tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post3844166281553099888..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: टल्ला मारने का तंत्रदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-9190608837378790782011-07-05T22:21:08.857+05:302011-07-05T22:21:08.857+05:30जिस तरह आप अदालतों और न्यायिक सेवाओं की कमी की बात...जिस तरह आप अदालतों और न्यायिक सेवाओं की कमी की बात बताते रहते हैं वह बात सरकारी सेवाओं पर लागू तो नहीं होती पर यह सही है की सरकारी सेवकों का बड़ा तबका अक्षम और अयोग्य है. इन लोगों में पुराने लोगों की तादाद ज्यादा है. मेरे सामने पिछले दस सालों में जो युवा जन दफ्तर में आये हैं वे प्रतिभावान और कर्मठ हैं. पुराने लोग सीखना नहीं चाहते और उनके पास काम को टालने के कई बहाने होते हैं. सेवानिवृत्ति के करीब पहुँच चुके ऐसे लोगों से काम लेना खासा मुश्किल है.<br /><br />किसी ऐसे विभाग में जाएँ जहाँ पब्लिक डीलिंग नहीं होती या कम होती है. वहां आपको ज्यादातर लोग शांति से काम करते ही दिखेंगे.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-20357065649719141872011-07-05T21:23:16.744+05:302011-07-05T21:23:16.744+05:30सुना है एक तंत्र वो भी विकसित हो रहा है जिसमें सरक...सुना है एक तंत्र वो भी विकसित हो रहा है जिसमें सरकारी कर्मचारी अपने काम के लिए किसी और को नियुक्त कर खुद कुछ और करता है. !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-81377364663764403322011-07-05T19:50:19.713+05:302011-07-05T19:50:19.713+05:30प्रतिबद्धता सिरे सी ही गायब है...
तो तंत्र का यह ह...प्रतिबद्धता सिरे सी ही गायब है...<br />तो तंत्र का यह हाल होना ही था...<br /><br />जानबूझकर यह हाल बनाए रखा जाता है, ताकि समृद्धों के पास लूप-होल्स रहें...और मजबूर भ्रम में रहे कि कुछ हो सकता है...देर है पर अंधेर नहीं...<br /><br />और जिनकी चलनी है, उनकी गाड़ी चले जा रही है...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-9265722478637003112011-07-05T17:21:02.061+05:302011-07-05T17:21:02.061+05:30सही कह रहे हैं.सही कह रहे हैं.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-64379669371598156932011-07-05T17:00:06.265+05:302011-07-05T17:00:06.265+05:30हम आज़ादी की लड़ाई तो जीत गए पर वही परतंत्र की व्य...हम आज़ादी की लड़ाई तो जीत गए पर वही परतंत्र की व्यवस्था से काम चला रहे हैं, इसलिए आज भी हम मानसिक तौर पर गुलाम है और गुलाम तब तक काम नहीं करता जब तक पीछे कोई हंटर लेकर खडा न हो :(चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-55443376314871723482011-07-05T13:25:09.436+05:302011-07-05T13:25:09.436+05:30पूरी व्यवस्था का बेड़ा गर्क़ हो चुका है। चारों तरफ...पूरी व्यवस्था का बेड़ा गर्क़ हो चुका है। चारों तरफ हताशा का ही माहौल है।sajjan singhhttps://www.blogger.com/profile/09552971271017469640noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-40264525611956874952011-07-05T11:59:50.576+05:302011-07-05T11:59:50.576+05:30इसी टल्ले से गल्ले भरे जा रहे हैं।
अच्छी खबर ली आ...इसी टल्ले से गल्ले भरे जा रहे हैं।<br /><br />अच्छी खबर ली आपने।ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-5034457880432544252011-07-05T09:22:19.021+05:302011-07-05T09:22:19.021+05:30हर इंसान चहेता है,
जो माल खिलाये |
हर वो भैंस...हर इंसान चहेता है, <br /><br />जो माल खिलाये |<br /><br />हर वो भैंस दुलारी है, <br /><br />जो दूध पिलाये ||<br /><br />साहब तो मगरूर है | दुनिया का दस्तूर है ||<br /><br /><br /> <br /><br />मुर्गी है तो अंडा दे--<br /><br />मुर्गा-बकरा कट जाये |<br /><br />किन्तु नहीं कुछ पल्ले तो-<br /><br />हट जाये, बस हट जाये--<br /><br />पद के मद में चूर है | दुनिया का दस्तूर है ||<br /><br /><br /><br /><br /><br />बहुत सुन्दर भाव ||<br /><br /><br />बधाई |रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-17704902075980595202011-07-05T08:34:35.733+05:302011-07-05T08:34:35.733+05:30टल्ला मारने या गोली देने की एक वजह और भी है...
मु...टल्ला मारने या गोली देने की एक वजह और भी है...<br /><br />मुर्गी जितनी बार आएगी, अंडा देगी...फिर उसे एक बार में ही चट करने से क्या फायदा...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-29838464515490975882011-07-05T06:36:22.964+05:302011-07-05T06:36:22.964+05:30सबका अपना न्यूनतम-श्रम-तन्त्र विकसित हो गया है।सबका अपना न्यूनतम-श्रम-तन्त्र विकसित हो गया है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-52458723350384032102011-07-05T06:33:40.397+05:302011-07-05T06:33:40.397+05:30जब टल्ला मारने से ही काम चल जाता है तो काम करने की...जब टल्ला मारने से ही काम चल जाता है तो काम करने की क्या जरुरत है , और जब तक किसी टल्ले के बहाने काम लटकायेंगे नहीं तब तक इन्हें मिलेगा भी क्या?Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80575741135864287792011-07-05T03:42:23.794+05:302011-07-05T03:42:23.794+05:30पुलिस और दारोगा वाली बात बहुत अच्छी तरह से कही है।...पुलिस और दारोगा वाली बात बहुत अच्छी तरह से कही है। शानदार! <br /><br />बाल श्रमिक की बात पर पटना का बाल श्रमिक आयोग का कार्यालय याद आता है जो आयकर चौराहा के पास है और उसी के पास बाल श्रमिक काम करते होंगे, यह तय है।<br /><br />रेलवे स्टेशन भी याद आ रहा है जहाँ दस काउंटर हैं और तीन-चार ही खुलते हैं।<br /><br />यह तंत्र नहीं तंत्र(साधना वाला जिसमें साधक देवता के लिए कष्ट सहता है) हो गया है।<br /><br />भले सबकुछ कम हो लेकिन विकास का शोर मचाने का अहम तो है।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-16795280891608152522011-07-05T03:32:54.915+05:302011-07-05T03:32:54.915+05:30बिल्कुल सही कह रहे हैं.... टल्ला मारने का तंत्र वि...बिल्कुल सही कह रहे हैं.... टल्ला मारने का तंत्र विकसित हो गया है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-50851536413168211942011-07-05T00:22:49.274+05:302011-07-05T00:22:49.274+05:30गुरुवर जी, आपने 100 प्रतिशत सत्य लिखा है.आपका उपरो...गुरुवर जी, आपने 100 प्रतिशत सत्य लिखा है.आपका उपरोक्त लेख अव्यवस्था पर एक करारा प्रहार है.अंतिम पैराग्राफ समस्त अव्यवस्था की कहानी दोहराता है कि-हमारे पास कम पुलिस है, कम अदालतें हैं, कम स्कूल और कम शिक्षक हैं, कम डाक्टर और कम अस्पताल हैं। नगर पालिका के पास कम सफाई कर्मचारी हैं। जो हैं उन्होंने टल्ला मारने का तंत्र विकसित कर लिया है। यदि न करते तो सरकारें कैसे चलतीं?रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीकhttps://www.blogger.com/profile/01260635185874875616noreply@blogger.com