोगी हैं और शिकार युग की स्मृति दिलाते है। दूसरी और उन के हाथों में आम, केला, बेल, जंबू फल, नारियल, गुड़ की भेली, अनार, कमल, कल्प लता और धान की बाली आदि देखते हैं।

इस से ऐसा प्रतीत होता है कि एक शिकार और पशुपालन से संबद्ध देवता अब कृषि से संबंध स्थापित कर रहा है। इस में भी अनार एक ऐसा फल है जिस का संबंध रक्त के रंग से है और जो स्त्रियों से भी संबद्ध है। ऐसा लगता है कि एक पुरुष देवता गणपति स्त्रियों के मामले में उलझ रहा है। "शंकर विजय" ग्रंथ का लेखक स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि गणपति के  अनुयायियों के धार्मिक अनुष्ठानों में मासिक धर्म के रक्त की भूमिका निर्णायक थी। गणपति के साथ विभिन्न रूप से संबंध रखने वाला लाल रंग इसी का प्रतीक था। यदि इस रंग का 503035784_62f9d94b03 असली महत्व यही था, तो एक पुरुष देवता का लाल रंग से अभिषेक करना युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता। लेकिन इस का एक अर्थ यह हो सकता है कि वह स्त्रियों का आश्रय ले रहा था।  यहाँ तक कि गणेश की स्त्री-रूप प्रतिमाएँ भी बनाई गई। यहाँ उड़ीसा की एक प्रतिमा का चित्र प्रदर्शित है। मैं ने भोपाल में बिरला मंदिर के पास के संग्रहालय में भी ऐसी ही एक प्रतिमा देखी है। गणेश की उत्पत्ति की कथा भी रोचक है, जिस में पुरुष का कोई योगदान नहीं है। गणपति को विभिन्न तरीकों से रक्त के रंग से सम्बद्ध किया गया है। मंत्र महार्णव ग्रंथ कहता है गणपति की प्रतिमा का रंग रक्त के रंग जैसा होना चाहिए। तंत्रसार में हमें सिंदूर जैसे रंग के कपड़े पहने हुए जैसे वाक्य मिलते हैं। सिंदूर गणपति का प्रसाधन है, और गुडहल का फूल उन्हें प्रिय। पूजा में प्रयोग लाए जाने वाले पाँच तरह के पत्थरों में लाल रंग का पत्थर गणपति का है। नर्मदा किनारे गणेश कुंड पर लाल रंग के पत्थर को गणेश प्रस्तर कहा जाता है। इस तरह यह लाल रंग के साथ गणपति का गहरा संबंध स्थापित  है। स्त्री देवताओँ के साथ तो सिंदूर और लाल रंग का संबंध है लेकिन गणपति के साथ लाल रंग का क्या महत्व है?

imagesहमने देखा कि चतुर्थी को गणपति की पूजा के दूसरे दिन ही गौरी ने प्रमुखता हासिल कर ली थी। जिस का  एक अर्थ यह हो सकता है कि गणपति ने गौरी का आश्रय लिया। ऐलोरा की गुफा में गणेश सात माताओं के अधीनस्थ प्रदर्शित हैं। अनेक स्थानों पर शक्ति उन की गोद में बैठी हैं, ये प्रतिमाएँ शक्ति गणेश के नाम से प्रसिद्ध हैं। ऐतिहासिक तथ्य यह है कि खाद्य सामग्री एकत्र करने का काम स्त्रियों का था। इसलिए कृषि की खोज उन्हीं ने की थी। और वे यह काम तब तक करती रहीं जब तक बैल द्वारा हल चलाने या जुताई की विधि का आविष्कार नहीं हो गया। इस संबंध में जे डी बरनाल, गिलिस, ब्रिफो आदि के संदर्भ देखे जा सकते हैं। इस तरह कृषि की खोज ने स्त्री के महत्व को पुरुष नेतृत्व वाले समाज में स्थापित किया था और शिकार और पशुपालन के युग के पुरुष देवता को इस युग में भी मह्त्वपूर्ण बने रहने के लिए स्त्री प्रतीकों के माध्यम की आवश्यकता थी। कृषि उत्पादन पर आधारित सिंधु सभ्यता के धर्म में देवियों की प्रमुख भूमिका थी। सिन्धु सभ्यता में ही नहीं प्राचीन सभ्यताओं के सभी केन्द्रों में मातृ देवियों की मूर्तियाँ दबी पड़ी हैं। सभी स्थानों पर यह देखने को मिलता है कि सभी सभ्यताओं की संपदा धरती से उपजती थी। इस का संबंध स्त्रियों द्वार कृषि की खोज से ही हो सकता है।

Ganesh Tantraभारत में सिन्धु सभ्यता के अंत के साथ इन ग्राम देवियों का अंत नहीं हुआ।  वे उत्पादकता की जन्मदात्री हैं। आज के सभी ग्राम देवता उन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारी जनजातियों में देवी उपासना प्रमुख है। भारतीय किसानों का बहुत बड़ा अंश आज जनजातियों में नहीं रहता लेकिन उन के समाजों में पुरुष  देवताओँ का स्थान गौण है वास्तविक प्रभाव देवियों का ही है। आज भी सवर्ण कही जाने वाली जातियों में आश्विन और चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को परिवार के सभी सदस्य एक स्थान पर एकत्र हो कर देवी पूजा, जिसे कुल देवी या दियाड़ी भी कहते हैं, की पूजा अवश्य ही की जाती है।

Tantraकृषि की खोज मनुष्य के जीवन में एक महान खोज थी। जिस ने मनुष्य को स्थायित्व दिया था, ग्राम सभ्यता और उन की उपज पर आधारित नगर सभ्यता को जन्म दिया था। उसी की स्मृति यह देवी पूजा है, जिस में गणपति देवा ने एक प्रमुख स्थान तो हासिल किया लेकिन देवी प्रतीकों को अपना कर ही। आगे हम कृषि अनुष्ठानों, जादू, टोटकों और तंत्रवाद पर बात करेंगे।