tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post3525148649920910299..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: बेरोजगारी से लड़ने का उद्यम ....... पर "समय" की टिप्पणीदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80672925970289099502009-07-04T09:36:00.827+05:302009-07-04T09:36:00.827+05:30आजकल ऐंप्लोएबिलिटी (नियोजनीयता) शब्द को खूब उछाला ...आजकल ऐंप्लोएबिलिटी (नियोजनीयता) शब्द को खूब उछाला जा रहा है, मानो सब मनुष्य निकम्मे ही पैदा होते हों और उन्हें झाड़-तराशकर ऐंप्लोएबल बनाना होता है।<br /><br />पर यह तो उल्टी खोपड़ी वाली सोच है। होना यह चाहिए कि जैसी मानव-शक्ति उपलब्ध हो, वैसे उद्योग खड़े किए जाए। यही सीधी खोपड़ीवाली बात गांधी जी ने कही थी, पर बाकी सबकी खोपड़ी उल्टी होने से किसी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।<br /><br />उधर चीन के लोगों की खोपड़ी सीधी है। उन्होंने शुरू में ऐसे ही उद्योग विकसित किए जिनमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सके, जैसे खिलौने बनाना, जूते बनाना, वस्त्र बनाना, इत्यादि और उन्हें उन्होंने दुनिया के कोने-कोने में बेचकर इतना पैसा कमाया कि बड़े से बड़े उद्योग भी अब वहां लगने लगे हैं। तो उनकी प्राथमिकताएं सही थीं, पहले लोगों को रोजगार दो, फिर आदमी को चांद पर भेजो। यहां सब उल्टा-पुल्टा चलता है। पता नहीं दोष किसे दें।<br /><br />व्यक्तिगत रूप से मैं इसका दोष अंग्रेजी शिक्षण को दूंगा। एक तो अंग्रेजी शिक्षण लोगों की खोपड़ी को उल्टा कर देता है, और वे अमरीका-कनाडा की ज्यादा सोचने लगते है, न कि मेरठ-सिमलीपाल की। इससे हमारे देश की समस्याओं पर पढ़े-लिखे (पढ़ें अंग्रेजी में पढ़े-लिखे) लोग ध्यान ही नहीं देते।<br /><br />अंग्रेजी के कारण जो दूसरा नुकसान हो रहा है, वह यह है - हमारे देश में सरकारी तंत्रों में तथा निजी क्षेत्र में अंग्रेजी का प्रयोग बहुत हो रहा है। इससे देश के शिक्षण तंत्रों से एमए तक पढ़कर आया व्यक्ति भी इनमें खप नहीं सकता। वे सब इन्हें अनऐंप्लोएल लगते हैं।<br /><br />इसलिए दोष आम आदमी का नहीं है कि सरकार और निजी क्षेत्र उससे काम नहीं ले पा रहे हैं, बल्कि दोष सरकार और निजी क्षेत्र का है कि वे अपने कामकाज में अंग्रेजी का उपयोग करते हैं।<br /><br />यदि वे अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी आदि भाषाओं का उपयोग करने लगे (जो उनके लिए बिलकुल संभव है) तो जिन करोड़ों ग्रेजुएट और मास्टर स्तर तक पढ़े विद्यार्थियों को वे अब अनऐंप्लोएबल कह रहे हैं, उन्हें तुरंत नौकरियां मिल सकती हैं और वे रातों-रात ऐंप्लोएबल बन सकते हैं।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-4218785118299844862009-06-30T14:01:41.762+05:302009-06-30T14:01:41.762+05:30एक सार्थक आलेख पर एक उतनी ही सार्थक टिप्पणी और सोन...एक सार्थक आलेख पर एक उतनी ही सार्थक टिप्पणी और सोने पे सुहागा के रूप में अभिषेक ओझा के कथन...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-48421754219662323482009-06-30T11:32:53.483+05:302009-06-30T11:32:53.483+05:30diwedi ji....
aapne jo mera hosla badaya....uske ...diwedi ji....<br /><br />aapne jo mera hosla badaya....uske liye dil se aabhar...<br /><br />asha karta hun aap aage bhi isi tarah meri hoslaafzai aour margdarshan karte rahenge.....cartoonist anuraghttps://www.blogger.com/profile/11404227634579434765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-83105303506836410322009-06-30T00:02:53.811+05:302009-06-30T00:02:53.811+05:30शायद मैं ढंग से नहीं समझ पाया ! पर मुझे इसी पोस्ट ...शायद मैं ढंग से नहीं समझ पाया ! पर मुझे इसी पोस्ट में कुछ विरोधाभास दिखे और कई बातों से असहमति लगी. जो बातें दिमाग में आई लिखता जा रहा हूँ. अज्ञानी होते हुए धृष्टता के लिए क्षमायाचना सहित.<br /><br /> 'उद्यमी ( Entrepreneur) तो रातों रात कमाने के लालच वाले धंधों की ओर भाग रहे हैं। सरकार की इस ओर नजर है नहीं।' सरकार को इस पर क्या करना चाहिए? यकीन मानिए जो हो रहा है वो भी नहीं होता. वो कहते हैं न 'भारत की अर्थव्यवस्था रात में विकसित होती है जब सरकार सो रही होती है.' जग जाए तो... ! एक लालच वाला धंधा क्या रोजगार उपलब्ध नहीं कराता? एक लालच वाले धंधे का उदहारण होता तो ज्यादा क्लियर होता.<br /><br />बालाजी की सलाह उपयुक्त लगी. और जहाँ तक मेरा मानना है कंपनियाँ जल्दी ही आएँगी इस क्षेत्र में भी. जब तक अन्य क्षेत्रों में आसान अवसर हैं तब तक ही. इस क्षेत्र में भी जल्दी ही कंपनियाँ आएँगी. ठीक वैसे ही जैसे सिक्यूरिटी गार्ड प्रोवाइड कराती ही हैं एजेंसियां ! जब रिक्शों से लेकर एग्री बिजनेस में उद्यमी ( Entrepreneur) आ रहे हैं तो फिर इस क्षेत्र में भी आयेंगे ही.<br />http://www.economist.com/displaystory.cfm?story_id=12814618<br />http://www.hotteststartups.in/viewandvote.do?method=fetch&businessFn=viewandvote&startupId=713<br /><br />क्या सार्वजनिक परिवहन में निजी कंपनियों का आना हर जगह आसानी से संभव है? मुझे पता तो नहीं लेकिन लगता नहीं. वैसे बड़ी कंपनियाँ तो नहीं पर निजी प्लेयर तो हैं ही इस क्षेत्र में... मुंबई-पुणे ही इसका एक उदहारण है बाकी दक्षिण में बहुत अच्छी सुविधा है कम से कम एक शहर से दुसरे शहर जाने के लिए तो है ही. अब मेट्रो जैसे प्रोजेक्ट में बड़ी कम्पनियाँ आ ही रही है जो सार्वजनिक परिवहन ही है. वैसे ही अगर सार्वजनिक परिवहन में बड़ी कंपनियों को आने के लिए अन्य अवसर उपलब्ध हो तो आएँगी ही. <br /><br /> 'एक आईआईटीयन बनाने के लिए सरकार कितना खर्च कर रही है? क्या उस से कम खर्चों में साधारण श्रमिकों की एम्पलॉएबिलिटी बढ़ाने को कोई परियोजनाएँ नहीं चलाई जा सकती? पर क्यों चलाएँ?'<br />क्यों नहीं ! फिर से मुझे नहीं पता कि ऐसी योजनायें हैं या नहीं, पर इतना तो पता है... ज्यादा तो नहीं पर औसतन एक आईआईटीअन १०० लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है. http://timesofindia.indiatimes.com/India/IITians-contribution-to-economy-is-Rs-20-lakh-crore-Study/articleshow/3752658.cms<br /><br />'अभी साला विकसित देशों से काफ़ी कम देने के बाबजूद लाखों के पैकेज देने पडते हैं, ढेर लगा दो एम्प्लॉयेबिलिटी का, फिर देखों हजारों के लिए भी कैसे नाक रगडते हैं।' अगर ऐसा है तो फिर इसकी क्या जरुरत: <br />'क्या उस से कम खर्चों में साधारण श्रमिकों की एम्पलॉएबिलिटी बढ़ाने को कोई परियोजनाएँ नहीं चलाई जा सकती? 'Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-87769739030343604192009-06-29T14:00:24.645+05:302009-06-29T14:00:24.645+05:30बहुत सुंदर.आप सब से सहमत हुं.
धन्यवादबहुत सुंदर.आप सब से सहमत हुं.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-64499808309508611712009-06-29T11:40:09.666+05:302009-06-29T11:40:09.666+05:30हम 'समय' के साथ हैं. आभार. .हम 'समय' के साथ हैं. आभार. .P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-9756269930923121252009-06-29T11:13:24.718+05:302009-06-29T11:13:24.718+05:30सही कह रहे हैं , हमारी तरफ एक कहावत है कि -आदमी न...सही कह रहे हैं , हमारी तरफ एक कहावत है कि -आदमी नहीं होत है ,समय होत बलवान .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-65588514192675464082009-06-29T10:40:18.983+05:302009-06-29T10:40:18.983+05:30bilkul theek bat likhi hai aapne....bilkul theek bat likhi hai aapne....cartoonist anuraghttps://www.blogger.com/profile/11404227634579434765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-42230465309896028922009-06-29T10:37:30.774+05:302009-06-29T10:37:30.774+05:30निरीह टिप्पणी:
बात में दम है भाई जी!! हल्के में न...निरीह टिप्पणी: <br />बात में दम है भाई जी!! हल्के में नहीं ली जा सकती!!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-45391880383857524432009-06-29T10:14:17.300+05:302009-06-29T10:14:17.300+05:30दिनेश जी..आपका आलेख पढ़ा...बल्कि ये कहूँ की लगातार...दिनेश जी..आपका आलेख पढ़ा...बल्कि ये कहूँ की लगातार पढ़ रहा हूँ..इस पर आयी गुनीजनों की टिप्प्न्नी भी....मुझे लगता है की समस्या की असली वजह है मुट्ठी भर पूंजीपतियों के हाथों में देश की आर्थिक नीती का संचालन और ऊपर से स्थिति इसलिए भी अधिक दुखदाई है क्यूंकि सरकार न जाने किन अज्ञात कारणों से न तो खुद ही एक संतुलित और समग्र आर्थिक (रोजगार परक ) निति बनाने की पहन करती हैं न ही इन औद्योगिक स्तंभों को प्रेरित और बाध्य करती हैं की वे अपने व्यवसाय को सिर्फ निज लाभ तक सिमित रखें..<br /> यदि कुछ प्रयासों से ..ग्रामीण क्षेत्रों के पुराने ग्रामोद्योग के पुनरूत्थान के लिए कुछ किया भी जाए..उन्हें जैसे तैसे शुरू भी किया जाए और लोग जुड़ भी जाएँ ...तो भी असली समस्या तो उनके लिए बाज़ार तलाशने की है..सरकार तो फिलहाल अपने नवरत्नो और वैश्विक मंदी की आंधी और मंहगाई के प्रवाह से निपटने में ही लगी है....ऐसे में आर्थिक संतुलन या सामान रोजगार की बातें तो कहीं से भी उसके एजेंडे में कहीं भी दिख्याई नहीं देता..अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-2408354432811849322009-06-29T09:40:53.527+05:302009-06-29T09:40:53.527+05:30दमदार और तथ्यात्मकता से भरपूर आलेख.
रामराम.दमदार और तथ्यात्मकता से भरपूर आलेख. <br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-47238900178101204472009-06-29T08:59:48.193+05:302009-06-29T08:59:48.193+05:30द्विवेदी जी,
औद्योगिक जगत में एक कारखाने से जुड़े ...द्विवेदी जी,<br /><br />औद्योगिक जगत में एक कारखाने से जुड़े होने के नाते उठाये गये सवालों से मैं भी दो-चार होता रहता हूँ। कभी इंटरव्यू को आये या कभी किसी कॉलेज में कैम्पस सिलेक्शन के जाने पर।<br /><br />सार्थक चिंतन को सबसे बाँटने के लिये साधुवाद। वाकई व्यवस्था में लगी दीमकों को झाड़ बुहार कर एक नयी शुरूआत ही करनी होगी, मैं डॉ. शास्त्री से एकमत हूँ।<br /><br />सादर,<br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-6070212134481151152009-06-29T08:40:31.572+05:302009-06-29T08:40:31.572+05:30स्रोतों से अधिक जनसँख्या होने से यही होता है.स्रोतों से अधिक जनसँख्या होने से यही होता है.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-26146865400437274832009-06-29T08:05:50.268+05:302009-06-29T08:05:50.268+05:30बात में दम है भाई जी!! हल्के में नहीं ली जा सकती!!...बात में दम है भाई जी!! हल्के में नहीं ली जा सकती!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-64508245346510204632009-06-29T07:45:23.714+05:302009-06-29T07:45:23.714+05:30'समय' की बात दमदार है । उनकी बात में निहित...'समय' की बात दमदार है । उनकी बात में निहित है कि अनावश्यक चीजो का उत्पादन न हो । जब सेवायें कम से कम आबादी के लिए मुहैय्या की जायेंगी तब बेरोजगारी बढेगी ।<br />आपने 'समया पर अपनी राय नहीं दी ?अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-87035359265100520112009-06-29T07:41:11.698+05:302009-06-29T07:41:11.698+05:30बस अब तो इन्तजार उस पल का है कि कोई तूफान आये और इ...बस अब तो इन्तजार उस पल का है कि कोई तूफान आये और इस सिस्टम में आमूल-चूल <br />परिवर्तन हो।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-33260136802198002032009-06-29T07:24:35.471+05:302009-06-29T07:24:35.471+05:30केवल बेरोजगारी से लड़ना ही महत्वपूर्ण नहीं, रोजगार...केवल बेरोजगारी से लड़ना ही महत्वपूर्ण नहीं, रोजगार भी ऐसा मिले जहां हमारी आत्मा सहज अनुभव कर सकें, लेकिन हर जगह मामूली तनख्वाह में हरि साडू जैसे छोटे-छोटे तानाशाह बेहिचक अपनी हुकुमत चलाते रहते हैं हमें अपने कौशल का विकास कर इससे लड़ना चाहिए और लोगों को इस हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।shubhihttps://www.blogger.com/profile/09707058005458267824noreply@blogger.com