@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शिखंडी! गलत जवाब है

शनिवार, 2 जून 2012

शिखंडी! गलत जवाब है

लत, गलत, बिलकुल गलत जवाब है!

च्चे¡ तुम ने सवाल का उत्तर गलत दिया है। चाहते हुए भी तुम्हें नम्बर नहीं दे सकता। तुम्हारे लिए मेरे पास सिर्फ अंडा है। मुर्गी का, या फिर अबाबील का, तोते, का या फिर चील का। बस¡ तुम्हारे पास यही एक च्वाइस है, जिस का चाहो, ले लो। बस एक ही मिलेगा।

मानता था, मैं तुम्हें श्रेष्ठ विद्यार्थी। चाहता था, अव्वल आओ तुम। लेकिन  सब गुड़ गोबर कर दिया। तुमने नहीं पढ़ी महाभारत। फिर भी उस के उदाहरण देने चले? केवल सुन सुना कर, और लोगों से, पोंगा-पण्डितों से। देखा, क्या निकला नतीजा? अंधेरी रात में लालटेन भभक उठा।

ब, पिटोगे तुम। जरूर पिटोगे। तुम ने अपराध ही ऐसा ही किया है। होता कोई ऐरा गैरा, नत्थू खैरा तो बच भी निकलता। पर तुमने तो कानून पढ़ा है। तुम कैसे बचोगे? बच गए लाठियों से, बंदूक से, तोप से तमंचे से तो कानून से घेरे जाओगे। कहाँ जाओगे? कहाँ भागोगे? बच नहीं पाओगे।

क्या सोच कर? क्या सोच कर तुमने कहा? उस मितभाषी, विनम्र, दुबले-पतले, दाढ़ी-पगड़ी वाले, सिर झुकाए, मौन रह कर कार-सेवा कर रहे शालीन बूढ़े को। क्या सोच कर कहा तुमने शिखंडी? तुम जानते नहीं, कौन था, या थी शिखंडी? बिना जाने ही उसे, चस्पा कर दिया तुम ने, उस के नाम पर। तो अब जान लो कौन था, या थी शिखंडी?

भीष्म को तो जानते हो? उस ने किया था अपहरण जिन तीन बहनों का, उन मे से एक थी जो प्यार करती थी किसी से? और रचाना चाहती थी अपना ब्याह उसी से। हर लिया उसे, भीष्म ने, अपने भाई, विचित्रवीर्य के लिए। लेकिन जो प्रेम करती थी किसी और से, कैसे बनाता वह भाभी उसे। मुक्त कर दिया भीष्म ने। किन्तु अपहरण तो दाग था, स्त्री के लिए, कौमार्य उस का हो चका था, अब वह थी कलंकित, भीष्म  के सानिध्य से। त्याग दिया, अपनाया नहीं प्रेमी ने भी उसे। जल उठे उस के क्रुद्ध नयन, बदला लेने को हो गई कृत संकल्प। अबला से बनी सबला। वही थी, बदले की आग ने उसे ही बनाया था शिखंडी। बाप बदला, वेष बदला, की प्रतीक्षा युद्ध के घोष की। तब तान सीना वह खड़ी थी, शत्रु की पाँत में, ठीक भीष्म के सामने। पाप के बोझ से दबे भीष्म ने देखा उसे, शस्त्र अपने धरा पर डाल दिए। फिर तभी लगा छोड़ने तीर, अपने ही  पितामह पर अर्जुन, वीर?

ब बताओ¡ क्यों कहा था? जाने बिना ही, उस बूढ़े को शिखंडी? अब जान कर भी कथा मिथक की। क्या फिर कहोगे? उसे शिखंडी?
और  कहा तो ...
लाओगे कहाँ से वह भीष्म, जिस ने किया हो अपहरण उस बूढ़े का? कौन  है, जिस के सामने खड़ा है? बूढ़ा, बन शिखंडी। कौन है जो उस का प्रेमी बना है? किस ने उसे प्रेम से वंचित किया है? कौन  है जो शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन बना वार करता है?

हाँ तो आड़ ले कर वार करने दुर्योधन खड़ा है।  फिर आड़ जिस का ली गई है, वह क्यों कर शिखंडी हो सकता है?

तो बच्चे? इस बार मिलेगा तुम्हें मात्र अंडा। उत्तीर्ण तुम को कर सकता नहीं। जो ढूंढ लो कोई नयी उपमा, ठीक से पढ़ पढ़ा कर मिथक को। पूरक में बैठ जाना। तब देख लेंगे काबीलियत तुम्हारी, हो सके भी हो या नहीं, उत्तीर्ण होने लायक तुम? 

9 टिप्‍पणियां:

Gyan Darpan ने कहा…

यह उपमा बिल्कुल गलत दी गयी है, इनकेलिए तो मालिक के वफादार के लिए कोई प्रयुक्त उपमा होनी चाहिए थी!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम तो देश के जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

बेनामी ने कहा…

बेहतर...

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

sundar prastuti

विष्णु बैरागी ने कहा…

सन्‍दर्भ/प्रसंग समझे बिना उपमा देना सामान्‍य चलन हो गया है। यह उसी का उदाहरण है।

एक यात्रा के दौरान, रेलगाडी में भजन मण्‍डली को गाते सुना था - 'सीताजी के चीरहरण में दौडे-दौडे आए थे।'

ghughutibasuti ने कहा…

सहमत।
घुघूती बासूती

Arun sathi ने कहा…

करारा.
तहे तह उघार दिया
धांसू
सरजी,,.....उघाड दिया ....
शर्म करो..?

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

मनमोहन वाला चित्र कुछ ठीक नहीं लगा यहाँ। कम से कम इस जगह।

निर्मला कपिला ने कहा…

सटीक व्यंग।