tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post6697207217299871263..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: मनुष्य की मूलभूत जैवीय जरूरतें उस के विचारों को संचालित करती हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-56803375605494546382010-06-11T18:07:39.330+05:302010-06-11T18:07:39.330+05:30उपर्युक्त लिंक पर मेरे निम्न विचार पोस्ट किये गए थ...उपर्युक्त लिंक पर मेरे निम्न विचार पोस्ट किये गए थे मगर उन्हें प्रकाशित नहीं किया गया ....<br />यह अकादमीय सहिष्णुता और स्वस्थ परम्पराओं विरुद्ध है और अपने वैचारिक विरोधी को येन केंन प्रकार उपेक्षित करने<br />की कुटिल नीति है -ऐसा पहले भी हो चुका है -इन हथकंडों से क्या कभी गहन विचार विमर्श हो सकता है?<br />मैं अपनी टिप्पणी यहाँ अभिलेखार्थ ,आगामी यथावश्यक संदर्भ और सुधी जनों के परिशीलानार्थ हेतु प्रस्तुत करता हूँ-<br /><br />१-डेज्मांड मोरिस के भी कुछ मुखर विरोधी हैं ,डार्विन के भी थे .....और हैं आज भी ...फिर भी उनकी जैव विज्ञान व्यवहार शास्त्र में आज एक सम्मानजनक पोजीशन है !<br />२-सहज बोध/वृत्ति और अनुवर्ती प्रतिवर्त दोनों अलग विषय हैं -एक नहीं ,आप अनुवर्ती प्रतिवर्त की चर्चा कर रही है जो मूलतः आनुवंशिक उद्गम का है -हाथ से अचानक छूती चीज को सहसा उठाने का उपक्रम एक ऐसा ही अनुवर्त है -खतरनाक भी हो सकता है -हाथ से छूता रेजर ,उस्तरा पकड़ने के चक्कर में आपके हाथ को घायल कर सकता है ..जाहिर है इसमें चेतनता का कोई रोल नहीं है !<br />३अपने आदिवासी औरतों की संकल्पना की जांच आप उन्हें वहां से दूसरे समाज लाकर कर सकती है ! उनके समाज में एक दूसरा व्यवहार हैबिचुयेशन प्रभावी होता है -रूस के कुछ क्षेत्रों में अनावृत्त बक्श महिलायें लोगों को आकर्षित करती हैं लोग तवज्जो ही नहीं देते -नंगा बाबा नंग धडंग घूमते हैं -कोइ प्रभाव नहीं रहता -यह हैबिचुएशन है !<br />अभी और पढ़िए !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-8513556598343195712010-06-11T13:14:35.613+05:302010-06-11T13:14:35.613+05:30http://sanchika.blogspot.com/2010/06/blog-post.htm...http://sanchika.blogspot.com/2010/06/blog-post.htmlL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-57553723567145641242010-06-08T21:08:12.812+05:302010-06-08T21:08:12.812+05:30यहाँ पर एक आरंभिक किन्तु मूलभूत विवेचन उपलब्ध हो ...यहाँ पर एक आरंभिक किन्तु मूलभूत विवेचन उपलब्ध हो गया है -<br />http://indianscifiarvind.blogspot.com/2010/06/blog-post.htmlArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-69192404591714785282010-06-08T19:54:56.611+05:302010-06-08T19:54:56.611+05:30@आशा है इंसानों के व्यवहार पर लेख मिलेगा.@आशा है इंसानों के व्यवहार पर लेख मिलेगा.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80655992646738892352010-06-08T19:38:49.999+05:302010-06-08T19:38:49.999+05:30@इस बहस में रूचि लेने वालों का साईब्लोग पर स्वागत ...@इस बहस में रूचि लेने वालों का साईब्लोग पर स्वागत रहेगा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-77403612277849582222010-06-08T19:35:45.286+05:302010-06-08T19:35:45.286+05:30@अरविन्द जी - अब कौन भाग रहा है? मैं की आप?
खैर ....@अरविन्द जी - अब कौन भाग रहा है? मैं की आप?<br /><br />खैर ..मेरी और से भी धन्यवाद ..दिनेश जी.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-16111392330665094682010-06-08T19:34:20.646+05:302010-06-08T19:34:20.646+05:30The study of monkeys and apes, humanity’s closest ...The study of monkeys and apes, humanity’s closest relatives has threatened the classical view. The monkey’s complex social interactions are key to understanding sex and reproduction in our primitive relatives . <br />- Barry Keverne ( Director of Research in Behavioural Neuroscience and Director of Sub-Department of Animal Behaviour)<br />इंसानों की बात कीजिये .. ऐसे १५-२० शोध परिप्रेक्ष्य मैं आपको ऐसे ही दे सकती हूँ ..विकिपीडिया तो फिर भी प्रमाणिक नही है. २०-२५ साल पाहले से अब तक इसमें काफी शोध हो छुए हैं ..यह 1990 का हैL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-38380146712040987192010-06-08T19:29:39.100+05:302010-06-08T19:29:39.100+05:30@लवली जी,
दोनों लिंक देने के लिए धन्यवाद!
@डॉ. अरव...@लवली जी,<br />दोनों लिंक देने के लिए धन्यवाद!<br />@डॉ. अरविंद जी<br />मेरा आग्रह है कि, लवली जी ने जिन दो आलेखों के लिंक दिए हैं, उन्हें अवश्य पढ़ लेना चाहिए।<br />साई ब्लाग वाले आलेखों की प्रतीक्षा रहेगी।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-20444711294775483842010-06-08T19:23:41.831+05:302010-06-08T19:23:41.831+05:30@द्विवेदी जी ,
आदेश शिरोधार्य बंधुवर ,
साई ब्लॉग प...@द्विवेदी जी ,<br />आदेश शिरोधार्य बंधुवर ,<br />साई ब्लॉग पर आप आमत्रित है -<br />कल सुबह तक आप इथोलोजी और साईकोलोजी के अंतर्द्वंद्वों और अंतर्विरोधों<br />और इनसे जुडी अज्ञानता पर पोस्ट पायेगें !<br />अब चूंकि यहाँ बहस करने की कोई गुंजायश नहीं शेष है आपको धन्यवाद देते हुए प्रस्थान करता हूँ !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-48164599137653680322010-06-08T19:16:47.797+05:302010-06-08T19:16:47.797+05:30@In the book An Instinct for Dragons[7] anthropol...@In the book An Instinct for Dragons[7] anthropologist David E. Jones suggests a hypothesis that humans just like monkeys have inherited instinctive reactions to snakes, large cats and birds of prey. <br />http://en.wikipedia.org/wiki/Instinct<br />]*अभद्र व्यवहार और असभ्यता आपके लिए सामान्य बात है<br />*अज्ञानतापूर्ण अहंकार!<br />और अब सामान मनसा नारियों के आह्वान का एस ओ एस !<br />क्या है यह ?<br /><br />रेफरी रेफरी रेफरी ......Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-18148366247928834482010-06-08T19:11:20.891+05:302010-06-08T19:11:20.891+05:30http://sanchika.blogspot.com/2010/04/blog-post.htm...http://sanchika.blogspot.com/2010/04/blog-post.htmlL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-34731653198412128072010-06-08T19:05:38.291+05:302010-06-08T19:05:38.291+05:30@लवली जी,
जिस आलेख का आप ने लिंक दिया है, संभवतः अ...@लवली जी,<br />जिस आलेख का आप ने लिंक दिया है, संभवतः अरविंद जी ने उसे नहीं पढ़ा है क्यों कि वहाँ उन की टिप्पणी उपलब्ध नहीं है। दूसरे आलेख का लिंक भी दें तो दुरुस्त रहेगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-28859949388456690982010-06-08T19:00:21.330+05:302010-06-08T19:00:21.330+05:30दो लेख मैं लिख चुकी हूँ द्विवेदी जी .. जिसमे मैंने...दो लेख मैं लिख चुकी हूँ द्विवेदी जी .. जिसमे मैंने सम्पूर्णता से इन पक्षों पर प्रकाश डाला है ..<br />http://sanchika.blogspot.com/2010/03/blog-post.html<br /> <br />मित्र अरविन्द मिश्र मनुष्य को पशु साबित करके उसकी पाशविक /आक्रामक वृति को जबरन सही ठहराने में लगे हुए हैं. जिसके पीछे उनके अपने आग्रह है ..जैविक आवेगों को मैंने कभी कम करके नही आँका ..उस लेख में यह साफ लिखा है की वह प्राथमिक जरुरत है ..पर उसके बाद मनुष्य पशु नही रह जाता ... अब आगे मुझे कुछ भी नही कहना .L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-42827329033482370952010-06-08T19:00:12.550+05:302010-06-08T19:00:12.550+05:30द्विवेदी जी ने आगे कुछ प्रविष्टियां डाल दीं तो हमन...द्विवेदी जी ने आगे कुछ प्रविष्टियां डाल दीं तो हमने सोचा इस बहस का समापन हुआ ...या समापन चाहते हैं वे ! फिर हम पलट कर नहीं आये ! आज अचानक इस प्रविष्टि के नीचे टिप्पणियों की संख्या देखी तो उत्सुक्तावश पुनः चले आये ...अब खेद पूर्वक निवेदन है कि बहस को विषय से बाहर व्यक्तिगत आक्षेपों तक नहीं जाना चाहिए था ! इस बहस में हमारा पक्ष अब यही है ! आदर सहित !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-89404979911805552602010-06-08T18:51:46.953+05:302010-06-08T18:51:46.953+05:30@Arvind Mishra & L.Goswami
मित्रों,
एक विमर्श ...@Arvind Mishra & L.Goswami<br />मित्रों,<br />एक विमर्श के लिए मुझे यह रीति सही नहीं लग रही है। <br />पहले तो हम अपने आग्रहों को छोड़ें। हमारी भाषा एक दूसरे के प्रति सम्मानजनक हो। अपनी अपनी बात को संपूर्णता में कहें। अच्छा तो ये है कि अब जो भी मतभेद सामने आए हैं उन पर अरविंद जी और लवली जी अपने अपने आलेख लिखें और प्रकाशित करें। दोनों ही एक दूसरे के आलेखों को गंभीरता से पढ़ें और फिर उन की गंभीर आलोचना लिखें। <br />आशा है दोनों विद्वानों को मेरा यह आग्रह स्वीकार्य होगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-24124378692144983852010-06-08T18:47:26.005+05:302010-06-08T18:47:26.005+05:30यह मैं आपके बारे में भी कह सकती हूँ ...जीव विज्ञान...यह मैं आपके बारे में भी कह सकती हूँ ...जीव विज्ञान से इतर मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन आपके लिए आवश्यक है ..अन्यथा आप जानवरों तक ही सीमित रहेंगे. कृपया जीव विज्ञान में अपना मत प्रकट करे ..मनुष्य के व्यवहार के विज्ञान ..यानि मनोविज्ञान में अपनी सीमाएं स्वीकार कर लीजिये . वरना यह अज्ञानतापूर्ण अहंकार बना रहेगा.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-90618447512235859472010-06-08T18:42:47.803+05:302010-06-08T18:42:47.803+05:30साथ दिया लिंक भी देखे ...मनोविज्ञान में सहज वृति ,...साथ दिया लिंक भी देखे ...मनोविज्ञान में सहज वृति , बहुत जल्दी में होते हैं ..फैसला सुनाने के ...यह कुते बंदरों का अध्ययन नही हैL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-22721028689905105082010-06-08T18:42:09.058+05:302010-06-08T18:42:09.058+05:30@ इंसानों का अध्ययन पृथक करना ही मनोविज्ञान की एक ...@ इंसानों का अध्ययन पृथक करना ही मनोविज्ञान की एक बड़ी ज्ञात कमजोरी है !<br />अभी आपको और अध्ययन की जरूरत है -नहीं तो विचारों की ऐसी ही एकांगिता बनी रहेगी !<br />वैसे ज्ञान के प्रति आपका आग्रह प्रशंसनीय है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-40031869523957912022010-06-08T18:39:28.783+05:302010-06-08T18:39:28.783+05:30इंस्टिंक्ट -अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे !
मैं इसी की ब...इंस्टिंक्ट -अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे !<br />मैं इसी की बात कर रहा था ....<br />बछड़ा गाय के थन के पास इसी इंस्टिंक्ट के चलते ही जन्मते ही पहुँच जाता है ,<br />इंस्टिंक्ट का मूल आनुवंशिक होता है उच्चतर प्राणियों में इसे परिमार्जित करने में अधिगम की भूमिका होती है ?<br />अभी भी आपको यह हास्यास्पद लगता है तो आपके इस वृत्ति का कोई इलाज नहीं है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-63048014635029721802010-06-08T18:36:31.917+05:302010-06-08T18:36:31.917+05:30आप जो महिलाओं को पिपहरी कह कर संबोधित कर चुके भूत ...आप जो महिलाओं को पिपहरी कह कर संबोधित कर चुके भूत काल में ..इतने आक्रामक मनुष्य के सामने जाकर मुझे फिजिकल वायलेंस का खतरा सताने लगता है . अभद्र व्यवहार और असभ्यता आपके लिए सामान्य बात है ..मैं ऐसे किसी से क्या बात करुँगीL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-45184312455146653902010-06-08T18:33:39.563+05:302010-06-08T18:33:39.563+05:30बोध - Intuitive
वृति - Instinct
http://www.oldan...बोध - Intuitive<br /> वृति - Instinct<br />http://www.oldandsold.com/articles33n/instinct-5.shtml <br />..और कृपया कुत्तों के उपर हुए शोध का परिप्रेक्ष्य न दें ..इंसानों का अध्ययन अलग से किया जाता हैL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-21650687148165793742010-06-08T18:01:02.127+05:302010-06-08T18:01:02.127+05:30सहज वृत्ति के अंगरेजी समानार्थी शब्द को बतायेगीं क...सहज वृत्ति के अंगरेजी समानार्थी शब्द को बतायेगीं क्या ?<br />आत्ममुग्धता ,महानता का आरोपण मुझ पर क्यूं ? मैं तो एक साधारण सा व्यक्ति हूँ -अप सरीखा विशिष्टता बोध मुझमें कहाँ ?<br />मनुष्य के मनोभावों का अध्ययन बिना उसके पाशविक अतीत और संदर्भों के समीचीन नहीं है !<br /> नकचढ़ेपन और अज्ञानता के साथ लम्बी पहाड़ सी दुखभरी और निरर्थक जिन्दगी काटने के बजाय महानता के बोध के साथ शेष अल्प जीवन काट लेना श्रेयस्कर है -<br />यद्यपि शुभाकांक्षी होने के नाते मैं आपके लिए ऐसी कोई अभिशापित भावना नहीं रखता !<br />आप ब्लॉग पर बहस से एक बिंदु तक जाकर भाग लेगीं इसलिए ही मैं आमुख बहस का प्रस्ताव रख रहा था ...<br />@जाकिर भाई आप एक बताएगें और वे २४ -२५ गिना देगीं ....आप २४ -२५ बतायेगें (जो वस्तुतः आप बतायेगे नहीं ) तो वे २४० -२५० बता देगीं !<br />यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि कितनी किताबों की अंतर्वस्तु आपने हृदयंगम कर रखी है ? या आप फिर फिर पढ़ते रहते हैं ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-44570208643920785522010-06-08T17:14:52.198+05:302010-06-08T17:14:52.198+05:30@जाकिर जी - २०-२५ किताबों के नाम मैं भी बता सकती ह...@जाकिर जी - २०-२५ किताबों के नाम मैं भी बता सकती हूँ. वह कोई समाधान नही है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-15788032090359444062010-06-08T16:32:51.466+05:302010-06-08T16:32:51.466+05:30बहुत गम्भीर बहस चल रही है। मेरी समझ से इसके बीच आन...बहुत गम्भीर बहस चल रही है। मेरी समझ से इसके बीच आना मेरे वश की बात नहीं। पर लवली जी को ''मनुष्य की जैविक वृतियाँ निसंदेह महत्व रखती है परन्तु उन पर हद से अधिक ध्यानाकर्षण करवाने के पीछे भी कुछ प्रायोजित वजहें हो सकती हैं'' के सम्बंध में एक सलाह देना चाहूँगा कि आप कृपा कर एकलव्य, भोपाल द्वारा प्रकाशित 'समर हिल' पुस्तक अवश्य पढ़ें, हो सकता है कि उससे आपकी सोच में कुछ परिष्कार आए।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-44561148922250084102010-06-08T15:36:51.910+05:302010-06-08T15:36:51.910+05:30@जहां सहजबोध कहिये या वृत्ति बात एक ही है -
सहज वृ...@जहां सहजबोध कहिये या वृत्ति बात एक ही है -<br />सहज वृत्ति की जड़ें आनुवंशिकी में निहित होती हैं - <b>इस पर सिर्फ हँसा जा सकता है.</b><br /><br /><br />यह मेरी अंतिम टिप्पणी है ..और इसके बाद मैं आपसे संवाद रखने में बिलकुल भी रूचि नही रखती. भ्रम मिश्रित पूर्वाग्रह के साथ शेष जिंदगी चैन से महान होने का भ्रम पाले रहें ..शुभकामनायें.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.com