tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post206859650514507146..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: आलोचना, चाटुकारिता और निन्दा - अपराध और परिवीक्षादिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-38152252600933090172010-05-20T14:31:00.768+05:302010-05-20T14:31:00.768+05:30आप का यह आलेख तो अब पढ़ पाया !
सुन्दर स्थिति विश्ल...आप का यह आलेख तो अब पढ़ पाया ! <br />सुन्दर स्थिति विश्लेषण ! आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-47468004504489858112010-05-15T22:25:29.469+05:302010-05-15T22:25:29.469+05:30अच्छा विश्लेषण.अच्छा विश्लेषण.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-42062590221381789552010-05-14T23:25:38.204+05:302010-05-14T23:25:38.204+05:30आप के लेख से सहमत है जी, मुझे तो लगता है कि बात कु...आप के लेख से सहमत है जी, मुझे तो लगता है कि बात कुछ नही बस कुछ लोगो ने इसे बतगड बना दिया, मै आज भी इन तीनो को इज्जत ओर प्यार की नजर से ही देखता हुं, बस गलत फ़ेहमी कोदुर करने की जरुरत है, ओर एक दो नये ब्लांगरो से जो बहुत ही भद्दी टिपण्णीयां दे कर आग मै घी का काम कर रही है उन्हे अन्देखा करने कि जरुरत है,आप का धन्यवाद इस अति सुंदर विचारो के लियेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-41429845425911834952010-05-14T23:01:24.691+05:302010-05-14T23:01:24.691+05:30एक आध बात कहनी चाहूँगा. बलाग जगत बहुत विशाल है.इस ...एक आध बात कहनी चाहूँगा. बलाग जगत बहुत विशाल है.इस में केवल साहित्य ही नहीं, इस लिए साहितिक आलोचना की बात साहितिक स्वभाव वाले ब्लॉगों के बारे ही हो सकती है. बलाग अपने स्वभाव से अधिक निजी चीज़ है. बलाग विधा नहीं एक माध्यम है. इसमें साहितिक रचनायों में भी अधिक निज्जता होती है. ऐसा शायद इस लिए है की इस पर अभी कोइ बाहरी मापदंड लागू नहीं होते. ब्लाग की अधिकांश रचनाएँ डाइरी के अधिक नजदीक है. बलाग की आलोचना के लिए मापदंड निश्चित करने के लिए हमें अधिक उदार होना पड़ेगा.Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-31104612075767881252010-05-14T16:01:59.244+05:302010-05-14T16:01:59.244+05:30Very Nice!Very Nice!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-5855211779116522692010-05-14T15:35:35.574+05:302010-05-14T15:35:35.574+05:30इस मुद्दे पर , सच कहा तो जबरन बनाए गए इस मुद्दे पर...इस मुद्दे पर , सच कहा तो जबरन बनाए गए इस मुद्दे पर आपकी राय पढी सर , यकीन मानिए ये बिल्कुल अपेक्षा के अनुरूप ही था । और सच बात शायद ये है कि हम सब आलोचना सहने लायक कलेजा अभी नहीं बना पाए हैं , और दूसरी ये कि नीयत अभी भी हमेशा ही संदेह के घेरे में रहती है ।अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-3938580690661391762010-05-14T15:15:59.689+05:302010-05-14T15:15:59.689+05:30हम तो कहेंगें
जय हो!!!हम तो कहेंगें <br /><br />जय हो!!!रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-84592615968370045302010-05-14T14:14:14.488+05:302010-05-14T14:14:14.488+05:30आपका लिखा अच्छा लगा।
समीर लाल जी की टिप्पणी में भी...आपका लिखा अच्छा लगा।<br />समीर लाल जी की टिप्पणी में भी बड़प्पन दिखा, अच्छा लगा।<br />अनूप शुक्ल जी की टिप्पणी में लिखा भी संतुलित, समझ से भरा, सटीक और अच्छा लगा।<br />शरद कोकास जी ने मर्म की बात टिप्पणी में दी, अच्छा लगा। प्रवीण पाण्डेय जी का नज़रिया भी अच्छा लगा।<br />ज्ञान जी का सवाल उठाना पूरे ब्लॉग-जगत की पोल खोल गया, इस अर्थ में सार्थक रहा।<br />कुल मिला कर प्रकरण भी अच्छा ही रहा, अगर इस से सीख ले कर कुछ सुधार आ सके, जहाँ - जहाँ चाहिए।Himanshu Mohanhttps://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-74636858783698236032010-05-14T12:49:59.580+05:302010-05-14T12:49:59.580+05:30आदरणीय ज्ञानदत्तजी की लेखन शैली इस पोस्ट के माध्...आदरणीय ज्ञानदत्तजी की लेखन शैली इस पोस्ट के माध्यम से टिप्पणीकर्ताओं को समालोचना में उद्धृत करना चाह रही थी । गुण-दोष का संक्षिप्त उल्लेख आलोचना का हिस्सा है । टिप्पणियों समेत पूरी पोस्ट इस विषय एक समालोचना का वक्तव्य होता । टिप्पणीकर्ताओं ने यथोचित के अतिरिक्त सब कुछ लिखा । कुछ श्रेष्ठ और संतुलित ब्लॉगर ही इस मर्म को समझे, उनके प्रति मेरा आदर और बढ़ गया ।<br />जहाँ तक आलोचना सहन करने की बात है तो लोगों को सदाशयता के लिये भी आलोचना झेलनी पड़ती है । सागर की गहराई सा मन रखने के लिये सब समाहित कर लेने का गुण आना चाहिये । नदियाँ अपना वेग सागर में जाकर भूल जाती हैं ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-25453437162536046592010-05-14T11:58:29.029+05:302010-05-14T11:58:29.029+05:30मुझे भी नहीं लगता की ज्ञान जी का मंतव्य चाटुकारिता...मुझे भी नहीं लगता की ज्ञान जी का मंतव्य चाटुकारिता या निंदा रहा होगा। किस भाव, मानसिकता या कौन सा विचार आने पर उन्होंनें यह पोस्ट लिखी थी, यह तो ज्ञानजी खुद ही बता सकते हैं।<br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-78567739804974954682010-05-14T11:31:29.464+05:302010-05-14T11:31:29.464+05:30मैने वह पोस्ट पढ़ी नहीं है…अब पढ़ने की इच्छा भी नह...मैने वह पोस्ट पढ़ी नहीं है…अब पढ़ने की इच्छा भी नहीं रही।<br /><br />मेरा मानना है कि अभिव्यक्ति के इस नये साधन में अभी बहुत अराजकत है। आलोचना भी वही सह पाते हैं जिन्होंने लेखन की लंबी परंपरा में वह ताक़त हासिल की है। आलोचना का अर्थ तो शरद भाई ने साफ़ कर ही दिया है। परंतु यहां मैने अक्सर टीप आकर्षित करने के लिहाज़ से लिखे जाने का जो दबाव देखा है वह इन सबके मूल में है शायदAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-85265375974332160642010-05-14T10:40:22.743+05:302010-05-14T10:40:22.743+05:30शांत पानी में पत्थर मारने का काम ज्ञानजी कर गए. हि...शांत पानी में पत्थर मारने का काम ज्ञानजी कर गए. हिन्दु-मुस्लिम के बाद लिखने के लिए एक मुद्दा थमा दिया. भूल गए हम भारतीय भावुक होते है. परदे पर देखे से हीरो का मुल्यांकन करते है. भाषण से नेता का मुल्यांकन करते है. समीरजी व अनूपजी की आपस में तुलना ही बेतुक्की बात है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-28156544638349000472010-05-14T07:20:21.121+05:302010-05-14T07:20:21.121+05:30द्विवेदी जी अगर मै समीर लाल समीर और अनूप शुक्ल ...द्विवेदी जी अगर मै समीर लाल समीर और अनूप शुक्ल फुरसतिया के रचनाकर्म पर बतौर पाठक कोई धारणा बनाता हूं तो इसमे गलत क्या है ? ...मुझे या किसी भी अन्य पाठक को यह अधिकार तो है कि अध्ययन करें और धारणा बनाये ...मेरे ख्याल से इस सीमा तक ज्ञानदत्त पान्डेय भी सही हैं किंतु ...किंतु जब उन्होने इन दोनो के श्रेष्ठिक्रम निर्धारण का यत्न किया तो दो बाते स्पष्ट हुईं कि या तो उन्होने अपने आपको इन दोनो के बाद गिना ...जोकि विनम्रता है अथवा वे स्वयं को इस सूची से इतर / ऊपर मानकर जजमेन्टल हुए ... आप इसे दम्भ कह सकते है ! अब उन्होंने विनम्रता से काम लिया याकि दंभ से ...अंततः ये भी तो उन्हें ही निर्धारित करना है...क्योंकि ब्लाग उनका ...आलेख उनका...और मुद्दा भी उनका अपना है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-26206360635040302012010-05-14T07:00:32.513+05:302010-05-14T07:00:32.513+05:30आदरणीय द्विवेदी जी हिंदी में बच्चों को आरंभ से ही ...आदरणीय द्विवेदी जी हिंदी में बच्चों को आरंभ से ही आलोचना और समालोचना करने को कहा जाता है जब भी परीक्षा के प्रश्नपत्र में समालोचना की बात आती है तो बात योग्यता की शायद उतनी नहीं होती जितनी एक बालक की प्रतिक्रिया जानने की होती है इस लिहाज से तो आपके आलेख ने मन प्रफुल्लित किया कि ब्लोगरों की<br />दुनिया में समालोचना विकास के लिए जरूरी हैRAJENDRAhttps://www.blogger.com/profile/11169279612224714443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-16510354186068385902010-05-14T06:40:36.502+05:302010-05-14T06:40:36.502+05:30हमारा विनम्र मत है कि:
१. ज्ञानजी ने जो लिखा वह अप...हमारा विनम्र मत है कि:<br />१. ज्ञानजी ने जो लिखा वह अपने विचार लिखे।<br />२. वे हमेशा इसी तरह लिखते हैं।<br />३.उनका लिखने का अंदाज विषय प्रवर्तन की तरह होता है। उन्होंने एक-दो वाक्यों में अपनी बात कही और आपसे कहा अब आप बताओ आगे।<br />४. आगे की कहानी उनका पाठक समुदाय करता है। वैल्यू एडीशन करता है।<br />५. यहां भी उन्होंने यही किया। अपनी बात कही और खोल दिया टिप्पणी बक्सा। लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाओं की झोली खोल दी। इस तरह वे अपने लिखने के अंदाज में पूरी तौर से सफ़ल रहे।<br />६. इस मामले में वे नामवरजी के आगे की चीज साबित हुये।<br />७. इस बहाने ब्लॉग जगत की और तमाम प्रवत्तियां सामने आईं। लोगों ने अनामी/बेनामी नामों से ज्ञानजी या फ़िर अनूप शुक्ल की ऐसी-तैसी करना शुरू किया।<br />८. इसके अलावा और प्रवत्तियां भी सामने आई हैं। सबसे बड़ी बात कि आलोचना सहन का माद्दा बहुत कम है। जरा सा किसी ने कुछ खिलाफ़ कह दिया तो आप रोने लगे और आपके प्रशंसक कपड़े फ़ाड़ने लगे।<br />९.आप कुछ कहिये न! आपके पास भी तो तमाम तथ्य हैं! विनम्र मत जो आपने व्यक्त किया उस राह पर अमल करते हुये कुछ विचार व्यक्त करिये।<br />१०. मेरा विनम्र मत है कि ब्लॉग जगत में अधिकांश लोग बातों को अपने पूर्व गठित धारणाओं के आधार पर अधिक ग्रहण करते हैं। <br />११.अब आप कहेंगे बिन्दु १० के समर्थन में प्रमाण लाओ। तो सब काम क्या हमीं करेंगे? आप भी तो कुछ करिये।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-29214874425343244022010-05-14T06:32:53.170+05:302010-05-14T06:32:53.170+05:30मैं आपसे सहमत हूँ,आलोचना और प्रत्यालोचना होनी चाहि...मैं आपसे सहमत हूँ,आलोचना और प्रत्यालोचना होनी चाहिए लेकिन ब्लॉग जगत तो आपस में ईमेल और फोन पर भी एक दुसरे की कमियों और खूबियों की चर्चा कर सकता है ,ब्लॉग पर तथ्यों के बिना किसी ब्लोगर की ही निंदा या चाटुकारिता से ब्लॉग की मर्यादा को आघात लगता है / ब्लॉग जगत के लिए ये शर्म की बात है की ,हम देश और समाज को नरक बनाने वालों को निशाना बनाने के वजाय एक दुसरे ब्लोगर को ही निशाना बनाने पे तुले हुए हैं और दुःख तब और ज्यादा होता है जब इस कार्य में कुछ समझदार और गंभीर ब्लोगर भी शामिल हो जाते हैं /honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-1330841304806852872010-05-14T05:24:22.539+05:302010-05-14T05:24:22.539+05:30सटीक और संतुलित अभिव्यक्ति के लिए आभारसटीक और संतुलित अभिव्यक्ति के लिए आभारमहेन्द्र मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/00466530125214639404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-65620429172460217562010-05-14T04:50:21.274+05:302010-05-14T04:50:21.274+05:30आलोचक/समालोचक न तो वकील की भूमिका में हो सकता है औ...आलोचक/समालोचक न तो वकील की भूमिका में हो सकता है और न जज की भूमिका में. सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है तटस्थता की. यदि वह वकील होगा तो तटस्थ नहीं रह सकता और जज तो वह कतई नहीं हो सकता जज तो पाठक ही होगा. <br />(हलाँकि ज्यादा मामले में ऐसा नहीं हैं) <br />और फिर परीवीक्षा (probation) काल में भी चेतावनी तो दी ही जाती होगी.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-48861455703019153862010-05-14T04:42:32.558+05:302010-05-14T04:42:32.558+05:30बहुत सटीक और सधा हुआ विश्लेषण किया है आपने. साधुवा...बहुत सटीक और सधा हुआ विश्लेषण किया है आपने. साधुवाद!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-14636758598739599902010-05-14T02:01:21.243+05:302010-05-14T02:01:21.243+05:30kokas jee kee baat se sahmat hun !kokas jee kee baat se sahmat hun !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-80892812843845915662010-05-14T01:59:26.629+05:302010-05-14T01:59:26.629+05:30सटीक और संतुलित अभिव्यक्ति रहती है आपकी।
हमेशा की...सटीक और संतुलित अभिव्यक्ति रहती है आपकी। <br />हमेशा की तरह इस बार भी इस प्रसंग की खबर नहीं थी। यहां आकर ही पता चला और फिर संबंधित पोस्टें पढ़ने के बाद टिपिया रहे हैं :)<br />शुक्रिया..अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-72962941284884731072010-05-14T01:43:46.416+05:302010-05-14T01:43:46.416+05:30आपने काफी कुछ स्पष्ट किया और उसके बाद शरद भैया ने ...आपने काफी कुछ स्पष्ट किया और उसके बाद शरद भैया ने जो कहा वह और भी अधिक स्पष्ट हुआ।<br /><br />मुझे लगता है ब्लॉगजगत में हम आलोचना सहन नहीं कर सकते ( यहां हम से आशय करीबन सभी ब्लॉगर्स से है)<br /><br />शायद इसीलिए सब बवाल खड़े होते हैं।<br /><br />आगे और पढ़ना चाहूंगा इस मुद्दे परSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-4612570174937429002010-05-14T01:24:52.186+05:302010-05-14T01:24:52.186+05:30इस लेख के सन्दर्भ मे^ सर्वप्रथम मै आलोचना पर श्री ...इस लेख के सन्दर्भ मे^ सर्वप्रथम मै आलोचना पर श्री नामवर सिंह का यह वक्तव्य उद्ध्रत करना चाहता हूँ "आलोचना वकालत नहीं है । वह सफाई का वकील नहीं है जो मुजरिम को बचाने का काम करे । आलोचना किसी को कटघरे में खड़ा कर किसी के खिलाफ फैसला भी नहीं सुना सकती । मेरा काम है समालोचना । पहले खुद देखना और दूसरों को दिखाना ,दिखानेवाले का क्या काम होगा मैं नही जानता । लेकिन क्या आलोचक- समलोचक की अविधा कुछ कम है कि हम दूसरे पेशे में अपना नाम लें । । समालोचना का धर्म "देखने" और "दिखाने" का है । जो दिखाई नहीं दे रहा है , पर्दे के पीछे जो छिपा है उस पर्दे को हटाकर दिखा सकूँ कि देखो ! सच यहाँ छिपा है । इस तरह जो दूसरे सच को नहीं देख सके हैं उन्हे भी दिखा सकूँ । फिलहाल मेरी नज़र में मेरा धर्म यही है । आलोचना का भी शायद यही धर्म होगा । आलोचक का एकमात्र अस्त्र है उसका -लोचन । मै आलोचना में उसका इस्तेमाल करना चाहता हूँ बस । " <br />नामवर जी के इस कथन का अर्थ यही है कि आलोचक का काम दिखाना है ।देखने का काम तो पाठक भी कर सकता है लेकिन छुपी हुई कई चीज़ों को दिखाने का काम आलोचक ही कर सकता है और इस तरह दिखाने में साक्ष्य सर्वाधिक ज़रूरी है अन्यथा इसके अभाव में मूल्यांकन पूर्ण नहीं होगा । फिर हम जिसे रचना कहते हैं वह ही प्रमुख लक्ष्य होना चाहिये न कि व्यक्ति । व्यक्तित्व और कृतित्व में अंतर हो सकता है ।<br />इसीलिये आलोचना आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिये एक अलग दृष्टि की दरकार होती है जो केवल एकांगी न हो । यदि वह खुद चौतरफा नहीं देख सकता तो वह औरों को क्या दिखायेगा ? <br />द्विवेदी जी यह आपने बहुत अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है । सूचना ,विचार और रचना यह सब कुछ हम इन दिनों ब्लॉगजगत में देख रहे हैं । और इन पर अलग अलग तरीके से आलोचना का समय आ गया है । किसी भी विधा के विकास के लिये स्वस्थ्य आलोचना की आवश्यकता होती है जिसके अभाव में विकास ठहर जाता है । <br />आपके इस आलेख में बहुत सारे विषयों पर चिंतन है । मैं कोशिश करूंगा कि आगे चलकर आपके साथ ब्लॉगीरी के विकास में सहयोग कर सकूँ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-53322931961294166732010-05-14T01:10:55.454+05:302010-05-14T01:10:55.454+05:30यदि हम बिना किसी उदाहरण, तथ्य और साक्ष्य के अपनी ब...<i>यदि हम बिना किसी उदाहरण, तथ्य और साक्ष्य के अपनी बात कहते हैं तो<b> प्रशंसा करने की स्थिति में यह चाटुकारिता</b> और <b>कमियों का उल्लेख करने पर यह निंदा</b> का रूप ले लेगी। </i><br /><br />यही हुया भी है!Anonymousnoreply@blogger.com