tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post1436669654552312994..comments2024-03-19T10:02:48.954+05:30Comments on अनवरत: लड़कियों का घर कहाँ है?दिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-71358585713008498812013-09-25T22:50:21.532+05:302013-09-25T22:50:21.532+05:30आशा जी, आप ने मेरे मुहँ की बात छीन ली।आशा जी, आप ने मेरे मुहँ की बात छीन ली।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-50950238981759242022013-09-25T21:52:49.962+05:302013-09-25T21:52:49.962+05:30दिनेशराय जी आपको पूर्वा जैसी यशस्वी बेटी का पिता ...दिनेशराय जी आपको पूर्वा जैसी यशस्वी बेटी का पिता होने की बधाई। इस विस्तृत और गहरे अध्ययन के लिये पूर्वा को भी बधाई।<br />लडकी को उसका घर दिलाने के लिये,<br />हमें पश्चिम का एक बात में अनुसरण करना होगा, कि विवाह के बाद लडकी ससुराल नही अपने घर जाये जहां दोनो पति-पत्नी अपना घर बसायें। इसमें दोनों के मातापिता उनकी मदद कर सकते हैं। उन्हें जब जरूरत हो तब वे दोनों अपने मातापिता की मदद ले सकते हैं। और मातापिता को भी खुले दिल से उनकी मदद करना चाहिये। यह केवल करने से ही साध्य होगा। शायद इससे समस्या सुलझे और लडकी को उसका घर मिल सके और संबंध दोनों घरों से सहज रह सकें। Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-89754657655668386382013-09-22T19:39:31.472+05:302013-09-22T19:39:31.472+05:30मेरे एक मौसेरे भाई ने पूछा कि लड़कियाँ अपनी शादी म...मेरे एक मौसेरे भाई ने पूछा कि लड़कियाँ अपनी शादी में इतना क्यों रोती हैं? तो मेरा जवाब था कि शादी के बाद लड़की न इधर की होती है और न उधर की, इसलिए रोती है। उस का कुछ नहीं रहता है। एक उस का मायका है और एक उस का ससुराल। पर उस का घर कहाँ है? मैं ने कभी किसी लड़के को ये कहते नहीं सुना कि ये उसका मायका है, उसका ससुराल अवश्य होता है। हम कैसे उम्मीद करें कि ये सब सुधर जाएगा? जब कि हम खुद उसे नहीं सुधारना चाहते हैं। जो चाहते हैं वे कोशिश नहीं करते। जब तक हम सामाजिक सोच को नहीं बदलेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। सिर्फ कानून बनाने से किसी को नहीं बचाया जा सकता। अगर बचाना है तो हमें लोगों की सोच बदलनी पड़ेगी। यह करने से पहले हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. . .. बहुत खूब<br />Sushil Pathak"Shil"https://www.blogger.com/profile/06650726445530013754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-28340025266234876882012-09-24T07:10:21.219+05:302012-09-24T07:10:21.219+05:30आँखे खोलने वाली सच्चाई|
बात आज से लगभग बीस बर्ष प...आँखे खोलने वाली सच्चाई|<br /><br />बात आज से लगभग बीस बर्ष पहले की है जोधपुर में एक दिन किसी रिश्तेदार के यहाँ गए तो दहेज़ व बालिका शिक्षा पर चर्चा चल पड़ी| रिश्तेदार बताने लगे उनके एक प्रोफ़ेसर मित्र ने अपनी पुत्री को डाक्टरी पढ़ाई करवाई और जब वे अपनी डाक्टर पुत्री के लिए रिश्ते तलाशने लगे तो हर जगह मोटा दहेज़ माँगा गया|<br />बेचारे प्रोफ़ेसर साहब कहते सुने गए कि - मैंने पुत्री को डाक्टर बनाया उसकी कद्र कोई नहीं कर रहा इससे तो बढ़िया इसकी पढाई पर किया गया खर्च बचाकर इसे अनपढ़ रखकर उस पैसे का दहेज़ देता तब लड़की ले जाने वाले खुश होते|Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-86888363447658200742011-10-12T05:38:38.554+05:302011-10-12T05:38:38.554+05:30त्रुटि वश परवीन की जगह प्रवीन हो गया है |त्रुटि वश परवीन की जगह प्रवीन हो गया है |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-24514358741562131232011-10-12T05:37:30.543+05:302011-10-12T05:37:30.543+05:30बहुत ही बेहतरीन आलेख बधाई पूर्वा जी
प्रवीन शाकिर ...बहुत ही बेहतरीन आलेख बधाई पूर्वा जी <br />प्रवीन शाकिर का एक शेर है -<br />लड़कियों के दुःख अजीब और सुख उससे अजीब <br />जब वो हँसती हैं तो काजल भींगता है साथ -साथजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-11506284686542873402011-10-12T05:37:28.842+05:302011-10-12T05:37:28.842+05:30बहुत ही बेहतरीन आलेख बधाई पूर्वा जी
प्रवीन शाकिर ...बहुत ही बेहतरीन आलेख बधाई पूर्वा जी <br />प्रवीन शाकिर का एक शेर है -<br />लड़कियों के दुःख अजीब और सुख उससे अजीब <br />जब वो हँसती हैं तो काजल भींगता है साथ -साथजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-34023128474165927182011-10-12T00:11:33.124+05:302011-10-12T00:11:33.124+05:30एक सार्थक प्रस्तुति !एक सार्थक प्रस्तुति !Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-88869352512712580372011-10-11T21:53:55.518+05:302011-10-11T21:53:55.518+05:30भारत में जितना लिंगभेद दिखता है उतना कहीं नहीं। क्...भारत में जितना लिंगभेद दिखता है उतना कहीं नहीं। क्या मनुष्य क्या जानवर सभी में वह भेद करता है। इसका एक और एकमात्र कारण उसका लोभी होना है।<br /><br />बिटिया मारे पेट में, पड़वा मारे खेत<br />नैतिकता की आँख में, भौतितकता की रेत।<br /><br />इस पोस्ट को पढ़कर मुझे अपनी एक कविता याद आ गई। लिंक दे रहा हूँ मन हो तो पढ़ सकते हैं...<br /><br />http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2011/03/blog-post_08.htmlदेवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-49727004316741024882011-07-07T18:09:31.013+05:302011-07-07T18:09:31.013+05:30दहेज देने की प्रथा दक्षिण भारत में खूब है.आंध्र के...दहेज देने की प्रथा दक्षिण भारत में खूब है.आंध्र के दक्षिण में भी.<br />यह केवल वहाँ कम है जहाँ सदा से स्त्रियाँ घर से बाहर जैसे खेतों में काम करती रही हैं. पहाड़ी इलाकों में भी कम है. पहाड में प्रायः घर बाहर स्त्री देखती है और पुरुष परदेश में नौकरी करता है.<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-55434396749644722032011-07-06T23:02:39.996+05:302011-07-06T23:02:39.996+05:30पूर्वा का यह लेख पुर्वाई के झोंके जैसा लगा॥पूर्वा का यह लेख पुर्वाई के झोंके जैसा लगा॥चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-5702007301448109282011-07-06T22:28:27.507+05:302011-07-06T22:28:27.507+05:30इसीलिए हमारी पुरानत व्यवस्था में विवाह का एक प्रका...इसीलिए हमारी पुरानत व्यवस्था में विवाह का एक प्रकार ऐसा भी था जिसमें लडकी को सम्मान के साथ धन भी प्रदान किया जाता था.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-24913811437209310542011-07-06T21:39:37.058+05:302011-07-06T21:39:37.058+05:30माता-पिता और परिवार के प्रति लड़कियों की वर्तमान भ...माता-पिता और परिवार के प्रति लड़कियों की वर्तमान भूमिका में बदलाव से किसी परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-4709851873210368192011-07-06T21:24:43.878+05:302011-07-06T21:24:43.878+05:30दुर्भाग्य से अभी भी सामाजिक बदलाव की गति मंद है मह...दुर्भाग्य से अभी भी सामाजिक बदलाव की गति मंद है महज क़ानून ही बनते जाने से समस्या का हल नहीं होता नजर आ रहा है -जन जागरण का कारगर तरीका क्या हो यह सोचा जाना जरुरी है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-58225397148912346442011-07-06T16:52:30.951+05:302011-07-06T16:52:30.951+05:30सशक्त लेख है जी
इस प्रश्न ने खलबली सी मचा दी है, द...सशक्त लेख है जी<br />इस प्रश्न ने खलबली सी मचा दी है, दिमाग में<br />मेरी तीन बहनें हैं और मैनें अपने घर में भी थोडा भेदभाव होते देखा है। लेकिन अब जमाने में बदलाव भी दिख रहे हैं। मेरे एक मित्र के दो बेटे के बाद बेटी हुई है, जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार था और मैं जा रहा हूँ उनसे पार्टी लेने। :)<br /><a href="http://antarsohil.blogspot.com/2010/08/blog-post_20.html" rel="nofollow">अरे लडकी! भगवान की जैसी मर्जी</a><br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-18479814152847341422011-07-06T16:27:22.187+05:302011-07-06T16:27:22.187+05:30विचारणीय आलेख्……………पूर्वा को बधाई।विचारणीय आलेख्……………पूर्वा को बधाई।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-54251344897104832612011-07-06T16:02:13.469+05:302011-07-06T16:02:13.469+05:30समस्या सामाजिक है इसे हम कभी भी कानून बना कर नहीं ...समस्या सामाजिक है इसे हम कभी भी कानून बना कर नहीं रोक सकते है जब तक की लोगो की सोच को न बदला जाये | कम पढ़े लिखे और गांव की बात तो दूर की है पढ़े लिखे बड़े शहरों के और पैसे वाले भी कन्या भ्रूण हत्या और लड़का लड़की के बिच फर्क करते है | क्योकि बचपन से ही सभी के दिमाग में चाहे वो महिला हो या पौरुष ये बिठा दिया जाता है की बेटा ही सर्वोतम है | घुघूती बासूती जी की बात गलत नहीं है यदि वास्तव में बेतिया कमाने लगे और माँ बाप का खर्च उठाने लगे तो समस्या कुछ हद तक ख़त्म हो सकती है पूरी तरह से नहीं | <br /><br /> डा अमर कुमार जी <br /><br /> मुझे लगता है की यदि दक्षिण भारत में ये नहीं होता तो उसका एक बड़ा कारण है यहाँ पर बेटी की शादी में दहेज़ देने और शादी में दिखावा करने की वो परंपरा नहीं है जो भारत के उत्तरी और पश्चिमी इलाको में है वह बेटी को बोझ समझने की सबसे बड़ी वजह यही है दहेज़, बेटी पैदा होते ही लोग दहेज़ के बारे में सोचने लगते है और कुछ लोग राय देते है की अभी से दहेज़ जुटाने लगो | यदि बेटिया खुद काम करने लगे तो शायद अपने लिए दहेज़ खुद जुटा सके क्योकि भारत से दहेज़ वाली समस्या जाना तो नामुमकिन सा दिखता है | <br /><br /> जैसा की चन्दन जी ने कहा है की आज का युवा खासकर लडके आगे आने के लिए तैयार नहीं है और मैंने तो देखा है की युवा खुद दहेज़ की मांग करते है अपनी चाहतो की लिस्ट बना कर ससुराल भेज देते है | अभी मेरे गांव में एक शादी हो रही है वो भी प्रेम विवाह जिसमे लडके ने खुद ससुराल जा कर दहेज़ में बड़ी रकम मांग ली बेचारी लड़की का रो रो कर बुरा हाल था उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की जिससे वो प्रेम करती थी वो ऐसा करेगा चुकी शादी काफी पहले दोनों की इच्छा से तय हो गई थी बस लडके की पढाई पूरी होने का इंतजार था | तो अब जबकि ये बात सभी जगह फ़ैल चुकी है तो वो लड़की और परिवार भी इस शादी को नहीं तोड़ पा रहे है | लडके से प्रेम तब किया था जब वो बेरोजगार था और कुछ खस पढ़ा लिखा नहीं था अब एम बी ए करते ही उसका ये भाव हो गया | तो ये है पढाई लिखी का असर आज के युवा पर |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-27979795831652516372011-07-06T15:34:37.577+05:302011-07-06T15:34:37.577+05:30समाचारपत्र में भी पढ़ा था यह लेख
सच्चाई के धरातल प...समाचारपत्र में भी पढ़ा था यह लेख<br /><br />सच्चाई के धरातल पर रह कर बात की जाए तो हमारी सामाजिक व्यवस्था, संरचना बहुत हद तक ज़िम्मेदार है इन बातों के लिए।<br /><br />किन्तु एक बात पर मुझे संशय है कि कि केवल आर्थिक स्वावलंबन से स्थितियाँ सुधर जाएँगी। सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं जहाँ मंडप में कथित कमाऊ मर्द भी दहेज मांगते अपने पिता के सामने सिर झुकाए 'गऊ' बन जाते हैं।<br /><br />और <a href="http://bspabla.blogspot.com/2011/07/blog-post.html" rel="nofollow">दहेज पर यह ताज़ा खबर</a> तो कुछ और ही सोचने पर मज़बूर करती हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-76341239864117123082011-07-06T12:19:39.694+05:302011-07-06T12:19:39.694+05:30गाँव की जगह गा हो गया है, सुधार कर पढ़ें।गाँव की जगह गा हो गया है, सुधार कर पढ़ें।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-84977191159054382702011-07-06T12:15:29.582+05:302011-07-06T12:15:29.582+05:30पूर्वा जी,
जो औरतें नहीं बदल सकतीं जैसाकि आपने कह...पूर्वा जी,<br /><br />जो औरतें नहीं बदल सकतीं जैसाकि आपने कहा है, उन्हें हम अलग नहीं कर सकते क्योंकि परिवार की मालिक तो वही हैं इस फैसले में। हाँ लड़कों को आगे आना चाहिए। अगर लड़के ठान लें तो दहेज कल खत्म लेकिन हमारा युवा नौटंकीबाज युवा है। सिर्फ़ फायदे के लिए युवा-युवा चिल्लाता है लेकिन शादी जैसे मुद्दों पर पूरे भारत में एक प्रतिशत के अलावे सभी युवा अपने माता-पिता की इच्छानुसार ही चलते हैं। अगर वे विरोध करें तो हालत बदल जाएगी। लेकिन ये युवा गए-बीते जैसे हैं। एक गाँ की जनसंख्या अगर 2000 भी मान ली जाय तो उसमें शायद ही एक युवा होगा या नहीं होगा जो अपने माता-पिता के खिलाफ़ इस मामले में आगे बढ़े। मैं ऐसे युवाओं को जानता हूँ जो कहने के लिए इंजीनियर, डॉक्टर या कुछ हैं लेकिन महिलाओं के मुद्दे पर घटिया सोच रखते हैं। और यही भारत के युवा का आज का सच है।<br /><br />यह बिलकुल सही है कि लड़की के लिए आवाज उठाना मुश्किल है क्योंकि हमारी सामाजिक संरचना ही हो गई है इस तरह की कि लड़की कमजोर पड़ जाती है। आप चाहें तो लड़कियों से बाते कर के देखें इन मामलों में लगभग लड़की माता-पिता के हाथ का खिलौना ही होती है। और लड़की बगावत कर दे तो उसकी हालत समाज में क्या होती है, आप जानती होंगी। युवा सोते रहेंगे तब यही होगा। इस देश के पास युवाओं की कमी नहीं है लेकिन युवा हैं बहुत कम। सिर्फ़ उम्र कम होने से कोई युवा नहीं जाता।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-56540068418179704362011-07-06T10:29:01.708+05:302011-07-06T10:29:01.708+05:30मैं चन्दन कुमार मिश्रजी की बात से बिलकुल सहमत हूँ ...मैं चन्दन कुमार मिश्रजी की बात से बिलकुल सहमत हूँ की आज जिस तरह की व्यवस्था है उसके लिए औरतें भी दोषी हैं | पर आप जिन औरतों की बात कर रहें है वो उस उम्र की है जिनकी सोच बदलना उस पत्थर को तोड़ने के बराबर है जिसकी अभी हमारे पास कोई मशीन नहीं हैं | पर बात यहाँ माता पिता की है | उन युवाओं की है जो आज देश का भविष्य हैं और उनकी जो कल देश का होंगे | आज हर लड़की दहेज़ के या और दुसरे हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकती क्योंकि वो अभी उतनी स्वावलंबी नहीं है | कुछ भी करने से पहले उसे दस बार सोचना पड़ता है | जो आवाज़ उठाती हैं उन्हें कहीं ना कहीं इस बात का विश्वास होता है की उस का परिवार उस का साथ देगा | पर क्या लड़के भी इतने स्वावलंबी नहीं हैं वो हो रहे अन्याय की खिलाफ आवाज़ उठा सकें |purvahttps://www.blogger.com/profile/12810148869442052071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-38968960801268099372011-07-06T09:58:41.276+05:302011-07-06T09:58:41.276+05:30यार तुम अय्यार हो क्या ??
पैदा होने से
सात म...यार तुम अय्यार हो क्या ??<br /><br />पैदा होने से <br /><br />सात माह पहिले--<br /><br />कातिलों से बची <br /><br />संदेहालंकार हो क्या ??<br /><br />दूध में डुबोया <br /><br />अफीम चटाया <br /><br />तकिया दबाया <br /><br />*छपनहार हो क्या ?? * नाश करने वाला/वाली <br /><br />उलटे दांव <br /><br />बड़े भेदभाव <br /><br />ससुराल जाव <br /><br />*अपहार हो क्या ?? *चोरी / छिपाना <br /><br /><br />सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-23297033083739515812011-07-06T08:42:34.393+05:302011-07-06T08:42:34.393+05:30बेहतरीन एवँ प्रौढ़ विश्लेषण...
इस आलेख पर्चँदन कुमा...<i>बेहतरीन एवँ प्रौढ़ विश्लेषण...<br />इस आलेख पर<a href="http://anvarat.blogspot.com/2011/07/blog-post_05.html#comment-2974533262579246351" rel="nofollow">्चँदन कुमार मिश्र की टिप्पणी</a>बहुत ही महत्वपूर्ण और यथार्थ परक है ।<br />मेरी उत्कँठा का विषय यह भी रहा है कि यह समस्या पूर्वोत्तर राज्यों, आँध्र के नीचे पड़ने वाले दक्षिण भारतीय राज्यों में लगभग नगण्य क्यों है ? सँभवतः इसका सीधा सम्बन्ध सुदृढ़ साक्षर समाज के होने से है ।<br />घूघुती जी का यह अवलोकन कि,<a href="http://anvarat.blogspot.com/2011/07/blog-post_05.html#comment-7917892131298475288" rel="nofollow">आर्थिक आधार के वज़ह से ही ऎसा भेद-भाव है,"हर लड़की कमाकर अपने माता पिता को दे, उनकी बुढ़ापे की लाठी बने। शायद हमारे समाज में रुपया ही बोलता है, संतान स्वार्थ के लिए पैदा की जाती है। बेटी माता पिता को इतना दे और कुछ न ले कि लालची माता पिता बेटियों को जन्म देने लगें।"</a> मुझे उनसे असहमत होने पर बाध्य करता है ।<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-24789048532791645112011-07-06T08:00:38.420+05:302011-07-06T08:00:38.420+05:30सामाजिक सचाई, आंकडों की शक्ल में और डरावनी हो जात...सामाजिक सचाई, आंकडों की शक्ल में और डरावनी हो जाती है, शायद खौफ महसूस हो, तसवीर बदले.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1604947878232005729.post-21238501403932665212011-07-06T06:48:58.560+05:302011-07-06T06:48:58.560+05:30लडकी का न होना पूरे परिवार को अधूरा रखता है। हम दो...लडकी का न होना पूरे परिवार को अधूरा रखता है। हम दोनों भाइयों को 'बेटी का बाप' बनने का सुख नहीं मिला। हमारे पिताजी को मरते दम तक इसी बात की वेदना रही। वे कहते थे - 'तुम दोनों ने जरूर ईश्वर के प्रति कोई जघन्य और अक्षम्य अपराध किया है जो तुम दोनो को बेटी नहीं दी।'<br /><br />पूर्वा का निष्कर्ष कोई नहीं बात नहीं है किन्तु है बिलकुल सही - हमें अपनी सोच बदलनी पडेगी।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.com