tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post3622108284732820083..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: "कल-युग-दर्शन" यादवचंद्र के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" का त्रयोदश सर्गदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-32352518939933849002010-08-10T09:35:33.717+05:302010-08-10T09:35:33.717+05:30स्रष्टा मुझसे घबराता है, मेरा हर हुक्म बजाता है.
...स्रष्टा मुझसे घबराता है, मेरा हर हुक्म बजाता है. <br />दिनेश भाई, ऐसी पंक्तिया वही कह सकता है, जिसमें जीवन की उद्दाम ललक हो, हर चुनौती से दो-दो हाथ करने का साहस हो, हर बाधा से टकराने का जज्बा हो. एक अनुठे कवि से परिचित कराने के लिये आभार. Subhash Raihttps://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-9785822755689627472010-08-07T22:31:09.716+05:302010-08-07T22:31:09.716+05:30जितनी भी बार पढ़ो...
हर बार लाजवाब...जितनी भी बार पढ़ो...<br />हर बार लाजवाब...रवि कुमार, रावतभाटाhttps://www.blogger.com/profile/10339245213219197980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-9290266198649292082010-08-07T21:17:01.286+05:302010-08-07T21:17:01.286+05:30बहुत सशक्त और ओजस्वी रचना.
रामराम.बहुत सशक्त और ओजस्वी रचना.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-72569456111886152822010-08-07T18:08:54.656+05:302010-08-07T18:08:54.656+05:30यादवचंद्र पाण्डेय जी की सुंदर कविता के लिये आप का ...यादवचंद्र पाण्डेय जी की सुंदर कविता के लिये आप का ओर यादवचंद्र पाण्डेय जी का धन्यवाद, कविता बहुत अच्छी लगी मै तो इसे एक गीत की तरह से गुणगुनाने लगा. धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-35228715004641524162010-08-07T12:43:16.525+05:302010-08-07T12:43:16.525+05:30इतनी भव पूर्ण और ओज से ओत प्रोत रचना पढवाने का शुक...इतनी भव पूर्ण और ओज से ओत प्रोत रचना पढवाने का शुक्रियासंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-28130974709354739052010-08-07T09:19:05.639+05:302010-08-07T09:19:05.639+05:30ऐसा आज तक कभा नहीं पढ़ा। बार बार दुहराने की इच्छा ...ऐसा आज तक कभा नहीं पढ़ा। बार बार दुहराने की इच्छा होती है, सस्वर।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-1921217366890102482010-08-07T04:28:04.233+05:302010-08-07T04:28:04.233+05:30कालजयी साहित्य का एक और सर्ग ...कवि युग द्रष्टा हो...कालजयी साहित्य का एक और सर्ग ...कवि युग द्रष्टा होता है -इसी रूप से परिचय कराती रचना !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com