@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अक्ल
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शनिवार, 24 मार्च 2012

भैस की अक्ल

ल जब दूध लेने गए, तो दूध निकलने में देर थी। मैं अपनी कार में बैठे इन्तजार करने लगा। पास में एक भैंस खूंटे से बंधी थी। वह खड़ी होना चाहती थी लेकिन उस के मुहँ से बंधी रस्सी इस तरह उस के सींग में फँस गई थी कि वह खड़ी होती तो जरा भी इधर उधर न खिसक सकती थी, जो उस के लिए बहुत कष्ट दायक स्थिति होती। वह लगातार प्रयास कर रही थी कि सींग में फँसी रस्सी निकल जाए। वह निकाल भी लेती लेकिन फिर से सींग में फँस जाती। आखिर वह खड़ी हुई और सिर झुकाए झुकाए रस्सी को निकालने का प्रयत्न किया। एक दो बार असफल हुई। मैं ने सोचा उस का वीडियो लिया जाए। मैं तैयार हुआ, भैंस ने कोशिश की और इस बार वह असफल नहीं हुई। उस ने सींग में से रस्सी को निकाल ही दिया। शायद वह वीडियो उतारने का ही इंतजार कर रही थी। शॉट पहली बार में ही ओ.के. हो गया।    




सही कहा है ... 

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, 
रसरी आवत जात हि सिल पर होत निसान