tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post2688678488990021949..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: प्रकृति उस पर हर विजय का हम से प्रतिशोध लेती हैदिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-67397895628886636852010-05-24T20:33:02.753+05:302010-05-24T20:33:02.753+05:30प्रकृति का चीरहरण मानवता के अस्तित्वा के लिए खतरना...प्रकृति का चीरहरण मानवता के अस्तित्वा के लिए खतरनाक है. प्रकृति का दोहन उसी तरह है जैसे लिमिट से ज्यादा शक्कर या मीठा खाने से पहले तो मीठे का अहसास होता है पर बाद में ये स्वस्थ्य के लिए हानिकारक ही साबित होती है ऐसे ही वर्तमान में तो विकास दिखता है पर भविष्य अंधकारमय है . <br />पश्चिमी देश सबसे ज्यादा प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते नजर आये थे और अब भारत भी उसी राह पर है. और इसलिए आज की GDP ग्रोथ डराने वाली लगाती है. <br /><br />मार्क्सवाद की सोच ठीक हो सकती है पर उनका क्रियान्वयन रानजीति, स्वार्थ और अहम् से प्रेरित होकर बेकार होकर रह गया है.राम त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-45458561352459909442010-05-24T17:37:37.459+05:302010-05-24T17:37:37.459+05:30आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ....आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ....Rahttps://www.blogger.com/profile/08726389437723424230noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-14221086124543663782010-05-24T17:00:08.219+05:302010-05-24T17:00:08.219+05:30चिंतनपरक आलेख ! प्रस्तुति के लिए आभार !चिंतनपरक आलेख ! प्रस्तुति के लिए आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-18491761593465035982010-05-24T12:28:16.081+05:302010-05-24T12:28:16.081+05:30यही सब सोचता तो मैं भी रहता हूँ किन्तु जब भी कहने...यही सब सोचता तो मैं भी रहता हूँ किन्तु जब भी कहने बैठता हँ तो उलझ जाता हूँ और कहने की प्रत्येक शुरुआत, शुरु होने के साथ ही समाप्त हो जाती है।<br /><br />कहना न होगा कि अपनी भावनाओं को इस तरह प्रस्तुत देख मुझे अत्यधिक आह्लाद हुआ है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-41824104514902452322010-05-24T08:58:41.311+05:302010-05-24T08:58:41.311+05:30प्रकृति हमारी अतिक्रमणता का प्रतिशोध लेती है ।प्रकृति हमारी अतिक्रमणता का प्रतिशोध लेती है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-63304609539965596812010-05-23T23:11:45.555+05:302010-05-23T23:11:45.555+05:30शीर्षक ऐसा लगा जैसे प्रकृति में कोई आत्मा समाई हो,...शीर्षक ऐसा लगा जैसे प्रकृति में कोई आत्मा समाई हो, जो बदला लेने पर उतारू हो...<br /><br />हम यदि प्राकृतिक परिवेश को नष्ट करेंगे, तो चूंकि हम भी काफ़ी कुछ उस पर निर्भर है, अपनी बारी में उससे हमारी तकलीफ़े बढेंगी ही...<br /><br />बेहतर प्रस्तुति...रवि कुमार, रावतभाटाhttps://www.blogger.com/profile/10339245213219197980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-2120728410826848232010-05-23T23:08:07.501+05:302010-05-23T23:08:07.501+05:30जो हमें प्रगटतः प्रकृति के विरुद्ध मानव अभियान लगत...जो हमें प्रगटतः प्रकृति के विरुद्ध मानव अभियान लगते हैं हो न हों वे प्रक्रति के ही कोई गुप्त गुम्फित नियोजन ही न हों ? प्रकृति एक बड़ी परीक्षक है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-23477761254356661702010-05-23T22:41:33.411+05:302010-05-23T22:41:33.411+05:30जब जब मानव प्रकृति से लडा तब तब हारा है, साथ मै बे...जब जब मानव प्रकृति से लडा तब तब हारा है, साथ मै बेकसुरो को भी उस का फ़ल भुगतना पडा है, कुछ भी कर लो प्रकृति को इंसान कभी भी आंहकार से जीत नही सकता.तभी तो हमारे बुजुर्ग इसी प्रकृति की पुजा अलग अलग रुप मे करते थे, ओर सब से ज्यादा भारत मै ही प्रकृति मेहरबान थी,राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-48107327441307033162010-05-23T22:12:13.255+05:302010-05-23T22:12:13.255+05:30@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
यदि मार्क्स-एंगेल्स ने इत...@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी<br />यदि मार्क्स-एंगेल्स ने इतिहास की सटीक व्याख्या की है और समाज के बदलने के नियमों को खोज निकाला है तो इन दो महापुरुषों के एक जीवन के लिए यह बहुत बड़ा काम था। उन के उपरांत बहुत से लोगों ने और समूहों ने भी भविष्य का तानाबाना बुना है, कुछ सही, कुछ गलत। पर वर्तमान पूंजीवाद समाज के विकास की अंतिम सीढ़ी नहीं है। अन्य व्यवस्थाओं की तरह इसे भी जाना होगा। नई व्यवस्था कैसी होगी? यही तो हमें करना है। और वह इस-उस की आलोचना से नहीं जाना जा सकता। हमें इतिहास के अंत की वकालत करने वालों को छोड़ कर संपूर्ण मानवता के लिए आगे का मार्ग तो प्रशस्त करना ही होगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-36994650656304669892010-05-23T22:03:49.840+05:302010-05-23T22:03:49.840+05:30शीर्षक से सहमत...।
एंगेल्स का प्रतिपादन अब संशोधन ...शीर्षक से सहमत...।<br />एंगेल्स का प्रतिपादन अब संशोधन की अपेक्षा रखता है। मार्क्सवादियों ने इतिहास की व्याख्या तो ठीक की है लेकिन भविष्य का आकलन सटीक नहीं हो पाया।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-92199359590194400502010-05-23T21:13:17.587+05:302010-05-23T21:13:17.587+05:30भांति-भांति के उदहारण दे कर आपने अच्छे से समझाया ह...भांति-भांति के उदहारण दे कर आपने अच्छे से समझाया है कि "प्रकृति उस पर हर विजय का हम से प्रतिशोध लेती है."<br />..उम्दा पोस्ट.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-5694080519162447142010-05-23T20:00:06.418+05:302010-05-23T20:00:06.418+05:30बहुत उम्दा आलेख. आपका आभार.बहुत उम्दा आलेख. आपका आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-51500835218931033302010-05-23T19:57:26.087+05:302010-05-23T19:57:26.087+05:30प्रकृति पर जब से मानव ने विजय पा लेने का दंभ भरा ह...प्रकृति पर जब से मानव ने विजय पा लेने का दंभ भरा है, परिणाम सामने हैं वर्ना भाररतीय व तथाकथित अन्य पिछड़ी सभ्यताएं तो प्रकृति की पूजा ही करती आई हैं.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.com