tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post6857780877878158285..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: उद्यम भी श्रम ही हैदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-17978990979668039732011-11-11T02:17:23.592+05:302011-11-11T02:17:23.592+05:30गम्भीर लेख है…इन दिनों वेतन पर हम भी सोच रहे हैं…गम्भीर लेख है…इन दिनों वेतन पर हम भी सोच रहे हैं…चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-57412553705087641022009-06-13T08:26:28.923+05:302009-06-13T08:26:28.923+05:30आपनें काफी कुछ स्पस्ट कर दिया है .आपनें काफी कुछ स्पस्ट कर दिया है .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-42828791029414931822009-06-12T12:17:25.326+05:302009-06-12T12:17:25.326+05:30एक बढि़या आलेख।
हर आदमी के पास छोटी सी जिंदगी है,...एक बढि़या आलेख।<br /><br />हर आदमी के पास छोटी सी जिंदगी है, और मानवजाति के ज्ञान और समझ का विस्तार बहुत अधिक। मनुष्य के अनुभवों का विस्तार उसके क्रियाक्षेत्र के दायरे में सीमित होता है।<br /><br />इसलिए व्यक्तिगत अनुभवों से चीज़े उसकी ज़िंदगी के लिए तो निर्धारित हो सकती है, समग्र सामाजिक रूप से नहीं। अपने निजी अनुभवों के दम पर अपनी श्रेष्ठता और सामाजिक प्रतिष्ठा पाना पहले आसान था, जब ज्ञान और समझ सीमित थे। इस प्राचीन प्रवृति से बचा जाना चाहिए।<br /><br />मनुष्य को अपने अनुभवों के इस अंतर्विरोध को समझना चाहिए और उसे समग्रता की ओर विस्तार देना चाहिए, उसे अपने अनुभवों को व्यापक सामाजिक ऐतिहासिक अनुभवों के सापेक्ष देखने की प्रवृति विकसित करनी चाहिए तभी गलत निष्कर्षो से बचा जा सकता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-21594549419998814352009-06-12T08:09:03.141+05:302009-06-12T08:09:03.141+05:30@ शहीद भगत सिंह विचार मंच, संतनगर:
शिक्षा जगत में ...@ शहीद भगत सिंह विचार मंच, संतनगर:<br />शिक्षा जगत में डण्डा अभी भी है बन्धुवर। रूप बदल गया है। जरा बारीकी से किसी भी 'ढंग' के प्राइवेट या सरकारी स्कूल में एक दिन बिताएं, समझ में आ जाएगा। वादी या प्रतिवादी कुछ नही हूँ। एक 'बहका' हुआ 'सिद्धांतहीन' व्यक्ति हूँ। बकबक किया करता हूँ। <br /><br />@ दिनेश राय द्विवेदी जी<br />आप का 'तीसरा खम्भा' के हिन्दी फाण्ट मुझे अजीब अजीब ज्यामिति दिखाते हैं। क्या करूँ कि पढ़ना हो सके? कृपया मार्ग दर्शन करें। धन्यवाद, सादरगिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-22613158320446622082009-06-12T06:46:34.440+05:302009-06-12T06:46:34.440+05:30पिछले कई दिनों से ज्ञान जी के ब्लॉग पर जाने में तक...पिछले कई दिनों से ज्ञान जी के ब्लॉग पर जाने में तकनीकी कठिनाई आ रही है इसलिए उनका पक्ष नहीं पढ़ सका मगर आपके मत से एकाध सहमती और उतने ही मतभेद भी हैं. यह सही है कि बहुत से लोग शारीरिक श्रम को को हेय मानते हैं परन्तु हमारी सारी संस्कृति का आधार ही श्रम, तप और कर्म पर टिका है. श्रम का महत्त्व है मगर जब वह श्रम पूंजी को बेच दिया गया है तब उस श्रम के आधार पर दादागिरी भी उतनी ही गलत है जितना कि श्रमजीवियों का शोषण. सवाल पूंजी और श्रम का नहीं है, सवाल तिकड़मों से दूसरों को उल्लू बनाने का है. चाहे लालची मालिक मजदूर को बनाना चाहे, चाहे हेकड़ मजदूर कमज़ोर मालिक को और चाहे मजदूर संगठन का आराम-तलब और अय्याश नेता मालिक और मजदूर दोनों को बनाना चाहे. <b>कभी भी कोई उद्योग किसी यूनियन की हड़ताल के कारण बंद नहीं होता।</b> का यह अर्थ नहीं है कि ऐसा हो ही नहीं सकता या कभी हुआ नहीं.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-55777651397152658502009-06-12T01:08:57.354+05:302009-06-12T01:08:57.354+05:30जो भी हो अकार्यकुशलता पर प्रीमियम चाहने वाले कई लो...जो भी हो अकार्यकुशलता पर प्रीमियम चाहने वाले कई लोगों से मैं मिल चूका हूँ और उनसे सहानुभूति नहीं हो सकती !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-43608959919259878272009-06-11T19:52:29.545+05:302009-06-11T19:52:29.545+05:30@ गिरिजेश राव
नया नया टिप्पणी मोडरेशन लगाया है,गल...@ गिरिजेश राव <br />नया नया टिप्पणी मोडरेशन लगाया है,गलती से आप की टिप्पणी मोडरेट हो गई। उन की टिप्पणी निम्न प्रकार है।<br />गिरिजेश राव has left a new comment on your post "उद्यम भी श्रम ही है":<br /><br />बौद्धिक तर्क सेसन्स भले किसी और सहमति पर पहुँचे लेकिन ब्लण्ट सत्य यही है कि आदमी के सिर से तलवार हटी नहीं कि वह बहका ।<br /><br />श्रमिक, अधिकारी चाहे जो वर्ग हो; उद्यम कहें या श्रम; शारीरिक हो या मानसिक - डण्डा घूमते रहना चाहिए। अन्यथा कोई काम नहीं करता। औद्योगिक दुर्दशा का एक मुख्य कारण यही है। मुझे अधिक अनुभव तो नहीं है लेकिन 15 साल कम भी नहीं होते।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-24498902323707886032009-06-11T17:08:02.794+05:302009-06-11T17:08:02.794+05:30bahut hi mehanat se likha gaya blog
jyaan ko bist...bahut hi mehanat se likha gaya blog <br />jyaan ko bistar deti lekh....aatamaओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-73851402825198756492009-06-11T13:23:24.576+05:302009-06-11T13:23:24.576+05:30ज्ञानजी ने ओर आप ने जो भी कहा सब हमे उचित लगा लेकि...ज्ञानजी ने ओर आप ने जो भी कहा सब हमे उचित लगा लेकिन एक मजदुर से तो यह पुछो उसे कया उचित लगेगा, अजी उस गरीब को तो शाम को रोटी चाहिये, <br />देश हित के लिये कुछ मामले ऎसे होते है जिन पर तुरंत फ़ेंसला करना चाहिये, अगर देश की सीमा पर दुशमन ने हमला कर दिया तो क्या हमारे नेता उस फ़ेसले को भी क्रमश ही लेगे...<br />लेकिन आज आप ने बहुत मेहनत से यह लेख लिखा, ओर सारी बारीकियो को बहुत ढंग से समझाया, फ़िर भी कई बातो पर आप से असहमति बनी,लेकिन एक वकील होने के नाते आप से सही लिखा. ओर हम एक आम नागरिक होने के नाते अपने विचार रख रहे है. <br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-6800481692327461252009-06-11T12:41:58.416+05:302009-06-11T12:41:58.416+05:30गिरिजेश राव जी अपने पंद्रह वर्षों के अनुभव से मानत...गिरिजेश राव जी अपने पंद्रह वर्षों के अनुभव से मानते हैं कि बगैर डंडे के कोई काम नहीं करता.<br /><br />पहले अनुभव से लोग यह भी मानते थे कि बगैर डंडे के कोई पढाई नहीं करता. लेकिन सिद्धांत इसकी पुष्टि नहीं करता था. डंडे का प्रयोग ख़त्म हो चुका है लेकिन पढने वाले पहले से कम नहीं पढ़ रहे हैं बल्कि कुछ ज्यादा ही पढ़ रहे हैं.<br /><br />कहा न, गिरिजेश राव जी अनुभव के कारण अनुभववादी हो जाते हैं और सिद्धांत के मामले में बहके से लगते हैं.शहीद भगत सिंह विचार मंच, संतनगरhttps://www.blogger.com/profile/15974638576824560477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-73890408355765003582009-06-11T10:41:08.330+05:302009-06-11T10:41:08.330+05:30मुझे कुछ कुछ याद है पूर्व में विशेष मामलों में विश...मुझे कुछ कुछ याद है पूर्व में विशेष मामलों में विशेष अदालत गठीत कर तुरंत फुरंत निर्णय लिये गए थे.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-58022835166233626362009-06-11T04:35:43.305+05:302009-06-11T04:35:43.305+05:30बहुत मेहनत से लिखा गया लेख। सही विश्लेषण।
श्रम की ...बहुत मेहनत से लिखा गया लेख। सही विश्लेषण।<br />श्रम की भरपायी न हो, श्रम से रोटी अर्जित न की जा सके तो किस काम का। बेगारी करानवाले समजा को नष्ट होना ही चाहिए। आज वैसा तो नहीं है। <br /><br />सवाल यह है कि श्रमिकों के हितों की बात करनेवाले लेफ्टिस्टों को कितनी परवाह है श्रमिकों की? वो तो सिर्फ सत्ता की गोटियां बैठाते हैं, जातिगत समीकरणों पर अमल करते हैं। सिर्फ हड़तालों के बूते उन्होंने इस देश से ही नहीं दुनियाभर से श्रमिकों के हितों के इस बेहतरीन हथियार अर्थात हड़ताल को नुकसानदेह बना दिया है। आज आप उन शर्तों पर काम करते हैं कि अपना संगठन नहीं बना सकते। बदले में पढ़ेलिखे तबके को ऐसी तनख्वाह भी मिल रही है, मगर बाकी अल्पवेतन भोगियों का क्या? इस देश के श्रमिक नेताओं की जबर्दस्त हार हुई है। वे नाकारा और मतलबपरस्त साबित हुए हैं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-51812276664318209792009-06-10T22:44:21.646+05:302009-06-10T22:44:21.646+05:30आपने जिस तरह से चीजो को विश्लेषित किया है उससे एक ...आपने जिस तरह से चीजो को विश्लेषित किया है उससे एक नये आयाम मे जाने और बातो को समझने का मौका मिला.बसंत आर्यhttps://www.blogger.com/profile/15804411384177085225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-43717292302415333002009-06-10T22:35:36.299+05:302009-06-10T22:35:36.299+05:30ज्ञानजी ने बताया है कि इमोशनल ज्ञानदत्त पाण्डेय ने...ज्ञानजी ने बताया है कि इमोशनल ज्ञानदत्त पाण्डेय ने वह लेख लिखा है(शायद दूसरे भाग के लिये ही उन्होंने कहा हो यह)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-77744152383378200922009-06-10T22:12:19.632+05:302009-06-10T22:12:19.632+05:30राव जी की बात से सहमत।राव जी की बात से सहमत।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.com