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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अवसर को निजि हित में इस्तेमाल करने वालों से बचे

भ्रष्टाचार विरोधी जन अभियान की आँच देश के कोने कोने तक पहुँच रही है। ऐसे में मेरा नगर कोटा कैसे चुप रह सकता था। यहाँ भी गतिविधियाँ आरंभ हो गई हैं। गतिविधियों की एक रपट अख्तर खान अकेला ने अपने ब्लाग पर यहाँ प्रस्तुत की है। कल शाम बहुत से गैर राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई गई है। उस में कोटा में इस आन्दोलन को आगे बढ़ाने की योजना पर विचार होगा। इस बैठक में उपस्थित रहने का मेरा पूरा प्रयास रहेगा।
ज कोटा न्यायालय में भी इस आंदोलन की सुगबुगाहट रही। वकील आपस में बातें करते रहे कि उन्हें भी इस मामले में कुछ करना चाहिए। किसी ने कहा कि कल वकीलों को न्यायिक कार्य का बहिष्कार कर धरने पर बैठ जाना चाहिए। कुछ देर बाद दो वकील एक आवेदन पर वकीलों के हस्ताक्षर कराते दिखाई दिए। हर स्थान पर वकीलों का एक वर्ग होता है जो  इस तरह के मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें मुकदमे का निर्णय न होने में अधिक लाभ होता है। ये दीवानी मामलों के वे पक्षकार होते हैं जिन के विरुद्ध न्यायालय से राहत मांगी गई होती है। या फिर वे अभियुक्त होते हैं जिन्हें सजा का भय सताता रहता है और मुकदमे के निर्णय को टालते रहते हैं। यह वर्ग हमेशा इस तलाश में रहता है कि कोई मुद्दा मिले और वे न्यायिक कार्य का बहिष्कार (वकीलों की हड़ताल) कराएँ। वकीलों की हड़ताल कभी दो-चार लोगों या वकीलों के एक समूह के आव्हान पर नहीं होती। वह हमेशा अभिभाषक परिषद के निर्णय पर होती है। ये दोनों वकील अभिभाषक परिषद को कल की हड़ताल रखने के लिए परिषद को दिए जाने वाले ज्ञापन पर वकीलों के हस्ताक्षर प्राप्त करने का अभियान चला रहे थे।
वे मेरे पास भी आए। मैं ने आवेदन पढ़ा और उस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। उन्हों ने पूछा -आप अण्णा के आंदोलन का समर्थन करते हैं?  मैं ने कहा -हाँ। -तो फिर आप को इस आवेदन पर हस्ताक्षर कर देने चाहिए। मैंने उन्हें कहा कि अण्णा कामबंदी पसंद नहीं करते, आप अण्णा की शुचिता के विरुद्ध काम कर रहे हैं। आप को अण्णा के आंदोलन का समर्थन करना है तो अभिभाषक परिषद की आम-सभा बुलवाइए और उस में संकल्प लीजिए कि कोई भी वकील और उस का मुंशी अदालत के किसी भी क्लर्क, चपरासी, न्यायाधीश, सरकारी अभियोजक और पुलिसकर्मी को जीवन में कभी कोई रिश्वत नहीं देगा। यदि किसी वकील या उस के मुंशी का ऐसा करना प्रमाणित हुआ तो उसे त्वरित कार्यवाही कर के अभिभाषक परिषद की सदस्यता से जीवन भर के लिए निष्कासित कर दिया जाएगा और बार कौंसिल को यह सिफारिश की जाएगी कि वह उस का वकालत करने का अधिकार सदैव के लिए समाप्त कर दे। इतना सुनने पर दोनों वकील अपना आवेदन ले कर आगे बढ़ गए।
मैं जानता था कि यदि सौ लोगों से हस्ताक्षर युक्त आवेदन भी अभिभाषक परिषद के पास पहुँचा तो कार्यकारिणी दिन भर के न्यायिक कार्य के बहिष्कार की घोषणा कर देगी। मैं तुरंत अभिभाषक परिषद के अध्यक्ष के पास पहुँचा और उन्हें एक लिखित पत्र दिया, कि कुछ लोग अण्णा के आन्दोलन का समर्थन करने के बहाने आप से कल न्यायिक कार्य स्थगित करने का निर्णय लेने के लिए वकीलों से हस्ताक्षर करवा रहे हैं। आवेदन कुछ ही देर में आप तक पहुँचेगा। किन्तु अण्णा कामबंदी पसंद नहीं करते। यदि अभिभाषक परिषद इस आंदोलन का समर्थन करती है तो सब से पहले उस के प्रत्येक सदस्य को यह संकल्प करना होगा कि वह स्वयं को आजीवन भ्रष्टाचार से मुक्त होने की घोषणा करे। इस के बाद ही इस आंदोलन के समर्थन में खड़ा हो और कामबंदी  बिलकुल न की जाए।
शाम को अभिभाषक परिषद की कार्यकारिणी की बैठक हुई। मैं ने अभी परिषद के अध्यक्ष को फोन पर पूछा कि क्या  निर्णय लिया गया? तो उन्हों ने बताया कि केवल दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक न्यायिक कार्य को स्थगित किया जाएगा और सभी अभिभाषक इस अवधि में धरने पर उपस्थित हो कर अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करेंगे। उन्हों ने बताया कि मेरे पत्र पर विचार किया गया था। लेकिन इस सम्बन्ध में आम राय होने पर ही कोई प्रस्ताव लिया जाना संभव है। 
मेरा अपना मत है कि जो व्यक्ति स्वयं भ्रष्टाचार से दूर रहने का संकल्प नहीं करता है उसे इस आंदोलन का समर्थन करने और उस में शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे लोगों के समर्थन और आंदोलन में  शिरकत से आंदोलन को मजबूती नहीं मिलेगी। ऐसे लोग आंदोलन को कमजोर ही कर सकते हैं। आम लोगों में हर घटना, हर अवसर को अपने निजि स्वार्थ के लिए उपयोग कर लेने की प्रवृत्ति होती है। लेकिन इस आंदोलन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि वह ऐसी प्रवृत्ति पर काबू करने की समुचित व्यवस्था बनाए रखी जाए। हमारे यहाँ व्यवस्था गिराऊ आंदोलन सफलता प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन एक व्यवस्था के गिरने पर कोई भी देश किसी निर्वात में नहीं जी सकता। उसे एक वैकल्पिक व्यवस्था दिया जाना आवश्यक है। यदि मजूबत वैकल्पिक व्यवस्था न मिले तो जिन प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए विजय प्राप्त की जाती है वे ही फिर से हावी हो कर नई व्यवस्था को पहले से अधिक प्रदूषित कर देती हैं। 

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

राजनैतिक स्वार्थों को साधने का घृणित अवसरवाद

मुझे पिछले दिनों दो बार जोधपुर यात्रा करनी पड़ी।  दोनों यात्राओं का सिलसिला एक ही था। एक उद्योग में नियोजित श्रमिकों ने अपनी ट्रेड यूनियन बना कर पंजीकृत कराई थी। जब उद्योग के दो तिहाई से भी अधिक श्रमिक इस यूनियन के सदस्य हो गए और उन्हों ने कानून के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को लागू करने की मांग की तो उद्योग के मालिकों के माथे पर बल पड़ने आरंभ हो गए। उन्हों ने यूनियन का पंजीयन प्रमाणपत्र रद्द कर ने के लिए ट्रेड यूनियन पंजीयक के सामने एक आवेदन प्रस्तुत किया। इसी आवेदन में यूनियन का पक्ष रखने के लिए यह यात्रा हुई थी। उस का कानूनी पक्ष क्या था। यह यहाँ इस आलेख का विषय नहीं है। उसे फिर कभी 'तीसरा खंबा' पर प्रस्तुत किया जाएगा। पहली सुनवाई के दिन जोधपुर बंद था। मांग यह थी कि उदयपुर और बीकानेर के वकीलों की मांग पर राजस्थान हाईकोर्ट की बैंचे न खोली जाएँ और एक बार विभाजित हो चुके हाईकोर्ट को विभाजित न किया जाए। हाईकोर्ट की अधिक बैंचें स्थापित किए जाने का विषय भी विस्तृत है और यह आलेख उस के बारे में भी नहीं है। इन विषयों पर आलेख फिर कभी 'तीसरा खंबा' पर प्रस्तुत किए जाएँगे।

उस दिन सुनवाई के समय कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से उद्योग के कोई सौ से अधिक मजदूर आए थे। वे अपने झंडे लिए जब ट्रेड यूनियन पंजीयक के कार्यालय की और जा रहे थे तो बंद कराने वालों का एक समूह वहाँ से गुजरा और उन्हों ने झंडे लिए मजदूरों को देखते ही नारे लगाने आरंभ कर दिए 'वकील-मजदूर एकता जिन्दाबाद !' मजदूरों ने भी उन के स्वर में स्वर मिलाया। कुछ देर नारेबाजी चलती रही फिर दोनों अपनी राह चल दिए। जब मजदूर पंजीयक कार्यालय पहुँचे तो वहाँ वे बाहर कुछ देर नारे लगाते रहे वहाँ बंद समर्थकों का एक और समूह आ निकला। फिर से नारे लगने लगे। मजदूरों ने भी वकील-मजदूर एकता के नारों में साथ दिया और साथ में अपने नारे भी लगाए जिस में उस समूह के लोगों ने भी साथ दिया। बंद समर्थक समूह में शिवसेना के कुछ कार्यकर्ता भी थे। जिन की पहचान गले में डाले हुए केसरिया रंग के पटके जिस पर लाल रंग से शिव सेना छपा था से स्पष्ट थी। उन्हों ने मारवाड़ के गौरव के संबंध में कुछ नारे लगाए। फिर यह भी कहा कि  उन्हें पृथक मारवाड़ राज्य  दे दिया जाए तो उन का अपना अविभाजित हाईकोर्ट वापस मिल जाएगा। फिर शेष राजस्थान का हाईकोर्ट वे कहीं भी ले जाएँ। इस तरह हाईकोर्ट को विभाजित नहीं किए जाने की मांग के बीच प्रदेश को ही विभाजित कर डालने की मांग पसरी दिखाई दी। 

कोटा वालों की यह पुरानी मांग है कि राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच के पास लम्बित मुकदमों मे चालीस प्रतिशत सिर्फ हाड़ौती से हैं, इस कारण से कोटा में भी एक बैंच स्थापित की जानी चाहिए। अपनी इस मांग के समर्थन में वे विगत छह वर्षों से माह के अंतिम शनिवार को हड़ताल रखते हैं। जब देखा कि हाईकोर्ट बैंच के लिए उदयपुर वाले पिछले दो माह से और बीकानेर वाले एक माह से अधिक से संघर्ष कर रहे हैं। यदि इस अवसर पर कोटा वाले चुप रहे तो कोटा में बैंच खोलने की उन की मांग कमजोर पड़ जाएगी। तो वे भी 31 अगस्त से हड़ताल पर आ गए हैं। वकीलों के काम न करने के कारण उदयपुर, बीकानेर और कोटा संभागों में अदालती काम पूरी तरह से ठप्प हो चुका है। 


आज सुबह जब मैं कोटा पहुँचा तो यहाँ हाईकोर्ट की बैंच कोटा में स्थापित करने के समर्थन में शिवसेना ने कलेक्ट्री के बाहर धरना दिया हुआ था। सुबह से ले कर शाम तक जोरों से भाषण होते रहे और नारे लगते रहे। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि जोधपुर में शिवसेना हाईकोर्ट को विभाजित न करने के आंदोलन के साथ थी तो कोटा में उसे विभाजित करने के आंदोलन के साथ। एक ही दल के दो संभागों की शाखाएं आमने सामने खड़ी थीं। गनीमत यह थी कि जोधपुर की शिवसेना जो दबे स्वरों में मारवाड़ प्रांत अलग स्थापित करने की मांग कर रही थी। कोटा की शिवसेना ने पृथक हाड़ौती प्रांत जैसी कोई मांग नहीं उठा रही थी। मैं सोच रहा था कि राजनैतिक स्वार्थों को साधने का  इस से घृणित भी कोई अवसरवादी रूप हो सकता है क्या?