@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: उत्तेजना
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बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

न जाने कब हूर मिलेगी?

'कहानी'
 न जाने कब हूर मिलेगी? 
 दालत के जज साहब पूरे सप्ताह अवकाश पर हैं। रीडर साहब की मेज पर पड़ी आज की दैनिक मुकदमा सूची गवाही दे रही है कि जिन मुकदमों में आज पेशी थी, उन में तारीख बदली जा चुकी है। जो मुवक्किल पेशी पर आए थे वे तारीखें ले कर जा चुके हैं।  जिन मुकदमों में मुवक्किल नहीं आए उन में वकील या उन के मुंशी आ रहे हैं और मुकदमा सूची से ही नोट कर के जा रहे हैं। रीडर सभी फाइलों में आदेशिका लिख कर फुरसत पा चुका है और डायस पर अपनी कुर्सी से उतर कर वकीलों और मुवक्किलों के बैठने की बेंच पर आ बैठा है। एक दो लोग उस के पास और बैठे हैं।
ये और रीडरों से अलग आदमी हैं। उन के बारे में कहा जाता है कि वे किसी काम में पैसा नहीं लेते। यहाँ तक कि चाय भी केवल उसी की पीते हैं जिस से उन का दिल मिल गया है। धार्मिक कामों में उन की रुचि है। आज कल एक प्राचीन उपेक्षित कृष्ण मंदिर के जीर्णोद्धार में आगे बढ़ कर सहयोग कर रहे हैं। मैं एक मुकदमे की तारीख जानने अदालत में जाता हूँ तो मुझे आवाज दे लेते हैं। मैं उन के पास जा कर बैठता हूँ। उन के साथ कुछ लोग और बैठे हैं। धर्म चर्चा चल रही है। एक कहता है -आजकल लोगों में धार्मिक भावना बहुत बढ़ गई है। कोटा से सुबह छह बजे जनशताब्दी जाती है। उस में एक सीट खाली नहीं रहती। लेकिन मथुरा में वह ट्रेन आधी से अधिक खाली हो जाती है। इतने लोग गोवर्धन जी की परिक्रमा के लिए जाते हैं कि मथुरा पहुँचने वाली शायद ही कोई ट्रेन ऐसी हो जिस से कम से कम एक  तिहाई सवारी वहाँ न उतरती हो। मैं भी अनेक बार इस ट्रेन से यात्रा कर चुका हूँ, मैं कभी भी मथुरा इस से नहीं उतरा। यह सही था कि मथुरा में बहुत सवारियाँ उतरती हैं। लेकिन पूरी ट्रेन में दस-पंद्रह प्रतिशत से अधिक सवारी मथुरा की नहीं होती। 
-हो सकता है, एकादशी से पूर्णिमा के बीच आधी सवारियाँ मथुरा उतरती हों। लेकिन ट्रेन तो निजामुद्दीन तक भरी जाती है। मैं ने कहा। उस के बाद बात मुड़ गई। 
क सज्जन कहने लगे।-लेकिन यह धार्मिकता बाहर के लोगों में ही है, वहाँ के स्थानीय लोगों में नहीं। हम वहाँ परिक्रमा पथ के एक गांव में एक के घर रुके। हमारे साथ कोई था उस के रिश्तेदार का घर था। उन्हों ने हमें पानी और चाय पिलाई। उन के घर की 45 वर्ष की महिला से मैं ने पूछा कि उन की तो साल में अनेक परिक्रमाएँ हो जाती होंगी? तो वे कहने लगी मुझे यहाँ ब्याह कर आए पच्चीस बरस हो गए, मैं एक बार भी पूरी परिक्रमा नहीं कर सकी हूँ। 
स बीच रीडर साहब बोल पड़े -लेकिन हमारे पास मैरिज गार्डन के पीछे जो मंदिर है उस का पुजारी है। बहुत गरीब है। मैरिज गार्डन वाले ने उसे पूजा के लिए रखा है। उसे पाँच-छह सौ रुपए हर माह दे-देता है। बाकी काम चढ़ावे से चलता है जो वहाँ अधिक नहीं आता। पुजारी को आजीविका के लिए छोटे-मोटे काम भी करने पड़ते हैं. लेकिन वह हर माह परिक्रमा करने जरूर जाता है। वह कहता है कि मैं ने यहाँ एक डब्बा रख छोड़ा है जिस में मैं बिला नागा बीस रुपए रोज अलग रख देता हूँ। महिने मैं पाँच सौ से ऊपर इकट्ठे हो जाते हैं। बस इतना ही परिक्रमा करने में खर्चा होता है। मैं कई वर्षों से वहाँ जा रहा हूँ। मैं ने उस से पूछा कि कितनी परिक्रमा कर चुके हो तो कहता है कि पिछले साल 108 पूरी हो गई थीं। उस के बाद मैं ने गिनना छोड़ दिया।
मैं ने कहा -आप देखेंगे कि नियमित परिक्रमा जाने वाले अधिकांश लोग गरीब और निम्नमध्यम वर्ग के ही हैं। आप जानते हैं कि वे नियमित रूप से वहाँ क्यों जाते हैं? 
वे एक-एक कर जवाब देने लगते हैं -भावना के कारण? श्रद्धा के कारण? आध्यात्मिक उन्नति के लिए,?भक्ति के लिए? या फिर किसी मन्नत के कारण? मैं उन के हर जवाब के बाद कहता हूँ -गलत जवाब। वे मुझे पूछने लगते हैं -आप ही बताइए, क्या  कारण है? 
मैं कहता हूँ -उन्हें वहाँ आनंद मिलता है, और उसी का मजा लेने वे जाते हैं। हो सकता है वे पहली-दूसरी बार वहाँ उन में से किसी उद्देश्य से जाते हों जो आपने बताए हैं। लेकिन अपनी रूटीन की जिन्दगी में ऊबते लोग, हर वक्त किसी न किसी चिंता से ग्रस्त लोग, आर्थिक दबावों में पिसते और जूझते लोग जब एक-दो बार वहाँ जाते हैं। कुछ दोस्तों के साथ गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं। वहाँ हर बार बहुत लोग नए मिलते हैं, उन से बात करते हैं। मंदिरों के दर्शन करते हैं। वहाँ उन की व्यथा कथा कोई रुचि से सुनता है और अपनी सुनाता है तो घावों पर मरहम लग जाते हैं। एक डेढ़ दिन वहाँ बिता कर वापस आते हैं तो उन का रूटीन टूटता है। वहाँ से लौटने पर वे जीवन में एक बदलाव महसूस करते हैं। वे हर माह वहाँ जाने लगते हैं उस में उन्हें आनंद मिलने लगता है।
रीडर साहब के साथ वहाँ बैठे लोग भी मेरी बात से सहमत हो जाते हैं। मैं कहता हूँ  -लोग अनेक तरह से आनंद लेते हैं। कोई रोज शाम को काम से निपटते ही बगीची भागता है। जहाँ और लोग मिलते हैं, सब मिल कर विजया पीसते हैं फिर छान कर महादेव को भोग लगाते हैं। शाम का भोजन कर फिर कोई संगीत सुनता है, कोई गाने वालों की महफिल में चला जाता है तो कोई पान की दुकान पर या मुहल्ले में गप्पे मारने चला जाता है। वे अपने तरीके से आनंद लेते हैं। कोई शाम को पैग लगा कर नदी किनारे या पार्क में जा बैठता है, या भोजन कर के बिस्तर पर सोने चला जाता है। जिस को जिस में आनंद मिलता है वह वही करता है। कई बार तो यह आनंद भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी और बरसात से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। 
मैं थोड़ी देर रुकता हूँ। तो वहाँ बैठे लोगों में कोई बोल पड़ता है, -लोग आनंद के लिए मरने भी चले जाते हैं। उन पढ़े लिखे नौजवानों को देखिए जो अच्छी भली नौकरियाँ और धन्धों को छोड़ कर दुनिया बदलने के नशे में जंगल में जा कर बंदूक उठा लेते हैं। उन्हें जान की परवाह ही नहीं है। मैं ने सुना है बड़े बड़े नगरों की जवान लड़कियाँ भी उन में शामिल हैं। और उसे देखो वह कसाब? दस लोगों के साथ यहाँ आया था। बाकी नौ मर गए। वह जेल में पड़ा अपनी मौत का इंतजार कर रहा है। बड़ी बुरी गुजरी उस पर।  जरूर सोच रहा होगा -वे नौ मर गए साले। उन्हें जरूर जन्नत में हूरें मिल गई होंगी। एक मैं ही बचा जिसे ये लोग सजा भी नहीं दे रहे हैं। पता नहीं कब तक नहीं देंगे? मुझे न जाने कब हूर मिलेगी?

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

मीडिया उत्तेजना फैलाने में न्यायालय की अवमानना की भी परवाह नहीं करता

मीडिया समाचारों के मंतव्यों को बदलता है, यह बात अब छुपी हुई नहीं रह गई है। वह समाचारों को अपने हिसाब से लिखता है जिस से एक विशेष प्रतिक्रिया हो और उस खबर को खास तौर पर पढ़ा जाए। उसे इस बात का भी ध्यान नहीं रहता कि इस प्रकार वह समाज में क्षोभ भी उत्पन्न कर सकता है। अदालती समाचारों को कवर करते समय वह इस बात का भी ध्यान नहीं रखता है कि इस तरह न्यायालय की अवमानना भी वह कर रहा है। हाथ कंगन को आरसी क्या। खुद एक समाचार को पढ़ लीजिए जो विभिन्न समाचार पत्रों और उन के नैट संस्करणों में पिछले दिनों छपा है। यहाँ शीर्षक और लिंक दिए गए हैं। आप चाहें तो उन के मूल स्रोत पर जा कर पूरा समाचार पढ़ सकते हैं। 

A ruling by the Supreme Court, upholding as illegal the second marriage by a Muslim employee of Rajasthan Government without divorcing first wife, has ...
 
 
 
Examiner.com -03-02-2010
The Indian Supreme Court ruled that a government employee, who happens to be Muslim, could not legally marry his second wife without divorcing the first ...

बीबीसी हिन्दी - ‎29-01-2010
अदालत में लियाक़त अली ने कहा कि उन्होंने पहली पत्नी फ़रीदा ख़ातून से मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक़ लेने के बाद मक़सूद ख़ातून से दूसरा निकाह किया था. लेकिन सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि इस मामले में जाँच समिति ने पाया कि लियाक़त अली ने पहली पत्नी से बिना तलाक़ लिए ही दूसरा विवाह कर लिया और ऐसा करके सरकारी कर्मचारियों के लिए बने नियमों का उल्लंघन किया है. सरकारी वकील अमित भंडारी ने अदालत को बताया कि राजस्थान सर्विस ...

IBNKhabar - 29-01-2010
जयपुर। मुस्लिम समाज में एक से अधिक विवाह की बात को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। यह बहस तब शुरू हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान पुलिस के एक कर्मचारी लियाक़त अली को पहली पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करने पर नौकरी से निकालने के सरकार के फैसले को उचित ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें ये कहा गया था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी एक पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी नहीं कर सकती। ...

दैनिक भास्कर - 29-01-2010
जयपुर. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार के उस फैसले को सही करार दिया है, जिसमें एक मुस्लिम कर्मचारी लियाकत अली को दूसरी शादी करने की वजह से नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि पहली पत्नी के रहते कोई भी सरकारी कर्मचारी दूसरा विवाह नहीं कर सकता। अगर कोई लोकसेवक ऐसा करता है तो उसे सरकारी नौकरी से बर्खास्त करना उचित है। राज्य सरकार की ओर से शुक्रवार को यहां बताया गया कि ...
(यहाँ सभी लिंक गूगल समाचार से प्राप्त किए गए हैं)

ह समाचार इस तरह था कि एक कांस्टेबल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए तथा एक पत्नी के होते हुए भी दूसरा विवाह कर लिया। यह कांस्टेबल मुस्लिम था इस कारण से उस का यह दूसरा विवाह कानूनी तो था। लेकिन दूसरा विवाह कर के उस ने अपनी नौकरी की शर्त को भंग कर दिया। नौकरी की शर्त यह थी कि कोई भी सरकारी कर्मचारी बिना अनुमति के दूसरा विवाह नहीं कर सकता। इस तरह शर्त को भंग करना नौकरी में एक दुराचरण था। जिस के लिए उसे आरोप पत्र दिया गया और आरोप सही सिद्ध होने पर उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। उस ने न्यायालय में बर्खास्तगी के इस आदेश को चुनौती दी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने बर्खास्तगी को उचित माना। कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील प्रस्तुत की जिसे उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपील स्वीकार न करने के समाचार को कुछ समाचार पत्रों ने इस तरह प्रकाशित किया कि मुस्लिम सरकारी कर्मचारी द्वारा एक पत्नी के होते दूसरा विवाह अवैध है। जब कि यह बात सिरे से गलत थी। लेकिन इस तरह समाचार प्रकाशित कर समाचार पत्रों ने जहाँ मुस्लिम समुदाय में उत्तेजना पैदा की वहीं उन के विरोधियों और समान नागरिक संहिता के समर्थकों को प्रसन्नता से उत्तेजित होने का अवसर प्रदान किया। इस तरह हम देखते हैं कि आज पत्रकारिता किस तरह उत्तेजना उत्पन्न करने का यत्न करती है। यह तो देश में अदालतें जरूरत की एक चौथाई हैं दस लाख की आबादी पर केवल 11-12 मात्र, और ऊंची अदालतों के पास भी बहुत काम है जिस से वे इन घटनाओं की ओर ध्यान नहीं दे पाती हैं। यदि यही घटना अमरीका जैसे देश में घटी होती जहाँ दस लाख की जनसंख्या पर 111 अदालतें हैं, तो इन अखबारों के संपादकों को न्यायालय की अवमानना के नोटिस मिल चुके होते।
हाँ मेरा मंतव्य केवल समाचार पत्रों की रिपोर्टिंग की ओर इशारा करना था। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय किसी भी प्रकार से मुस्लिम पर्सनल लॉ के विरुद्ध नहीं है, इस पर मैं तीसरा खंबा में लिखूंगा। वहाँ इस मामले से संबंधित एक प्रश्न भी मुझे मिला हुआ है।