@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बौद्धिक जाम का इलाज : शारीरिक श्रम

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

बौद्धिक जाम का इलाज : शारीरिक श्रम

कुछ दिन पहले एक मुकदमा मुझे मिला। उस के साथ चार फाइलें साथ नत्थी थीं। ये उन संबंधित मुकदमों की फाइलें थीं पहले चल चुके थे। मैं ने उस फाइल का अध्ययन किया। आज उस केस में अपना वकालतनामा पेश करना था। कल शाम क्लर्क बता रहा था कि फाइल नहीं मिल रही है। मैं ने व्यस्तता में कहा कि मैं उसे देख रहा था यहीं किसी मेज पर रखी होगी।

आज सुबह जब मैं आज की फाइलें देख रहा था, वही फाइल न मिली। मैं ने भी कोशिश की पर मुझे भी नहीं मिली और बहुमूल्य आधा घंटा उसी में बरबाद हो गया। अब तो क्लर्क के आने पर वही तलाश कर सकता था।  किसी ओर काम में मन नहीं लगा। जब तक फाइल नहीं मिलती लगता भी नहीं।पर तब तक मैं क्या करता?

मैं ने अपने काम की जगह छोड़ दी। शेव बनाई और स्नानघर मे ंघुस लिया। वहां दो चार कपड़े  बिना धुले पड़े थे, उन्हें धो डाला। फिर लगा कि बाथरूम फर्श तुरन्त सफाई मांगता है। वह भी कर डाली। फिर स्नान किया और स्नानघर से बाहर आया तब तक क्लर्क आ चुका था।

मैं ने उसे बताया कि वह फाइल पेशियों वाली अलमारी में होनी चाहिए। वह तुरन्त तलाश में जुट गया। इस के पहले कि मैं कपड़े वगैरह पहन कर तैयार होता उस ने फाइल ढूंढ निकाली। मेरा दिमाग जो उस फाइल के न मिलने से जाम में फँस गया था। फर्राटे से चल पड़ा।

मुझे महसूस हुआ कि जब बौद्धिक कसरत से कुछ न निकल रहा हो तो वह कसरत छोड़ कर कुछ पसीना बहाने वाले श्रम साध्य कामों में लग जाना चाहिए, कमरों से निकल कर फील्ड में मेहनतकश जनता के साथ काम करने चल पड़ना चाहिए। राह मिल जाती है। 

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