@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अप्रैल 2016

रविवार, 24 अप्रैल 2016

ये हवा, ये सूरज, ये समन्दर, ये बरसात क्या करे?


मारे गाँवों में बस्ती के नजदीक खलिहान होते थे। फसल काट कर लाने और तैयार करने के वक्त सिवा यही खलिहान दूसरे दूसरे कामों में आते थे। मसलन, बच्चों के खेलने की जगह और शादी-मुंडन वगैरा समारोहों के लिए। हर गाँव में चरागाह हुआ करती थी मवेशियों को चरने के लिए। इस के अलावा पगडंडियाँ और बैलगाड़ियों के चलने के लिए गडारें हुआ करती थीं। हर गाँव के पास कम से कम अपना एक तालाब, कुछ तलैयाँ और पोखर हुआ करते थे।


इन में से अधिकांश अब सिरे से गायब हैं। खलिहानों तक गाँव पसर चुके हैं, वहाँ बढ़ती आबादी के लिए घर बन गए हैं। चरागाह पर खेतीहरों ने कब्जे कर लिए हैं। तालाब हाँक दिए गए हैं, तैलायाएँ पाट दी गयी हैं, वे या तो खेतों में शामिल हैं या फिर उन पर निर्माण हो चुके हैं। अधिकांश पगडंडियाँ गायब हैं और गडारें भी ज्यादातर खेतों में शामिल हो गयी हैं। अब खाली जगह कहीं नहीं।


तालाब, तलैयाएँ और पोखर बरसात के पानी को जमा करते थे। जो साल में कभी दस माह तो कभी बारह माह तक काम आता था। इस के अलावा इन से भूगर्भ भी चार्ज होता रहता था और वातावरण में नमी रहती थी। भूगर्भीय जल का उपयोग केवल पीने के पानी के लिए अथवा तब होता था जब तालाब, तलैयाएँ और पोखर पूरी तरह सूख जाते थे। इन सब के साथ साथ पेड़ भी गायब हुए हैं। कोई अब अपने खेत की मेढ़ पर पेड़ को रहने नहीं देता, जहाँ छाया पड़ती है वहाँ फसल कम होती है या नहीं होती।


अब हमारे पास ट्यूबवेल हैं। घरों में भी और खेतों में भी। हम साल भर उन से पानी खींचते हैं, बरबाद करते हैं। धरती के पेट में पानी असीमित नहीं है। वह नीचे जाता जाता है और अंततः हमें सूखा पेट मिलता है। गर्मियाँ बाद में शुरू होती हैं हैण्डपंप पहले बजने लगते हैं।


पानी कहीं जाता नहीं है। वह जमीन में रहता है, हवा में उड़ जाता है या नदियों से बह कर समंदर तक पहुँच जाता है। एक बरसात की प्रक्रिया है जो इस सारे पानी का आसवन करती है। समंदर के पता नहीं क्या क्या मिले पानी को सूरज की गर्मी के सहारे हवा सोखती है और नम हो कर धरती पर घूम घूम कर बरसात कराती है।


हवा की बरसात कराने की क्षमता भी सीमित है, पर इतनी सीमित भी नहीं कि वह धरती के बच्चों की जरूरत पूरी नहीं कर सके। बच्चे ही नालायक हों बरसात के पानी को साल भर सहेजने का उद्यम करने से बचते रहें, जो कुछ शैतान बच्चे हैं वे पहले तो सहेजने के साधन नष्ट करें, फिर धरती के पेट में जमा पानी पर कब्जा कर उस का बाजार लगा कर मुनाफा कमाएँ तो ये हवा, ये सूरज, ये समन्दर, ये बरसात क्या करे?

... दिनेशराय द्विवेदी